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जीवनदान



जीवनदान

विवाह की रस्में अभी चल ही रही थीं कि विपिन के पिताजी सुमेश को एक बार फिर दिल का दौरा पड़ गया । निवेदिता अपनी देवरानी कमल को विवाह का दायित्व सौंप कर सुमेश के साथ अस्पताल चली गई । विपिन के चाचा उमेश तथा रीना का भाई कार्तिक भी उनकी सहायता के लिये उनके साथ गये थे ।

सुमेश को तुरंत हास्पीटल में एडमिट कर लिया गया । इससे पहले भी सुमेश को एक बार दिल का दौरा पड़ चुका था अतः सभी चिंतित थे...। हँसी मजाक का दौर थम चुका था तथा विवाह की अन्य रस्में औपचारिक होकर रह गई थीं...।

कंगना खिलाने की रस्म चल रही थी । रीना की भाभी अपना रोल बखूबी निभाते हुए संजीदा हो आये माहौल को खुशनुमा बनाने का प्रयास कर ही रही थी कि रीना की दादी के स्वर सुनाई पड़े जो वह विवाह में सम्मिलित होने आई अपनी बहन से कह रही थीं…

‘मैं तो पहले ही कह रही थी कि बिना लग्न के विवाह करना शुभ नहीं है परन्तु आज के लोग न तो जन्मपत्री मिलाने में विश्वास करते हैं और न ही शुभ नक्षत्रों की परवाह करते हैं....भुगतना तो अब बेचारी रीना को ही पड़ेगा...।’

' माँजी, आज के युग में विवाह जन्मकुंडली मिलाकर नहीं वरन् ब्लड ग्रुप और आचार विचार को ध्यान में रख कर करना चाहिए....। वैसे भी जन्मकुडंली मिलाने मात्र से ही तो विधि का विधान टल नहीं जाता । राम और सीताजी का भी जन्मकुंडली मिलाकर विवाह हुआ था । उनके एक दो नहीं पूरे छत्तीसों गुण मिले थे, फिर भी उन्हें क्या सुख मिला....? रीना की माँ अंजली कहना चाहकर भी नहीं कह पाई क्योंकि वह उनकी बात काटकर वातावरण को और विषाक्त नहीं बनाना चाहती थीं, अतः बात को संभालते हुए नम्र तथा आशा भरे स्वर में बोली,‘ प्लीज माँजी, इस समय आप वातावरण को असहज मत बनाइये....विपिन के पापा को कुछ नहीं होगा....वह ठीक हो जायेंगें ।’

यद्यपि रीना की माँ ने बात संभालने का प्रयत्न किया था किंतु फिर भी दादी के वचनों ने एक बार फिर वातावरण को असहज बना दिया था । दादी के द्वारा कहे शब्द रीना के कानों में भी पड़ गये थे । उसका मन अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो उठा । रीना अनजाने में ही स्वयं को दोषी समझने लगी थी । बार-बार उसके मस्तिष्क में एक ही बात घूम रही थी...कहीं विपिन के पापा को कुछ हो गया तो...? क्या उसे भी अपनी सहेली नीरा के समान अपमानित जीवन गुजारना होगा...? मन में उठ आये इस भयानक विचार को मन से निकालने का बार-बार प्रयास करने के बावजूद वह असफल ही रही...। दो वर्ष पूर्व हुई एक घटना उसके जेहन में कुलबुलाने लगी…

उसकी मित्र नीरा के साथ भी ऐसा ही हादसा हुआ था । उसका विवाह हँसी खुशी संपन्न हो गया था किंतु उसको विदा कराकर ले जाते समय उनकी कार के आगे बरातियों को लेकर चल रही मिनी वैन का ब्रेक फेल हो गया । काफी प्रयास के बावजूद भी ड्राईवर तीव्र गति से चलती वैन पर अपना संतुलन खो बैठा और वैन एक पेड़ से टकरा कर रूक गई...। उसमें बैठे दो लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई थी तथा अन्य चार घायल हो गये थे । उनमें से एक ने अस्पताल पहुँचते-पहुँचते दम तोड़ दिया था । नीरा के ससुराल वाले काफी रूढ़िवादी और अंधविश्वासी थे अतः इस घटना का सारा दोष सहेली के ऊपर मढ़कर, उसे अशुभ बताते हुये, उसे उसके घर छोड़ गये । नीरा ब्याहता होकर भी कुंआरी रह गई । एक मनहूस पल ने उसकी सारी आशाओं, आकांक्षाओं का खून कर दिया...।

समाज की ऐसी सोच पर तब रीना को अत्यंत ही क्रोध आया था जिसके कारण एक निरपराध को अपराधी बना दिया गया था...। ऐसे लोग यह क्यों नहीं सोच पाते कि वह दुर्घटना गाड़ी में आई यांत्रिक खराबी के कारण हुई थी न कि किसी के अशुभ पैरों के कारण...अपनी इसी सोच के कारण रीना ने नीरा के पति को समझाने का प्रयास भी किया था किंतु असफल रही क्योंकि नीरा का पति माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध कुछ भी निर्णय ले पाने मे असमर्थ था ।

आज उसके साथ भी ऐसी ही स्थिति आई है लेकिन इसमें उसका क्या दोष है...? विपिन के पापा पहले से ही दिल के मरीज हैं । इसीलिये उन्होंने उसके पापा से उनके शहर में आकर विवाह करने को कहा था क्योंकि डाक्टर ने उन्हें ज्यादा परिश्रम और चिंता करने से मना किया हुआ है । अगर वास्तव में उन्हें कुछ हो गया तो क्या उसे भी नीरा की भांति अपनी जिंदगी गुजारनी होगी या जिंदगी भर ऐसे ही व्यंग्य बाणों को सुनना पड़ेगा ? क्या विपिन भी उसे अपराधी समझेंगे....? सोचकर रीना सिहर उठी थी ।

डाक्टर ने सुमेश की स्थिति देखकर बहत्तर घंटे का खतरा बताया था । विदाई के पश्चात् घर आकर कुछ आवश्यक रस्में पूरा करने के पश्चात् विपिन अस्पताल जाने लगा तो रीना ने नम्र स्वर में स्वयं भी चलने की इजाजत माँगी । विपिन के मना करने पर संयत स्वर में उसने कहा, ‘अब मैं इस घर की बहू हूँ, यदि यही घटना आज से एक दो वर्ष पश्चात घटती तो क्या मैं भी माँजी के साथ अस्पताल नहीं जाती ?’

उन दोनों को अस्पताल आया देखकर निवेदिता स्नेह भरे स्वर में बोली,‘ अरे ! तुम दोनों क्यों आ गये ? अभी-अभी तो तुम दोनों का विवाह हुआ है...। कुछ देर आराम कर लेते, मैं और तुम्हारे चाचा तो यहाँ तुम्हारे पापा की देखभाल के लिये हैं ही ।’

‘ ममा, आप और चाचाजी जाकर थोड़ी देर विश्राम कर लीजिए, तब तक मैं और रीना यहाँ रूकते हैं ।’ विपिन ने आग्रह युक्त स्वर में कहा था ।

विपिन के बार-बार आग्रह करने पर माँ और चाचाजी चले गये । विपिन और रीना आई.सी.यू. के बाहर पड़ी बेच पर बैठे निज पर भाग्य का क्रूर मजाक देखकर चुप थे । दोनों के बीच एक अनकहा मौन पसर गया था....वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें....?

विवाह मानव के जीवन का वह हसीन स्वप्न है जिसके रंग वह किशोरावस्था से ही अपने मन के खाली कैनवास पर भरने लगता है । अपने ख्यालों में एक ऐसा संसार बसाना चाहता है जिसमें सिर्फ वह हो और उसकी प्रेयसी लेकिन उनके रंग एकाएक छितर गये थे । यही कारण था कि उनके विवाह का पहला दिन यार दोस्तों, ननद भौजाइयों की हँसी ठिठोली के बीच न गुजर कर इस अस्पताल में गुजर रहा है ।

आस-पास गुजरते लोगो की तेज नजरों से कपड़े बदलकर आने के बावजूद नवविवाहिता रीना स्वयं को छिपा नहीं पा रही थी । आते जाते लोगों की नजर उन पर पड़ रही थी । एक दो लोग कौतूहलवश उनसे पूछ भी बैठे । विपिन से उत्तर पाकर उनकी नजरें अंततः रीना पर जाकर टिक गई थीं ।

कहते हैं जो इंसान सोचता है वही उसे सुनाई या दिखाई पड़ता है । एकाएक रीना को लगने लगा कि उनके आस-पास से गुजरते लोग एक स्वर में कह रहे हैं कि तुम अशुभ हो....तुम अशुभ हो....सोच-सोच कर वह असहज हो उठी किंतु विपिन की दिलासा देती नजरें उसका आत्मविश्वास....मनोबल टूटने से बचा रही थीं । माना उनके पास शब्द नहीं थे लेकिन निगाहों में ऐसा बहुत कुछ था जो शब्दों का मोहताज नहीं था ।

आखिर दो दिन पश्चात् सुमेश ने आँखें खोलीं । विजिटिंग आवर में पास बैठी निवेदिता से उन्होंने रीना और विपिन से मिलने की इच्छा जताई । निवेदिता ने बाहर बैठे विपिन और रीना को बुलाया । उन्हें देखकर अत्यंत थके स्वर में सुमेश ने कहा,‘ बेटी, शायद तेरे पास रहने का सौभाग्य मुझे नहीं मिल पायेगा लेकिन अपनी माँ को कोई तकलीफ न होने देना ।’

‘ पिताजी आप ऐसा मत कहिये । आप शीघ्र ठीक होंगे तथा हमारे साथ रहेंगे ।’ कहते हुए रीना की आँखों में आँसू आ गये ।

रीना की मनःस्थिति समझकर निवेदिता ने विपिन को उसे घर ले जाने का आदेश दे दिया । यद्यपि पिताजी की बातों ने रीना को विचलित कर दिया था फिर भी उन्हें होश में आया देखकर बहुत दिनों के पश्चात् रीना ने चैन की साँस ली थी । सुमेश की हालत में सुधार आ रहा था । उन्हें प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था । धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार अपने-अपने घर लौटने लगे थे । इस बीच रीना ने घर का काम बखूबी संभाल लिया था । रात में निवेदिता तथा दिन में विपिन सुमेश के पास अस्पताल में रहते जबकि रीना घर के कामों के साथ आना जाना करती रहती थी ।

एक दिन निवेदिता को अस्पताल छोड़कर विपिन खाना खाने बैठा ही था कि मोबाइल की घंटी बज उठी....निवेदिता थी....‘ शीध्र आओ....तुम्हारे पापा को फिर से अटैक आया है । डाक्टर उन्हें आई.सी.यू. में लेकर गये हैं ।’ कहकर वह रो पड़ी थीं ।

विपिन और रीना तुरंत अस्पताल के लिये रवाना हुए किंतु उनके पहुँचने से पूर्व ही पापा के प्राण पखेरू उड़ गये थे । आघात इतना तीव्र था कि माँजी नि:शब्द हो गई थीं । रीना की आँखों से आँसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे...अनजाने ही वह स्वयं को अपराधी महसूस करने लगी थी ।

निवेदिता के मौन को कोई नहीं तोड़ पा रहा था...विपिन जहाँ अंतिम यात्रा की तैयारियाँ कर रहा था....वहीं रीना साये की तरह निवेदिता के पास थी । एक बार फिर घर में रिश्तेदार इकट्ठे हुए....,जितने मुँह उतनी बातें....
‘ सुमेश और निवेदिता ने बिना साये के विवाह कर गलती की....पता नहीं इतनी जल्दी क्या थी, एक महीना और रूक जाते तो क्या हो जाता ? मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है । शास्त्रों लिखी बातें झूठ तो नहीं होती, उन्हें न मानने पर कुछ न कुछ परेशानी तो उठानी ही पड़ती है । यहाँ तो मेरा पुत्र ही चला गया । ’ निवेदिता की सास ने रोते हुये कहा ।

‘ मैं तो भई बाहर आना जाना भी मर्हूत निकलवाकर करती हूँ...इनको तो इन सब बातों में बहुत विश्वास है फिर यहाँ शादी में कुंडलियाँ भी नहीं मिलाई गई...।’ चाची सास ने कहा ।

‘ इस लड़की का रिश्ता मेरी ननद के लड़के के लिये आया था । लड़की मंगली है, इसके ग्रह लड़के के पिता पर भारी थे अतः हमने मनाकर दिया था । मुझे तो विवाह के समय पता चला...। आजकल तो कोई राय ही नहीं लेता । मुझे पता होता तो मैं यह रिश्ता होने ही नहीं देती इसके अशुभ पैर इस घर में पड़ने के कारण मेरा भाई बेमौत ही मारा गया...।’ रोते हुए ननद सविता का स्वर गूँजा ।

व्यंग्य बाणों को सुनते-सुनते रीना के आँसू तो कब के सूख चुके थे...कहते है कि इंसान की सहने की शक्ति अद्भुत होती है जो रीना अपने माता-पिता की छोटी से छोटी बात पर आफत मचा डालती थी वही आज शांत और नि:शब्द लोगों के वचनों को सुन रही थी । न जाने क्यों उसे लग रहा था कि लोग चाहे कितने ही आधुनिक बनने का ढोंग कर लें लेकिन उनकी मानसिकता आज भी सदियों पुरानी ही है ।

निवेदिता का मौन अपनी सास और ननद के शब्दों को सुनकर टूट गया । वह रोते हुए बोली, ‘ माँ, दीदी, बस भी कीजिए....आप इस लड़की को क्यों दोष दे रही हैं.....? अब यह हमारे घर की बहू है....कृपया इसके लिये अशुभ शब्दों का प्रयोग मत कीजिए । माँजी, आज से तीस वर्ष पूर्व सुमेश और मेरे प्रेम को स्वीकृति देते हुए आपने हमारा विवाह भी बिना जन्मपत्री मिलाये करवाया था फिर आज ऐसी बातें क्यों ? क्या हमने सुखी वैवाहिक जीवन नहीं व्यतीत किया...? सुमेश आपके पुत्र, दीदी के भाई थे तो मेरे पति और विपिन के पिता भी थे । हमें भी उतना ही दुख है जितना कि आपको...। जन्म और मृत्यु पर किसी का वश नहीं है । हमारे भाग्य में उनका साथ बस इतना ही था । क्या आपकी बेटी के साथ ऐसा होता तो भी क्या आप इस अंधविश्वास को मानती ? माँ जी, दीदी, क्षमा कीजियेगा इस घटना के लिये न मैं किसी को दोष दूँगी और न ही किसी को देने दूँगी ।’

‘ अरे ! हम तो भूल ही गये थे कि भाई से ही मायका होता है....जब भाई ही नहीं रहा तो मायका कैसा...? हम यहाँ अपनी बेइज्जती कराने नहीं आये हैं....समझा ही तो रहे हैं....अभी भी नहीं समझी तो भुगतोगी...।’ कहकर सविता इधर-उधर देखने लगीं ।
निवेदिता को चुप पाकर, सविता ने एक बार अपने भाई उमेश और भाभी कमल की ओर देखा....वहाँ भी कोई प्रतिक्रिया न पाकर अपने पति निरंजन की ओर देखते हुए अपनी बात मनवाने की कोशिश में पुनः बोली, ‘ चलो जी चलो....दे दी सांत्वना....बेइज्जत होकर अब मैं यहाँ और नहीं बैठ सकती ।’

वह भी अपनी माँ की तरह ऐसे ही जब तब निवेदिता और कमल पर अपना रौब जमाकर उन्हें बेइज्जत करने से नहीं चूकती थीं किंतु अपनी धमकी के बावजूद इस समय किसी से भी प्रोत्साहन न पाकर अपमानित सी फुंकार कर बोलीं,‘ आज मेरी बातें तुम्हें अच्छी नहीं लग रही हैं....पर पछताओगे एक दिन...।’ कहते हुए सविता ने एक बार फिर चारों ओर देखा । इस बार भी सबको चुप देखकर, उसने अपने पति निरंजन को हाथ पकड़कर उठाया तथा कभी न आने की धमकी देती हुई चली गईं....।

इसी के साथ ही लोगों की फुसफुसाहटें बंद हो गई....। रीना की आँखों में सूखे आँसू एक बार फिर बह निकले तथा वह निवेदिता की गोदी में सिर छिपाकर रोने लगी...।

‘ रो मत मेरी बच्ची, इन सब व्यर्थ की बातों को दिमाग से निकाल दे....इसमें तेरा कोई दोष नहीं है ।’ कहते हुये निवेदिता की आँखों से भी आँसू बहने लगे थे ।

रीना निवेदिता के प्रेम से सने शब्दों को सुनकर जी उठी थी....। सचमुच माँजी महान हैं तभी तो उन्होंने अपनी सास और ननद के वचनों को काटकर, व्यर्थ की परम्पराओं....अंधविश्वासों को नकार कर उसे जीवनदान दे दिया....उसका मन उनके प्रति अपार आदर और श्रद्धा से भर उठा था...।

सुधा आदेश

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