अनैतिक - १९ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - १९

अगर मै और कुछ कहता तो शायद कशिश रो देती इसीलिए मैंने उसके पास देखते हुए कहा, "देखते है माँ, मुझे नहीं लगता अभी इतने जल्दी फ्लाइट्स को दुसरे देश जाने देगे. उसके चेहरे पर फिर थोड़ी मुस्कान आई, फ़ोन की रिंग बजने लगी..माँ ने फ़ोन उठाया तो रीना की माँ का कॉल था, उसने ये बताने के लिए कॉल लगाया था की वो कल आ रहे है..आज सन्डे था कुछ काम नहीं था, मै रूम में आ गया और गाने लगा कर सुनने लगा, पापा भी उनके रूम में चले गये..माँ कशिश को लेकर मेरे पास आ गयी..

आज तो रविवार है न, आज तो तुझे काम नहीं है..

हाँ माँ? क्यूँ कुछ काम है क्या?

नहीं बस ऐसे ही पूछी..कहकर माँ ने कशिश के बाल खोल दिए माँ मेरे बेड पर मेरे साथ बैठकर थी और कशिश निचे बैठकर ..माँ उसके बाल बनाने लगी, ये देख कर मुझे ख़ुशी हो रही थी. बाद मे वो दोनों बाहर चले गये.. मै अब भी गाने सुन रहा था, मुझे कशिश का मेसेज आया..

जा रहे हो आप?

अभी नहीं पर कभी तो जाना पड़ेगा ही ना..इसमे उदास होने वाली क्या बात है हम रोज बाते करेंगे..

फ़ोन में बाते करने से क्या होता है, आपसे मिली तो ऐसा लगा भगवान ने किसी अपने को भेज दिया..पता नहीं जो मुझे अच्छे लगते है सब मुझ से दूर हो जाते है..

मुझे अभी कुछ भी कहना मुनासिफ नहि लगा इसीलिए मैंने बात को घूमते हुए मझाक में कहा..चलो फिर मेरे साथ..

उसने कहा "काश"...

बस ये बहोत था मुझे समझाने में की अब हमारा रिश्ता कहा तक पहोच गया है..पर मै उसे और दुःख नही देखना चाहता था इसीलिए मैंने कहा..

अच्छा ये बताओ जब मरे दोस्त ने तुम्हे भाभी कहा तुम शरमा क्यूँ गयी थी..

उसका कोई जवब नहीं आया..या शायद इसका जवब उसके पास था ही नहीं..मैंने भी आगे पूछने की कोशिश नहीं की ..इसके बाद हमने ज्यादा बाते नहीं, कल उसे अपने घर जाना था जो की बिलकुल मेरे घर को लग कर था पर हम दोनों के लिए वो ऐसा था जैसे उसका घर कोसो दूर हो..

रात में हमने फिर बाते की

बातो बातो में मैंने उसे पूछा लिया क्या आप मुझे पसंद करती हो?

उसने कहा "जो सवाल आपको दुःख देता हो उसका जवाब ना देना ही अच्छा है"

बाय कहकर मै सो गया..पर शायद वो अब भी जाग रही थी उसे लगा मुझे उसका जवाब सुनकर बुरा लगा पर ऐसा नहीं था मै तो उसे और परेशान नहीं करना चाहता था इसीलिए मैंने आगे कोई बात नहीं की थी..

दुसरे दिन वो अपने घर चली गयी, अब मुझे आये हुए ४ महीने हो गये थे..रोज हमारी बाते होती कभी झगडा, फिर एक दुसरे को मानना बस चल ही रहा था की एक दिन पुलिस की गाड़ी उसके घर के सामने खड़ी थी, मैंने बाहर जाकर देखा तो पापा ने अन्दर बुला लिया. मैंने जब उनको पूछा तो वो बोले बादमे बतात हूँ अभी मुझे रीना के पापा के साथ पुलिस स्टेशन जाना है और वो चले गये..मैंने सोचा रीना से पता कर लेते है पर उसको पूछना भी सही नहीं होता इसीलिए मै पापा के घर आने का वेट करने लगा.

पापा को आते आते शाम हो गयी थी, मै अपने काम में पुछना ही भूल गया था की हुआ क्या है और पिछले २ दिन से कशिश का भी मैसेज नहीं आय था, मुझे लगा शायद उसे कुछ हो न गया हो मै जैसे ही उसके घर जाने के लिए उठा वो दरवाज़े पर खड़ी थी..माँ ने उसे अन्दर बुलाया पता नहीं उन दोनों में क्या बात हुइ, मेरे ऑफिस का कॉल उसी वक़्त आने की वजह से मै सुन नहीं पाया और कॉल ख़तम होने पर बाहर आया तब तक वो जा चुकी थी...

मैंने पापा से पूछा तो वो बोले रोज का ही है निकेत को पुलिस ले गयी थी, इसीलिए पुलिस स्टेशन जान पड़ा..

क्या? इतनी बड़ी बात इतने आराम से कैसे कह सकते है?

माँ ने कहा, बेटा ये रोज का है, आज तूने पहेली बार देखा है इसीलिए तुझे ऐसा लग रहा है..

अब मेरा दिमाग और भी सरकने लगा, पर क्यों ? क्या किया है उसने?

नशे में २ लोगो को मारा है उसने..

फिर अब?

कुछ नहीं उसके पापा ने छुड़ा लिया उसे ...