एक था टिल्लू राज कुमार कांदु द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

एक था टिल्लू



जब से आतंकियों के हमले में बारह जवानों के शहादत की खबर टिल्लू ने सुनी थी , पाकिस्तान के प्रति उसकी नफरत सातवें आसमान पर पहुँच गई थी । उसकी भुजाएँ फड़क उठी थीं । उसका दिल कर रहा था अभी सीमा पर जाए और भून डाले उन शैतानों को जो भारत जैसे शांतिप्रिय देश में अपनी आतंकी गतिविधियाँ चलाते रहते हैं और आए दिन निर्दोष जवानों व नागरिकों के लहू से अपना हाथ रँगते रहते हैं । लेकिन अफसोस ! देशभक्ति के जज्बे से लबरेज टिल्लू अपने छोटे कद की वजह से कई जगहों से नकारा जा चुका था । भारत पाक सीमा के नजदीक ही बसे रामनगर गाँव का निवासी होने की वजह से वह आये दिन धमाकों की आवाज सुनने का अभ्यस्त था , लेकिन जैसे ही उसे किसी भारतीय जवान के हताहत होने की खबर मिलती ,उसका दिल खून के आँसू रोता । घर के बाहर सबसे छिपछिपाकर अकेले में घंटों रोता । जी हल्का होने पर ही घर वापस आता । घर आने पर सरकार की अकर्मण्यता के लिए वह मन ही मन सरकार पर भी बरसता । ' कितनी निकम्मी है हमारी सरकार ! इतना असलहा , इतना गोलाबारूद ,इतने सिपाही होने के बावजूद वह मच्छर के समान औकात रखनेवाले पाकिस्तानियों के सामने क्यों इतने संयम से काम लेती है ? रोज रोज शहीदों की गिनती सुनकर पूरा देश तंग आ गया है । क्यों नहीं हमारी सरकार एक ही बार आरपार का फैसला कर लेती ? ' दुश्मन को नानी याद दिलाने में हमें ज्यादा समय नहीं लगेगा ' इसका उसे पूरा विश्वास था ।
दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद वह रोजगार के लिए हाथ पाँव मारने लगा था । लेकिन ज्यादा पढ़ालिखा नहीं होने की वजह से उसे कहीं भी किसी दफ्तर में चपरासी की भी नौकरी नहीं मिली , उल्टे वह जहाँ भी गया उसकी खिल्ली ही उड़ाई गई । किसी का बुरा मानने की बजाय वह अपने दूसरे प्रयास में जुट जाता । कश्मीर में पर्यटकों को घुमाने के लिए उसने घोड़ा किराये पर लेकर भी देख लिया ,लेकिन उसकी कदकाठी की वजह से कोई भी पर्यटक उसकी तरफ देखता भी नहीं था । तमाम कोशिश के बावजूद वह शाम तक मुश्किल से घोड़े के दाने का खर्च भी नहीं निकाल पाता था । थक हार कर उसने नौकरी के लिए भटकना भी छोड़ दिया लेकिन उसकी देशभक्ति का नशा अभी कम नहीं हुआ था । बारामुला में भारतीय सेना में भर्ती के लिए कैम्प लगाए जाने की खबर सुनकर वह वहाँ भी जा पहुँचा । लेकिन साथी उम्मीदवारों ने उसकी जमकर खिल्ली उड़ाई । खिन्न होकर वह उस कैम्प के इंचार्ज मेजर भगत से मिला । मेजर से उसने कहा ," सर् ! सेना के लिए ली जानेवाली सभी परीक्षाओं के लिए मैं तैयार हूँ और मेरा दावा है कि मैं इन सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में पास हो जाऊँगा , सिवाय कदकाठी के । अब साहब ! मेरी कदकाठी ही ऐसी है इसमें मेरा क्या कसूर ? "
उसकी बात धैर्य से सुनने के बाद मेजर भगत ने उसे समझाया " तुम ठीक कह रहे हो । लेकिन मैं भी नियम कानून से बँधा हुआ हूँ । इस मामले में तुम्हारी चाहकर भी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा । लेकिन तुम को जब भी हमारी जरूरत हो , बेखटके मेरे दफ्तर में आ जाना । "
" जी धन्यवाद ! " कहकर टिल्लू वापस अपने घर आ गया था ।
उस दिन टहलते हुए वह सरहद के पास वाली पहाड़ी की तरफ निकल गया । वह बिल्कुल सुनसान इलाका था । अमूमन उस तरफ कोई नहीं फटकता था । तभी उसे पत्थर पर हथौड़े चलाने जैसी तेज आवाज सुनाई पड़ी । वह चौकन्ना हो गया । पहाड़ी की तलहटी में उग आए लंबे लंबे घास के पौधों में छिपते छिपते वह उस आवाज की दिशा की तरफ बढ़ा । अब वह काफी नजदीक पहुँच चुका था । इतना नजदीक की उनकी बातचीत भी अब उसे सुनाई पड़ रही थी । उनकी शक्लें देखते ही वह जान गया कि ये यहाँ के स्थानीय लोग तो नहीं हैं । पहाड़ी की तलहटी में सरहद के बिल्कुल पास कुछ लोग पहाड़ी का पत्थर काटकर बंकर जैसा कुछ बनाने का प्रयास कर रहे थे । बिना कोई आवाज किये वह उल्टे पाँव जैसे आया था वैसे ही वहाँ से वापस गाँव की दिशा में निकल पड़ा ।
गाँव से थोड़ी ही दूरी पर सेना का कैम्प था । कैम्प में संयोग से मेजर भगत से उसकी मुलाकात हो गई । उसने संक्षेप में मेजर को उन अनजान लोगों के बारे में पूरा वाकया कह सुनाया । मेजर भगत ने टिल्लू को आश्वस्त करते हुए तुरंत ही सेना के एक कैप्टेन और पाँच सिपाहियों को टिल्लू के बताए गए क्षेत्र में जाकर वास्तविकता का पता लगाने का आदेश दिया । सिपाहियों के जाने के दो घंटे बाद तक भी उनका कोई जवाब नहीं आया तब मेजर भगत को थोड़ी चिंता हुई । कैप्टेन के वायरलेस पर सम्पर्क करने पर भी कोई जवाब नहीं मिलने पर मेजर की चिंता गहरा गई । अपने साथ कई सिपाहियों और टिल्लू को भी अपने साथ लेकर मेजर टिल्लू के बताए गए जगह की तरफ जाने लगे । तभी खून से लथपथ एक जवान उन्हें रास्ते के एक किनारे पड़ा हुआ मिला । उसके पैरों में और कंधे पर मिलाकर जिस्म में कई गोलियाँ लगी थीं । मेजर ने उसे अपनी जीप में डालकर कैम्प में स्थित अस्पताल में पहुँचाया और उससे बातचीत की । उस जवान ने बताया " सभी जवान सीमा पर लगे कँटीले तारों के साथ चलते हुए आगे बढ़ रहे थे कि अचानक एक तरफ से गोलियों की बाढ़ सी आ गई । इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते , गोलियों ने हमें छलनी कर दिया । सब वहीं गिर पड़े लेकिन मैं लंबी घास में छिपते हुए यहाँ तक पहुँच पाया ताकि आपको सूचित कर सकूँ । ये दुश्मन देश के दरिंदे हैं जो पहाड़ी की तलहटी में बैरक बना कर बैठ गए हैं । "
अब सूचना के मुताबिक कार्रवाई करने की बारी थी । रॉकेट लॉन्चर से आसानी से उनका खात्मा किया जा सकता था , लेकिन मेजर की योजना थी उन्हें जिंदा गिरफ्तार करने की ।उनके सामने जाकर उन्हें ललकारना खतरे से खाली नहीं था । मेजर ने एक योजना बनाई और कुछ चुनिंदा जवानों के साथ उस तरफ बढ़ गए । टिल्लू की निशानदेही पर मेजर ने उस बैरक को चिन्हित कर लिया और स्पीकर से आतंकियों को सामने आकर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया । लेकिन जवाब में आतंकियों की तरफ से भारी गोलाबारी शुरू हो गई । कुछ देर के मुकाबले के बाद उस तरफ से गोलीबारी बंद हो गई । मेजर ने अंदाजा लगाया ' या तो दुश्मन मारे गए हैं या फिर उनका गोला बारूद खत्म हो गया है । '
अपने सिपाहियों के साथ मेजर भगत ' जय हिंद ! जय भवानी ' का जयघोष करते हुए आरपार की लड़ाई के लिए गहरी खाई में कूद गए । बैरक के नजदीक पहुँच कर मेजर ने पाया दस आतंकियों के शव पड़े हुए थे और दो आतंकियों की साँसे अभी चल रही थीं । घायल आतंकियों को तुरंत ही अस्पताल में दाखिल करा दिया गया ।
दूसरे दिन सभी अखबारों के प्रतिनिधियों को इस कार्रवाई की जानकारी देते हुए मेजर भगत ने टिल्लू का विशेष आभार व्यक्त किया और पत्रकारों को बताया " देश के काम आने के लिए किसी को बहुत सक्षम होना ही आवश्यक नहीं , टिल्लू जैसा इंसान भी देश के काम आ सकता है और अपनी तरह से देश की सेवा कर सकता है । " पत्रकारों के कैमरे टिल्लू की तरफ घूम गए ।
अगले दिन सभी अखबारों में उसकी बहादुरी व समझदारी के किस्से प्रमुखता से छपे थे । देश के लिए किये गए अपने छोटे से सहयोग के बदले टिल्लू खुद को मिली तारीफ से अभिभूत था । उसे यकीन हो गया कि हम देश के लिए छोटा या बड़ा कुछ भी करें देश हमें उससे कई गुना अधिक वापस करता है । अब उसका आत्मविश्वास वापस आ गया था ।

राजकुमार कांदु