अन्‍गयारी आँधी - 14 Ramnarayan Sungariya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अन्‍गयारी आँधी - 14

--उपन्‍यास

भाग—चौदह

अन्‍गयारी आँधी—१४

--आर. एन. सुनगरया,

स्‍वरूपा भलि-भॉंती अवगत है, किसी खेल में खिलाड़ी का अकुशल, अनाड़ी, आधा-अधूरा ज्ञान, अपरिपक्‍वता होने के परिणाम स्‍वरूप खेल का कबाड़ा- काम- बिगाड़ा, सत्‍यानाश होना तय है, जो जिज्ञासा, जोश खरोश, संतृप्ति, संतोष को मटियामेट कर डालते हैं। उत्‍पन्‍न दुर्लभ ऊर्जा भड़की तो हाल-बेहाल कर देती है, अनेक दर्दनाक घाव छोड़ जाती है, जिसकी प्रतिपूर्ती अत्‍यन्‍त कठिन हो जाती है। क्‍लाईमेक्‍स की ऊँचाई, चरमोत्‍कर्स, छूकर कोरे लौटने के दुष्‍प्रभाव अनगिनत हैं, जैसे भावात्‍मक, भौतिक मानसिक लिहाज से हृासदायक होता है। आक्रोश उत्‍पन्‍न करता है, चिड़चिड़ाहट बढ़ाता है; संयम तोड़ता है, विचारशीलता खण्डित करता है, व्‍यवहार, सद्भावना, सेवाभाव सदाचार दूषित करता है। उचित यही है, कि सम्‍भावित खिलाड़ी को अनुकूल क्रीड़ा हेतु आवश्‍यक तकनीक, समय संयोजन, क्रियाशीलता, स्‍वाभाविक या स्‍वत: क्रिया की सर्वोचित प्रतिक्रिया गहन अनुभव आदि-आदि विशेषताओं को बुद्धि कौशल से परख लेना चाहिए। ठोक-बजाकर ही अग्रसर होना श्रेयस्‍कर होगा। तभी संसार के सर्वश्रेष्‍ठ सुख का सम्‍प्रेषण सम्‍भव है। उतावलेपन में किया गया कार्य पश्‍च्‍चाताप का कारण होगा।

स्‍वरूपा-शक्ति प्रतीक्षारत हैं। मौन धारण किये हुये, एक-दूसरे को ताड़ रहे हैं। तुम बोलो तुम, तुम बोलो की तर्ज पर।

‘’हर बार इतना समय लगेगा तो...........।‘’ स्‍वरूपा ने खामोशी त्‍यागी।

‘’एैसा नहीं सोचते।‘’ तपाक से शक्ति ने मौका लपक लिया, बात करने का, जैसे इस क्षण का इन्‍तजार कर रहा था, ‘’होता है, कभी-कभी देर-दार भी।‘’ स्‍वरूपा को देखते हुये, ‘’वो सामने पार्क जैसी हरियाली दिख रही है, वहीं बैठकर आराम करते हैं।

‘’यहॉं ठीक है।‘’ स्‍वरूपा मुलायम घनी घॉंस पर प्रसन्‍नता पूर्वक बैठते हुये, ‘’बैठो.......।‘’ शक्ति भी बैठ गया।

बार-बार मौन का साया छा जाता है। दोनों जरूर कोई एैसी चर्चा करना चाह रहे हैं शायद, जिसमें संकोच का भाव अधिक जान पड़ता है। शुरू करने के लिये साहस अनिवार्य होगा।

‘’ट्युनिंग सेट हुई सपना से?’’ स्‍वरूपा ने हिम्‍मत की अन्‍तरंग प्रश्‍न की।

‘’ट्युनिंग!’’ शक्ति समझने में विलम्‍व कर रहा था। तब तक स्‍वरूपा ने दूसरा प्रश्‍न दाग दिया, ‘’हॉं, बात-व्‍यवहार तो ठीक है, सपना का तुम्‍हारे प्रति’’ स्‍वरूपा ने कुरेदा। शक्ति के समझ में, स्‍वरूपा का आसय स्‍पष्‍ट होने लगा था। एैसा लगा, दिल की बात कह दूँ, खुलकर, ‘’जंगली बिल्‍ली है......।‘’ शक्ति ने सपना की असलियत बताई, ‘’मौका पाकर नोचने-खसोटने- काटने हेतु झपट्टा मारती है।‘’

‘’एैसा तो नहीं है।‘’ स्‍वरूपा ने अनेक गुण बताये सपना के।

‘’हाथ नहीं रखने देती; कुड़क मुर्गी की तरह।‘’ शक्ति की आवाज में तीखापन है, ‘’तुमने सपना के इस पहलू को नहीं देखा।‘’ शक्ति ने स्‍वरूपा के चेहरे पर नजर डाली, ‘’खाने को दौड़ती है।‘’

स्‍वरूपा गम्‍भीरता पूर्वक सुनती रही, शक्ति बड़बड़ाता रहा.......... ...........तालमेल एक-दूसरे में सहमति, समर्पण, सहायता युक्‍त समागम ही दाम्‍पति जीवन का मुख्‍य आधार होता है। शक्ति एकाएक चुप्‍प हो गया, उसे ख्‍याल आया ये सब क्‍या सुना रहा है। गोपनीय कार्यकलाप अन्‍तरंग आपबीती कर्मकथा सरेआम जग जाहिर करना नैतिकता के अनुकूल नहीं है। आक्रोश वश बह गया भावनाओं में अथवा भड़ास निकालने में लीन हो गया।

स्‍वरूपा भी अपने मन-मस्तिष्‍क एवं यादों में पड़े अनजाने-अनचाहे क्षणों के नुकीले सूलों में घिर गई, जो पल-दर-पल चुभ रहे हैं; अन्‍तश में मन चाही स्थिति व अनुभूति के एहसास का नितांत अभाव रहा। बस वैवाहिक जीवन की औपचारिकताऍं ही निवाहते रहे। आत्‍मसंतुष्‍टी, सम्‍पूर्ण तृप्ति आत्‍मानन्‍द की स्‍वभाविक प्राप्ति से सदैव वंचित रहे, तिलभर राहत के लिये तरसते हैं। और–और भूख भड़कती रही, दिन-पर-दिन कटते गये, इच्‍छा की पूर्ती के समय के इन्‍तजार में कोई आस नहीं रही मन-मुताबिक मिलन की। जल में रहकर भी प्‍यासी की प्‍यासी, तड़फती मछली.........सुलगती भावनाओं को काबू करना कठिन ही नहीं नामुमकिन है।

त्रिया चरित्र स्‍त्री के पास एैसा दिव्‍य ब्रह्मास्‍त्र है कि इसे वह अपने एैच्छिक मकसद हासिल करने के लिये बड़ी आसानी से उपयोग कर सकती है। इस अचूक हमले से बच पाना सम्‍भव नहीं है। कुछ ही अति उत्‍साहित, अति अपेक्षा की चाहत, अपना दबदबा बनाये रखने, बदले की भावना अथवा अपना वर्चस्‍व कायम करने के लिये कर सकती है। स्‍त्री को खिताब का प्रयोग वह चाहे तो कल्‍याण के स्‍थान पर स्‍वार्थवश दुरूपयोग भी कर सकती है। औरत की चालाकियॉं, साजि़शें, समय पर समझ लेना अत्‍यन्‍त दुष्‍कर कार्य है। इ‍सलिये आत्‍मसमर्पण ही, सबसे सरल तत्‍काल एक मात्र उपाय है।

औरत का साथ, सतसंग, सम्‍पर्क, सहयोग, समर्पण इत्‍यादि तरबूजे पर लटकती नंगी तलवार के समान होता है, किसी भी स्थिति में कटना तरबूज को ही है.......।

‘’शक्ति.....।‘’ स्‍वरूपा फटकारते हुये चिल्‍लाई, ‘’सो गये....।‘’

‘’हॉं......।‘’ घबराकर, भड़भड़ाया शक्ति, ‘’नहीं......।‘’ आँखें मलने लगा।

स्‍वरूपा मुस्‍कुराते-मुस्‍कुराते हँसने लगी, शक्ति की दशा पर। शक्ति सचेत हो गया।

‘’चलना नहीं है........।‘’ स्‍वरूपा जानना चाहती है, ‘’क्‍या करें!’’ शक्ति को मौन देखकर उसी ने कहा, ‘’काम तो पूरा हुआ नहीं, लौटना और अगले दिन सुबह पुन: आना, बहुत हड़बड़ी, परेशानी और जोखिम भरा...है, क्‍यों ना यहीं ठहर जायें।‘’

‘’हॉं हॉं ठहरते हैं।‘’ शक्ति ने तुरन्‍त हामी भर दी।

‘’कहॉंᣛ?’’ स्‍वरूपा ने दृढ़ता से पूछा, ‘’है, कोई सुरक्षित एक्‍मेडेशन।‘’

‘’हॉटल चलते हैं।‘’ शक्ति ने सलाह दी। हॉटल के गेट पर टेक्‍सी रूकी। स्‍वरूपा लपककर रिशेप्‍शन पर प्राथमिक औपचारिकताऍं निवटाने लगी।

शक्ति सामान हाथ में पकड़े-पकड़े टेक्‍सी ड्राईवर से गुफ्तगू करने में लगा रहा, ताकि भविष्‍य में टेक्‍सी बुक की जा सके।

स्‍वरूपा हाथ में निर्धारित रूम की चाबी लेकर शक्ति का इन्‍तजार कर रही है। हाथ हिलाकर बुलाने के साथ, झुंझलाते हुये पुकारती है, ‘’आओ ना जल्‍दी!’’

शक्ति रिशेप्‍शन कॉऊंटर की ओर ईशारा करके सांकेतिक भाषा में पूछता है; इधर सब फार्मिलिटी हो गईं। स्‍वरूपा ‘हॉं’ में मुण्‍डी हिला देती है।

ताला खोलकर रूम में प्रवेश करते ही दोनों के चेहरे खिल उठते हैं, सुन्‍दर व्‍यवस्थित कमरा, सर्वसुविधाओं से सुसज्जित। रूम परफ्यूम की मंद-मंद महक की तरंगें मदहोश कर रहीं हैं। पसन्‍दीदा परफ्यूम सुगन्धित।

‘’एक और रूम!’’ शक्ति ने जानना चाहा। ‘’

‘’एक रूम ही पर्याप्‍त है।‘’ स्‍वरूपा ने बताया। शक्ति की ओर देखते हुये।

‘’दोनों एक ही कमरे में.........।‘’ आश्‍चर्य जताया, शक्ति ने।

‘’नो प्राबलम।‘’ स्‍वरूपा ने दृढ़ता से कन्‍धे उचकाये।

‘’लोकलाज, रिश्‍तों की मर्यादा।‘’ शक्ति ने विवेकी बुद्धि का परिचय दिया, ‘’सामाजिक, पारिवारिक संस्‍कार, प्रतिष्‍ठा.....’’

‘’सबका पालन स्‍वैच्छिक, सुविधानुसार।‘’ स्‍वरूपा ने अपने आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार परिभाषित किया, ‘’मौका परस्‍ती का वक्‍त है। भौतिकवादी बनो।‘’

‘’मगर!’’ शक्ति ने शंका-कुशंका जाहिर की, ‘’विरोध, शिकवा-शिकायत वबाल........बेवफाई,……..कुछ तो ख्‍याल करो......।‘’

‘’बालिग को कानूनी अधिकार प्राप्‍त है।‘’ स्‍वरूपा ने कानून की याद दिलाई, ‘’स्‍त्री-पुरूष परस्‍पर एक-दूसरे की रजामन्‍दी से साथ रह सकते हैं, रिलेशनशिप में, कोई बन्दिश नहीं, कुछ गैरकानूनी नहीं.......।‘’

‘’मगर।‘’ शक्ति के मन में प्रसन्‍नता के लड्डू फूट रहे थे, स्‍वरूपा की भॉंति, आतुर था।

‘’अगर, मगर छोड़ो।‘’ स्‍वरूपा ने इस प्रकरण को एण्‍ड किया, ‘’क्‍यों फिजूल खर्च करें, दूसरे रूम के लिये।‘’ स्‍वरूपा ने साहस किया, ‘’मैंने शक्ति-स्‍वरूपा को पति-पत्नि इन्‍ट्री किया है, हॉटल के रिशेप्‍शन रजिस्‍टर में।‘’

‘’बहुत खूब स्‍वरूपा, तुमने हॉटल का रजिस्‍टर, मैरिज रजिस्‍टर बना दिया।‘’ मुस्‍कुराते हुये शक्ति आगे बढ़कर, स्‍वरूपा को अपने बाहों के घेरे में लेने लगा स्‍वरूपा चहक उठी, ‘’रूम का दरवाजा बन्‍द कर लें......।‘’

कुछ ही क्षणों में शक्ति-स्‍वरूपा एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले, बिना बल लगाये आहिस्‍ता–आहिस्‍ता सौफे तक आकर एक साथ बैठ कर, ऑंखों-ऑंखों में शुरूर उभर आया, दोनों के चेहरे नजदीक ओर नजदीक आकर परस्‍पर लिपट गये धीरे-धीरे......दो सुलगते शरीर, दो दिल एक होने लगे। प्रकृति नाच उठी, खिल उठीं, झरने मचलने लगे, चॉंद ने अपनी चॉंदनी बिखेरना प्रारम्‍भ कर दिया, मौर ने अपने नृत्‍य को रंगीन कर दिया। जर्रा-जर्रा झूम उठा.......

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश: ----१५

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍