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एक फैसला



रहमान आज सुबह से ही परेशान था । नशे की सनक में उसने अपनी प्यारी सी बेगम सलमा को रात में ‘ न आव देखा न ताव ‘ तलाक ‘ दे दिया था । सुनकर सलमा सन्न रह गयी थी । दहाड़ें मारकर रोने लगी । घर के सभी लोग उसके कमरे में जमा हो गए थे । पल भर में ही उसके तलाक की खबर मोहल्ले भर में फैल गयी ।

यह धर्मभीरु निम्नवर्गीय मुस्लिमों का मोहल्ला था । मोहल्ले के लोग एक स्वर से रहमान को उसके शराब की लत के लिए कोसने लगे । पल भर में ही रहमान का नशा काफूर हो गया । हकीकत पता चलने पर वह अपना सिर धुन कर रह गया । बड़ा पछताया लेकिन अब क्या हो सकता था ?

वह अपनी बीवी को बहुत पसंद करता था और उसे छोड़ना नहीं चाहता था । बड़े बुजुर्गों से सलाह मशविरा किया । सबने एक स्वर में उसे मोहल्ले की मस्जिद के बांगी साहब से मशविरा लेने की सलाह दी ।

कुछ बुजुर्गों को साथ लिए रहमान बांगी साहब से मिला । पूरा वाकया सुनने के बाद उन्होंने चेहरे पर बनावटी क्रोध लाते हुए रहमान को फटकारा ” तौबा ! तौबा ! ये क्या कुफ्र कर दिया तुमने रहमान !”

रहमान खुशामदी लहजे में बोला ” गलती हो गयी बांगी साहब ! अब आप ही कोई रास्ता बताइए कि मेरी सलमा मेरे साथ ही रहे । ”

अपनी लंबी दाढ़ी पर हाथ घुमाते हुए साठ बरस के बांगी साहब के आंखों की चमक बढ़ गयी । बोले ” रास्ता अब सिर्फ एक ही है । अब तुम्हारी बेगम का ‘ निकाह ए हलाला करना होगा । ”

धर्म के कायदे कानूनों से अनभिज्ञ मोहल्लेवाले पुछ बैठे ” ये निकाह ए हलाला क्या होता है ? ”

” रहमान के तलाक दे देने के बाद इसकी बेगम अब इसके लिए हराम हो गयी है । अगर यह फिर से अपनी बेगम को अपने साथ रखना चाहता है तो इसे किसी पाक ईमानवाले शख्स से बेगम का निकाह करवाना होगा और वह शख्स इसकी बेगम के साथ एक रात शौहर की तरह गुजारे और फिर इसकी बेगम को तलाक दे दे तब कहीं जाकर यह फिर से अपनी बेगम से निकाह कर सकता है । ” सुनकर और समझकर रहमान के पैरों तले जमीन खिसक गई थी । लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था ?

रहमान ने ‘ निकाह ए हलाला ‘ के लिए बांगी साहब से ही निवेदन किया क्यों कि उसे डर था कि अगर किसी दूसरे परिचित से निकाह करवाता है और उसने तलाक नहीं दिया तो उसकी सलमा हमेशा के लिए उससे दूर चली जायेगी । उसके मुकाबले बांगी साहब बुजुर्ग और पाक ईमान वाले खुदा के बंदे थे ।

उसकी बात का समर्थन साथ में आये बुजुर्गों ने भी किया । मौलाना अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोले ” यूं तो ‘ निकाह ए हलाला ‘ के लिए मैं पचास हजार से कम रुपये नहीं लेता लेकिन तुम्हारी कम उम्र और गरीबी देखकर मैं सिर्फ बीस हजार रुपये में ही तुम्हारे बेगम से ‘ निकाह ए हलाला ‘ कर लूंगा । दस हजार निकाह पढ़ते वक्त और दस हजार सुबह तलाक होने के बाद दे देना । ”

सुनकर रहमान तो सकते में रह गया । अब वह क्या करे ? कहाँ से लाये बीस हजार ? लेकिन और कोई चारा भी नहीं था । पैसे जुटा कर कल मिलने की बात कह कर वह मोहल्ले वालों के साथ घर वापस आ गया ।

सलमा ने पुरा वाकया सुना । उसने इस हलाला प्रथा का पुरजोर विरोध किया । रोते हुए अपनी सास से बोली ” अम्मी जान ! मेरा क्या कसूर है ? तलाक मैंने तो नहीं दिया था । फिर मेरा ही हलाला क्यों ? ”

उसकी सास ने उसे दिलासा देते हुए भी अपनी मजबूरी का हवाला दिया और शरीयत के कानूनों को खुदा का फरमान बताते हुये उस पर अमल करने की सलाह दे डाली ।
खुदा के फरमानों की हुक्मउदूली दोजख की आग में जलने को मजबूर कर देगा । यही वो डर था जिसकी वजह से आखिर सलमा मन मसोसकर हलाला के लिए तैयार हो गयी । वह खुदा को नाराज भी नहीं करना चाहती थी । अशिक्षित लोगों के लिए मुल्ला और पंडितों की कही बात ही ऊपरवाले की मर्जी बन जाती है । सलमा और रहमान भी इसके अपवाद न थे ।

दोपहर के खाने के बाद सलमा टी वी खोलकर बैठ गयी और समाचार देखने लगी । समाचारों में ब्रेकिंग न्यूज आ रहा था ‘ सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगाई ‘ । लगभग खुशी से चीखते हुए सलमा अपनी सास के पास भागी और खींच कर उसे टी वी के सामने खड़ा करते हुए बोली ” देखो अम्मीजान ! देखो ! सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक पर रोक लगा दी है । अब यह गैरकानूनी है । ” और फिर अपनी सास के गले से लिपटते हुए बिलख पड़ी ” अब हमें हलाला नहीं कराना पड़ेगा अम्मीजान ! अब हमें हलाला नहीं कराना पड़ेगा । ”
उसके सास की भी आंखें खुशी से भर आयी थीं । दोनों हाथ ऊपर उठाकर उसने खुदा का शुक्र अदा किया ” या खुदा ! तेरा लाख लाख शुक्र है । ऐन वक्त पर तूने हमारी शान रख ली । ”

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