ठरकी- मुकेश गाते राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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ठरकी- मुकेश गाते

ज़्यादातर कहानियों के प्लॉट..किस्से या किरदार हमारे ही आसपास के माहौल में..हमारे ही इर्दगिर्द जाने कब से बिखरे पड़े होते हैं मगर हमें उनका पता तक नहीं चलता। उन्हें तब तक अहमियत नहीं मिलती जब तक वो कहानी..किस्सा या किरदार किसी लेखक की कल्पना के ज़रिए, उसकी किसी रचना में साकार रूप प्राप्त नहीं कर लेता। ऐसी ही कुछ कहानियों..कुछ घटनाओं और कुछ किरदारों को एक माला में पिरोया है 'मुकेश गाते' ने अपने पहले कहानी संग्रह "ठरकी" के ज़रिए।

इस संकलन की किसी कहानी में दसवीं पढ़ रही घर की इकलौती वारिस, अपने जन्मदिन के दिन ही, एक रोड एक्सीडेंट की वजह से अपने माँ बाप को खो बैठती है। रिश्तेदारों की आपसी रज़ामंदी से, उसको पालने के लिए, उसके लालची मौसा मौसी आगे आते हैं मगर क्या उनके साथ रहते हुए उसकी इज़्ज़त आबरू महफूज़ रह पाती है?

अगली कहानी एक ऐसे जोड़े की है जिसमें पति, घर/बाहर के हर काम में निपुण अपनी खूबसूरत पत्नी की सैक्स के प्रति उदासीनता..अरुचि से परेशान है और एक दिन दुखी हो कर अपने दोस्त से अपने मन की बात शेयर करता है। उसका व्व दोस्त उसे एक काउंसलर से मिलाने की बात करता है। दूसरी तरफ़ घर में सुख शांति की चाह में मंदिर जाती पत्नी की मुलाकात भी एक महिला काउंसलर से होती है। दोनों की समझाइश पर अमल करने से उनके घर की खुशियाँ लौट तो आती हैं मगर...

एक अन्य कहानी एक रंगीन मिज़ाज़ शख्स और उसके मकान में किराए पर आंगनबाड़ी का दफ्तर खोलने वाली उस खूबसूरत मगर शातिर युवती की है। जो सरकार की तरफ से दिए गए नसबंदी के टारगेट के समय पर पूरा ना हो पाने की वजह से तनाव झेल रही है।

अगली कहानी किसी देह व्यापार से जुड़े एक ऐसे शहर की है जिसमें अचानक से नीली थैलियों में टुकड़ों में कटी लाशों के मिलने का अबूझ सिलसिला शुरू होता है।

एक अन्य कहानी दोस्तों में 'ठरकी' के नाम से मशहूर एक ऐसे युवक की है जो शादी के बाद सुधर तो जाता है मगर होनी को क्या मंज़ूर है? ये भला किसको पता है?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में सत्रह साल की एक विधवा युवती को अपने एक साला बच्चे के साथ मजबूरन तीन विवाहित भाइयों वाले अपने मायके में पिता के साथ रहने के लिए आ तो जाती है मगर क्या वो, वहाँ भी सुरक्षित रह पाती है?

आमने सामने के घरों में रहने वाली एक युवती और युवक की दोस्ती में इस वजह से ठहराव आ जाता है कि युवक अब अपनी नौकरी के चक्कर में ही इतना व्यस्त हो जाता है कि युवती से फोन पर बात करने तक का समय नहीं निकाल पाता। युवती की कहीं और शादी तय हो जाने पर आखिरी बार मिलते हुए युवती, युवक को ताकीद करती है कि..

"उसके जाने के बाद, वो भूल से भी अपने कुत्ते को छत पर ना लाए।"

इस आम सी नज़र आने वाली बात के पीछे का राज़ तो खैर..कहानी पढ़ने के बाद ही पता चलेगा।

कॉलेज में साइक्लोजी की पढ़ाई के दौरान एक छात्र द्वारा, पागलपन और पागलों की किस्म को ले कर एक सवाल पूछा जाता है। जिस जवाब तैयार करने के लिए सभी विद्यार्थियों को एक सप्ताह का समय दिया जाता है। इस एक सप्ताह के दौरान उस छात्र के साथ कुछ ऐसा घटता है कि लेक्चरर भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो..निःशब्द रह जाती है।

अंतिम कहानी सरकारी ड्यूटी के तहत, रात में सडकों पर गश्त कर रहे, दो ऐसे चौकीदारों की है जिनकी नज़रों में गश्त के मायने, उस मायने से कतई अलग हैं जो आमजन को समझ आते हैं।

हमारी..आपकी शांत ज़िन्दगी में हलचल मचाने के लिए सनसनीखेज़ मुद्दे अपना काम बखूबी करते हैं। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए अब तक अनेकों कहानियाँ लिखी जा चुकी हैं और लिखी जाती रहेंगी लेकिन हमारे ज़हन में वही कहानी..वही किस्सा सालों तक अपनी पैठ बना कर रखता है या रख सकता है जो भीतर तक हमारे अंतर्मन को गहराई से छू ले।

लेखक ने भी अपनी कहानियों को इन्हीं सनसनीखेज मुद्दों के इर्दगिर्द केंद्रित रखने का प्रयास किया है मगर पाठकीय नज़रिए से अगर देखें तो उनकी कहानियों में कहीं ना कहीं उनके कम या ज़्यादा सतही होने का भान होता है। इस कमी को दूर करने के लिए लेखक को चाहिए कि वे ज़्यादा से ज़्यादा अन्य लेखकों का लिखा हुआ भी पढ़ने का यथासंभव प्रयास करें।

प्रवाहमयी भाषा शैली में लिखी गयी उनकी कहानियाँ मेरे हिसाब से अभी और मेहनत माँगती हैं। साथ ही जहाँ एक तरफ़ "नीली थैलियाँ" कहानी को लिखने का मंतव्य समझ में नहीं आया और वहीं दूसरी तरफ़ "पागलपन" कहानी में पागलपन कम और भाषण ज़्यादा लगा।

कुछ कहानियाँ भीड़ से अलग होने का संकेत देती हैं। जैसे...

*बॉडी पार्ट्स
*काउंसलर
*अपूर्वा
*क्लर्क
*गश्त

हालांकि यह कहानी संग्रह मुझे लेखक से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि 126 पृष्ठीय इस कहानी संग्रह के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म ब्लू ने और इसका मूल्य रखा गया है 120/- रुपए। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।