इस समय सुबह के लगभग 10 बजे हैं I लखनऊ हॉस्पिटल के बेड नंबर 103 के पास वार्ड के बाहर खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं इंस्पेक्टर जयदीप, राजेंद्र और श्याम I श्याम के चेहरे की रेखा असंतोषजनक है उसे यह बात बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि राजेंद्र आज भी पुलिस को साथ लेकर आ गया I
उसके मन में एक गुस्सा उभरा है राजेंद्र के प्रति , इसीबीच जयदीप डॉक्टर के साथ बात करने के लिए आगे बढ़ गए और श्याम जो अवसर चाहता था मिल गया I राजेंद्र के पास आया वह और बोला - " तुम क्या सचमुच आशीष को खूनी समझते हो I "
राजेंद्र बोला - " देखो श्याम मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा मैंने अपनी बहन को खोया है और उसका बॉयफ्रेंड एक कहानी सुना रहा है I मैं उस पर कैसे विश्वास करूं I "
" पुलिस की बातें छोड़ो लेकिन तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो कि उसने मर्डर किया I वह प्यार करता है मानसी से I "
राजेंद्र को इस बारे में बात करने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था I अपने बहन की मृत्यु के बाद किसी के ऊपर विश्वास करना राजेंद्र के लिए मुश्किल है I
तभी जयदीप लौट आए यह देख श्याम ने खुद को संभाला I
" सब कुछ मनगढ़ंत कहानी है I " जयदीप आकर
राजेंद्र की तरफ देख कर बोले I
यह बात श्याम को अच्छा नहीं लगा तुरंत ही इंस्पेक्टर
से प्रश्न कर बैठा - " आप क्या अभी भी एक बीमार
डरे हुए लड़के को खूनी सोच रहे हैं I "
इंस्पेक्टर जयदीप कुछ विचलित से हुए और श्याम के
पास जाकर आंख से आंख मिलाकर बोलने लगे
- " खून चूसने वाले पेड़ मनुष्य की तरह बात करते हैं I
यह सब कौन विश्वास करेगा शायद आपका भाई या तो
ड्रग्स के नशे में है इसीलिए ऐसा बोल रहा है या फिर
मर्डर करने के बाद यह सब कहानी बता रहा है I कह
देता हूं मैं भी उसे छोड़ने वाला नहीं हूं उसके ठीक होते
ही मैं उसे फिर से वहां पर लेकर जाऊंगा क्योंकि बाकी
तीनों के लाश खोजकर लाने होंगे और फिर पोस्टमार्टम
होने पर सब कुछ पता चल जाएगा I आपका भाई
शायद सोच रहा है उस घने जंगल में लाश को छुपाने
से किसी को पता नहीं चलेगा I 2 दिन बाद उसे
वहां पर खींचकर ले जाऊंगा I राजेंद्र को भी लेकर
जाऊंगा मानसी को पहचानने के लिए और अगर आप
भी चाहे तो हमारे साथ चल सकते हैं I "
श्याम सिर झुकाए खड़ा रहा इतने सारे बातें सुनने की
आशा उसे नहीं थी I वह समझ गया कि इस विपत्ति से उसका भाई इतनी जल्दी बाहर नहीं निकल पायेगा अभी तो बिल्कुल भी नहीं I उसके घर से किसी ने अभी तक पुलिस स्टेशन नहीं देखा और आज उसके ही भाई पर मर्डर करने का संदेह है I यह सोचकर ही उसका सिर शर्म से फटा जा रहा है लेकिन नहीं आशीष को वह अकेला पुलिस के साथ नहीं छोड़ सकता वह भी उनके साथ उस जंगल में जाएगा और पता लगाएगा कि उस दिन चार दोस्तों के साथ आखिर हुआ क्या था ?
ट्रेन के इस खाली डिब्बे में बैठे हैं इंस्पेक्टर जयदीप
सिंह एवं उनके सहकर्मी हवलदार भोला , राजेंद्र ,
आशीष , श्याम और निर्मला देवी I
उतरौला थाने से पहले ही बात हो चुका है कि वह
सभी आज दोपहर तक आ रहे हैं और जितनी
जल्दी हो एक सर्च पार्टी उतरौला थाने से तैयार रखा
जाए I
पांचों के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही I जयदीप
बीच-बीच में कुछ जरूरी फोन कॉल्स कर रहे हैं I
श्याम और राजेंद्र के बीच तो कोई बात ही नहीं हो
रहा केवल एक दूसरे को कभी-कभी घूरते रहते I
आशीष के मन में एक उत्तल पुथल मचा हुआ है वह
नहीं चाहता फिर से उस शापित घने जंगल में जाना
और फिर से उस तरह के दिन को देखना जहां वह
अपने प्यार मानसी को छोड़ आया अपनी जान बचाने
के लिए लेकिन कोई उपाय नहीं है पुलिस के संदेह
तालिका में उसका नाम सबसे ऊपर है I आज वह भी
जानना चाहता है उस दिन किसने उस पर हमला किया
था यह सब कुछ ही उसके मन की भूल है I उसके
सभी प्रश्नों के उत्तर छुपे हुए हैं उस जंगल में I
पहुंचते-पहुंचते दोपहर बीत गया I शीतकाल का
समय होने के कारण धूप मानो कहीं खो गई है और
एक ठंडी हवा चारों तरफ वह चली है I
शरीर के भीतर तक कपां दे रहा है यह ठंडी हवा I
बलरामपुर स्टेशन पर उतरकर इंस्पेक्टर जयदीप कुछ
सोचने लगे फिर आशीष से जानना चाहा - " वह
जंगल यहां से कितनी दूर है ? इस समय जाया जा
सकता है I "
आशीष क्या जवाब दें समझ नहीं पाया I यह सुन
निर्मला देवी बोली - " सर मेरा मानना है उस जंगल
में अभी मत जाइए I शाम होने को आई है आप
शायद मेरी बात नहीं मानेंगे लेकिन वह जंगल रात
को बिल्कुल भी सुविधाजनक नहीं है इससे अच्छा मेरे
घर ही आज रात काट सकते हैं और कल सुबह जाइए I "
सभी ने सोचा था जयदीप शायद निर्मला देवी के बात
को नहीं मानेंगे लेकिन कुछ सोचकर कल सुबह ही
उन्होंने उस जंगल में जाने का विचार किया I
दीवार पर टंगी हुई घड़ी बता रही है इस समय शाम के साढ़े छह बज रहे हैं I उतरौला थाने के कमरे में बैठकर खिड़की से बाहर देख रहे हैं जयदीप , बाहर कोहरे की नर्म चादर धीरे धीरे शीतकाल के शाम को घेर रही है I आसपास के बाजार व घर सब कुछ इस कोहरे में धीरे - धीरे गायब हो रहे हैं I खिड़की से ठंडी हवा आ रही है थाने के इस कमरे में , जयदीप में जोर से एक सांस लिया लखनऊ के व्यस्त वातावरण से दूर यहां बहुत ही ताजी हवा है I यह परिवेश बहुत ही अच्छा लग रहा है जयदीप को , इस ठंडी मैं तीन मृत शरीर पड़ा हुआ है उस जंगल में I
" बोलिए सर कैसे आपकी सहायता कर सकता हूं ? "
उतरौला थाने के इंचार्ज की आवाज सुनकर वास्तविक
दुनिया में लौटे इंस्पेक्टर जयदीप I
एक मोटा व नाटा आदमी आकर बैठा है सामने ,
गोलाकार चेहरे के साथ नाक के नीचे की छोटी सी
मूँछ बहुत ही जच रहा है उन पर , इंस्पेक्टर जयदीप
अपने कुर्सी को कुछ आगे लाकर बैठे और बोले
- " आपका नाम ? "
" सर मेरा नाम है सुदर्शन यादव "
" हाँ हाँ यादव जी तो सर्च पार्टी रेडी है क्योंकि हम
कल सुबह ही जंगल में जा रहे हैं I "
सुदर्शन कुछ परेशान होकर बोले - " सर लेकिन सर्च
पार्टीतो नहीं है I "
यह सुन जयदीप को बहुत ही गुस्सा आया और
बोले - " नहीं है मतलब , मैंने तो आपको पहले ही
बताया था I "
" हां सर हां सर लेकिन बात यह है कि कोई उस जंगल
में जाने की साहस नहीं कर रहा I वह जंगल ठीक नहीं है "
" यह क्या बात हु जब साहस नहीं है तो पुलिस में
क्यों भर्ती हुए हैं I "
सुदर्शन कुछ भयभीत सा चेहरा बनाते हुए बोले
- " उस जंगल के अभिशाप की बात यहां के लोगों
में प्रचलित है इसीलिए कोई उधर जाना ही नहीं चाहता I "
जयदीप आगबबूला होकर बोले - " अभिशाप गया
तेल लेने और आप पुलिस होकर इन सब बातों पर
विश्वास करते हैं I उधर तीन बॉडी न मिलने से एक
संभावित खूनी छूट जाएगा यह आप समझ रहे हैं I
ऑलरेडी तीन दिन हो चुका है सभी बॉडीजंगल में ही
पड़ी हुई है और आप फालतू अभिशाप की बात कर
रहे हैं I "
" सर एक बार आप बात ठीक से सुन तो लीजिए I "
" सुनिए यादव जी काम अगर नहीं करना चाहते हैं तो
रिटायर हो जाइए I बेवजह उस कुर्सी पर बैठकर सरकार
के पैसे मत खाइए I कल सुबह दो लोगों के साथ
तैयार रहिएगा जंगल जाने के लिए और अगर ऐसा
नहीं किया तो आपके विरुद्ध कंप्लेन करने में मैं जरा
भी नहीं संकोच करूंगा फिर मैं भी देखता हूं आपके
नौकरी को कौन बचाता है I "
इतना बोल कर थाने से बाहर निकल गए इंस्पेक्टर
जयदीप I
रात के खाने पर सभी एक साथ ही बैठे I गांव के इस
बड़े से घर में खाने का बोध जयदीप को पहली बार
हुआ वैसे खाना सामान्य ही है लेकिन इस दुखी मन से
भी उन्होंने इतना सब आयोजन किया उसकी प्रशंसा
किए बगैर नहीं रहे जयदीप - " बहुत-बहुत धन्यवाद
आपका निर्मला देवी जी इस समय अपने रिश्तेदार की
तरह रहने देने के लिए I कल सुबह ही हम लोग यह घर खाली कर देंगे I "
बात करते-करते उन्होंने सभी के ऊपर नजर दौड़ाई I
आशीष , श्याम और राजेंद्र के बीच कोई बात नहीं हो
रहा हालांकि वह उन लोगों में बात करवाने की चेष्टा
भी नहीं करेंगे I उनका काम है सच को उजागर करना
और वही करेंगे केवल I
घड़ी में रात के 10:00 बज रहे हैं राजेंद्र खाना समाप्त
करके बोले - " एक बात जानना था निर्मला देवी जी
कुछ दिन से एक बात कई बार सुन चुका हूं कि वह
जंगल शापित है I वह अभिशाप क्या है थोड़ा बताइए I "
निर्मला देवी जी बोली - " उस जंगल के बारे में मैं जो
भी बोलूंगी याद रखिएगा वह सब कुछ मेरे दादा ने
बताया था और मैं भी वही बताने जा रहा हूं I वह जंगल
कितना पुराना है यह कोई नहीं जानता लोगों का
मानना है वह जंगल आदिकाल से ही वहां पर है I
आज से लगभग 80 साल पहले वहां एक छोटा पथ था
और जंगल भी ईतना घना नहीं था I उस समय जंगल
को साफ किया गया था कुछ पेड़ों वह झाड़ियों को
काटकर जिससे लोग वहां रह सके I एक दिन उस
मंदिर को सभी ने तोड़ने की सोची और तोड़ने से
पहले मंदिर के अंदर के कमरों को खोला गया I
वह मंदिर किस देवता का है व किसने बनाया था इस
बारे में कुछ भी किसी को नहीं पता I जो भी हो इस
घटना के बाद आश्चर्यजनक तरीके से बहुत ही भयानक
घटना घटी, एक रात पूरा जनपथ न जाने कहां गायब
हो गया धीरे-धीरे वह जगह भर गया बहुत सारे लताएं ,
झाड़ियों और जंगली फूलों से I एक साफ जनपथ
रातों-रात कहां गायब हो गया इस रहस्य के बारे में
कोई भी नहीं जानता है I लोग कहते हैं मंदिर के भीतर
बंधे हुए किसी आत्मा ने यह काम किया है I उस
जंगल में जो भी जाता है जंगल उसे निगल जाता है I
ना जाने कहां खो जाते हैं सभी लोग कोई चिन्ह भी
नहीं मिलता I "
निर्मला देवी के बात समाप्त हो जाने पर ही किसी के
चेहरे से आश्चर्य का भाव नहीं कट रहा I
" आप क्या अभी भी मेरे भाई को खूनी समझ रहे
हैं ? दैट फॉरेस्ट इज इविल I " श्याम खड़ा होकर
इंस्पेक्टर जयदीप से बोला I
इंस्पेक्टर जयदीप को गलत ठहराने की चेष्टा लगातार
कर रहे हैं लेकिन जयदीप चेहरे पर कोई भी विचलित
की रेखा नहीं दिखाई दिया इसके उलट इस प्रश्न का
उत्तर न देकर हंसकर बोले - " कहानी तो बहुत ही
अच्छा था बहुत ही रोमांचक कहानी , जो भी हो अब
मैं जा रहा हूं सोने कल सुबह हम लोग बॉडी को
लाने जाएंगे सर्च पार्टी लेकर , शरीरों के मिल जाने पर
और उसके बाद पोस्टमार्टम के बाद पता चल ही
जाएगा I गुड नाइट "
सभी एक-एक कर अपने रूम में जाने लगे I रात बहुत
हो गई है I राजेंद्र अपनी कुर्सी छोड़ जाने वाले ही थे
कि देखा आशीष अपने कुर्सी पर बैठा किसी गहरी
सोच में डूबा हुआ I
राजेंद्र एक बार सोचे कि उसे आशीष के साथ कुछ बातें कर लेना चाहिए लेकिन अगले ही पल अपनी बहन के हंसते हुए चेहरे को सोच रुक गए I जिस लड़के ने उनकी बहन का सम्भवतः मर्डर किया है उसके साथ बात करने की कोई जरूरत नहीं है I राजेंद्र हॉल से निकल जाएंगे ठीक उसी समय आशीष बोला - " भैया सच मैं मैंने हत्या नहीं की, मैंने नहीं किया I "
" वह तो कल सुबह बॉडी के मिल जाने के बाद पता
चल ही जाएगा I "
" भैया आप समझ नहीं पा रहे हैं उस जंगल में कुछ
ऐसा है जिसकी व्याख्या मैं नहीं कर सकता I सब सोच
रहे हैं मैं पागल हो गया हूं पर मैं सच बोल रहा हूं
एकाएक चारों तरफ का वैसा परिवर्तन मैंने इससे
पहले कभी नहीं देखा था और वह भयानक लताएं
और और एक बात मैंने किसी को नहीं बताई……"
" आशीष मेरी बहन को क्यों लेकर गए थे मेरी बहन
ही है एकमात्र मेरे लिए इस दुनिया में और तो कोई भी
नहीं है I जो बोलना है कल इंस्पेक्टर सिंह को बोलना
, ठीक है I "
और कोई भी बात ना बोलकर राजेंद्र अपने सोने वाले
कमरे की तरफ चले और जाते समय अस्पष्ट रूप से
उन्हें सुनाई दिया कि आशीष अपने मन में ही बड़बड़ा
रहा है - " लेकिन यह कैसे संभव मैंने जो देखा वह
तो……"
राजेंद्र के मन में कुछ बात आई पर उन्होंने पीछे नहीं
देखा और सीधे चले गए I........
।। क्रमशः।।
अगला भाग क्रमशः..
@rahul