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उसने आत्महत्या क्यो की (भाग 2)

रमा,रमेश को चाहती थी।उससे प्यार करती थी।उसे अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी।माँ बाप के विरोध के बावजूद उसने रमेश से शादी कर ली।
प्यार और शादी में अंतर है।प्यार भावात्मक धरातल पर टिका होता है।जबकि शादी की नींव यथार्थ की ज़मीन पर रखी जाती है।प्रेम अंधा होता हैं।प्रेम करने वाले ऐसे ख्वाब देखते है,जो शायद ही सच होते है।शादी दो दिलो का मिलन होता है।इस रिश्ते में समानता की बड़ी अहमियत होती है।अचानक स्थापित प्रेम संबंध में समानता जैसी बातो पर ध्यान नही दिया जाता।जो आगे चलकर अनेक परेशानियों को जन्म देता है।
रमा ने भी अपने प्रेमी रमेश से शादी का निर्णय भावनाओ में बहकर लिया था।शादी होते ही रमा के परिवार वालों ने उससे सम्बन्ध तोड़ लिया।मायके में रमा का जीवन एसओ आराम से गुजरा था।लेकिन रमेश की पत्नी बनते ही उसका मुश्किलो से सामना हुआ।
रमेश को हर महीने तीस हजार रु वेतन मिलता था।वह पूरा वेतन पत्नी के हाथ पर रख देता।रमेश अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता।पूरे महीने का खर्च रमा को चलाना पड़ता था।पति के वेतन का तिहाई तो मकान किराया और बिजली के बिल में खर्च हो जाता था।शेष बचे वेतन से रमेश के भाई बहन की पढ़ाई का खर्च और घर का खर्च।इस महंगाई के युग मे इतने कम में घर खर्च नही चलता था।
रमा ने मायके मे कोई भी काम अपने हाथ से नही किया था।अलग अलग घरेलू कामो के लिए अलग अलग नौकर थे।लेकिन ससुराल में आकर वह खुद ही नौकर बन गई थी।दिन भर काम करते करते वह पस्त हो जाती।आर्थिक तंगी ने उसे तनावग्रस्त और चिड़चिड़ी भी बना दिया था।
रमा जब प्रेमिका थी,तब रमेश उसके रंग रूप और सुंदरता का दीवाना था।वह उसकी प्रशंसा करते नही थकता था।उसका पूरा ख्याल रखता था।लेकिन प्रेमिका से पत्नी बनते ही रमेश के स्वभाव में परिवर्तन आ गया।
वे दो कमरों के फ्लैट मे रहते थे।एक कमरे में पति पत्नी और दूसरे में सास श्वसुर और देवर ननद।दिन में सास श्वसुर के सामने रमा पति से कुछ नही कह पाती थी।लेकिन रात के एकांत मे वह पति से अपना दुखड़ा ले बैठती।रमेश पत्नी की परेशानी को सुनता जरूर था लेकिन हल नही निकाल पाता।
रमा पहले ही कम परेशान नही थी।ऐसे मैं दो बेटियों की माँ और बन गई।जिससे खर्च और बढ़ गया।धीरे धीरे पांच साल गुजर गए।दोनो बेटियां स्कूल जाने लगी।ज्यो ज्यो बेटियां बड़ी होती गई,उनकी पढ़ाई का खर्च बढ़ता चला गया।बेटियां नित्य नई फरमाइश करने लगी।रमेश महीने मे एक बार वेतन देकर बरी हो जाता।पूरे महीने जूझना पड़ता रमा को।आर्थिक तंगी से उपजे तनाव ने रमा को झगड़ालू बना दिया था।वह कभी कभी सास श्वसुर से भी उल्टा सीधा बोल जाती।रोज़ रोज की चीक चिक से तंग आकर रमेश के माता पिता दोनो बचचो को लेकर गांव चले गए।
सास श्वसुर और देवर ननद के गांव चले जाने पर रमा ने राहत की सांस ली थी।उसने सोचा था,अब खर्च कम हो जाएगा।लेकिन ऐसा नही हुआ।काम का बोझ जरूर कम हो गया।लेकिन आर्थिक सिथति में सुधार नही आया।क्योकि रमेश हर महीने पांच हज़ार रुपये पिता को मनीऑर्डर करने लगा।
रमा ने आर्थिक तंगी का रोना रोकर पैसे भेजने का विरोध किया


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