कोरोना प्यार है - 10 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 10

(10)‌‌‌‌‌

"गुड्डू इस अपमान को कभी नहीं भुला। जेल से रिहा होते ही उसने गौरी का किडनैप कर लिया। दिन दहाड़े वह कॉलेज में आया और वेन में गौरी को जबरन बैठाकर अपने साथ ले गया। बहुत हल्ला-गुल्ला मचा था तब। वंश ने कॉलेज में सभी से उसकी बहन को गुड्डू के चुंगल से छुड़ा लाने की प्रार्थना की। मगर किसी में इतना साहस न था कि वो उन बदमाशों से टक्कर ले।" अनिल बोला।

"हां! मगर गौरी को बचाने विशाल ही आगे आया। उसने वंश को लेकर गुड्डू के अड्डे पर थावा बोल दिया। उसके साथ पुलिस भी थी। इससे पहले की गुड्डू वहां से भाग पाता, वह विशाल के हत्थे चढ़ गया। वंश ने बताया था कि किसी फिल्मी हिरो की तरह वह गुड्डू से हाथापाई कर रहा था। गुड्डू ने विशाल पर चाकू से वार किये थे। जिससे विशाल घायल हो गया। सही समय पर पुलिस वहां पहूंच गयी और गुड्डू एक बार फिर गिरफ्तार हो गया।" पलक ने कहा।

"गौरी यहां अपना दिल हार गयी थी। उसे विशाल के रूप में अपना जीवनसाथी मिल गया था। वह दौड़कर उसे गले मिलकर घण्टों तक रोयी थी। वंश भी सही रास्ते पर आ गया था।" अनिल ने कहा।

"विशाल वाकई में हिरो था। जिसने अपनी जान की परवाह किये बगैर गौरी को बचाने के लिए गुंडों से जा भीड़ा।" पलक ने बताया।

"कितने अच्छे दिन थे वो भी। है न!" अनिल ने पुछा।

"हां अनिल। उन्हीं दिन में तो मुझे तुम मिले थे।" पलक ने कहा।

"और मुझे तुम।" अनिल ने कहा।

"भगवान करे ये लाॅकडाउन के दिन जल्दी पुरे हो जिससे की हमारी मुलाकात हो सके।" पलक ने प्रार्थना की।

"हां और ये प्रार्थना भी करो की कोरोना महामारी भी जड़ से खत्म हो। हमारी तरह कितने प्रेमी जोड़े विरह वेदना की अग्नी में झुलस रहे है।" अनिल ने कहा।

"ओके। बहुत रात हो गयी है। अब आप भी सो जाये। मुझे भी नींद आ रही है।" पलक ने कहा।

"ठीक है। गुड नाइट। कोरोना प्यार है।" अनिल ने कहा।

"कोरोना प्यार है टू।" पलक ने जवाब दिया।

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"ये क्या कह रही हो सुजाता। होश में तो हो। ठाकुर साहब और अनुराधा की शादी।" सुमित्रा गुस्से में आ गयी।

"मैं पुरी तरह से होश में हूं। मुझे ये भी पता है कि ठाकुर साहब और अनुराधा के बीच जो संबंध है उसमें आपकी सहमती सम्मिलित है।" सुजाता ने बताया।

"ओह तो! अनुराधा ने जह़र उगल ही दिया।" सुमित्रा बोली।

"सुमित्रा जी। इसमें इतना गुस्सा होने की कोई बात नहीं। ये तो आपको अनुराधा को ठाकुर साहब के साथ संबंध बनाने देने से पहले सोचना था। अब पछताने से कुछ नहीं होगा। जरा सोचिये! अगर ठाकुर साहब और अनुराधा के बीच के अनैतिक संबंधों की बात दुनिया को पता चल गयी तब आपका परिवार किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगा।" सुजाता ने कहा।

सुमित्रा सोफे से खड़ी हो गयी।

सुजाता ने सुमित्रा के कन्धे पर हाथ रखते हुये कहा-

"आप भी एक बेटी की मां है। स्वयं एक औरत है। एक औरत के शरीर को जब उसके पति के अलावा कोई पराया पुरूष छुता है तब औरत के मन में जो घृणित भावनाएं उमड़ती है उस स्थिति का अनुमान आप भी भलि-भांति लगा सकती है।

मैं ये नहीं कहती की अनुराधा को अपने साथ ही रखो। उसे सम्मान से अन्य स्थान पर अपनी बेटियों के साथ रखा जा सकता है। उसकी और उसकी बेटियों की आजीवन सभी व्यवस्थाएं करना आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं। अनुराधा का कोई बेटा भी नहीं है जो आगे चलकर आपकी संपत्ति में हिस्सा मांगेगा। बेटियां शादी होकर विदा हो जायेगी।" सुजाता ने कहा।

"मगर शादी की खब़र भी तो समाज में फैलेगी। उसका परिणाम भी अच्छा नहीं होगा।" सुमित्रा ने चिंता व्यक्त की।

"अभी लाॅकडाउन का समय चल रहा है। किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं। ठाकुर साहब और अनुराधा की हम कुछ लोगों की उपस्थिति में शादी करवा देते है। जब तक छिपेगा, छिपा लेंगे। उसके बाद यदि लोगों को पता चलता भी है तो ये कौनसी बड़ी बात है। बड़े-बड़े घरों में ऐसी घटनाएं कुछ मायने नहीं रखती।" सुजाता ने दिलासा देकर कह।

"क्या अनुराधा इस बात के लिए राजी है?" सुमित्रा ने पुछा ।

"उसकी चिंता आप न करें। अनुराधा को मैं समझा लुंगी। आप ठाकुर साहब और विराज को समझा बुझा लेना।" सुजाता ने कहा।

"सुजाता क्या हम सही कर रहे है?" सुमित्रा ने निराशा जताते हुये पुछा।

"सुमित्रा जी। सही और गल़त का हिसाब लगाने बैठेंगे तो फिर शुरू से शुरू करना होगा। अतित में आपके और ठाकुर साहब के सभी कृत्य सही नहीं कहे जा सकते। आप लोगों ने अनुराधा के शील को भंग करके जो पाप किया है उसके आगे तो ये कुछ भी नहीं। अब हम उन गल़तियों को सुधारने की कोशिश कर रहे है। आपने सुना होगा दीदी। कांटें को कांटें से निकालना पड़ता है।" सुजाता ने कहा।

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"सुमित्रा पागल हो गयी क्या? कैसी बातें कर रही हो। तुम चाहती हो की मैं उस नौकरानी को तुम्हारी सौतन बना दूं।" नारायण ठाकुर चिल्लाते हुये कह रहे थे।

"क्यों! अभी आपको वह नौकरानी लग रही है! बिस्तर पर उसके साथ क्या महारानी समझकर सोते थे।" सुमित्रा ने व्यंग्य कसा।

"सुमित्रा। अपनी जबान को लगाम दो। यह मत भुलो की तुम अपने पति से बात कर रही हो।" नारायण ठाकुर ने तैश में आकर कहा।

"नहीं भुली हूं इसीलिए आपको सकुशल देखना चाहती हूं। कहीं अनुराधा ने आपके खिलाफ कही कुछ उगल दिया न तो आप किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहोगो।" सुमित्रा बोली।

"इससे पहले ही हम उस कलमुंही को मौत के घाट उतार देंगे।" नारायण ठाकुर ने कहा।

"अनुराधा ने सुजाता को सबकुछ बता दिया है। सुजाता को तो आप जानते ही होगे न? मुझे उसी ने ये रास्ता सुझाया है। अच्छा होगा हम दोनों उसकी बात मान ले।" सुमित्रा बोली।

यह सुनकर ठाकुर साहब चिंता में डुब गये।

"ठाकुर साबह। दो वर्ष से आप उस अनुराधा का यौन शौषण कर रहे है। इतने वक्त में आप लाखों रूपये बाहर उन वैश्याओं पर लुटा चुके होते। लेकिन उसने अपनी पगार के अलावा हम से कुछ नहीं मांगा। कम से कम उसका मेहनताना समझ कर ही उसकी मांग भर दीजिये। वो हमारे किसी भी दुसरे मकान में रह लेगी।" सुमित्रा बोली।

"ठाकुर साहब स्वीकार्य मुद्रा में थे।

"सबसे जरूरी बात। मुझे सुजाता ने बताया की हमारे विराज की भी अनुराधा पर बुरी नज़र है। यह निश्चित ही बुरी खब़र है। हम विराज को कब तक रोक सकेंगे। इसीलिए मैंने अनुराधा को काम से छुट्टी दे दी है। क्योंकि मैं नहीं चाहती की अनुराधा कोई पंचायती चीज़ बने। आपका निर्णय मुझे बता देना।" सुमित्रा ने कहा।

नारायण ठाकुर का सिर झुक गया। वे अपने ही किये कुकर्मों में बुरी तरह फंस चूके थे। अंततः उन्होंने अनुराधा से विवाह करने की अभिस्वीकृति दे दी। विराज को भी जैसे-तैसे सुमित्रा ने मना लिया। अपने भाई सुन्दर को सुमित्रा ने इस गोपनीय विवाह की सभी आवश्यक तैयारी करने का निर्देश दे दिया।

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सुजाता ने गौर किया कि इस लाॅकडाउन में उसके देवर रोहित की गतिविधियां संदिग्ध थी। वह बड़े गौर से सुजाता को निहारा करता। सुजाता बहुत ही सुन्दर कद काठी और भरे पुरे शरीर की सौन्दर्यां थी। बारहवीं अध्ययनरत रोहित कामातुर होकर सुजाता के इर्द-गिर्द बने रहने का प्रयास करता। उस दिन सुजाता ने बाथरूम में देखा की रोहित उसके अंतरवस्रतों को हाथों में लिये हुये था। सुजाता को देखकर रोहित सावधान हो गया। वस्रों को वही बाथरूम में रखकर वह भाग खड़ा हुआ। हद तो तब हो गयी जब रोहित ने बाथरूम की ऊंची खिड़की से सुजाता को नहाते हुये देखने की कोशिश की। अब सुजाता से नहीं रहा गया। उसने रोहित को उचित दण्ड देने का विचार किया।

रोहित छत पर पढाई करने गया हुआ था। पढ़ाई के बहाने वह वहां मोबाइल चला रहा था।

"दिखा तो अपना मोबाइल।" कहते हुये सुजाता ने रोहित के हाथों से उसका मोबाइल छिन लिया। वह छत पर रोहित को सबक सिखाने आयी हुई थी।

"भाभी। मेरा मोबाइल दे दो। प्लीज।" रोहित मिन्नते करने लगा।

"नहीं। देखूं तो सही तु मोबाइल में कौनसी पढाई करता है। ओह तो! ये सब दूखता है तू मोबाइल में। इसीलिए तु ये सब गंदी हरकतें कर रहा है न?" सुजाता गुस्से में थी।

"भाभी मुझे माफ कर दो। आगे से नहीं करूंगा।" रोहित गिड़गिड़ाने लगा।

"नहीं। इतनी आसानी से तुझे माफी नहीं मिलेगी। आज तेरे भैया को मैं तेरी सारी करतुते बता के रहूंगी।" सुजाता मुड़कर जाने लगी। रोहित घबरा गया। उसने सुजाता के पैर पकड़ लिये।

"भाभी प्लीज भैया को मत बताना। वो मुझे जान से मार देंगे। अब मैं मन लगाकर पढाई करूंगा। एक बार मुझे माफ कर दो।" रोहित ने कहा।

"ठीक है। लेकिन एक शर्त पर। तु अपनी हेड राइटिंग में अपने सभी गुनाह मुझे लिखकर देगा। और भविष्य में इस प्रकार के कोई बुरे काम नहीं करेगा।" सुजाता ने कहा।

"ठीक है भाभी। मैं लिखकर दुंगा।"

रोहित ने कहा। सुजाता ने रोहित को उचित दण्ड देकर उसे सही रास्ते पर लाने का सार्थक प्रयास किया। उसने अपने पति पार्थ को रोहित की कामातुर घटनाएं बतायी। उसने रोहित का लिखा वह पत्र भी दिखाया। पार्थ आगबबूला थे। मगर सुजाता ने उन्हें बताया कि रोहित जिस आयु में है उस समय किशोरावस्था में लड़कों से इस तरह की गल़ती होना स्वाभाविक है। सुजाता ने रोहित को समुचित दण्ड दे दिया था। रोहित अब अच्छे  लड़कों की भांति पढ़ाई में अपना सारा ध्यान लगा रहा था। टीवी पर रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिक फिर से शुरू हुये थे। वह पुरे परिवार के साथ इन धारावाहिकों को ध्यान से देखता और आत्मसाद करने का प्रयास करता। रोहित में आये महान परिवर्तनों को देखकर सभी खुश थे। पार्थ ने रोहित को कभी यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसे सुजाता और रोहित के बीच हुई सभी बातें पता है। स्वयं सुजाता ने इस बात का वादा पार्थ से लिया था कि सबकुछ जानते हुये भी वह रोहित से अनजान ही बना रहेगा ताकि रोहित स्वयं की नज़रों में न गिर जाएं।

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