अध्याय 14
डॉ. अमरदीप फ़िक्र में डूबे हुए.... अपने सामने खड़े पोरको की तीनों बहनों पर एक सामान्य निगाह डाल कर बात करना शुरू किया।
"यह देखिए ! तुम्हारे भाई पोरको की तबीयत के बारे में मैं तुम्हारे अप्पा-अम्मा से विस्तार में बात नहीं कर सकता | इसी कारण तुम तीनों को मैंने यहां बुलाया। तुम पढ़ी-लिखी लड़कियां हो। इसलिए मैं जो कह रहा हूं उसको सुनकर आप निराश मत होइएगा ।
"तुम्हारे बड़े भाई को कुछ घंटे में... ओपन स्टमक सर्जरी करके खून में मिले उस स्क्रॉल साइप्रो वायरस को लोकेट करके निकालने वाला हूं। इस ऑपरेशन के संबंध में डॉक्टर शिवपुण्यम से मैंने कंसल्ट किया। इस ऑपरेशन का सक्सेस रेट 10% ही है उन्होंने बोला।
"इसका मतलब 10 जनों का ऑपरेशन करें.... तो सिर्फ एक जना ही जिंदा रहेगा । इसके लिए डरकर ऑपरेशन नहीं करें ऐसा संभव नहीं। भगवान के ऊपर भार डाल कर ऑपरेशन करके देख लें । तुम तीनों क्या कहती हो....?"
सबसे बड़ी बहन ने पूछा "भैया का ऑपरेशन ना करें... तो क्या होगा?"
"बिना किए रहे तो... वह वायरस पूरे शरीर में फैल जाएगा। किसी भी समय मौत हो सकती है। उस वायरस को स्कैन करके मालूम कर लें.... तो तुम्हारे भैया की उम्र पक्की है। नहीं तो 6 महीने के अंदर मर जाएगा। अभी आप लोगों के सामने दो ही ऑप्शन हैं। ऑपरेशन करना है...? नहीं करना है?"
तीनो बहने एक दूसरे को देखने लगी। कुछ समय तक मौन पसरा।
"ऐसे बिना कुछ बोले खड़े रहे तो.... क्या मतलब है ? ऑपरेशन नहीं करना चाहिए सोचे तो..... मैं आज ही पोरको को डिस्चार्ज कर देता हूं। आप घर लेकर जा सकते हो।"
"नहीं डॉक्टर.... भैया का ऑपरेशन कर दीजिएगा। हमें भगवान पर पूरा भरोसा है। वह भगवान पक्का भैया को बचाएंगे।"
"आप लोगों को यह विश्वास हैं तो बहुत है। ऑपरेशन जरूर सफल होगा !"- कहकर इंटरकॉम रिसीवर को लेकर एक बटन दबाया फिर बोले।
दूसरी तरफ स्टाफ नर्स पुष्पम।
"सिस्टर ! पोरको के ऑपरेशन के लिए उनकी फैमिली के लोग मान गए । उस ऑपरेशन के लिए जो तैयारियां करनी है शुरू कर दीजिए...."
"यस... डॉक्टर !"
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