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अनैतिक - ०१ लॉकडाउन

आज लॉकडॉउन खुलने के एक महीने बाद या फिर कहूँ की ६ महीने बाद मै अपनी कर्मभूमि जर्मनी जा रहा हूँ, वैसे इस जर्मनी ने मुझे बहोत कुछ दिया है. नाम, पैसा, प्यार, दोस्त और गाँव वालो की नज़रो में खुद के लिए, पापा के लिए वो इज्जत. मेरे पापा की छाती ५६ की हो जाती जब कोई उन्हें कहता, "आपका बेटा तो जर्मनी में है".

३ साल पहले जब मै कॉलेज पूरी करके जॉब करने इस अन्जान देश में आया था तो पुरे घर में ख़ुशी का माहोल था, मुझे आज भी याद है माँ के आँखों के वो आंसू जो मुझे बार बार कह रहे थे, "रह पायेगा मेरे बिना? पापा ऊपर से भले ही कठोर थे पर मै जानता था अन्दर उन्हें भी दुःख हो रहा होगा, पर क्या करे ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए बहोत कुछ पीछे छोड़ना पड़ता है. खैर ये सब तो थी पुरानी बाते, अब तो कई बार आना जाना हो गया था! आदत हो गयी थी अकेलेपन की, पर कहते न ज़िन्दगी जब कुछ छिनती है तो देती भी बहोत कुछ है, मुझे यहाँ नए दोस्त मिल गये, जिनके आशिर्वाद से मैंने वो सारी चीजे सीखी है जो आज तक नहीं की थी जैसे, सिगरेट पीना, ड्रिंक करना और भी बहोत कुछ...

मेरी किस्मत अच्छी थी की मै लॉकडाउन लगने के २-४ दिन पहले ही घर आ गया था. पापा ने जैसे ही कोरोना की न्यूज सुनी मुझे तुरंत घर बुला लिया, हाँ टिकेट बुक करने में, छुट्टी मिलने में थोड़ी दिक्कत हुइ और सच कहूँ तो मेरी आने की इच्छा बिल्कुल नहीं थी, मै 8-10 महीने पहले ही तो छुट्टी लेकर घर आया था अब फिर... पर जैसे जैसे हालात बेकाबू होते गए मुझे लगा शायद पापा का फैसला सही था।। आज वापस जाते हुए, नयी यादे साथ लेकर जा रहा हूँ उसमे से स्पेशल थी "कशिश की यादे". फ्लाइट में बैठे हुए जब मै पिछले ५ महीने में घटी घटनाओ को याद कर रहा था तो बस एक सवाल के अलावा कुछ और सोचने को मानो दिमाग तयार ही नहीं था ...सोचते सोचते पता ही नहीं चला कभी आँख लगी गयी, मेरी नींद खुली तो घर से ४ और मेरे दोस्त फ़िरोज़ के ५ मिस कॉल आये हुए थे, बस फ्लाइट टेकऑफ हुए यही कोई १-२ घंटे हुए होगे. मैंने घर पर और फिर फ़िरोज़ से बात की और मेरे साइड सीट पर बैठे लड़के से कहा भाई थोड़ा पीछे हट जाओ मुझे वॉशरूम जाना है ..देखने से ही पता चल रहा था ये भाई अपने देश का है, एक अलग ही खुशी मिलती है जब परदेश में कोई अपना मिले!! मै वापस अपनी सीट पर आया और सोचने लगा आराम करने का अच्छा वक़्त मिल गया तो पूरा फायदा उठान ही ठीक रहेगा वैसे भी जाने के बाद तो ऑफिस शुरु हो जायेगा, मैंने अपना मोबाइल अपने जेब में रख दिया और सीट एडजस्ट करने लगा तभी मेरे बाजू सीट पर बैठे लड़के ने कहा, "

हाय" मेरा नाम जॉन है और आपका?

मेरा नाम रोहन है, मैंने कहा

अच्छा, जर्मनी जा रहे हो आप?

हां, पर आपको कैसे पता चला?

आप जब आपके दोस्त से कॉल पर बात कर रहे थे तब सुना मैंने...वैसे मै भी जर्मनी ही जा रहा हूँ , जॉब करते हो?

मैंने २ मिनिट कुछ सोचा और फिर कहा, "नहीं घुमने जा रहा हूँ फिर उसका चेहरा देख कर मैं थोडा मुस्कुराया और कहा ऐसे किसी की बाते नहीं सुनना चाहिए, वैसे अगर आप कहें तो मै मेरी सूटकेस दिखा सकता हूं...

उसने कहा, क्यों?

नहीं आप इतने सवाल पूछ रहे हो जैसे पुलिस किसी चोर का इन्तोरीगेशन करती है...मैंने मुस्कुराते हुए कहा

शायद मेरी बात उसे बुरी लगी थी, पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था, पूरी रात जागने के बाद अब थोड़ी सोने की कोशिश कर रहा था....

उसने सिर्फ सॉरी कहा और फिर आंख बंद कर ली

पर मुझे लगा मैंने शायद कुछ गलत बोल दिया इसीलिए मैंने उसे कहा सॉरी रात की नींद नहीं थी इसीलिए थोड़ा... मुझे बीच में काटते हुए उसने कहा,

"कोई बात नहीं, मै समझ सकता हूं, घर से दूर जाते वक़्त, चलो कोई बात नहीं होता है ऐसा ...फिर हमारी बात शुरू हुई और मुझे पता चला वो भी दिल्ली में ही रहता है, मेरे घर से बस थोड़ी ही दुरी पर, ओर तो ओर जॉब भी बिल्कुल मेरे बाजू वाले कंपनी में ही करता है , हमने थोड़ी काम की बाते की, फिर एक दूसरे के परिवार के बारे मे बताने लगे! उसने बताया कि उसके परिवार में कुल ६ लोग रहते है, वो सगाई करने इंडिया आया था फिर लॉकडाउन लग गया और ईधर ही फस गया. शायद वो अपनी मंगेतर की याद कर रहा था या फिर बार बार बातो में अपनी हात की रिंग दिखा कर ये बताना चाह रहा था कि वो खुश है अपनी नयी ज़िन्दगी से, पर मुझे नींद लग रही थी मैंने बात ख़तम करनी चाही पर उसके उस एक सवाल ने मानो मेरी नींद ही क्या चेहरे की हँसी और दिल की खुशी सब भुला दी थी, वो सवाल था, "क्या आप भी किसी से प्यार करते हो? शादी हुई है आपकी?" बिना कुछ कहे मैंने बस मुस्कुरा दिया और सीट पीछे खींच कर आंखें बंद कर ली.. ना जाने कैसे आंखें धीरे धीरे गिली होने लगी, शायद किसी को याद करने की सज़ा थी...या फिर यादो का मीठा एहसास..

"मेरे मन ने मुझे अतीत के कुछ पल याद करा दिए ठीक ५ महीने पहले जब मै घर गया था...

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