बैंगन - 2 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 2

( 2 )
मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि ये चल क्या रहा है,
क्या ये दोनों मिले हुए हैं और इन्होंने मेरा सामान लूटने के लिए ये सब किया है?
या फ़िर स्कूटर वाले लड़के ने सचमुच मेरी मदद कर के इस चोर रिक्शा चालक से मेरा सामान बचाया है?
मैं असमंजस में खड़ा ही था कि सामने वाले घर का गेट खोल कर मेरा भाई बाहर निकला। मैं आश्चर्य से उसे देखने लगा। तो हम घर तक ही अा पहुंचे थे। मैं यहां पहली बार आने के कारण मकान को पहचाना नहीं था।
रिक्शा चालक और स्कूटर वाले लड़के ने एक साथ मुझे नमस्कार किया और तभी मुझे पता चला कि वास्तव में वो दोनों ही मेरे भाई की दुकान में काम करने वाले कर्मचारी थे जिन्हें मुझे स्टेशन से लेने के लिए ही भेजा गया था। उन्होंने मुझसे केवल मज़ाक किया था।
भाई को जब पूरी बात पता चली तो वो भी पहले तो हंसा किन्तु साथ ही उसने अपने कर्मचारियों को ऐसा मज़ाक करने के लिए थोड़ी डांट भी लगाई।
दोनों मुझसे माफ़ी मांगने लगे।
मैंने स्कूटर वाले लड़के से कहा - अगर मैं मेरा सामान जाने के बाद जल्दी में ऑटो रिक्शा में बैठ कर चला जाता तो?
लड़का मासूमियत से बोला- मैं आपको बैठने थोड़े ही देता अंकल, हम तो आपसे मज़ाक करने के लिए पहले से ही प्लान बना कर बैठे थे।
अब मुझे भी उन लड़कों के मज़ाक में आनंद आने लगा।
भाई मुझे अपने साथ भीतर लेे गया।
मैंने कहा, मैं रात भर का सफ़र करके आया हूं, पहले ज़रा फ्रेश होकर आ जाऊं फ़िर आराम से बैठेंगे। लेकिन भाई बोला - चाय आ रही है, पहले एक कप गरम चाय पी ले, फ़िर वाशरूम जाना।
हम बैठ गए।
भाई मुझे मकान, दुकान और शहर के बारे में सब बताने लगा।
दरअसल मैं यहां पहली बार ही आया था। मेरे भाई ने कुछ समय पहले ही विदेश से आकर ये मकान और दुकान खरीदी थी।
हम लगभग चार साल बाद मिल रहे थे। भाई, बच्चों और परिवार को लेकर चार साल पहले हांगकांग गया था और अब वापस यहां आ गया था। मैं उससे, भाभी और बच्चों से मिलने कुछ दिन के लिए यहां आया था।
मेरा अनुमान था कि अब तो उसके दोनों बच्चे भी बड़े हो गए होंगे। मैंने उन्हें जब देखा तो लड़की ग्यारह साल की और लड़का बारह साल का था। मैं भतीजे भतीजी से भी पूरे चार साल बाद मिल रहा था।
मैं भाई से बच्चों के बारे में पूछने ही वाला था कि तभी चाय आ गई।
पर्दा हटा कर एक महिला कमरे में दाखिल हुई और ट्रे में से चाय और नाश्ता करीने से रखने लगी।
मैं कुछ संकोच से भाई की ओर देखने लगा क्योंकि मैं महिला को पहचाना नहीं था। कपड़ों और सलीके से वो कोई नौकरानी भी नहीं लगती थी।
मेरे असमंजस को भांप कर भाई ने धीरे से कहा- भाभी!
कहते ही महिला ने भी विनम्रता से हाथ जोड़ दिए।
मैं बुरी तरह चौंक गया, बुदबुदाया- भाभी कौन!
महिला बुझ सी गई।
मैं घूर कर भाई की ओर देखता रहा। चाय का कप मैंने छुआ भी नहीं!