मृत्यु भोग - 6 - अंतिम Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मृत्यु भोग - 6 - अंतिम

अगले दिन बहुत सुबह ही प्रताप की नींद खुल गयी , उठकर
ही अनुभव किया आज शरीर बहुत हल्का लग रहा है
कम्बल से बाहर निकला प्रताप , और खिड़की को खोल
दिया तुरंत ही कुछ कोहरा और ठंड उसके कमरे में आ गए
एक अलौकिक भोर है , जल्दी से फ्रेश हो गया प्रताप
फिर एक कप चाय के लिए डुमरी को बुलाया , एक
बार नही कई बार बुलाया । पर कोई उत्तर नही आया
चिंता में पड़ गया प्रताप , फिर उसको क्या हुआ ?
ऊपर जाकर देखना पड़ेगा । दोतल्ला पर जाकर
प्रताप को याद आया , कम से कम दो महीने बाद उसने
दोतल्ला पर पांव रखा है वैसे भी दोतल्ला पर विशेष कुछ
नही है । दोतल्ला के पास से सीढ़ी , सीढ़ी से उठकर छत
उसके पास ही पुराने समान का घर , जहां डुमरी रहती है ।
छत पर पांव रखते ही चौंक उठा प्रताप का पूरा शरीर ।
पूरे छत पर विभिन्न पशु व पक्षी के हड्डियां , पंख , कौवे
के कटे सिर ,किसी पक्षी के कटे दो पैर । पास ही एक डिब्बे
में लाल सिंदूर और तेल । यह सब आतंकित होकर प्रताप
देख रहा था । क्या है ये सब उसके घर के छत पर ? , किसने
किया ये सब ? इन सब का मतलब क्या है ? डुमरी ने यह
सब नही देखा । तुरंत ही उसके छटी इंद्री ने उसे इशारा किया
कि उसे यहां रुकना ठीक नही है , उसको नीचे जाना चाहिए
तुरंत ही जाना है उसके शरीर के सारें रोएं खड़े हो गए
तुरंत ही शीत के कारण उसके हाथ पैर कांपने लगे , कांपते
कांपते वह नीचे चला आया , बाथरूम में जाकर गीजर
के गर्म पानी से नहाया तब जाकर कुछ शक्ति आयी ।
झटपट कपड़ा पहनकर बाहर निकलते ही देखा डायनिंग
टेबल के पास डुमरी खड़ी उसी को एक जलन्त नजर से
देख रही है ।यही है वो निसहाय , ग्रामीण महिला जिसको
उसने रास्ते से उठाकर लाया , खाना और कपड़े की व्यवस्था
की । डुमरी का चेहरा कुछ लंबा लग रहा है , गाल सूखा
हुआ , मानो एक रात में ही शरीर का रंग काला हो गया है ।
हाथों के नस उभर आएं हैं , नाखून काले और मुड़े हुए ।
सूखे बाल हवा में उड़ रहें हैं , शीतल कंठ से डुमरी बोली
– " बड़ेबाबू आप छत पर गए थे । "
गले के आवाज सुनकर चहक उठा प्रताप , उस ग्रामीण
विधवा की करुण गला कहाँ है ? ये कर्कश तीक्ष्ण गला
किसका है । और सामने के दो दांत इतने बड़े कैसे हो
गए ? अन्दर ही अंदर कुछ कांप रहा था प्रताप , तभी उसे
लगा उसके सीने में एक प्रकाश उस स्फटिक से प्रफुल्लित
हो रही है । और न जाने कहाँ से उसके डर के भाव को गायब
कर अंदर एक नया साहस आ रहा है ।
प्रताप शांत गले से बोला – " छत उतना गंदा क्यों है ? ,
तुम रहती हो छत पर ये सब देखती नही हो , बताओ
तो किसलिए तुमको रखा गया है । "
इसके बाद के घटना के लिए प्रताप प्रस्तुत नही था ।
तुरंत ही डुमरी के दोनों आंख मानो जल रहें हो , डाइनिंग
टेबल के ऊपर रखे हाथ को वह गुस्से से मुट्ठी बनाना चाहती
है , नाखून के आघात से डाइनिंग टेबल के लकड़ी से
करर्रर करर्रर की आवाज आ रही है । और उसी क्षण
प्रताप को लगा कि वह स्फटिक और भी तेजी से प्रकाश
छोड़ रही है । न देखते हुए भी उसे समझ आ रहा है
कि पूरा सीना नीले आभा से भर गया है । दोनों ही
एक दूसरे को प्रतिस्पर्धी के नजर से कुछ देर देखते रहे ।
फिर जो हुआ वह मैजिक छोड़ और कुछ नही है ।
मानो कुछ भी नही हुआ ऐसे ढोंग से डुमरी अच्छे
से बोली – " शरीर ठीक नही है बड़ेबाबू , चिड़ियों ने
लाकर लगता है कुछ फेंका है , मैं आज ही पूरा छत
साफ कर देती हूं । "
डुमरी फिर से वही ग्रामीण बालिका हो गई , गोल
स्नेहमय चेहरा , हरदम की तरह आँख व नाखून ,
सुंदर से दोनों हाथ , ऐसा लगता है एक मुहूर्त पहले के
उस पैशाचिक मूर्ति से इसका कोई संपर्क ही नही है ।
सिर झुकाकर दुख के साथ डुमरी बोली – " एक खराब
खबर है बड़ेबाबू , सबेरे उठकर चाभी से ताला खोलकर
देखा मां ने आज भोग नही खाया । मेरे खाना में जरूर
कुछ खराबी होगी , नही तो मां क्यों नही लेती ? आज
तुम रात में कुछ देरी से आना ठीक है , आज अमावस्या है
आज मां के लिए महाभोग बना कर दूंगी । ठीक है
बड़ेबाबू , मां को आज खुश करके ही रहूंगी । "

ऑफिस को बंद करते करते साढ़े नौ बज गए , मुहल्ले
में आते आते साढ़े दस या ग्यारह बजे गए प्रताप को ।
और ठीक उसी समय हो जाता है लोड शिडिंग ( बिजली कट )
ठहर जाता है प्रताप और बड़बड़ाया – " एक तो अमावस्या
की रात और लोड शिडिंग । "
रास्ते के साइड लाइट भी नहीं जल रही , मोबाइल की
बैटरी भी खत्म होने ही वाली है , फ्लैश जलाने का प्रश्न
ही नही है । किसी तरह आगे बढ़ा प्रताप , अद्भुत ये है
कि उसका मुहल्ला भी आज सनामन्न है , वैसे भी
नेताजीनगर बंगालियों का इलाका है , लोग एकदूसरे
से प्रेम की बात भी पूरे मुहल्ले को बताकर करतें हैं ।
वह मुहल्ला इतना निःशब्द हो गया है , ये तो सोचा ही
नही जा सकता । इस समय तो लाइट जलाकर बैटमिंटन
खेल और सिगरेट पीने वालों का ग्रुप होना चाहिए ।
लोड शिडिंग होने के कारण क्या इतना सुनसान हो
जाएगा , ये क्या गांव है जो आठ बजते ही रास्ता सुनसान ।
बहुत कठिनाई से पांव रगड़ते हुए आगे बढ़ रहा था प्रताप ,
उसी समय किसी ने उसका कंधा जोर से पकड़ लिया ।
पहले वह चौंक उठा फिर वो आगन्तुक के गले की
आवाज सुन निश्चिंत हुआ और बोला – " अरे काका आप
यहाँ पर वो भी इतनी रात गए , जरा बताइए तो ये पूरा
मुहल्ला इतना सुनसान क्यों हैं ? सब कहीं गए हैं क्या ?
कहीं भी टोर्च , लालटेन , मोमबत्ती कुछ भी नही दिख रहा ।"
अंधकार में प्रताप को रोकने वाले शख्स थे भवेश बाबू
न जाने कहाँ की यात्रा से आये थके हुए फिर बोले –
" जलेगा भी नही प्रताप , आज कोई जाग कर नही रहेगा
आसमान की तरफ देखो प्रताप , आज भयंकर रात है ,
समझे ।"
प्रताप डर सा गया और बोला – " कालरात्रि मतलब ,
और आप ये सब क्या बोल रहे हैं ? "
भवेश बाबू बोले – " मैं इतनी देर मुहल्ले के बाहर था ।
तुम्हारे लिए ही प्रतीक्षा कर रहा था । आज पूरा मुहल्ला
ऐसे सोएगा मानो मर गए हों , आसमान की तरफ देखो
ये बहुत भयानक रात है । मृत्यु की काली छाया तुम्हारे
लिए आ गयी है । आज मैं पूरी रात तुम्हारे साथ तुम्हारे
घर ही रहूंगा ।"

आसमान की तरफ देखा प्रताप ने और उसे कुछ कुछ
समझ आ जाता है । पूरा वातावरण किसी एक शक्ति
से ठहर सा गया है । केवल प्रकाश नही है बल्कि एक
शब्द भी नही है । धूल और कोहरे में रम गया है कोलकाता
का आसमान , तारा मानों लाल रक्तबिन्दु की तरह जल
रहें हैं । कहीं भी कोई प्राण नही है , रूप नही है , गंध नही
है , घोर काली अमावस्या की रात मानो किसी विपत्ति
को लेकर बैठा हुआ है । मुहल्ले के इस मोड़ से अंतिम
घर प्रताप का है यहां से ही स्पष्ट दिखाई देता है ।
प्रताप ने देखा उसके घर के ऊपर धीरे धीरे एक अंधकार
जैसी छाया उतर रही है । मानो एक सर्वग्रासी अमंगल
पूरे घर को दबोचे हुएं हैं ।

भवेश बाबू बोले – " रुको प्रताप तुमको एक दो बात
बतानी है । "
फिर आधा घंटा उनके और मुकेश के बमनगछिया जाने
व दिजुक्तम मिश्र के साथ बातचीत , पूरा प्रताप को बता
दिया । गाढ़े अंधकार के बीच समा गया था भवेश बाबू
के फिसफिस बातें । प्रताप एकदम चुप रहा केवल एक
प्रश्न किया – " आज रात मुहल्ले के बाहर नही रह सकते । "
भवेश बाबू – " आज रात जो इस मुहल्ले में आएगा उसे
बाहर जाने का कोई उपाय नही है । आज जहां भी तुम
चले जाओ वह पिशाची तुमको नही छोड़ेगी । आज ही
उसके कर्मसमाप्ति का दिन है । समस्त हिसाब चुकता
करने का दिन है । वह अपना शिकार नही छोड़ेगी । "
प्रताप बोल बैठा – पर काका आपने अपने सब काम
छोड़कर कहाँ कहाँ और इस ठंडी रात में केवल मेरे लिए
इन्तजात कर रहें हैं । "
भवेश बाबू धीरे से हँसते हुए बोले – " तुम नही समझोगे
बेटा , सभी को एकदिन महामाया के सामने जाकर हाथ
जोड़कर खड़ा होना पड़ता है पूरे जीवन के कर्म का हाल
बताना पड़ता है । वो अगर पूछी कि विपत्ति के दिन पितृहीन
- मातृहीन लड़के को छोड़कर कहाँ भाग गए थे तब मैं
उन्हें क्या जवाब दूँगा प्रताप । "
निःशब्द सी मुस्कान थी प्रौढ़ अध्यापक के चेहरे पर ।
कल ही कोई एक आदमी ने प्रताप को बताया था न कि
प्रेम ही है इस दुनिया का सबसे बड़ा तंत्र , सबसे बड़ा जादू ।

खुद के घर का ताला खोलकर धीरे से प्रताप ने घर में
प्रवेश किया पीछे पीछे भवेश बाबू । अंदर जाते ही दोनों
स्तब्ध हो गए , एक मरा सड़ा हुआ गंध दोनों की तरफ
भागा चला आ रहा था । दोनों ने तुरंत नाक को रुमाल
से बंद किया । ठीक तभी बाहर का दरवाजा अपने आप
बंद हो जाता है । उसके बाद दोनों लोग बाएं तरफ
गए वहीं रसोईघर है । यहां एक कुर्सी रहना चाहिए था
क्योंकि उसके पास ही डायनिंग टेबल है । इस अंधकार
में हाथ को बढ़ाया प्रताप ने पर वहां कुछ नही ।
पांव को रगड़ते हुए कुछ और आगे गए दोनों । कुछ
आगे जाकर प्रताप समझ गया कि पूरा जगह ही खाली
है । अब एक जोर का टप टप शब्द दोनों के कानों
में आया कुछ सेकंड के बाद फिर , पर किस चीज का
शब्द है कुछ समझ नही पाया दोनों ने ।
इसके बाद रसोईघर से एक लाल प्रकाश जल उठा मानो
कोई खाना बना रहा है । उसकी प्रकाश की कुछ छटा
इधर भी आ गयी जिसमें दोनों ने देखा पूरा तल खाली
है प्रताप आश्चर्य होकर यह सोच रहा था कि सभी सामान
कहाँ गए । इसके बाद भवेश बाबू के तरफ देखा प्रताप
ने , भवेश बाबू आतंकित होकर ऊपर सीलिंग की तरफ
देख रहे थे उनको देखकर प्रताप ने भी ऊपर सीलिंग की
तरफ देखा भय से जम गया , सब टेबल , सब समान उल्टे
होकर ऊपर झूल रहें हैं । एवं सभी सामान से एक तरल
बून्द बून्द कर नीचे गिर रहें हैं , उस धीमे प्रकाश के वेग
में भी समझा जा सकता है कि उस तरल का रंग लाल
है , गाढ़ा लाल खून । उसके बाद कांपते हुए दोनों रसोईघर
की तरफ गए । पास जाते ही एक भयंकर गले से मंत्र
उच्चारण की आवाज आने लगी । धीरे से दोनों ने रसोईघर
के अंदर देखा और आधे खुले दरवाजे के पीछे जल्दी
से एक ऐसा चुन लिया जैसे उन्हें कोई देख न पाए ।
डुमरी खाना बना रही है उसको देखकर दोनों के हृदय
कांप गए , प्रताप उसे देखकर आतंकित हो उठा ,
क्या यही पिशाचिनी है , सूखा हुआ शरीर , सांप की तरह
उड़ रहा है उसके खुले बाल ,विभत्स चेहरा है उसका ,
आंख के अंदर से निकल आया है दो बड़े आंख , होठ
के पास से निकला हुआ है खून से सने दो बड़े दांत , गले
में विभिन्न चिड़ियों के कटे पैरों से बनी माला , उसके पूरे
शरीर पर तेल और लाल सिंदूर विशेष जगहों पर लगे हुए
हैं । उसके दोनों पैर सामने की तरफ फैले हुए , जो आग
की तरह जल रहें हैं और उसके ऊपर रखा एक हांडी
जिसमें से लाल धुँआ उठ रहा है । तभी वह पिशाची
अपने बाएं हाथ को फैलाकर एक कोने से एक कटा हुआ
हाथ उठा लिया , फिर अपने बड़े बड़े काले नाखून से
उस कटे हाथ का मांस फाड़कर उस हांडी के अंदर
डालती है । थोड़ा सा डालकर अपने दाहिने हाथ से उसे
चलाती है । साथ ही उच्चारण करती है कई मंत्र ।
भवेश बाबू दरवाजा पकड़कर कांपते रहते हैं , प्रताप को
लगता है वह मूर्छित हो जाएगा । फिर अंतिम बार के
लिए दृष्टि उस कटे हाथ पर पड़ी । हाथ के अनामिका अंगुली
में एक अंगूठी है , वह अंगूठी को तो उसकी माँ मरने से
पहले पुष्पा दीदी को देकर गई थी , ये अंगूठी प्रताप
पहचानता है वह हाथ प्रताप पहचानता है । वो हाथ पुष्पा
दीदी की हाथ है । मां और पिता के मरने के बाद जिसने
प्रताप को संभाल कर रखा यह उनकी हाथ है । उस
बोध बुद्धि खोने व अलौकिक डर के अंदर भी प्रताप के
मन में बात आ गयी कि इसी पिशाचिनी ने उसके पुष्पा
दीदी को मारा है । न जाने कहाँ से आये एक अत्यंत क्रोध
से उसके आंख जल उठे वह दरवाजा के सामने आकर
एक लात मारा दरवाजे पर और चिल्लाया – " शैतान डायन
पुष्पा दीदी को तूने खाया है न , मैं आज ही तुझको मार
डालूंगा राक्षसी , क्या सोचा है खुद को तू , हरामी कहीं की ।"
उस पिशाचिनी ने सर घुमाया इधर और फिर व पिशाची
जोर से हँस उठी , दोनों हाथों से ताली बजाने लगी और
बोली – " क्या हुआ बड़ेबाबू मां को भोग नही लगाएंगे
बड़ेबाबू , महाभोग , हीहीहीहीहीहीहीहीहीहाहाहाहा ……….."
फिर पूरा घर , पूरा मुहल्ला , और उसके चैतन्य को
लेकर कहीं खो गया है प्रताप ,मानो वह उड़ रहा है उसके
ऊपर के नीले आसमान को एक झटके में किसी ने छीन
लिया फिर प्रताप के सामने है शून्यकाल , और वहां पर
वो अकेला है चारों तरफ हैं सर्वनाशी , सर्वग्रासी भयंकर
काल , इसके चारों तरफ हैं श्मशान की आग , आसमान
वातावरण सब जगह से उसके पाप के लाल खून कोई
उसके ऊपर फेंक रहा है । जमीन से उठ आएं हैं भयंकर
भेड़िए और विभत्स दो कुत्ते , उनके मुँह से खून की धाराएं
हवा में उड़ रहीं हैं । गले हुए शव और कंकाल उसे घेरकर
हंसते हुए नाच रहें हैं , प्रताप की तरफ उड़ के आया सिंदूर
लगे हड्डी के टुकड़े , काले खून की छींटें , चर्बी और रक्त के
जलने के गंध से उसके चेतना मिले जा रहें हैं ।
फिर भी अपने बुद्धि , शक्ति व भय को काबू में रखकर
प्रताप ने देखा कि वह पिशाचनी उल्टा लटककर उसके तरह
ही आ रही है । उसके भयंकर बाल नीचे की तरफ झूल रहें
है वह अपने खूनी गले से बोल रही है' बड़ेबाबू ओ बड़ेबाबू
मां को महाभोग नही दोगे ' । प्रताप के एकदम पास आ गयी
वो ,मरे सड़े गंध से प्रताप का चैतन्य कहीं खोया हुआ है
फिर उस पिशाचनी ने प्रताप का गला पकड़ने के लिए
हाथ बढ़ाया , तुरंत ही एक प्रकाश का विस्पोट हुआ उस
जगह पर और उसके प्रभाव से सब पिशाची , अप्राकृतिक
, असुरी आत्मा सब भस्म हो गए । वह पिशाचनी एक जोर
के चिल्लाहट के साथ वहीं नीचे गिर पड़ी । प्रताप ने
देखा कि उसके गले में झूलते स्फटिक ने उसके चारों तरफ
एक प्रकाश का वलय तैयार किया है केवल उसे ही नही
नीचे बेहोश पड़े भवेश बाबू के चारों तरफ भी एक आवरण
बना हुआ है । प्रेम है सबसे बड़ा तंत्र सबसे बड़ा जादू ।
उसके वलय को घेरकर सब प्रेत आत्माएं क्रोध से घूम रही
हैं वो सभी उस वलय को फाड़कर अंदर आना चाहते हैं ।
फिर एक जोर सा तूफान आया और उसी में सब भयंकर
प्रेत पिशाची आत्माएं घूमते हुए दरवाजे के बाहर निकल
गयी ।
इसी आघात में वह वहीं मुँह के बल गिरा फिर देखा की
वह काला तूफान स्टडी रूम की तरफ जा रही है प्रताप भी
गिरते पड़ते स्टडी रूम की तरफ गया और वहां का नजारा
देख चौंक उठा । वह पिशाचनी देवी के सामने झुककर
देवी के सामने रखे भोग को दोनों हाथों से खा रही है और
कुछ फेंक रही है कुछ अपने माथे पर लगा रही है क्या
विभत्स दृश्य है ये । तुरंत ही प्रताप ने गले में लटके उस
नीले जल रहे स्फटिक को निकाला और उस पिशाचिनी की
तरफ फेंका । एक चिल्लाहट के हाहाकर से गूंज उठा
पूरा घर और प्रताप के आंख के सामने सब अंधकार हो
जाता है । अभिशाप की तरह जो काले छाया की परत
पूरे घर पर उतर आया था वह सब गायब होने लगे फिर
एक पीड़ा के वेदना के साथ वह पिशाचिनी भी कहीं
गायब होने लगी । अंत में एक बड़ा काला छाया घर से बाहर
निकल शून्य में खो गया ।

एक सप्ताह हॉस्पिटल में थे भवेश बाबू , प्रताप अगले भोर
सुबह ही उस मूर्ति को हावड़ा ब्रिज से नीचे गंगा में फेंक
दिया ।

किसी की कृपा हुई थी प्रताप के ऊपर नाम को याद
किया । श्री कृष्णानंद आगमवागीश , कई जानकारों से
पूछा तो यह पता चला कि दुनिया उन्हें उनके आज से
400 वर्ष पहले अपने लिखे ' वृहत तंत्रसार ' नामक
पुस्तक व लेखक व तांत्रिक के रूप में जानतें हैं । जिन्हें
महाकाली सिद्धि प्राप्त थी। पर प्रताप लोगों से कैसे
बताये कि उसने उन्हें देखा है और श्री आगमवागीश
जी ने उसे एक सबसे बड़ा तंत्र सीखा दिया है कि प्रेम
से बड़ा कोई तंत्र नही ।

आज भी कभी कभी कुछ छोटे मालवाहक जहाजों
को हावड़ा ब्रीज के नीचे से आधी रात एक लाल प्रकाश
आते हुए दिखती है और गहरे पानी के नीचे से आवाज
आती है ' मुझे उद्धार करो नाविक , मुझे भूख लगी है ,
महाभूख है मेरी , मुझे उद्धार करो , मुझे भोग दो ,
भोग ।'

|| समाप्त ||


@rahul