अनैतिक - १८ suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - १८

जब सब साथ होते तब मुझे कशिश से बात करने में कुछ नहीं लगता पर पता नहीं क्यूँ जब भी हम दोनों अकेले रहते मै उसे से बात ही नही कर सकता था...आज करना चाहता था

मैंने बात शुरू की..पूछना तो बहोत कुछ चाहता था पर मुझे सिर्फ एक ही सवाल का जवाब चाहिए था...

सॉरी, क्या मै कुछ पूछ सकता हूँ?

उसने हाँ में सीर हिला दिया..मैंने टीवी की वॉल्यूम कम कर दी..

मै जानता हूँ की ये आपका निजी मामला है और मुझे पूछने का कोई हक नहीं पर एक दोस्त के नाते पूछना चाहता हूं, क्या निकेत आपको मारता है?

उसने कुछ सोचा और फिर उठ कर जाने लगी..अब मुझमे थोड़ी हिम्मत तो आ ही गयी थी..मैंने पीछे से उसका हात पकड़ा, शायद उसे इसकी उम्मीद नहीं थी. वो मेरी ओर देखी पर गुस्से से नहीं भरी आँखों से। मैंने बिना कुछ सोचे ...उसे अपने सिने से लगा लिया..मै जानता था ये गलत था पर शायद उस वक़्त के लिए ये ही सही था और एक पल के लिए वो भी भूल गयी थी की उसकी शादी हो चुकी है उसने भी मुझे कस के पकड़ लिया...पर जैसे ही उसे कुछ याद आया वो मुझसे दूर हो गयी..मै भी पीछे हट गया पर मेरा सवाल अब भी वही था.

मैंने फिर पूछा,"क्या आप खुश हो उस घर में?

इस बार उसने "ना में सीर हिलाया..

तो फिर आप उसे छोड क्यों नहीं देती? मै पूछने वाला था पर ये सवाल ही गलत था, इसका जवाब मुझे पता ही था ..छोड़ कर जाती कहा...

हम फिर थोड़ी देर चुपचाप बैठ गये और जैसे ही दरवाज़े की आवाज़ आई वो उठकर किचेन में चली गयी..माँ पापा आ गये थे..

जब भी मै घर पर रहता घर में शोर होता रहता इसीलिए पापा ने घर में घुसते हुए पूछा, "अरे, उठ गया तू?और फिर भी इतना सन्नाटा क्यों है भाई...?

कुछ नहीं बस अभी ही उठा हूं..

अच्छा सुन तेरा स्कूल का दोसत प्रदीप मिला था ...मैंने घर पर बुलाया है उसे...आ रहा है अभी..पापा आगे कुछ बोलते उसके पहले ही पीछे से प्रदीप आ गया

क्या भाई इतने दिनों बाद? बस उसने पूछा ही था की उसकी नज़र कशिश पर गयी वो माँ पापा के साथ बैठी थी..उसके बाद जो उसने बोला उसके बाद तो मै उसे जिंदगी भर भी थैंक यूं बोलता तो शायद कम रहता ...उसने कहा

उसने कशिश की ओर देखते हुए कहा, "शादी कर ली तूने और बताया भी नहीं?...हाय भाभी..मै प्रदीप इसके स्कूल का दोस्त..

ये सुनते ही मेरे शरीर के अंग अंग में सनसनी फ़ैल गयी, सबके चेहरे कशिश की ओर, और मुह खुला रह गया... मेरा मन खिल उठा था, और तो और मेरा भाई यही नहीं रुका..उसने आगे जो कहा...भाई वो तो कतई जहर था...उसके इस एक लाइन ने कशिश के और मेरे मन में एक दुसरे के लिए सोयी हुए भावना फिर जगा दी थी...कोई कुछ कहता उसके पहले उसने कह दिया...

अरे तुम दोनों शरमा क्यूँ रहे? वैसे जोड़ी अच्छी है तुम दोनों की...मेरी हिम्मत ही नहीं हुए की नज़रे उठा कर कशिश का चेहरा देखूं पर हाँ मै इतना जरुर जानता था की ये बात पर उसके अन्दर भी प्यार की ज्वाला भड़की तो होगी.....

आगे वो कुछ बोलता कशिश उठ कर जाने लगी...मैंने खुद को होश में लाते हुए बात संभाली और कहा...चल ना रूम में चलकर बात करते है..मुझे भी उसे ये बताना मंजूर नहीं था की वो मेरी पत्नी नहीं है..अच्छा लग रहा था ,शायद उसके मुह से माँ सरस्वती खुद कह रही हो..वैसे भी कहते है ना की कभी कभी जबान पर माँ सरस्वती का निवास होता है.. हम दोनों रूम में आ गये

कब आया तू जर्मनी से? एक कॉल भी नहीं किया तूने.. बड़ा आदमी हो गया तू? भूल गया होगा हमें

बस बस..कितना बोलेगा सुन तो मेरी...मुझे आकर ३-४ महीने हुए है और भाई मैंने तुझे फ़ोन लगाया था पर तेरा फोन बंद आ रहा है

अरे हां यार, सॉरी वो मैंने नंबर बदल दिया अपना

"उल्टा चोर कटवाल को डांटे"..हम दोनों हँसाने लगे

फिर थोड़ी देर मस्ती भरी स्कूल की कॉलेज की बाते हुए उसने रीना के बारे में पूछा, वो जानता था रीना को, मैंने उसे बताया की उसकी शादी हो गई है..थोड़ी देर हमने बाते की फिर वो चला गया

आज हुए काण्ड के बाद मै और कशिश दोनों एक दुसरे से नज़रे मिलाने में हिचकिचा रहे थे. पापा ने न्यूज लगा दी और उस पर बताने लगे की लॉक डाउन अगले महीने खुलेगा.

ये सुनकर मुझे धक्का लग गया जाना तो था ही पर मै जैसे भूल गया था की मुझे इन सबको छोड़ कर जर्मनी जाना होगा..

माँ ने पूछा, " अब कैसा बेटा, जाएगा क्या तू?

हाँ माँ, अगर लॉकडाउन खुलता है और सारी फ्लाइट्स शुरू होती है तो जाना तो पड़ेगा ही...

कशिश का हसता हुआ चेहरा एक पल के लिए झुक गया..शायद अब मै उसकी एक आदत बन गया था जैसे मै उसे देखे बिना नहीं रह सकता था वो भी....