लेकिन रमेश ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया।ज्यों ज्यो बेटिका बड़ी हो रही थी।उनके खर्चे भी बढ़ रहे थे।आये दिन वे कोई नई फरमाइस कर देती।रमा उन्हें पिता के पास भेज देती।रमेश या तो उन्हें बहला देता या डांट देता।इस बात पर रमा बिगड़ जाती,"अभी तो इनके दिन है।अगर माँ बाप के राज में अपने शौक पूरे नही करेंगी तो कब करेंगी।"
रोज रोज की चिक चिक और झगड़े से बचने के लिए रमेश अपना ज्यादा समय घर से बाहर रहकर गुज़ारने लगा।एक दिन पिता का फोन आया,"बेटा शीला के रिश्ते की बात चल रही है।रिश्ता हो गया तो ,पेसो की जरूरत पड़ेगी।"
"ठीक है पिताजी।"
रमेश ने फण्ड से पचास हज़ार रु निकालने के लिए फॉर्म भर दिया।रात को वह ड्यूटी से घर पहुंचा तब उसने पत्नी को शीला के रिश्ते और फंड से लोन लेने की बात नही बताई।सुबह जब वह बेटियों के स्कूल के लिए लंच बना रही थी।तब उसने पत्नी को बताया।
"उन्हें पैसे मांगने के अलावा कोई काम है ही नही।तुम्हे पता भी है।हमारी बेटियां भी बड़ी हो गई है।और हमारे पास जमा पूंजी है नहीं।कहा सेआयेगा उनकी शादी के लिए पैसा।
,"जरूरी नही है,बेटियों की शादी में पैसा ही खर्च करना पड़े।"
"तो क्या बिना पैसे खर्च किये शादी हो जायेगी?"
"क्यो नही"रमेश बोला,"हो भी सकती है।जैसे तुम्हारी हुई थी।"
इसी बात को लेकर पति पत्नी मे तू तू मैं मैं हो गई।नोक झोंक ने उग्र रूप धारण कर लिया।रमा इतना उत्तेजित हो गई कि उसने अपना आपा खो दिया और रमेश को चिमटा दे मारा।
रमेश पत्नी के व्ययहार से अचम्भित रह गया।उसे सपने में भी उम्मीद नही थी कि रमा उसके साथ इस तरह पेश आएगी पत्नी से अपमानित होकर वह ऑफिस चला आया था।लेकिन ज्यादा देर बैठ नही पाया।वह ऑफिस से निकल आया।चलता चलता बहुत दूर निकल आया और एक जगह आकर खड़ा हो गया।उसका ध्यान ही नही गया कि वह रेल की पटरियों के बीच मे खड़ा था।वह जिस जगह खड़ा था।वह इलाका सुनसान और वीरान था।लाइनों के दोनों तरफ पेड़,घास और झाड़ियां थी।आस पास के गरीब लोग इस जगह का प्रयोग नित्यकर्म से निवर्त होने के लिए करते थे।कुछ लोगो की नज़र रमेश पर गई ,तो वे दूर से ही चिल्लाए थे,"मरना है क्या?दिखाई नही पड़ रहा।ग्रीन सिग्नल हो रहे है।ट्रेन आने वाली है।जल्दी हटो वंहा से।"
लोगो के हल्ला मचाने पर रमेश लाइनों के बीच से निकल गया और एक पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया।उसने जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला।एक सिगरेट होतो के बीच दबाई और वह सिगरेट पीने लगा उसके दिमाग मे ज़बरदस्त उधेड़बुन मची हुई थी।आर्थिक तंगी पत्नी के साथ रोज किसी बात को लेकर झगड़ा और आज रमा के अप्रत्याषित व्यवहार ने उसे तोड़कर रख दिया था।वह गहरे सोच में डूबा था।तभी ट्रेन की आवाज से उसके सोच की तंद्रा टूटी।वह सोच विचार छोड़कर सामने से आती ट्रेन को देखने लगा।
ट्रेन शोर मचाती पटरी पर दौड़ी चली आ रही थी।ज्यो ही ट्रेन उसके सामने आई।वह फुर्ती से छलांग लगाकर ट्रेन के आगे कूद गया।पलक झपकते ही उसके शरीर के चिथड़े उड़ गए।
ट्रेन रुक गई।लीगो का हुजूम इकठ्ठा हो गया।सभी लीगो की जुबान पर एक ही प्रश्न था
उसने आत्महत्या क्यो की?