बैंगन - 12 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 12

अगले दिन मेरी पत्नी और मुझे भाई ने अपनी गाड़ी से ही ड्राइवर के साथ वापस भेज दिया।


भाई और भाभी ने कहा कि जल्दी ही वे लोग भी बच्चों को लेकर हम लोगों से मिलने आयेंगे। भाभी ने अम्मा और बच्चों के लिए कुछ प्यारे उपहार और मिठाई भी दिए।


मेरी जांच करने वाले डॉक्टर ने बताया कि मुझे कोई भी बीमारी नहीं है तथा मेरा मानसिक स्वास्थ्य भी बिल्कुल ठीक है।


मैंने मेरी पत्नी से कहा कि उसने भाई- भाभी के सामने ये झूठ क्यों बोला कि मैं यहां भी "ऐसे" ही करता रहता हूं और घर में बिना बताए यहां चला आया।


मेरी पत्नी शरारत से हंसी और बोली - "सब एक दूसरे से मज़ाक कर रहे थे तो मैंने भी एक छोटा सा मज़ाक कर लिया।"


लो, मतलब उसने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया। इसका अर्थ यह था कि वहां जो कुछ भी हुआ उसे सभी ने केवल हल्के फुल्के हंसी मज़ाक के रूप में ही लिया था।


पर मेरा मन अब भी ये स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि कहीं कुछ गड़बड़ नहीं है। मैं पूरे होश हवास में ये देख चुका था कि भैया के घर में पुलिस आई थी और उनके बारे में खोजबीन की गई थी। मैं ख़ुद भैया को तलाश करने में उन दोनों पुलिस वालों के साथ ही था। पर बाद में उनके चले जाने के बाद भैया इस तरह घर में दिखाई दे गए थे मानो कुछ हुआ ही न हो। और भाभी व बच्चों ने भी ये कह कर मुझे ही झूठा सिद्ध कर दिया था कि हम सब लोग ही घर में थे, बाहर के लॉन में बच्चे खेल रहे थे, और यहां कोई पुलिस - वुलिस नहीं आई।


ऐसा कैसे हो सकता था। मैं कोई छोटा बच्चा या फ़िर वयोवृद्ध बुजुर्ग नहीं था जिसे कुछ याद न रहे और उसके साथ कोई घटना घट जाए।
मैं तो अपने विदेश से लौटे हुए भाई से मिलने के इरादे से ही केवल ये सोचकर वहां चला गया था कि उसकी और उसके परिवार की खोजखबर लेकर आऊंगा, उन लोगों को समय मिलते ही मेरे घर आने का निमंत्रण देकर आऊंगा और ये जानकारी भी करके आऊंगा कि उन लोगों का विदेश प्रवास कैसा रहा। वे अब क्या करने की योजना बना रहे हैं, भाई को यहां कोई बढ़िया नौकरी मिल गई है या फिर वो कोई व्यवसाय शुरू करने का विचार कर रहा है।
ऐसा कई बार सुना था कि कुछ लोग थोड़े समय के लिए विदेश चले जाते हैं और वहां से एक साथ ढेर सारी दौलत कमा कर ले आते हैं फ़िर यहां आराम से कोई बड़ा व्यवसाय करके शान से रहते हैं।
पर मेरे साथ तो अजीबो - गरीब घटना ही घटी। भाई के परिवार के सामने बार बार अपमान हुआ, झूठा सिद्ध होना पड़ा और मन में तरह तरह के भ्रम और घर कर गए कि हो न हो, भाई कोई अवैध या गैर कानूनी काम करके वहां से आ गया है।
पर भ्रम जब तक सिद्ध न हो, वो संदेह ही कहलाता है।


दिन बीतते गए और मैं भाई के घर की इस यात्रा को लगभग भूलने ही लगा था कि एक दिन अख़बार में एक बड़ा समाचार पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।


भाई के घर के पड़ौस में रहने वाला एक व्यापारी स्मगलिंग और घोटाले के आरोप में पकड़ा गया था।


उसने और भाई ने लगभग साथ में ही पास- पास के वो मकान खरीदे थे जो शहर की पॉश कॉलोनी में बने हुए थे।


इस मकान की एक विशेषता थी जो केवल इसे बनवाने वाले उस बिल्डर को ही मालूम थी जो इसे बेच कर अब कहीं चला गया था।


मेरा माथा ये खबर पढ़ते ही चकरा गया।