बैंगन !
गाड़ी रुकते ही मैं अपना सूटकेस उठाए स्टेशन से बाहर आया।
एक रिक्शावाला तेज़ी से रिक्शा घुमाकर मेरे ठीक सामने आ गया।
बोला- कहां चलिएगा?
मैंने कहा - मानसरोवर
- रखिए... रखिए सामान। उसने कहा
- क्या लोगे? मैंने पूछा।
- जो चाहें दीजिएगा। उसके ऐसा कहते ही मैंने सूटकेस रख दिया, फ़िर भी कहा- पैसे बताओ भई!
लेकिन ये क्या? उसने बिना कुछ बोले रिक्शा चला दिया और मेरे बैठने से पहले ही तेज़ी से भगाने लगा।
मैं हतप्रभ रह गया। रिक्शे वाले की आंखों पर चश्मा, कुर्ता- धोती की पोशाक, सिर पर मोटी सी लहराती चोटी... और चोर की तरह यह जा, वो जा... छू मंतर।
सायकिल रिक्शा भीड़ में ऐसे दौड़ रहा था मानो गांव की किसी रिक्शा रेस का प्रतियोगी हो।
- पकड़ो, पकड़ो, रोको उसे... मेरी आवाज़ सड़क की रेलम पेल में दब कर रह गई।
मैंने एक ऑटो रिक्शा वाले को रोका।
मैं जल्दी से बोला- उस सायकिल रिक्शा का पीछा करो, मेरा सामान लेकर भागा है, वो देखो, वो जा रहा कुर्ता- धोती पहने!
मैं हड़बड़ा कर ऑटो में बैठ पाता उससे पहले ही एक लड़के ने तेज़ी से एक स्कूटर घुमा कर मेरे और ऑटो वाले के बीच रोका, और बोला- बैठिए, बैठिए सर, रिक्शा का पीछा करना है न ?
- अच्छा - अच्छा, तो तुम्हें मालूम है कि वो सामान लेकर भागा है मेरा... चलो, कहता हुआ मैं उसके साथ बैठ गया। स्कूटर सरपट दौड़ पड़ा।
मैं जानता था कि भीड़- भाड़ और रफ़्तार के कारण लड़का मेरी बात नहीं सुन पा रहा है फ़िर भी मैंने कहा- उसकी हिम्मत तो देखो, सायकिल रिक्शा से दिनदहाड़े सामान लूट कर भाग रहा है, इसे पकड़े जाने का भी डर नहीं?
तेज़ दौड़ता स्कूटर कुछ ही देर में उसके नज़दीक पहुंच गया। वो अंधाधुन भागा जा रहा था।
स्कूटर वाला लड़का शरीफ़ सा था, फ़िर मेरे बिना कहे ही मेरी मदद कर रहा था। मैंने सोचा मेरा सामान मिल जाए फ़िर मैं इसे अच्छी सी रकम इनाम में दूंगा।
लेकिन ये क्या? स्कूटर रिक्शा के पास पहुंच कर रुका नहीं, उल्टे उससे आगे निकल कर और तेज़ी से दौड़ने लगा।
- ओह! ये मैं कहां फंस गया? लगता है ये तो ख़ुद उस चोर से ही मिला हुआ है। अब ? रिक्शा गलियों में कहीं गुम हो गया होगा, और ये न जाने मुझे कहां लेे जाकर छोड़ेगा।
- रुक... स्कूटर रोक... कहते हुए मैं अब उसके कंधे को पकड़ कर उसे लगभग झिंझोड़ ही डालता पर तभी उसने अचानक स्कूटर एक गली में मोड़ दिया।
मैंने सोचा कि शायद इसने रिक्शा को देख लिया है और ये किसी शॉर्टकट से उसे घेर रहा है, क्योंकि तब तक सचमुच रिक्शा सामने से दौड़ता हुआ दिखाई देने लगा था।
कुछ देर की चूहा- बिल्ली दौड़ के बाद एक मकान के सामने रिक्शा रुका और तत्काल वहीं पहुंच कर लड़के ने भी स्कूटर के ब्रेक लगाए।
मैं सारा माजरा समझ पाता उससे पहले ही वे दोनों एक दूसरे को देख कर ज़ोर से हंस रहे थे। मैं हैरान था कि आखिर ये माजरा क्या है? सिर खुजाता हुआ मैं इधर- उधर देखता रहा।