अन्‍गयारी आँधी - 15 Ramnarayan Sungariya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अन्‍गयारी आँधी - 15

--उपन्‍यास

भाग—पन्‍द्रह

अन्‍गयारी आँधी—१५

--आर. एन. सुनगरया,

चाय-कॉफी व अन्‍य स्‍नेक्‍स के स्‍थान पर स्‍वरूपा ने दो गिलास गर्म दूघ एवं मौसमी फलों का सलाद आर्डर किया।

नित्‍य प्रति के कार्यों से फारिक होकर स्‍वरूपा-शक्ति रेलेक्‍स मूड में बैठे खुशमिजाजी में एक दूसरे से बहुत ही आत्‍मीयता पूर्वक तनाव रहित बात-चीत में तल्‍लीन थे।

ट्रिन्‍ग.....ट्रिन्‍ग.....वेल की घनघनाहट! वैरा आ गया। स्‍वरूपा ने दरवाजा खोला। वैरा सामान्‍य अभिवादन के बाद ट्रे, टेबल पर रखकर चला गया।

संयुक्‍त रूप से दोनों ने फ्रूट-स्‍नेक्‍स और दूध लेकर, फुरसत के क्षणों का आनन्‍द लेते हुये, शक्ति ने स्‍वरूपा को गौर से देखा, ग़जब का शवाब निखरा है! खुली रेशमी जुल्‍फों के बीचों-बीच दमकता मुख मंडल, जैसे चमकती चॉंदी सी झील में खिलता कमल, स्‍वरूपा जिस पोश्‍च्‍चर में अंगड़ाई लेती नजर आ रही है, वह एक दम नया-निकोर बिलकुल तरो-ताजा, हुश्‍न के प्रदर्शन की विशेषता का नवोदित नजारा, मन-मस्तिष्‍क को व्यग्र-उतावला त्‍वरित स्‍पर्श के मोह में वशीभूत होकर, शक्ति विवश हो गया, वह उठना ही चाह रहा था कि स्‍वरूपा बोल उठी, ‘’जो भी काम होगा आफिसियली वह अब सेकण्‍ड हॉफ में ही हो पायेगा।‘’

‘’तब तक यहीं गुट्टर-गूँ करते हैं।‘’ लगता है, स्‍वरूपा प्राप्‍त अवसर का एक-एक पल का रस निचौड़ लेना चाहती है। पलक झपकते ही गोद में आ टपकी शक्ति चौंक पड़ा, जब तक वह कुछ सम्‍हल पाता, तब तक स्‍वरूपा, शक्ति के दामन में सिमटकर चिपट चुकी थी, चुम्‍बक की तरह। कुछ क्षण पश्‍च्‍चात जकड़न ढीली पढ़ी, तो शक्ति ने कहा, ‘’भरपूर भड़ास निकालना चाहती हो।‘’

‘’हॉं।‘’ स्‍वरूपा ने प्‍यारे अन्‍दाज में कहा, ‘’ऐसा लगता है, युगों-युगों से प्‍यासी हूँ।‘’ मचलते स्‍वर में। मुस्‍कुराते हुये। मस्‍ती में।

‘’शादी के बाद.......।‘’ शक्ति के औंठों पर उँगलियाँ स्‍पर्श करती हुई खामौश करती स्‍वरूपा कुछ खपा सी हो गई। जैसे दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।

‘’कुछ जानना चाहता था।‘’ शक्ति ने पूछा, ‘’अगर तुम्‍हारी मर्जी हो तो........।‘’

‘’हॉं क्‍यों नहीं।‘’ स्‍वरूपा पास ही सोफे पर सामान्‍य पोश्‍च्‍चर में बैठकर सुनाने लगी............

..........बहन सपना की शादी होने के बाद मैं उदास रहने लगी। परिवार में सब चिंतित हो गये, तय किया कि स्‍वरूपा की भी शादी कर दी जाये, दोनों एक सी ही थीं, लगभग एक ही उम्र की तरह हैं। वर की तलाश हुई। सुदामा हर लिहाज से अनुकूल लगा, सुन्‍दर, स्‍वस्‍थ, अच्‍छा डील-डौल, कद-कांठी, पढ़ा-लिखा, अच्‍छी वेतन वाली नौकरी करता है। घर-परिवार भी प्रतिष्‍ठ है। समाज में मान-सम्‍मान पूछ-परख है। किसी तरह की कोई कमी नहीं लगी। समग्र रूप में अनुकूल वर था।

शादी के एक-दो साल तो सुचारू रूप से ठीक-ठाक दाम्‍पति जीवन चला, हंसी-खुशी, सुख-सुविधा, अमन-चेन से।

.........समय-बे-समय उसकी फितरत सामने आने लगी, वह बहुत ही कठौर और क्रूर व्‍यवहार करने लगा। बात-बात पर अपमानित करने लगा, डॉंटने व प्रताडि़त करने लगा। अपशब्‍दों पर उतर आया। मारने-पीटने और हिन्‍सात्‍मक बारदात पर अमादा होने लगा। दिन-प्रति-दिन वाद-विवाद झगड़ा-झन्‍झट, किच्च-किच्च होने लगती । बेटा छोटा था। मुझे कुछ रास्‍ता सूझ नहीं रहा था, क्‍या करूँ! मैं असहाय सी महसूस करने लगी।

गुप्‍त रूप से मैंने छान-बीन की तो ज्ञात हुआ कि उसकी सहकर्मी ने उसे अपने चंगुल में फॉंस रखा है। जैसे बिल्‍ली अपने शिकार चूहे को पंजों में दबोच लेती है। वह सुदामा पर विभिन्‍न प्रकार से दबाव डालती रहती है। इसी कारण सुदामा का दिमाग और व्‍यवहार चिड़चिड़ा हो गया। विवेक शून्‍य हो गया। अपना अच्‍छा बुरा सोचने की शक्ति ही समाप्‍त हो गई।

एक दिन वह क्रोधित होकर बेहद हिन्‍सक और रोद्ररूप में मेरे सामने आया, ‘’तू अपना ठौर-ठिकाना कहीं अन्‍य जगह कर ले।‘’

‘’ठौर-ठिकाना......।‘’ सहमी और भयभीत थी कुछ बोल नहीं पाई।

‘’हॉं!’’ सुदामा बोलता गया, ‘’तुम जैसा चाहो, गुजारा भत्ता अथवा तलाक!’’

‘’ताकि तुम अपनी चहेती बदमाश प्रेमिका को अपने साथ रख सको।‘’ मैं घायल नागिन की भॉंति फुस्‍कारने लगी। बौखलाई हुयी।

‘’हॉं यही समझो।‘’ सुदामा बहुत आसानी से बोल गया।

‘’मैं अपनी जान दे दूँगी, मगर ये कभी नहीं होने दूँगी।‘’ मैंने दृढ़ता दिखाई।

अत्‍यन्‍त क्रोधित होकर सुदामा का हाथ छूट गया। वह पागलों की तरह मुझे कूटने लगा। लात-घूंसों से......दे दना-दन..दे दना-दन.........अनवरत पिल पड़ा..........अचानक वह थर्थराने लगा, पहले से वह हाई ब्‍लड प्रेसर का मरीज तो था ही, असीमित क्रोध के कारण उसे पैरालाईसिस का दौरा पड़ गया। शरीर का काफी कुछ हिस्‍सा निर्जीव हो गया। वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा, थर्थराना अभी भी जारी ही था।

ताबड़तोड़ चिकित्‍सा की, मगर पूर्ण रूप से पुन: स्‍वस्‍थ्‍य नहीं हो पाया। उसके कमर के नीचे का हिस्‍सा पूर्णत: निष्क्रिय हो गया।

प्रेमिका भी छोड़कर भाग गई, और सुदामा सदा-सदा के लिये दिव्‍यांग होकर रह गया।

मायके एवं ससुराल वालों ने समझाया, तो मैं लोकलाज, घर की बात घर में रहे की तर्ज पर, उसके साथ, अपनी शर्तों पर रूक गई। औपचारिकता वश। निवाहने के नाम पर! यह है मेरी दु:ख भरी कहानी!........

शक्ति ने देखा स्‍वरूपा की ऑंखों में ऑंसू छलक आये। शक्ति ने उसे ढॉंढ़स बन्‍धाया, अपने कन्‍धे से, उसका सिर सटा लिया, धीरे-धीरे थपथपाकर सहानुभूति में उसके ऑंसू, जो गालों पर लुड़क आये हैं, स्‍वच्‍छ ओस की भॉंति, पोंछते हुये प्रेमपूर्वक, ‘’शॉंत हो जाओ, शॉंत हो जाओ........बहुत बहादुर हो।‘’ स्‍वरूपा का चेहरा दोनों हाथों से थामकर, ‘’चिन्‍ता नहीं..........चिन्‍ता मत करो। हौसला रखो, सुनहरा भविष्‍य तुम्‍हारी प्रतीक्षा कर रहा है।‘’

ऑंसू पोंछते हुये स्‍वरूपा लम्‍बी-लम्‍बी उँसॉंसे भर रही है-छोड़ रही है। कुछ ही क्षणों में पूर्ववत सामान्‍य प्रतीत हो रही है।

‘’चलो किसी रेस्‍टोरेन्‍ट में लन्‍च लेते हैं।‘’ शक्ति ने दु:खद विषय, स्‍थान, कार्य-कलाप यानि पूरा वातावरण चेन्‍ज करने का प्रस्‍ताव रखा।

रेस्‍टोरेन्‍ट में, स्‍वरूपा-शक्ति पर्दे से घिरे टेबल पर बैठ गये। अटेण्‍ड करने जब तक कोई आता, शक्ति ने औपचारिक वार्ता प्रारम्‍भ की, ‘’स्‍वरूपा।‘’ सम्‍बोधित किया शक्ति ने।

‘’हॉं।‘’ स्‍वरूपा सचेत होकर शक्ति को देखने लगी।

‘’जिन्‍दगी के प्रति तुम्‍हारा नजरिया,………..।‘’ शक्ति ने उसकी विशेषता बतायी, ‘’बहुत ही प्रेक्टिकल है। व्‍यवहारिक है। तात्‍कालिक परिस्थितियों के सर्वदा अनुकूल है।‘’

स्‍वरूपा गम्‍भीर मुद्रा में शक्ति को निहार रही है। शक्ति हल्‍का सा झेंपा जरूर मगर आगे बोला, ‘’तुम समग्र मापदण्‍डों को ध्‍यान में रखकर कोई बीच का निर्णय निर्धारित करके अपने मन-मुताविक सुविधा व सहूलियत का वातावरण बना लेती हो। जो पूर्ण रूप से विवाद मुक्‍त रहता है। सॉंप भी मर जाये और लाठी भी सुरक्षित रहे। किसी भी दृष्टिकोण के तहत, किसी को भी उँगली उठाने का अवसर नहीं रहता। वाह क्‍या चतुराई है।‘’

स्‍वरूपा अपनी उदासीनता का कारण, अपने अतीत की कालीछाया को मानती है। शक्ति द्वारा तारीफ से वह हर्षित तो है, परन्‍तु कुछ बोल नहीं पा रही है। शक्ति ही आगे बोला, ‘’एक दौर मेरे जीवन में आया, जब मैं क्रोध में अन्‍धा सा हो गया। और हिन्‍सक वारदात को अन्‍जाम देने निकल पड़ा, मगर अपने-आप पर नियंत्रण करके अपने अन्‍दर उबल रहे गुस्‍से को पी गया।‘’

‘’ऐसी स्थिति आई क्‍योंᣛ?’’ स्‍वरूपा पूछ बैठी। कुछ सामान्‍य तो हुई।

कुछ पल चुप रहने के पश्‍च्‍चात शक्ति ने बताया, ‘’मुझे भी शक हुआ कि सपना के किसी के साथ अबैद्ध सम्‍बन्‍ध हैं। यथार्थ कुछ ऐसे वाकिये, दृशय मेरी नजरों से गुजरे, जिन्‍होंने मेरे दिमाग में शंकायें पैदा कीं, जिन्‍हें मैं पचा नहीं पा रहा था।‘’

कभी-कभी जिन्‍दगी में कुछ ऐसे मंजर आ गुजरते हैं। जिन्‍हें ना चाहते हुये भी अपनाना पड़ते हैं। अनचाहे, मगर वे नासूर की भॉंति जीवन पर्यन्‍त चुभते रहते हैं, टौंचते रहते हैं, बुरी तरह जख्‍मी कर देते हैं, पल-पल टीसते रहते हैं, मगर उन्‍हें सहन करते रहने के सिवा और कोई विकल्‍प ही नहीं रहता।

स्‍वरूपा की तार्किक बुद्धि और समझौतावादी दृष्‍टीकोण की विशेषताओं का कायल हुआ शक्ति।

सम्‍पूर्ण मिशन की सफलता के बाद जब घर पहुँचे, तो सपना ने बहुत ही प्रसन्‍नता पूर्वक, उत्‍साहवर्धक स्‍वागत किया।

स्‍वरूपा ने ही सारी जानकारी विस्‍तार से सपना को दी, ‘’लगभग सभी फार्मालिटीस सफलता पूर्वक, सुविधानुसार, सपना और शक्ति की सराहनीय सहायता से सम्‍पन्‍न हुई। मेरे दिमाग की चिन्‍ताऍं भी दूर हो गईं। अब सामान्‍य सुख-सुविधायुक्‍त जीवन यापन हो सकेगा। भविष्‍य उज्‍जवल होगा।‘’

शक्ति-सपना ने संयुक्‍त स्‍वर में आत्मियता पूर्वक कहा, ‘’हमें भी खुशी है कि तुम अमन-चेन से खुशी-खुशी जिन्‍दगी के उतार-चढ़ाव को पार करके अपनी मंजिल पा सकोगी।‘’

जिन्‍दगी में किसी प्रकार के तूफान आ घेरें, तो उनसे विचलित हुये वगैर, साहस, चतुराई, तर्क, सूझ-बूझ से यथोचित सर्वमान्‍य, समाधान करके उससे बेदाग बाहर निकला जा सकता है, जैसे स्‍वरूपा-शक्ति अपने शारीरिक तूफान से चारित्रिक लांछन के दाग-धब्‍बों के बिना निकल आये, नि:श्‍कलंक अन्‍गयारी ऑंधी से...........।

♥♥♥ इति ♥♥♥

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

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