बैंगन - 11 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 11

मैं वाशरूम से निकल कर आया और एक नैपकिन से हाथ पौंछता हुआ अपने चाय के कप की ओर बढ़ा।
तभी न जाने क्या हुआ कि मैं पलट कर बिजली की तेज़ी से कमरे से निकल कर बाहर आया और बंगले के मुख्य गेट से निकल कर सड़क पर बेतहाशा भागने लगा।
इस हड़बड़ी में मुझे ये भी पता न चला कि मैंने पैरों में चप्पल भी नहीं पहनी हुई है।
दरअसल मैंने वाशरूम से निकल कर बाथरूम स्लीपर उतारे ही थे कि सामने मुझे चाय का कप हाथ में लिए हुए खड़ी भाभी दिखाई दीं।
जबकि वाशरूम में जाते समय मैं चाय लिए हुए अपनी पत्नी को यहां बैठा छोड़ कर गया था। इस अजीबो गरीब मकान में पिछले कुछ दिनों से हो रही घटनाओं को देख कर मैं मन ही मन इस बात के लिए शंकित तो था ही कि यहां कुछ भी हो सकता है, कोई भी जादुई घटना।
और वही हुआ। पहले मैं मेरे लिए चाय लेकर अचानक आ गई अपनी पत्नी को देख कर चौंका था, मेरी उससे बात भी हुई, उसने मुझे बताया कि उसे भाई साहब ने फ़ोन करके और यहां से गाड़ी भेज कर बुलवाया है। पर जब मैं वाशरूम से पेशाब करके बाहर निकला तो वहां मेरी पत्नी नहीं, बल्कि मेरी भाभी ही खड़ी थीं। हाथ में चाय का प्याला लिए। मैं घबराहट में उनसे ये पूछ भी नहीं सका कि मेरी पत्नी आई थी वो कहां गई, और डर के कारण पहले ही सिर पर पैर रख कर वहां से निकल कर भागा।
इस तरह सड़क पर मुझे नंगे पांव भागते देख कर न जाने कॉलोनी वालों ने क्या सोचा होगा।
लेकिन मेरे आश्चर्य की सीमा न रही जब तुरंत ही मेरा भतीजा मेरे पीछे दौड़ा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वापस खींच लाया। बंगले के मुख्य गेट पर भाई, भाभी और मेरी पत्नी, तीनों खड़े थे। तीनों हैरान से थे।
भाभी मेरी पत्नी से कह रही थीं - " देखा? देखा... हम न कहते थे कि भैया दो दिन से अजीब- अजीब हरकतें कर रहे हैं, न जाने किस उधेड़ बुन में रहते हैं।"
मैं बेहद शर्मिंदा सा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस तरह भागा क्यों? शायद मैं ये समझा कि सचमुच मेरी पत्नी सुबह मुझे दिखने के बाद यहां से गायब हो गई है।
जबकि असलियत ये थी कि मेरे बाथरूम जाने के बाद वह चाय रख कर वापस भीतर चली गई और सहज ही भाभी वहां ये देखने आ खड़ी हुई कि मेरे बाथरूम जाने से कहीं चाय ठंडी न हो गई हो। मैं न जाने किस तुफैल में ये सोचता हुआ भागा कि यहां फ़िर कोई जादू हुआ।
लगभग आधा घंटा बीता होगा कि मैं एक कमरे में जबरन लिटा दिया गया था और एक डॉक्टर गले में स्टेथेस्कॉप डाले मेरी जांच कर रहा था। दोनों बच्चे, भाई, भाभी, मेरी पत्नी और भाई की दुकान का एक नौकर मुझे घेर कर खड़े थे।
अब मुझसे कुछ भी नहीं पूछा जा रहा था। जो कुछ पूछा जाता, मेरी पत्नी से ही।
मैं कुछ बोलने की कोशिश भी करता तो डॉक्टर टोक देता, कहता - रिलैक्स! और अनसुनी कर देता।
मैं ये सुन कर जैसे आसमान से गिरा कि मेरी पत्नी सबको बता रही थी - "ये वहां भी ऐसे ही करते हैं, पता है, वहां किसी को बताए बिना यहां चले आए थे, हमें तो बाद में इनके एक दोस्त से पता चला कि आप लोगों के पास आए हैं!
मैं चुपचाप आंखें फाड़े देखता रहा!