बैंगन - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 7

नहीं- नहीं, इतनी गफलत कैसे हो सकती है, मैं कोई बच्चा थोड़े ही हूं कि ऐसे ही नासमझी में कुछ भी कहूंगा। कहता हुआ मैं अब ज़ोर से चिल्ला पड़ा - "नहीं, मुझे सच- सच बताओ, ये सब क्या है? आप सब कहीं चले गए थे, यहां कोई नहीं था,एक दम पिनड्रॉप साइलेंस था, और पुलिस ही भीतर अाई थी, मैंने खुद पुलिस के साथ आपको ढूंढा था, पर आप में से कोई भी यहां नहीं था। आप सब न जाने कहां से अब निकल कर आए हो और मुझे मूर्ख बना रहे हो। सच- सच बताओ कि माजरा क्या है, वरना मैं अभी पुलिस को फ़ोन करके वापस बुलाता हूं। मेरे पास उनका नंबर है।" कह कर मैं बदहवासी में चीखा।
भाभी और बच्चे मासूमियत से मेरी ओर देखने लगे। भाई ने इस तरह आकर मुझे कंधे से पकड़ा मानो मुझे कोई मिर्गी का दौरा पड़ा हो। वो मुझे लिटाने के लिए हाथ पकड़ कर बेडरूम की ओर घसीटने लगा।
मैं हतप्रभ सा जाकर सचमुच लेट गया। भाभी दौड़ कर पानी का गिलास लाईं और भाई ने मुझे पानी पिलाने की कोशिश की।
मुझे सचमुच प्यास लगी थी क्योंकि मैं खाना ही तो खाकर चुका था। मैंने जल्दी से दोनों हाथों से गिलास पकड़ कर किसी बच्चे की तरह पानी पिया और लेट गया।
सचमुच मुझे नींद आने लगी। भाई ने एसी ऑन किया और मुझे एक चादर ओढ़ा कर बाहर निकल गया।
मुझे कुछ याद नहीं कि मैं कितनी देर सोया।
मुझे खाना खाते हुए सभी ने देखा ही था इसलिए मुझे खाने के लिए भी जगाया नहीं गया। शायद वे सभी खाना खाकर अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।
शाम को लगभग पांच बजे एक ट्रे में चाय और गरम पकौड़ों की प्लेट लेकर भाभी ने कमरे में प्रवेश किया।
पनीर पकौड़े की गंध से मेरी चेतना जाग्रत हो चुकी थी और मैं उठ कर अधलेटा सा होने लगा था किन्तु भाभी के ऐसा पूछते ही मैं फ़िर से निढाल हो गया- अब कैसी तबीयत है भैया?
- ओ हो, मेरी प्यारी भाभी, मैं आपकी कसम खाकर कहता हूं कि मेरी तबीयत को कुछ नहीं हुआ है मैं सच कह रहा हूं कि घर में पुलिस अाई थी और आप लोग कोई घर में नहीं थे। मैंने भाभी के हाथ से चाय का प्याला पकड़ते हुए कहा।
पर भाभी भी उसी दृढ़ता से बोलीं- मैं कैसे मान लूं भैया। हम लोग ख़ुद बाहर लॉन में बैठे थे, बच्चे खेल रहे थे, और कोई रास्ता नहीं है, पुलिस कैसे और कहां से आयेगी? और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्यों आयेगी?
मुझे लगा कि मुझे चक्कर आ जाएगा, या फ़िर मैं पागल हो जाऊंगा।
मैं फ़िर से कुछ बोलना ही चाहता था कि भाई भी भीतर चला आया। एक कुर्सी नज़दीक खींच कर बैठते हुए उसने भी प्लेट से एक पकौड़ा उठाया और सहजता से बोला- लो, बेचारे बच्चे कब से इंतजार कर रहे हैं कि चाचू के साथ गप्पें लड़ाएं पर चाचू तो किसी स्पाई की भांति न जाने कौन सी तहकीकात में लगे हैं।
- मैं आपकी चाय भी यहीं उठा लाती हूं, कह कर भाभी भीतर चली गईं।