कोरोना प्यार है - 12 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 12

(12)‌‌‌‌‌

रेखा के दिमाग में षड्यंत्र चल यहा था। उसने अपनी योजना अनुज को बताई। अनुज से उसने यह भी कहा कि वो यह सूचना अभिनव को जाकर दे। अनुज असमंजस के भंवर जाल में था। जो शर्त उसकी बहन रेखा ने अभिनव से शादी करने के बदले में रखी थी उसे जानकर अनुज गुस्से में आ गया।

"ये क्या दी! तुम्हें शादी नहीं करनी तो सीधे-सीधे मना कर दो। उस शरीफ़ आदमी को इस तरह अपमानित तो मत करो।" अनुज बोला।

"सीधे-सीधे मना करने से क्या वो मान जायेगा? जब तुम लोग ही नहीं मान रहे तो वह क्यों मानने लगा। वैसे भी मुझे तुम लोग समझते ही कितना हो?" रेखा भी गुस्से में थी।

"देखो दी! अगर तुम मुझे सीईओ बनाये जाने के संबंध में कह रही हो तो ये पापा का निर्णय था। उन्हें जो योग्य लगा उन्होनें किया।" अनुज बोला।

"तो तु कहना चाहता है कि तु मुझसे ज्यादा योग्य है। इसीलिए पापा ने तुझे हमारी कम्पनी का सीईओ बनाया?" रेखा बोली।

"हां" अनुज का उत्तर था।

"रॉंग! तु सिर्फ एक लड़का है इसलिए तु आज सीईओ है। और मैं लड़की हूं इसलिए मुझे पापा किसी काबिल नहीं समझते।" रेखा ने अपने विचार बताये।

"दी! ऐसा नहीं है। पापा ने हम भाई बहनों के बीच कभी कोई भेदभाव नहीं किया। उन्होंने हमारी परवरिश एक समान की है। तुम्हें सीईओ इसलिए नहीं बनाया क्योंकि तुम्हारा स्वभाव हिंसक है। हमेशा लड़ाई-झगड़े और मरने-मारने की बात करती रहती हो। लड़को की तरह बुलेट मोटरसाइकिल चलाकर सारे शहर में घुमती रहती हो। तुम्हें पॉलिटिक्स में ज्यादा रूचि है बिजनेस में नहीं। लडकियां क्या ऐसी होती है?" अनुज बोला।

"ओह! तो अब तु मुझे बतायेगा की लड़कीयां कैसी होती है?" रेखा नाटकीय ढंग से बोली।

"हां बताउंगा। जब बड़े कहीं गल़त हो तो छोटो का भी फर्ज होते हि कि उन्हें सच का आईना दिखाये।"

"हमारी कम्पनी शहर की जाने-मानी तेल निर्माण कम्पनी है। शहर ही नहीं देश-विदेश में हमारा खाद्य तेल सप्लाई होता है। पचास तरह के लोगों से प्रतिदिन मिलना-जुलना ,बैठकें आदि होती है। अपनी सुनाने के साथ-साथ सबकी सुनना भी पड़ती है। बिजनेस से जुड़े सभी पक्षों को ध्यान में रखकर सौदे बाजी की जाती है। हानि-लाभ का समुचित मूल्यांकन करना होता है। कभी हमे नरम होना पड़ता है तो कभी परिस्थितियों के वशीभूत गर्म लहजा भी अपनाना पड़ता है। हमारे यहां एक हजार से अधिक एम्लाई काम करते है। उनके सुख-दुख का हमें पुरा ख्याल रखना पड़ता है क्योंकि हम उन पर निर्भर है। केवल महिने की सैलरी भर देने से हमारा उनके प्रति दायित्व पुरा नहीं हो जाता है। उन्हें अपने परिवार की ही भांति ही स्नेह और समपर्ण देना होता है तब जाकर वे हमसे जुड़ते है।"

रेखा अनुज की बातों को अनमने मन से सुन रही थी।

"तुम्हें याद है दी। पापा ने तुम्हें ऑफिस सम्हालने का एक बार काम सौंपा था। एक महिने भी तुम वहां ठीक से काम नहीं कर पाई थी। ऑफिस एम्लाॅई से बदसलुकी और हमारे रेगुलर कस्टमर्स को अपने घमण्डी व्यवहार से तुमने कितना परेशान किया था। चंद दिनों में ही हमारे तेल की सैल में भारी गिरावट आई थी। यह सब तुम भूल गयी क्या? पापा और मुझे उन कस्टमर्स के यहां स्वयं जाकर माफी मांगनी पड़ी थी। तब जाकर हमारी इकोनोमी व्यवस्थित हो सकी थी।"

रेखा चूप थी।

"दी! निश्चित ही आज हम अम़ीर है। हम कुछ भी कर इसने में समर्थ भी है और स्वतंत्र भी। लेकिन हमारी अम़ीरी हमारे यहां काम करने कर्मचारियों की बदौलत है। या यूं कहूं कि वो है तब हम है। क्योंकी ये लोग दिन-रात परिश्रम कर हमे अमीर बनाने मे लगे रहते है। ये लोग काम करते है तब जाकर हम बड़ी मंहगी कार और आलिशान मकानों में रहते है। उनके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। इसीलिए उन्हें वो सम्मान पाने का पुरा अधिकार है जिसके लिए मानव होने के नाते वे अधिकारी है।" वह आगे बोला-

"सिर्फ बड़े आदमी होन के कारण किसी को अपमानित करने का परम्परागत अधिकार हमें नहीं मिल जाता। क्या कभी सुना है की किसी गरीब ने आगे होकर किसी बड़े आदमी का अपमान किया हो! नहीं न! उसके हाथ तो हमेशा मालिकों के आगे जुड़े ही रहते है। वह तो सदैव अपने मालिकों को भगवान के समान आदर करता है। उन्हें अन्न दाता समझता है। मालिकों के नमक का कर्ज वह मरते दम तक चुकाने का प्रयास करता रहता है। तब मालिकों को भी चाहिये की वह अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों को मानव समान स्नेह दे।"

अनुज ने कहा।

"शाबास अनुज! मुझे गर्व है कि तु मेरा बेटा है।" मदनमोहन दरवाजे की ओट से बाहर आते हुये बोले। उन्होंने दोनों भाई-बहन की बातें सुन ली थी।

"देखा! बेटी रेखा। अब भी तुम नहीं की समझी कि मैंने तुम्हें अपनी कम्पनी का सीईओ क्यों नहीं बनाया?" मदनमोहन ने कहा।

"पापा! अब आप शुरू मत हो जाना। पहले ही मुझे अनुज डैडी बहुत सारा लेक्चर पीला चूके है।" रेखा ने व्यंग्य कसा।

"पापा आप जानते है रेखा दी ने अभिनव से शादी करने की क्या शर्त रखी है?" अनुज ने पुछा।

"जानता हूं। मैंने तुम दोनों की सभी बातें सुन ली है। रेखा चाहती है कि अभिनव उससे बाॅक्सिंग मैच खेले। यदि अभिनव जीत गया तब ही यह अभिनव से शादी करेगी। और यदि अभिनव बाॅक्सिंग में हार गया तब घर में कोई रेखा की शादी के संबंध में कभी कोई बात नहीं करेगा।" मदनमोहन ने बताया।

"यह खतरनाक है पापा। रेखा स्टेट लेवल बाॅक्सिंग चैम्पियन है और मुझे नहीं लगता है कि अभिनव ने कभी बाॅक्सिंग देखी भी होगी।" अनुज बोला।

"छः महिने का समय दे रही हूं मैं। तब तक आप लोग अभिनव को ट्रेनिंग देकर तैयार कर सकते है। उसके बाद ही हमारा मैच होगा।" रेखा बोली।

"मगर दी! यह नहीं हो सकता।" अनुज बोला।

"क्यों नहीं हो सकता। हट्टा-कट्टा और ऊंचा-पुरा नौजवान युवक है अभिनव। थोड़ी सी प्रैक्टिस और गाइडेंस से वह इस काबिल बन सकता है कि मुझसे रिंग में बाॅक्सींग कर सके।" रेखा ने बताया।

"ठीक है। वह तुम्हारे साथ बाॅक्सींग मैच खेलने को तैयार हो जायेगा। यदि वह हार गया तब हममे से कोई तुझे तेरी शादी के लिये नहीं कहेगा। लेकिन अगर वो जीत गया तब तुझे ये लड़को वाले कपड़े पहनना छोड़कर लड़कीयों की तरह रहना होगा। और एक भारतीय नारी के समान अभिनव से शादी कर राणा परिवार की सभ्य  बहु बनकर आजीवन रहना होगा। मंजूर है।" मदनमोहन ने कहा।

"ठीक है डैडी। आपकी यह शर्त भी मुझे स्वीकार है।" रेखा ने कहा।

"मगर डैड•••" अनुज बीच में बोल पड़ा।

मदनमोहन ने अपने हाथ की हथेली दिखाकर उसे वही रोक दिया।

"एक बात और डैड। बिना बाॅक्सींग मैच किये बिना मैं किसी कीमत पर अभिनव से शादी नहीं करूंगी। और यदि अभिनव मुझसे मैच खेलने को तैयार न हुआ तब मैं बिना मैच खैले ही जीती हुई मानी जाउंगी। तब मेरी उक्त सभी शर्तों एज़ इट इज आपको माननी पड़ेगी।" रेखा ने कहा।

"ठीक है। ऐसा ही होगा।" इतना कहकर मदनमोहन वहां से चले गये।

अभिनव के सामने ये किसी चुनौती से कम नहीं था। वह  रेखा से बाॅक्सींग मैच लड़ने को तैयार था। मगर जगजीत राणा इसके लिए आसानी से तैयार नहीं हुये। अभिनव ने अपनी वाक्पटुता और चातुर्य से जगजीत राणा को मना ही लिया। संपूर्ण व्यापार जगत में अभिनव और रेखा की बाॅक्सींग मैच की चर्चा थी। रेखा को पॉलिटिकल सपोर्ट मिल रहा था। पुरे शहर में उसके बाॅक्सींग मैच के पोस्टर चश्पा कर दिये गये थे। जगह-जगह रेखा के सपोर्ट में पार्टी समर्थक रेलीयां और जुलूस निकार रहे थे। आज भी मोटरसाइकिल रैली का आयोजन किया गया था। हजारों की भीड़ में युवा मोटरसाइकिल पर सवार होकर रेखा के लिये समर्थन जुटा रहे थे। रेखा जुलुस का नेतृत्व कर सबसे आगे बुलेट मोटरसाइकिल पर चल रही थी। स्थानीय अखबारों के खेल पृष्ठ पर रेखा और अभिनव के बाॅक्सींग मैच का विवरण प्रकाशित हो रहा था। रेखा को अखबारों में शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा हुआ था। रेखा की विभिन्न पोज में तस्वीरें प्रकाशित हो रही थी। ज्यों-ज्यों बाॅक्सींग मैच की तिथि नजदीक आ रही थी त्यों-त्यों सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

"अभिनव! अग़र तुम चाहो तो यह मैच हम स्थगित कर सकते है। अपने माता-पिता के एक लोते लड़के हो तुम। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं उन्हें क्या जवाब दुंगा।" मदनमोहन ने कहा।

"अंकल! अब इतना नजदीक आकर आप पुनः लौटने की बात कर रहे है। विश्वास रखियेे मैं ही जीतूंगा और रेखा से शादी भी करूंगा।" अभिनव ने कहा।

"कैसे विश्वास करूं अभिनव! वो लड़की पुरी तरह पागल है। बाॅक्सींग मैच में वह कितनों के जबड़े तोड़ चूकी है। उसका प्रदर्शन निरंतर सुधरता ही जा रहा है। अभी हाल में उसका ओलम्पिक में खेलना पक्का हुआ है। और तुम्हें देखकर लगता है कि इन छः महिनों में तुम एक आम बाॅक्सर की ही तरह खेल रहे हो।" बाॅक्सींग क्लब में अभिनव का प्रैक्टिस मैच देखने आये मदनमोहन ने कहा।

"अंकल! लड़ाई अगर दो बराबरी वालों के बीच में हो तो देखने वालो को बहुत आनंद आता है इसमें कोई श़क नहीं है। मगर असली मज़ा तो तब है जब बकरी शेऱ को हरा दे। सोचिए वो नज़रा कैसा होता होगा।" अभिनव ने कहा।

"ये सब किस्से कहानीयों में होता है बेटे, असल जिन्दगी में नहीं। अब भी मौका है। तुम मना कर दो। मैं सब संभाल लुंगा।" मदनमोहन ने करूणा दिखाई।

"नहीं अंकल! अब बात पुरे शहर में फैल चूकी है। मुझे बाॅक्सींग तो करना ही होगी। ये मेरे स्वाभिमान की लड़ाई है। मरना है तो लड़कर मरूंगा। युं नाम वापिस लेकर नहीं।" अभिनव के इरादें मजबुत थे। उसे डिगा पाना किसी के वश में न था।

रेखा के मोबाइल फोन की घण्टी बज रही थी।

"हॅलो! अभिनव! मैच के एक दिन पहले क्या माफी मांगने के लिए फोन किया है। अगर बाॅक्सींग से डर लग रहा है तो बोल दो। मैं यह मैच कैंसिल करवा सकती हूं। बस तुम्हें मेरे घर आकर सबके सामने मुझसे माफी मांगनी होगी।" फोन पर रेखा बोल रही थी।

"प्यार करने वाले कभी डरते नहीं रेखा। वो तो हर कीमत पर अपनी मोहब्बत को हासिल कर के ही रहते है।" दुसरी तरफ से फोन पर अभिनव बोल रहा था।

"ओहss तो जनाब अब आश़िक भी बन गये है। आपकी सारी आशिकी रिंग में निकाल के न रख दी न मेरा नाम रेखा नहीं।" रेखा बोली।

"तुम्हारा नाम रेखा ही रहेगा जान। हां! बस उसके आगे मिसेस रेखा जरूर जुड़ जायेगा।"

"तुम जैसे कई आये और चले गये। रेखा को हासिल करना इतना आसान नहीं है।"