विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 10 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 10

अध्याय 10

तिरुचिरंमंपलम घबराकर डॉक्टर के हाथ को पकड़ लिया।

"डा.... डॉक्टर ! आप क्या कह रहे हैं ? मेरे बेटे पोरको क्या हुआ है?"

डॉ अमरदीप, अपने हाथ में जो स्कैन रिपोर्ट थी उसको दोबारा फ्रीक से देख कर बोले।

"आपके बेटे पोरको के सिर की कोई समस्या नहीं है। उनको बार-बार सिर दर्द होने का कारण पेट की एक समस्या है....."

पोरको की मां वडीवु रोते हुए चिल्लाकर पूछी "उ...उ... उसके पेट की क्या समस्या है डॉक्टर ?"

"अम्मा....! ऐसी एक समस्या.... लाखों में एक को ही होती है। यह आपके बेटे को हुई है। यह एक वायरस से आने वाला रोग है। उस वायरस का नाम 'स्क्रोल साइप्रो' है। यह एक जहरीला वायरस है। शरीर के अंदर खून में यात्रा करता रहता है। वह किसी भी एक अंग में निरंतर नहीं रहता है।

"परंतु... एक कुछ मिनट के लिए दिमाग के अंदर ठहर जाता है और आराम करता है। ऐसा वह वायरस रेस्ट लेते हैं तब ही सिर दुखता है। वह सिर दर्द ही पोरको को हुआ है। इसको पहले देखने वाले डॉक्टर ने ठीक से डायग्नोसिस नहीं किया। सिर को स्कैन करके देखा... तो वह वह वायरस नहीं मिलेगा। पेट को स्कैन करके देखें तभी पता चलेगा।"

पोरको तीनो बहने एक साथ डॉक्टर अमरदीप के पैरों पर गिरकर रोने लगी।

"डॉक्टर ! हमारा भाई को किसी तरह ठीक कर दीजिएगा डॉक्टर..... वह  नहीं होंगे तो हम में से कोई भी जिंदा नहीं रहेगा ।"

डॉ. अमरदीप ने दीर्घ श्वास छोड़ा।

"यह देखिए... मैं एक डॉक्टर हूं ! बस इतना ही। भगवान नहीं हूं। इस रूम में मेरे पीछे की दीवार पर कितने भगवानों की फोटो है देखो....! पिल्लैयारपट्टी विनायक पहले तृप्ति वेंकटाजलपति तक लाईन से फोटों ही हैं। मैं रोगियों का इलाज करने वाला एक आदमी हूं। बस इतना ही।

"तुम्हारे भाई के शरीर में जो स्क्रॉल साइप्रो नामक वायरस की संख्या अभी ज्यादा है। उसे खत्म करना है... 42 घंटे एक एंटीबायोटिक दवाई को ड्रिप के द्वारा... चढ़ाना पड़ेगा। उसका रिस्पांस मिलेगा या नहीं मुझे नहीं पता।"

"क्योंकि.... उस वायरस के लिए हम जो एंटीबायोटिक दवाई देते हैं उन दोनों के बीच में एक युद्ध होता है। लड़ाई बोलने के बदले युद्ध ही कहना सही रहेगा।

"उस युद्ध में कौन जीतेगा यह 48 घंटे बाद ही मालूम होगा। एंटीबायोटिक दवाई जीत जाए.... तो तुम्हारा भाई आंखें खोल कर देखेगा। नहीं तो....?"

"डा... डॉक्टर!"

डॉ. अमरदीप मुड़कर खड़े होकर वैकटाजलपति की फोटो की ओर दिखाएं।

"उन पर विश्वास करो। पोरको आंखें खोल कर देखेगा। इस ट्रीटमेंट के लिए दो लाख रुपए खर्चा आएगा। अभी आप पैसा मत दीजिए। पोरको आंखें खोल कर देखें स्माइल करें उसके बाद दे देना बस..."

"थै.... थैंक्यू डॉक्टर !"

पूरे परिवार के लोगों ने एक साथ आंखों में आंसू भरकर डॉक्टर को हाथ जोड़कर नमस्कार किया।

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