अनैतिक - २० suraj sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनैतिक - २०

मैंने पापा की बाते सुनी पर मेरा मन अब भी बैचेन था, तुरंत कशिश को मेसेज भेजा

हाउ आर यू?

ठीक हूँ मै..

क्या हुआ था?

कुछ नहीं, रोज का है..झगडा करना फिर जेल जाना

तुम्हे डर नहीं लगता ये सब देख कर?

पहले लगता था पर अब आदत हो गयी

कशिश की बातो ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की कैसे इन्सान जब किसी डर को पार कर लेता है तो ज़िन्दगी में उसे फिर किसी चीज से डर नहीं लगता, मतलब ऋतिक रोशन जो कहता है वो सही है, "डर के आगे जीत है" और कशिश की ज़िन्दगी तो वैसे भी बचपन से ये सब के बिच ही गुजरी, पर मेरे लिए सब नया था, हाँ सच में नया था..और पुलिस को देख कर तो मुझे आज भी उतना ही डर लगता है जितना बचपन में लगता था..उसी रात मैंने उनके घर से झगडे की आवाज़े सुनी थी ..रात का वक़्त था, रात की ख़ामोशी ने पुरे गल्ली को शांत किया हुआ था, ये ही कोई १०-११ बजे होगे, मेरा घर गल्ली में आखरी था और हमारे घर के बाजु में कशिश का घर था, उसके बाजु में मंदिर फिर थोड़ी खुली जगह और फिर सड़क, हम दोनों घर के सामने छोट सा पार्क था. बचपन में हम अक्सर उस पार्क में खेलने जाया करते थे, तो उनकी घर की आवाज़े हमें अच्छी तरह सुनाई दे रही थी..

निकेत ने कहा "मुझे नहीं रहना तुम्हारे साथ, जा रहा हूं मै घर छोडके"

अंकल- कहा जायेगा तू, २ पैसे तो कमाता है नहीं, तुझे क्या लगता है घर छोडके जाने से हमें कुछ पता नहीं चलेगा, २ दिन रहके दिखा हमारे बिना..

आंटी की धीरे धीरे रोने की आवाज़े आ रही थी...

रह लूँगा मै, कशिश को भी मेरे साथ ले जा रहा हूँ..

नहीं, वो कही नही जाएगी..जाना है तो तू अकेला जा

निकेत ने कहा -देख लूँगा तुम सबको...और उसने जोर से कुछ फेका, शीशे के टूटने की आवाज़े आई...

मै अन्दर जाने के लिए मुडा की मुझे अंकल की कार निकलने की आवाज़ आई, उन्होंने मुझे घर में जाते हुए देख लिया था,

रोनी बेटा जल्दी आ, अंकल के बुलाने पर मै भागते हुए गया, और उसके बाद जो मैंने देखा ..मन में आया की क़त्ल कर दू उस कमीने निकेत का पर उस वक़्त मै सिर्फ कशिश को बचाना चाहता था, मैंने देखा कशिश के पैर में कांच की बोतल के टुकड़े घुस गये थे, शायद बीयर की बोतल थी, और खून पानी की तरह बह रहा था, अंकल कार गेट से बहार निकाल रहे थे, आंटी कशिश को धीरे धीरे चला कर ला रही थी पर, पैर में कांच घुसने के वजह से उस से चलना नहीं हो रहा था...तब तक मेरे माँ पापा भी बाहर आ गये थे, मै भागते हुए गया और कशिश को चलने में मदद करने लगा...पर वो नहीं चल पा रही थी उस वक्त मैंने किसीको नहीं देखा मेरी नज़रे सिर्फ कशिश पर थी, ना जाने क्यूँ पर मेरी आँखों में पानी आ गया और कशिश मुझे देख मुस्कुरा रही थी..मुझे ताजुब हुआ इतने दर्द में भी कोई इन्सान कैसे मुस्कुरा सकता है, पर ये दर्द उस दर्द के सामने कुछ भी नहीं था जो उसने जिंदगी भर साहा था, किसी और ने मुझे रोते हुए देखा नहीं, रात का वक्त था अँधेरा था ..

कशिश बिलकुल चल नहीं पा रही थी, मैंने सबके सामने उसे दोनों हातो से उठा लिया, तब तक अंकल ने कार गेट के बाहर निकाल लिए थे, मै जल्दी से कशिश को लेकर पीछे वाले सीट पर बैठ गया, हम हॉस्पिटल के लिए निकल गये , पापा पीछे से आंटी और मम्मी को लेकर आ रहे थे पर लॉक डाउन के वजह से इतने लोग नहीं जा सकते थे, इसीलिए अंकल ने उन्हें आने से मना कर दिया, हम हॉस्पिटल पहोचे कशिश को स्टेचर पर अंदर ले जाया गया, हॉस्पिटल छोटा था, कशिश को उठाने के वजह से मेरे शर्ट पर खून लग गया था..तभी पापा का मुझे कॉल आया, मैंने उन्हें बताया की सब ठीक है कोई डरने वाली बात नहीं है, थोड़े देर में आते है..

थोड़ी देर बात डॉक्टर अंकल के पास आकर बोला,

"डरने की बात नहीं है, माइनर इंजुरी है, घाव भरने में वक़्त लगेगा तब तक इन्हे बिलकुल चलने मत देना..दोनों पैरो में जक्म घहरे है, और मैंने डॉक्टर से पर्ची लेकर मेडिकल से दवाई ली और फिर हम घर जाने के लिए निकले इस सबके बिच हमें घर आते आते १२ बज गये थे