विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 11 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 11

अध्याय 11

सिम्हा इतनी भी सुंदर नहीं थी। कोई भी आदमी के दोबारा देखने लायक भी नहीं थी। साड़ी पहनकर माथे पर एक स्टिकर की बिंदी लगाए हुए थी रोने के कारण आंखें सूजी हुई थी।

विवेक और विष्णु उसके सामने जाकर बैठे। विवेक कुछ क्षण मौन रहने के बाद बोलना शुरू किया। "सॉरी.... मिस सिम्हा ! आप अभी जिस मन: स्थिति में हैं उसमें मुझे आपसे पूछना नहीं चाहिए। फिर भी दूसरा रास्ता नहीं है। यू हैव टू आंसर माई क्वेश्चनस!"

वह अपने हाथ में जो रुमाल था उसे मुंह में रखकर रोने को दबाकर बोली।

"मुझे पहले अप्पा को देखना है।"

"अभी आप अपने अप्पा को नहीं देख सकती। पोस्टमार्टम होने में वैसे भी आधा घंटा और लगेगा। अभी आप बोलेंगे उन विवरणों को रखकर ही हम कार्यवाही शुरू कर सकते हैं...."

सिम्हा आंखों को पोंछकर नाक को सुडकी । फिर उसने बात करना शुरू किया ।

"अप्पा का कोई शत्रु होने का चान्स भी नहीं है। क्योंकि.... वे सबसे प्रेम से मिलते थे। घर पर काम करने वाले सर्वेंट को भी वे कभी नहीं डांटते थे और ऐसी आदमी की ऐसी स्थिति आए इसकी कोई संभावना ही नहीं।"

"आपने अपने अप्पा को आखिर में कब देखा ?"

"कल रात को 9:00 बजे मैं और अप्पा एक साथ बैठकर डिनर लिया था। उसके बाद थोड़ी देर टी.वी. देखा। 9:30 बजे हमेशा की तरह वे सोने चले गए।"

"अप्पा हमेशा 9:30 बजे सोने जाते हैं क्या ?"

"हां..."

"कभी भी देर से सोने नहीं गए ?"

"नहीं..."

"हर साल मई के महीने में अप्पा मुन्नार आ जाते हैं...?"

"हां...."

"आप भी आती है क्या ?'

"हां..."

"अप्पा के 9:30 बजे बेडरूम जाने के बाद.... आप भी अपने बेडरूम में सोने चले जाते हो क्या ?"

"हां..."

"आप जाते ही सो जाती हो क्या ?"

"हां..."

"तुरंत सो जाती हो ?"

"हां..."

"किसी एक दिन 9:30 बजे के बाद अप्पा के रूम में जाकर... वे रूम में हैं या नहीं आपने देखा ?"

सिम्हा ने विवेक को असमंजस की स्थिति में देखा। "सर आप जो प्रश्न पूछ रहे हैं उसका अर्थ मेरे समझ में नहीं आ रहा है... ! मैं क्यों जाऊँ 9:30 बजे अप्पा के बेडरूम में ?"

"ऐसी आप जाकर देखते तो आपको एक सच्चाई का पता चलता...."

"क्या सच ?"

"वे कमरे में नहीं होते...?"

सिम्हा आश्चर्यचकित रह गई। "क्या सर.... आप ऐसे बोल रहे हो ?  वे रूम में नहीं होते तो कहां जाते?"

"विदेश से आकर यहां पर रुकने वाले कुछ लोगों से मिलने जाते।"

"सिम्हा अप्पा के मरने के दुख को भी भूल कर गुस्से से भर उठी। "व्हाट नॉनसेंस यू आर टॉकिंग ?"

विवेक धीरे से मुस्कुराया। "आई एम टॉकिंग विद सेंस। आपके अप्पा के बारे में जो बोला है वह मेरी कल्पना नहीं है। हमारी सी.आई.डी. का दिया हुआ इंफॉर्मेशन है। इस इंफॉर्मेशन में सच्चाई है क्या... मैं उसे यहां पर देखने आया हूं।"

"आपके अप्पा की कठोरता के साथ हत्या होने का कारण.... उनका देश विरोधी रवैया....! मैं जो बोल रहा हूं उसको सुनकर आप गुस्से में आए तो भी ये सही नहीं हो सकते।"

सिम्हा अपने दोनों हाथों को आवेश में फेंकती हुई नाराज हुई।

"नो..... आप कुछ भी बोले तो..... आई डोंट बिलीव। मेरे अप्पा डी.जी.पी. रहकर रिटायर हुए हैं। जब वे पद पर थे..... तब वे केरला में रहने वाले राउडी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ दिया था। कानून और सीधा रास्ता दोनों को उन्होंने अपनी दो आंखे समझा था... "

"यू आर करेक्ट.... मिस सिम्हा ! मिस्टर बालचंद्रन जब तक पद पर रहे तब तक सही रास्ते पर चल रहे थे। उसके बाद वे थोड़े-थोड़े बदलते गए। विदेशी लोगों से उनका संबंध हो गया। वह किस तरह का संबंध था मुझे नहीं पता। ऐसा वे एक संबंध रखते हुए एक साल के अंदर इस मुन्नार सिल्वर लाइन के नाम से स्टेट खरीद लिया। यह सब कैसे संभव है यहां पर बताइए....."

"सर! आप बोल रहे हैं उसे देखें तो लगता है..... मेरे पिताजी कोई गैर कानूनी काम करके कमाया है....."

"वही सच है इंटेलिजेंस बता रही है। इंटेलिजेंस जो कह रही है वह सच है कि झूठ उसी को जानने के लिए विष्णु और मैं मुन्नार आए हैं। हमारी मुन्नार आने को किसी ने स्मेल करके... तुम्हारे अप्पा को पुलिस के जाल में ना फंस जाएं इस दृष्टि से कल रात को ही खत्म कर दिया। वह कौन है हमें मालूम करना है तो.... आपको हमारी हेल्प करनी चाहिए।"

"सर....! मेरी अप्पा के हत्या के बारे में भी मैं शोक नहीं कर पा रही हूं। आपके कहने वाले विषय को सुनते ही मुझे फिक्र हो गई । अप्पा ने डी.जी.पी. पद से रिटायर होते ही कोई बिजनेस करने की सोची।

"उस समय उन्होंने कुछ विदेशी उद्योगपतियों से बात की। कुछ एजेंसियों को उन्होंने चुना ‌। पूरा बिजनेस टेलीफोन के कन्वर्सेशन से ही होता था। कमीशन बहुत आया। उन रुपयों से अप्पा ने मुन्नार में स्टेट्स खरीदा आपने बोला जैसे किसी तरह का गैर कानूनी काम नहीं किया ।"

"अभी आपने जो बोला उस बात में एक छोटा सा बदलाव।"

"क्या ?"

"उन्होंने विदेशियों के बिजनेस उद्योगपतियों से संबंध नहीं बनाए...."

"दैन...."

"संसार में जो देश शांति से नहीं रहना है सोचता है उन आतंकवादी लोगों से आपके पिताजी ने संबंध बनाकर रखा था।"

"नो... मैं विश्वास नहीं कर सकती।"

"ठीक है....! यह क्या है....? - विवेक, अपने हाथ में रखे हुए छोटे से पॉलिथीन की थैली को खोल कर उसमें रखे हुए सिम कार्ड को दिखाया।

"यह.... यह... एक सिम कार्ड है ऐसा है मालूम होता है...."

"यह सिम कार्ड ही है। साधारणतया सिम कार्ड सेलफोन के अंदर होता है। यह कहां था पता है ?"

"कहां ?"

"आपके अप्पा के पेट के अंदर !"

सिम्हा ने घबराकर विवेक को देखा.... विवेक एक हल्की मुस्कान के साथ बोलने लगा।

"कल रात को क्या हुआ है मैं बताऊं ? तुम्हारे पिताजी हमेशा की तरह 9:30 बजे बाहर आकर विदेशी मित्रों से बिजनेस के बारे में बात किया। उस समय इंटेलिजेंस लिस्ट में तुम्हारे अप्पा का नाम है... उसे इन्वेस्टिगेट करने हम आने वाले हैं उसके बारे में.... वहां एक डिस्कशन हुआ होगा।

"तुम्हारे पिताजी की जान लेने पर ही दूसरे लोग पुलिस के शिकंजे से बच सकते थे ऐसी एक स्थिति पैदा हो गई थी इसलिए तुम्हारे पिताजी की हत्या कर दी गई | वे अपने जान को बचाने जब दौड़े तब सिम कार्ड को उन्होंने निगल लिए होंगे ताकि सिम कार्ड किसी के हाथ में ना लगे......... एक आदमी सिम कार्ड को ही निकल गया तो उसके पास कोई गैर कानूनी बातें हैं यही तो मतलब है?"

सिम्हा बुत बनकर विवेक को ही देख रही थी।

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