कोरोना प्यार है - 7 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कोरोना प्यार है - 7

(7)‌‌‌‌‌

पलक हाल ही में मुम्बई से लौटी थी। वहां कोरोना संक्रमण अपने पैर पसार चूका था। पलक को एहतियातन घर में ही क्वारेंटाइन किया गया था। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार पलक की जांच-पड़ताल करने आ जाती। पलक गुमसुम थी। सुजाता यह संज्ञान में ले चूकी थी।

"क्या बात है पलक! कुछ दिनों से तु गुमसुम है?" दुध का गिलास पलक के बेडरूम में रखने आई सुजाता ने पुछते हुये कहा। वह पलक से पर्याप्त दुरी पर बैठी थी। पलक ने मास्क लगाया हुआ था।

"भाभी वो••?" कहते हुये पलक चुप हो गयी।

"अनिल और तुम्हारे बीच में फिर कुछ हुआ है क्या?" सुजाता ने पुछा।

"होगा क्या भाभी। उसका वही मम्मी पुराण!" पलक ने कहा।

अनिल आधुनिक युग का श्रवण कुमार था। बिना अपने माता-पिता की आज्ञा के वह कोई कार्य नहीं करता। अनिल ने अपनी शादी के लिए पलक के विषय में घर पर चर्चा की थी। मगर उसके माता-पिता को नये ज़माने की स्टाइलिश बहु नहीं चाहिये थी। इसीलिए उन्होंने पलक को अस्वीकार दिया था। उस पर पलक की कोरोना संक्रमण की न्यूज से अनिल का परिवार डर गया था। अनिल के माता-पिता चाहते थे कि अनिल पलक से सभी तरह के संबंध तोड़ ले। जबकि अनिल अब भी मन ही मन पलक से प्रेम करता था। वह छिपते-छिपाते पलक को फोन कर लिया करता।

"पलक! तू घबरा मत। कुछ दिनों की ही तो बात है। सब कुछ ठीक हो जायेगा। तेरी दुसरी रिपोर्ट नेगेटीव आई है। मुझे विश्वास है तेरी तीसरी रिपोर्ट भी नैगेटीव आयेगी। ये वक्त इम्तिहान का है। उसमें तुझे पास होना है।" सुजाता ने पलक को हिम्मत बंधाई।

"जी भाभी। आपकी बातें मुझे हमेशा प्रेरित करती है।" पलक ने कहा।

"तु बिल्कुल चिंता मत कर। मैं अनिल से बात करूंगी। और पुरी कोशिश करूंगी की वो अपने माता-पिता के साथ-साथ तुझे भी उतना ही महत्व दे।" सुजाता बोली।

"ओहहह भाभी आई लव यू।" कहते हुये वह सुजाता की तरफ दोनों हाथ बढ़ाने लगी।

"ऐ दूर दूर सेsss" सुजाता चीखी।

"मालूम है। मैं तो आपके मज़े ले रही थी।" पलक हंस पड़ी।

"शैतान! ठहर तुझे अभी मज़ा चखाती हूं।" कहते हुये सुजाता पलक के कान खिचने उठी ही थी कि•••

"भाभी दूर दूर••••" पलक पीछे हटते हुये बोली।

"पता है मुझे भी। मैं भी तेरे मज़े ले रही थी।" सुजाता की आंखें भीग गयी थी। पलक भी सुबकने लगी थी। कोरोना संक्रमण ने पलक को पुरे परिवार से अलग-थलग कर दिया था।

सुजाता ने अपने घर के पास ही नारायण ठाकुर के यहां घर का काम करने आती अनुराधा से अच्छी दोस्ती कर ली। उसने ही अनुराधा के बच्चों को एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया था। अनुराधा सुजाता को बहुत मानती थी। वह उसे अपनी सभी बातें बताता करती। नारायण ठाकुर से उसके अनैतिक संबंधों पर सुजाता ने अनुराधा को ऐसा नहीं करने के लिये बहुत बार प्रोत्साहित किया था। उसने तो अनुराधा को अपने यहां काम करने का ऑफर तक दे दिया था। ताकि अनुराधा इस यौन शौषण से बच सके। सुजाता के पति पार्थ ठाकुर परिवार को पसंद नहीं करते थे। उनकी नारायण ठाकुर से बनती नहीं थी। दोनों एक-दुसरे शत्रु के नहीं थे मगर मित्र भी नहीं थे। नारायण ठाकुर के यहां राजनीतिक नेताओं का प्रतिदिन आना-जाना लगा रहता।जिससे की नगर में आये दिन वाहनों का जमघट लगा रहता। नारायण ठाकुर की इस बात से मोहल्ले के अन्य परिवार भी नाराज रहते। मगर नारायण ठाकुर के विरूद्घ बोलने का साहस कभी किसी ने नहीं दिखाया। यह सुजाता ही थी जिसने एक बार नारायण ठाकुर के यहां जाकर इस संबंध में खुलकर बात की। सुजाता ने उन्हें समझाया की नगर में बड़े वाहनों के प्रेवश पर रोक लगायी जाये। रहवासियों को आने-जाने में बहुत परेशानी होती है। इस बात पर नारायण ठाकुर बहुत नाराज़ हुये थे। उन्होंने सुजाता को पुरे मोहल्ले के सामने कहा था कि यहां जो होता आया है वह आगे भी होता रहेगा। सुजाता जो करना चाहती है कर ले। पार्थ ने सुजाता को रोका नहीं। वह सुजाता को जानते थे। सुजाता ने जो एक बार ठान ली, फिर वह हर कीमत पर कर के रहती थी। हुआ भी वही। सुजाता ने शहर के कलेक्टर महोदय को लिखीत में नारायण ठाकुर की शिकायत कर दी। शिकायत पर तुरतं कार्यवाही हुई। एक दिन अवसर पर आकर यातायात विभाग के अफसर सज्जन नगर आ पहूंचे। उन्होनें ने यहां आकर नारायण ठाकुर से मिलने-जुलने वाले बहुत से लोगो की कारें जब्त कर ली। जांच पर पता चला की बहुत सी कारे बिना शासकीय पंजीयन के ही सड़क पर दौड़ रही थी। उचित वैधानिक काग़जात के अभाव में कुछ कारे शासन ने जब्त कर ली। तथा कुछ के मालिकों पर समुचित अर्थ दण्ड लगाकर छोड़ दिया।

यह पहली बार था जब नारायण ठाकुर को मुंह की खानी पड़ी थी। तब ही से दोनों परिवारों में अनबन चल रही थी।

"भाभी आप बहुत अच्छी है। मगर मैं आपके यहां काम नहीं कर सकती। आपके और ठाकुर परिवार में अनबन की वजह मैं नही बनना चाहती।" अनुराधा ने कहा।

"ठीक है अनु। जैसी तेरी इच्छा। मगर तुझ पर हो रहे शौषण को अब तुझे सहना नहीं चाहिये।" सुजाता ने कहा।

"भाभी। आप इतने लोगों की मुसीबतें हल करती है। मेरी भी ये परेशानी हल कर दीजिए। मैं सारी उम्र आपकी आभारी रहूंगी।" अनुराधा ने प्रार्थना की।

"ठीक है अनु। मगर मुझसे एक वादा कर। मैं जो हल सुझाऊं तुझे उस पर अमल करना होगा।" सुजाता ने कहा।

"मैं वादा करती हूं भाभी। आप जो भी कहेंगी मैं उसे स्वीकार करूंगी।" अनुराधा ने कहा।

"ठीक है। अब तु घर जा। मैं देखती हूं की तेरे लिए क्या बेहतर हो सकता है।" सुजाता ने कहा।

"ठीक है भाभी। चलती हूं। नमस्ते।" कहते हुये अनुराधा लौट गयी।

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"हॅलो अनिल! मैं पलक की भाभी सुजाता बोल रही हूं।" सुजाता ने फोन पर कहा। वह अनिल से पलक के संबंध में बात करना चाहती थी।

"जी भाभी जी। पलक हमेशा विषय में बताती रहती है। पलक अब कैसी है?" अनिल का प्रश्न था।

लाॅकडाउन का समय था। जो जहां है वही रहने का सरकारी आदेश था। कर्फ्यू जैसा वातावरण था। सुजाता अनिल से प्रत्यक्ष मुलाकात कर पलक और अनिल के भावि रिश्तें के विषय में बात करना चाहती थी। मगर कोरोना संक्रमण ने सभी को घरों में कैद कर दिया था। इसीलिए सुजाता ने अनिल से फोन पर बात करना ही उचित समझा।

"अनिल! तुम दोनों फोन पर रोज़ बात करते हो फिर भी तुम मुझसे पुछ रहे हो की पलक कैसी है?" सुजाता ने व्यंग्य कसा।

"जी हाँ भाभी जी। मैं पलक से रोज़ाना बात करता हूं। उससे मिलना भी चाहता हूं लेकिन समय साथ नहीं दे रहा।" अनिल ने कहा।

"पलक के विषय में आपसे पुछकर सांत्वना मिलेगी क्योंकि हो सकता है पलक अपने स्वास्थ्य की सही जानकारी मुझे न दे। क्योंकि उसे मेरा परेशान होना रास नहीं आयेगा।" अनिल ने कहा।

"जब तुम दोनों एक दुसरे से इतनी मोहब्बत करते हो तो ये कशमकश क्यों? तुम निडर होकर उसे स्वीकार करने का साहस अब तक क्यों नहीं जुटा सके।" सुजाता ने अपने तरकस से अग्नि बाण छोड़ कर अनिल को हताहत कर दिया।

"भाभी वो••• दरअसल।" अनिल बोलते-बोलते रूक गया।

"अनिल बिना संकोच के कहो। पता तो चले आखिर तुम्हारे मन में क्या है?" सुजाता ने पुछा।

"भाभी। मैं अपने माता-पिता के ख़िलाफ नहीं जा सकता। उन्होंने जो मेरे लिए किया, उसका बदला मैं इस तरह नहीं चूका सकता।" अनिल ने बताया।

"और पलक का क्या? उसके दिल में अपने लिए प्यार जगाकर अब इस तरह उसे क्या तड़पने के लिए छोड़ दोगे?" सुजाता कुछ कठोर होकर बोली।

"नहीं भाभी। मैं पलक के लिए चिंतित हूं। और पुरी कोशिश में हूं कि मेरे माॅम-डैड उसे स्वीकार कर ले।" अनिल ने अपने प्रयासों से सुजाता को अवगत कराया।

"मान लो अगर तुम्हारे माॅम-डैड ने इसके बाद भी पलक को स्वीकार नहीं किया तब तुम किसे छोड़ोगे? पलक को या अपने माता-पिता को।" सुजाता का यह रामबाण था। जिसका कोई समुचित उत्तर अनिल के पास नहीं था। वह मौन था।

"मुझे तुम्हारे उत्तर मिल गया अनिल। इसमें कोई संदेह नहीं की तुम एक आदर्श बेटे हो। लेकिन एक प्रेमी और एक अच्छे पति बनना तुम्हारे वश में नहीं।" सुजाता ने नाराजगी जाहिर की।

"भाभी आपकी नाराजगी मैं समझता हूं। लेकिन कुछ दिनों के प्रेम के वशीभूत वर्षों के त्याग और समर्पण को भुलाया तो नहीं जा सकता।" अनिल का यह जवाब दमदार था।

"सही कहा अनिल। लेकिन जिसके साथ तुम्हें अपना पुरा जीवन बिताना है क्या उसके लिए तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं बनती। इसे देखकर तो यही लगता है कि जिससे साथ भी तुम्हारी शादी होगी, उसे तुम्हारी सहमति से पहले तुम्हारे माता-पिता की अनुमति लेनी होगी। तब ही तुम उसके साथ शादी करोगे। सही कहा न मैंने।" सुजाता बोली।

फोन पर अनिल की सांसों की आवाज़ आ रही थी। मगर वह मौन ही था।

"अनिल! ये सच है कि माता-पिता बच्चों को कभी बुरा नहीं सोचते। मगर यह भी सच है कि बच्चों की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ता है। यदि तुम्हें यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है तब तुम्हें शादी करने का कोई अधिकार नहीं। आखिर तुम ही आये थे पलक के पास प्रेम का प्रस्ताव लेकर, वह नहीं गयी थी तुम्हारे पास। आज पलक इतनी बड़ी बीमारी से धीरे-धीरे उबर रही है तो वो तुम्हारे प्रेम और विश्वास की खातिर। उसे तुम पर विश्वास ही नहीं है बल्कि अंधविश्वास है। उसे अब भी लगता है कि उसके घर बारात लेकर तुम ही आओगे और उसे अपने साथ डोली में बैठाकर ले जाओगे। लेकिन उसे क्या पता कि तुम अब भी अपनी मम्मी के स्तनों को अपने मुंह से लगाये दुध पी रहे हो।" सुजाता बोली।

"भाभी!" अनिल फोन पर दहाड़ा।

"बुरा लगा न? बुरा लगना भी चाहिये। सोचो एक छोटी बात से तुम तमतमा गये तो यहां पलक को कैसा महसूस होता होगा जब उसे प्यार करने वाला उसका प्रेमी उसे स्वीकार करे अथवा न करे वाली स्थिति से अभी तक उबर नहीं पाया हो।"

अनिल अब भी मौन था। उसका क्रोध शांत हो चूका था। सुजाता भाभी की बातों ने उसे अंदर तक झंझोड़ दिया था।

"अनिल! एक बात सुन लो। पलक यदि तुम्हारे जीवन मे नहीं आ सकी तो ये तुम्हारा दुर्भाग्य होगा। उसके लिए तो अब भी एक से एक लड़कों की लाईन लगी है। मगर उसने हम सभी से कह दिया है कि वह अनिल से ही शादी करेगी। जब वह एक लड़की होकर अपने दिल की बात कह सकती है तब तुम लड़के होकर अपनी शादी के विषय में निर्णय क्यों नहीं ले सकते?" सुजाता बोली।

"एक आखिर बात। अब भी समय है या तो पलक के प्यार को स्वीकार कर उससे शादी कर लो। अन्यथा उसे भुल जाओ। ये उलझन जल्दी खत्म करो। तुम्हारी हां होगी तब ही आगे से पलक से बात कर पाओगे वर्ना नहीं। आशा है मेरी सभी बातें तुम्हें अच्छी तरह से समझ में आ गयी होगी।" कहते हुये सुजाता ने फोन रख दिया।

अनिल भी फोन रख चूका था।