बैंगन - 8 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 8

8
मेरा असमंजस बरकरार था। आख़िर ये माजरा क्या है? ये सब लोग पूरे इत्मीनान से बैठे हैं और कह रहे हैं कि ये सब घर में ही थे, पुलिस कैसे और कहां से आ सकती है, जबकि मैंने ख़ुद अपनी आंखों से पुलिस को यहां आते और ख़ुद मुझसे ही तहकीकात करते हुए देखा। कोई भी गलत- फहमी आख़िर हो ही कैसे सकती है।
मैंने मन ही मन सोचा कि मैं ख़ामोश होकर इन लोगों की बात स्वीकार कर लूंगा पर अपनी तहकीकात जारी रखूंगा और इस रहस्य का पता लगा कर ही रहूंगा।
मैंने भाई और भाभी के साथ चाय पीकर दोनों बच्चों को आवाज़ लगाई।
पल भर में दोनों आ बैठे और हम सब लोग बातों में तल्लीन हो गए। मेरे भतीजे ने मुझे अपने स्कूल के कई किस्से सुनाए। भतीजी भी अब मेरा मूड बदला हुआ देख कर अपनी ड्राइंग की फ़ाइल उठा लाई थी और मुझे अपनी नई पेंटिंग्स दिखा रही थी। धीरे- धीरे सबका व्यवहार देख कर मेरा स्वर भी बदलने लगा। मैंने सोचा कि शायद जो कुछ हुआ वो महज़ एक संयोग ही है। वैसा कुछ नहीं है जो मैं सोच रहा हूं।
शाम को बच्चों ने खाना कहीं बाहर चल कर खाने के लिए अपने पापा को मना लिया।
भाभी भी बोलीं - सुबह तो न जाने किस अफरा - तफरी में एक साथ बैठकर खाना खाने का मौका ही नहीं मिला। चलो, अब बाहर किसी अच्छी सी जगह खाने चलेंगे।
बच्चे ये सुनकर ख़ुश हो गए।
भाभी मुझसे बोलीं - आप भी तैयार हो जाओ भैया, अब फ्रेश होने में इतना समय मत लगाना कि बच्चे बेचारे इन्तज़ार करते करते बाहर जाकर क्रिकेट खेलने लग जाएं।
मैं झेंप कर रह गया।
दो घण्टे के बाद भाई हम सब को गाड़ी में लिए तेज़ी से हाई- वे पर ड्राइव कर रहे थे।
मैं आगे बैठा था और बच्चे अपनी मम्मी को घेर कर पीछे उनके साथ बैठे थे।
हाई - वे पर थोड़ा आगे जाकर भाई ने गाड़ी एक सुन्दर से रिजॉर्ट की ओर मोड़ दी। रोशनी से नहाया हुआ बेहद खूबसूरत आलम था।
चारों तरफ़ अलग - अलग माहौल में लोग खाने की मेजें घेर कर बैठे थे, पर ज़्यादा भीड़ - भाड़ नहीं थी।
गाड़ी पार्क करके भैया के आते ही हम लोग भी एक एकांत सी ख़ाली जगह देख कर उस ओर बढ़े। सुंदर और शालीन माहौल था। कर्णप्रिय संगीत बजने से वातावरण और भी मादक हो गया था।
एकाएक तभी भाई के दो मित्र नज़दीक की गैलरी से निकल कर सामने से आते दिखाई दिए। भाई ने आगे बढ़कर गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया।
भाभी को भी नमस्ते की उन्होंने। भाई शायद उनसे मेरा परिचय कराने के ख़्याल से मेरी ओर मुखातिब हुए ही थे, कि उन्हें एकदम से नजदीक आने पर देखकर मैं बुरी तरह चौंक पड़ा।
ये दोनों वही पुलिस के लोग थे जो दोपहर में भाई को ढूंढते हुए घर आए थे। मैं दोनों को अच्छी तरह पहचान गया।
भाई के उनके परिचय में कुछ बोलने से पहले ही मेरे मुंह से निकला - इन्हें तो मैं जानता हूं, मैं इनसे पहले मिल भी चुका हूं।
भाई ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।