The Author मदन सिंह शेखावत फॉलो Current Read द ईमेल भारत खतरे में - (भाग 1) By मदन सिंह शेखावत हिंदी जासूसी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सनातन - 2 (2)घर उसका एक 1 बीएचके फ्लैट था। उसमें एक हॉल और एक ही बेडरू... गोमती, तुम बहती रहना - 7 जिन दिनों मैं लखनऊ आया यहाँ की प्राण गोमती माँ लगभग... मंजिले - भाग 3 (हलात ) ... राजा और दो पुत्रियाँ 1. बाल कहानी - अनोखा सिक्काएक राजा के दो पुत्रियाँ थीं । दोन... डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 76 अब आगे,राजवीर ने अपनी बात कही ही थी कि अब राजवीर के पी ए दीप... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास मदन सिंह शेखावत द्वारा हिंदी जासूसी कहानी कुल प्रकरण : 4 शेयर करे द ईमेल भारत खतरे में - (भाग 1) (2) 3k 9k सुबह सुबह जब सब लोग टहलने घूमने के लिए निकलते थे उसी समय मेरा पहला काम मेरे लैप टॉप पर ईमेल पढ़ने का होता था क्योंकि में रॉ में तकनीकी विभाग के ईमेल इंटेलिजेंस में काम करता था। मेरा काम पड़ोसी देशों मुख्य रूप से पाकिस्तान के खुफिया ईमेल को डिकोड करना होता था। मैं ईमेल पढ़ पाता हमारी प्रियतमा की सुबह के अभिवादन को सुनना जरूरी था। "गुड मॉर्निंग अनुपम" सुरभि हमारी प्रियतमा के अभिवादन से हमारी सुबह की शुरुआत इसी तरह होती थी। "गुड मॉर्निंग डार्लिंग" ओर सुरभि की भी शुरुआत बस रोज ऐसे ही होती थी। "अनुपम जल्दी अपने ईमेल पढ़ो ओर चाय पीने के लिए गार्डन में आ जाओ में रसोई में जाकर चाय बना रही हूँ" कुछ समय बाद सुरभि चाय बनाकर गार्डन में आ गयी लेकिन अभी भी अनुपम नही आया था। सुरभि कुछ समय बाद मुझे बुलाने के लिए कमरे में आई मुझे वहां नही देखकर आवाज लगाई। "अनुपम कहाँ हो चाय ठंडी हो रही है" "सुरभि में बाथरूम में नहा रहा हूँ मुझे जल्दी से ऑफिस जाना है" ये सुनकर सुरभि चकित हो गई। "क्या अनुपम आज तो रविवार है बच्चों के साथ मूवी भी जाना है। क्या वादा भूल गए" में नहा कर बाहर आ चुका था और सुरभि की तरफ देखकर कहा "हां मुझे याद है लेकिन अभी ऑफिस जाना बहुत जरूरी है। मैं मूवी के समय पर आ जाऊंगा" "नाश्ता तो बना दूँ ऑफिस में खा लेना" "इतना समय नही है बस में निकल रहा हूं" इतना कहकर में अपनी गाड़ी की तरफ भागा। गाड़ी को चालू करते ही सबनम को फ़ोन कर दिया जो मेरे साथ काम करती थी। "गुड मॉर्निंग शबनम तैयार हो मैं रास्ते मे तुम्हे साथ ले लूंगा" "मोर्निंग कहाँ गुड़ है ऑफिस में जाना पड़ रहा है आज तो शोहर के साथ शॉपिंग जाना था बड़ी मुश्किल से माना था। उसका चेहरा तो बहुत खुश नजर आ रहा है" ये सुनकर मुझे हंसी आ गई। "शबनम जी चिंता मत करो ऑफिस आना बहुत जरूरी है" "अगर आप बुला रहे हो तो बहुत जरूरी होगा " "चलो थोड़ी देर में तुम्हारे घर के पास पहुंच रहा हूँ" शबनम का कद छोटा होने से थोड़ी सी वजनदार लगती थी साथ मे हमेशा ढीले सलवार सूट पहनती थी जिससे उसका लुक लोगो को पसंद नही आता था। और आंखों के सामने आदम जमाने का चश्मा शबनम को बहुत अजीब बना देता था। लेकिन इन सब के बावजूद अपने काम मे हम सबसे निपुण थी। में बस शबनम के घर पहुचने वाला था कि सामने सबनम नज़र आ गई जैसा बोला था वैसे ही नज़र आ रही थी। शबनम कार में बैठने के बाद मुझे सवाल करने लगी "अब तो बता दो की ऑफिस किसलिए जा रहे हैं" मैंने अपना फ़ोन निकाला और उसे सुबह जो ईमेल पढ़कर ऑफिस आने का फैसला किया थाशबनम को दिखाया। शबनम भी ईमेल को पढ़कर चकित हो गई। ईमेल के सब्जेक्ट में लिखा था कि india in danger, crack it and find out, how. नीचे ईमेल में बहुत सारे अंग्रेजी के शब्द एक वर्ग के रूप में लिखे हुए थे। जिसने ईमेल भेजा था उसका पता secretboldking@...... था। "इस ईमेल को क्रेक करना तो आसान लग रहा है। क्यों मेरी शॉपिंग को खराब किया ।" शबनम थोड़ा नाराज होते हुए कहा। "शबनम बात ये नही है बात ये है कि ये ईमेल किसने भेजा और कहां से भेजा ये जानना जरूरी है।" रविवार होने की वजह से दिल्ली की सड़कों पर ट्राफिक नही था और ऑफिस हम थोडा हमेशा से जल्दी पहुंच गए। दरवाजे पर खड़ा चौकीदार भी अपना मुंह ऐसे बना रहा थे मानो वो सोच रहा हो कि इनके पास क्या रविवार को भी परिवार के साथ कुछ काम नहीं है क्या। हम दोनों अब अपने कंप्यूटर के सामने थे कंप्यूटर को शुरू करने से पहले ही शबनम ने सतीश सर का ज़िक्र कर दिया। "अनुपम सर क्या आपने इस ईमेल के बारे में सतीश सर को बताया" सतीश सक्सेना रॉ के डारेक्टर थे 6 फिट से लंबे, दाढ़ी रखने का शोक, हमे भी दाढ़ी रखने के लिए कहते थे, चश्मा पहने के बाद आंखों की पुतली ज्यादा फेलने से डरावना लुक लगने लगता था, ओर मुख्य बात आज तक उनका कोई भी मिसन फेल नही हुआ था। लेकिन मेने सुबह ही उनको फ़ोन किया था। फ़ोन नही उठाने पर मैंने उनको ईमेल कर दिया था। ये बात मैंने सबनम को बता दी। में ईमेल को डिकोड करने में लग गया। पहले में आसान तरीके से अंग्रेजी शब्दों को क्रम में सजाने लगा और सबनम उस ईमेल के आई पी अड्रेस ओर जगह का पता लगाने लगी। में अभी आसान तरीके अपनाने के बाद भी उस ईमेल को डिकोड नही कर पा रहा था। हर बार कुछ भी संकेत नही मिल पा रहा था। इतने में सबनम ने अपना काम कर दिया। सबनम ने खुशी से कहा "सर ये ईमेल हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से किया है। जिसने भी किया है उसने मुफ्त वाई फाई के आई पी अड्रेस का इस्तेमाल किया है और जिस मोबाइल का उपयोग किया है वो आउटडेटेड है। इसलिए उस इंसान का पता लगाना मुश्किल ही नही है मेरे को तो नामुमकिन लग रहा है।" "ईमेल के नाम से पता नही कर सकते है क्या" मेरा कहना सही था लेकिन शबनम ने बताया की इस ईमेल को दो मिनट पहले ही बनाया और इस ईमेल को आपको भेजा और इसे डिएक्टिवेट कर दिया। मेरे को कुछ समझ नही आ रहा था। इतने में सतीश सर का फ़ोन आ गया मैंने सर को सब बता दिया। सर ने मुझसे कहा "अनुपम ज्यादा समय मत खराब करो हम रॉ में काम करते है हमे भटकाने के लिए भी ऐसे ईमेल का प्रयोग करते है। अभी तुम आई बी से आये एक इनपुट पर काम करना है आने वाले समय मे हमारे किसी एयर बेस पर कोई आतंवादी हमला होने वाला है। ठीक है अभी ये छोड़ो घर जाओ संडे का आनंद लो" सर इन बातों पर मुझे यकीन नही हो रहा था। सबनम भी सतीश सर से सहमत थी। मैंने सबनम को घर भेज दिया ताकि वो शौपिंग कर सके। लेकिन मुझे एक बात सता रही थी कोई मुझे ऐसा ईमेल क्यों भेजेगा। ओर मेरा मन भी सतीश सर की सलाह को नजरअंदाज कर रहा था। मैंने ईमेल को डिकोड करने की ठान ली। दोपहर के तीन बजे गए अभी भी में असफल ही था। घर से बच्चों का फ़ोन आ रहा था लेकिन मेने उन्हें संदेश भेज दिया कि आप लोग फिल्म देखने चले जाओ। रात के आठ बजे में हार मानकर घर के लिए प्रस्थान करने का मन बना लिया। › अगला प्रकरण द ईमेल भारत खतरे में - 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