चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 56 Suraj Prakash द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 56

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

56

फिज़ां में एक बार फिर युद्ध के काले बादल मंडरा रहे थे। नाज़ी अपनी मुहिम पर निकल चुके थे। हम कितनी जल्दी पहले विश्व युद्ध की विभीषिका और चार वर्ष के मृत्यु के तांडव को भूल गये? कितनी जल्दी हम आदमियों के लाशों के ढेरों को, लाशों से भरी पेटियों को, हाथ कटे, पांव कटे, अंधे हो गये, टूटे जबड़ों वाले और अंग भंग हो गये विकृत लूले लंगड़े लोगों को भूल गये? और जो मारे नहीं गये थे या घायल नहीं हुए थे, वे भी कहां बच पाये थे? कितने ही लोगों के दिमाग चल गये थे। ग्रीक लोक कथाओं में आने वाले उस काल्पनिक मानवभक्षी मिनोटॉर की तरह युद्ध युवा पीड़ी को निगल गया था और बूढ़े, सनकी लोग जीवन जीने के लिए अभिशप्त बाकी रह गये थे। लेकिन हम हमारी स्मृति बहुत कमज़ोर होती है और हम युद्ध का गुणगान लोकप्रिय टिन पैन ऐले के गीतों के साथ करने लगते हैं

आप उन्हें कैसे उलझाये रखेंगे खेतों में

जब देख ली हों उन्होंने पारी

और इसी तरह की बातें। कुछ लोगों का यह कहना था कि युद्ध कई मायनों में अच्छा होता है। इससे उद्योग ध्ंाधे फैलते हैं, उन्नत तकनीकें सामने आती हैं और लोगों को रोज़गार मिलता है। जब हम स्टॉक एक्सचेंज में लाखों डॉलर कमाने की बात सोच रहे होंगे तो हम उन लाखों लोगों के बारे में कैसे सोचेंगे जो मारे जा रहे हैं। जब बाज़ार एक दम ऊपर जा रहा था तो हर्स्ट के एग्जामिनर अखबार के आर्थर ब्रिसबेन ने कहा था,'युनाइटेड स्टेटस् में स्टील के भाव में पांच सौ डॉलर प्रति शेयर का उछाल आयेगा।' जबकि हुआ ये कि सट्टेबाजों ने ही खिड़कियों से छलांगें लगायीं।

और अब एक और युद्ध की सुगबुगाहट हो रही थी और मैं पॉलेट के लिए एक कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था; लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था। ऐसे वक्त में मैं औरताना चोंचलेबाजियों में अपने आपको झोंक ही कैसे सकता था या रोमांस के बारे में सोच सकता था या प्रेम की समस्याओं के बारे में सोच ही कैसे सकता था जब सबसे खतरनाक विषम आदमी - एडोल्फ हिटलर द्वारा पूरे माहौल में पागलपन आतंक मचाये हुए हो?

1937 में एलेक्जेंडर कोर्डा ने सुझाव दिया था कि मैं गलत पहचान को ले कर हिटलर पर कोई कहानी बनाऊं। हिटलर की भी वैसी ही मूंछें हों जैसी कि ट्रैम्प की होती हैं: मैं ही दोनों भूमिकाएंं करूं, उन्होंने कहा था। उस वक्त तो मैंने इस विचार के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचा था, लेकिन अब ये मामला गरम था और मैं फिर से काम शुरू करने के लिए बहुत बेचैन था। तभी अचानक मुझे कुछ सूझा। बेशक!! हिटलर के रूप में मैं भीड़ के सामने कुछ भी बकवास करते हुए अपनी बात कह सकता हूं और ट्रैम्प के रूप में मैं खामोश ही बना रहूंगा या कम ही बोलूंगा। इस तरह से हिटलर की कहानी प्रहसन और मूक अभिनय के लिए एक मौका होती। इस विचार के साथ ही मैं लपक कर वापिस हॉलीवुड वापिस जाना चाहता था ताकि पटकथा पर काम शुरू कर सकूं। कहानी विकसित करने में मुझे दो बरस लग गये।

मैंने शुरुआती दृश्यों के बारे में सोचा। सबसे पहले दृश्य में पहले विश्व युद्ध की लड़ाई में बिग बार्था और उसकी पिचहत्तर मील तक की मार करने की क्षमता को दिखाया जाता कि किस तरह से जर्मन उसके बलबूते पर मित्र राष्ट्रों को नेस्तनाबूद करने का इरादा रखते हैं। इससे वे रीम्स कैथेडरल को नष्ट करने जा रहे हैं लेकिन निशाना चूक जाता है और इसके बजाये वे साथ ही बनी पानी की टंकी नष्ट कर बैठते हैं।

पॉलेट फिल्म में काम करने वाली थी और उसने पिछले दो बरसों में पैरामाउंट के साथ काम करते हुए खूब सफलता पायी थी। हालांकि हमारे संबंधों में दरार आ गयी थी, फिर भी हम दोस्त थे और अभी भी शादीशुदा चल रहे थे। लेकिन पॉलेट अपने आप में अजूबा थी। सनकों का पिटारा। सामने वाले को हैरानी ही होती अगर वह इससे ज्यादा गलत वक्त पर न आती। एक दिन वह स्टूडियो में मेरे ड्रेसिंग रूम में आयी। उसके साथ एक सींकिया सा, दर्जी के अच्छे सिले कपड़ों में एक शख्स था। लगता था, उसे बिजूके की तरह कपड़े पहना दिये गये हैं। मैं दिन भर अपनी पटकथा से जूझता रहा था और उनके इस तरह से व्यवधान डालने से थोड़ा हैरान हुआ था। लेकिन पॉलेट ने कहा कि बात बेहद ज़रूरी है; तब वह बैठ गयी और साथ आये आदमी को भी आमंत्रित किया कि वह भी कुर्सी खींच कर उसे पास बैठ जाये।

'ये मेरे एजेंट हैं।' पॉलेट ने कहा।

इसके बाद पॉलेट ने उस आदमी की तरफ इशारा किया कि वह आगे की बात करे। वह पढ़ाये हुए तोते की तरह तेजी से बोलने लगा, मानो अपने ही शब्दों को आनंद ले रहा हो,'आप जानते ही हैं मिस्टर चैप्लिन, आप माडर्न टाइम्स के बाद से पॉलेट को दो हज़ार पाँच सौ डॉलर प्रति सप्ताह दे रहे हैं लेकिन जो बात हमने आपसे अब तक तय नहीं की है, मिस्टर चैप्लिन, वो ये है कि उनके बिल तैयार करने में, ये सभी पोस्टरों पर पिचहत्तर प्रतिशत होनी चाहिये-' इससे आगे वह बात नहीं कर पाया।

'ये सब क्या बकवास है?' मैं चिल्लाया,'मुझे मत सिखाओ कि उसे कितनी राशि मिलनी चाहिये!! उसका हित तुम्हारी तुलना में मेरे दिल में कहीं ज्यादा है! दफा हो जाओ यहां से, तुम दोनों के दोनों।'

द ग्रेट डिक्टेटर बनाने के अधबीच में ही मुझे युनाइटेड आर्टिस्टस् से चेतावनी भरे संदेश आने शुरू हो गये। उन्हें ऐसे संकेत मिल रहे थे कि मैं सेंसरबोर्ड के झमेलों में फंस जाऊंगा।

इसके अलावा, इंगलिश ऑफिस भी हिटलर विरोधी पिक्चर के बारे में चिंतित था और उसे इस बात का शक था कि क्या इसे ब्रिटेन में दिखाया जा सकेगा। लेकिन मेरा पक्का फैसला था कि मुझे आगे काम पूरा करना है क्योंकि हिटलर पर हँसा ही जाना चाहिये। अगर मुझे जर्मन यातना शिविरों के वास्तविक आतंक के बारे में पता होता तो मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बना ही न पाता। मैं नाज़ियों के अमानवीय पागलपन का मज़ाक उड़ा ही न पाता। अलबत्ता, ये मेरा पक्का फैसला था कि शुद्ध रक्त वाली जाति के बारे में उनकी रहस्यमयी सोच का मज़ाक उड़ाया ही जाना चाहिये। मानो इस तरह की कोई जाति कभी आस्ट्रेलियाई मूल जनजातियों से बाहर भी अस्तित्व में रही हो!

जिस वक्त मैं द ग्रेट डिक्टेटर बना रहा था, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस से होते हुए कैलिफोर्निया आये। वे ऑक्सफोर्ड से हाल ही में आये एक नौजवान के साथ डिनर पर आये थे। मैं उस नौजवान का नाम भूल रहा हूं लेकिन उसका वो जुमला मुझे अभी भी याद है जो उसने उस शाम कहा था। उसका कहना था,`जिस तरह से जर्मनी में और अन्यत्र चीज़ें घट रही हैं, मुझे नहीं लगता कि मैं पांच बरस से ज्यादा जी पाऊंगा।' सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस में तथ्यों की जानकारी एकत्र करने के मिशन पर गये हुए थे और उन्होंने वहां पर जो कुछ देखा था, उससे खासे प्रभावित हुए थे। उन्होंने रूस में चल रही बड़ी बड़ी परियोजनाओं के बारे में बताया और साथ में वहां की समस्याओं के बारे में भी बताया। वे ये सोच कर चल रहे थे कि युद्ध से बचा नहीं जा सकेगा।

सबसे ज्यादा चिंताजनक पत्र न्यू यार्क ऑफिस से आये जिनमें मुझसे अनुरोध किया गया था कि मैं इस फिल्म को न ही बनाऊं। उन्होंने तो घोषणा तक कर डाली कि ये फिल्म अमेरिका और इंगलैंड में कभी भी नहीं दिखायी जायेगी। लेकिन मैं तो ठान ही चुका था कि फिल्म तो बन कर ही रहेगी भले ही मुझे खुद ही हॉल किराये पर ले कर इसका प्रदर्शन क्यों न करना पड़े।

इससे पहले कि मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म पूरी कर पाता, इंगलैंड ने नाज़ियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। मैं कैटैलिना में नाव पर सवार अपना सप्ताहांत मना रहा था जिस वक्त मैंने रेडियो पर ये हताशाजनक खबर सुनी। शुरू शुरू में सभी मोर्चों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। हमने कहा,`जर्मन कभी भी मैगिनोट लाइन को तोड़ नहीं पायेंगे।' और तभी अचानक महाआतंक शुरू हो गया। बेल्जियम में विजय, मैगिनोट लाइन का ढहना, डनकिर्क के नंगे और हौलनाक तथ्य - और फ्रांस पर कब्जा कर लिया गया। खबरें जो थीं, वे और ज्यादा दिल दहलाने वाली होती जा रही थीं। इंगलैंड लड़ तो रहा था लेकिन उसकी पीठ दीवार से सटी हुई थी। अब न्यू यार्क तार पर तार भेजे जा रहा था,'अपनी फिल्म जल्दी पूरी करो, हर आदमी उसकी राह देख रहा है।'

द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बनाना मुश्किल काम था; इसके लिए मिनिएचर मॉडलों की और प्रापर्टीज़ की ज़रूरत थी। इन्हें तैयार करने में ही एक बरस का वक्त लग गया। इन तरकीबों के बिना फिल्म की लागत पांच गुना बढ़ जाती। अलबत्ता, मैं कैमरा घुमाने से पहले ही 500,000 डॉलर खर्च कर चुका था।

तब श्रीमान हिटलर महाशय ने रूस पर हमला करने का फैसला किया! ये इस बात का सबूत था कि उसका अपरिहार्य पागलपन पैर फैला चुका है। अमेरिका अभी तक युद्ध में शामिल नहीं हुआ था, लेकिन अमेरिका और इंगलैंड, दोनों जगह बहुत राहत महसूस की जा रही थी।

द डिक्टेटर पूरी होने वाली थी कि तभी डगलस फेयरबैंक्स और उनकी पत्नी सिल्विया हमसे मिलने के लिए लोकेशन पर आये। डगलस ने पिछले पांच बरस से कोई काम नहीं किया था और मेरी उनसे बहुत कम ही मुलाकातें हुई थीं। कारण ये भी रहा कि वे इंगलैंड की और वहां से यात्राएंं करते रहे। मुझे लगा कि उनकी उम्र थोड़ी बढ़ गयी है, वे थोड़े मोटे हो गये हैं और विचारों में खोये खोये लगते हैं। इसके बावजूद वे वही उत्साही डगलस थे। हम जब एक दृश्य की शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने छत फाड़ ठहाका लगाया। 'मैं इसे देखने के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता,' वे कहने लगे।
डगलस लगभग एक घंटे तक रुके रहे। जब वे जा रहे थे तो मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा। मैं देख रहा था कि वे चढ़ाई चढ़ते हुए अपनी पत्नी की मदद कर रहे थे। और जब वे फुटपाथ पर चले गये तो हमारे बीच दूरी बढ़ती गयी, मुझे अचानक उदासी ने घेर लिया। डगलस मुड़े तो मैंने हाथ हिलाया। जवाब में उन्होंने भी हाथ हिलाया। यही आखिरी बार थी जब मैंने उन्हें देखा था। एक महीने बाद डगलस जूनियर ने फोन करके बताया कि उसके पिता पिछली रात दिल का दौरा पड़ने के कारण गुज़र गये। ये मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का था क्योंकि वे जीवन से बहुत नज़दीकी नाता रखते थे।

मैं डगलस की कमी महसूस करता हूं। मैं उनके उत्साह की ऊष्मा और आकर्षण की कमी महसूस करता हूं। मैं टेलीफोन पर उनकी दोस्ताना आवाज़ की कमी महसूस करता हूं। यह आवाज़ उदास और अकेले रविवारों की सुबह मुझे फोन किया करती थी: 'चार्ली, लंच के लिए आ रहे हो ना!! उसके बाद तैराकी, और उसके बाद डिनर, और फिर, पिक्चर देखेंगे?' हां, मैं उनकी जानदार दोस्ती की कमी महसूस करता हूं।

किन आदमियों के समाज से मैं अपने आपको जोड़ना चाहूंगा? मेरा ख्याल है, मेरा अपना व्यवसाय ही मेरी पसंद होनी चाहिये। इसके बावजूद डगलस ही एक मात्र ऐसे अभिनेता थे जिनसे मैंने दोस्ती की। विभिन्न हॉलीवुड पार्टियों में सितारों से मिलने के बाद मैं संदेह से भरा हुआ ही बाहर आया हूं। इसका कारण शायद ये हो सकता है कि हम जैसे बहुत सारे थे। वहां का माहौल दोस्ताना होने के बजाये चुनौतीपूर्ण होता था। और होता ये था कि अपनी ओर खास तौर पर ध्यान खींचने के लिए आदमी को बुफे के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। नहीं, सितारे आपस में बहुत कम ऊष्मा या रोशनी देते हैं।

लेखक बहुत अच्छे लोग होते हैं लेकिन वे देने में कंजूसी बरतते हैं; वे जो कुछ भी जानते हैं, वे शायद ही दूसरों के बीच बांटते हों। उनमें से ज्यादातर अपने ज्ञान को अपनी किताबों की जिल्दों के भीतर रखते हैं। हो सकता है कि वैज्ञानिक बहुत अच्छी कम्पनी देते हों, लेकिन उनकी मौजूदगी मात्र से ड्राइंगरूम में मौजूद हम अन्य सभी मानसिक रूप से विक्षिप्त महसूस करने लगते हैं। पेंटर अपने आप में इस मायने में बोर होते हैं कि वे आपको इस बात का विश्वास दिला कर ही छोड़ेंगे कि वे पेंटर की तुलना में बड़े दार्शनिक हैं। निश्चित रूप से कवि बेहतरीन श्रेणी में आते हैं क्योंके व्यक्ति के रूप में वे खुशमिजाज, सहनशक्ति से लैस और बहुत ही शानदार कम्पनी होते हैं। लेकिन मेरा ख्याल है कि कुल मिला कर संगीतकार किसी भी अन्य वर्ग की तुलना में अधिक सहयोगी होते हैं। किसी सिम्फनी आर्केस्ट्रा को देखने से ज्यादा ऊष्मा और गति देने वाली और कोई चीज़ नहीं है। उनके म्यूजिक स्टैंड की रूमानी लाइटें, टÎून अप करना और जब कन्डक्टर प्रवेश करता है तो अचानक छा जाने वाला सन्नाटा, ये बातें सामाजिक, सहयोगी भावना को ही दर्शाती हैं। मुझे याद है, होरोविट्ज़, पिआनोवादक मेरे घर पर खाना खा रहे थे, और मेहमान दुनिया के हालात पर बातचीत कर रहे थे, और बता रहे थे कि ये मंदी और बेरोज़गारी दुनिया में एक तरह का आध्यात्मिक नवजागरण लायेंगे। अचानक ही वे उठे और बोले,'इस बातचीत को सुन कर मेरी इच्छा हो रही है कि मैं पिआनो बजाऊं।' बेशक किसी ने भी इस पर एतराज़ नहीं किया और उन्होंने शूमैन का सोनाटा नम्बर 2 बजाया। मुझे शक है कि कभी इसे इससे बेहतर तरीके से बजाया गया होगा।

युद्ध शुरू होने से बस, कुछ ही दिन पहले मैंने उनकी पत्नी, टोस्कानिनी की बेटी के साथ खाना खाया। रशमनीनोफ और बार्बीरोली भी वहीं पर थे। रशमनीनोफ थोड़े अजीब से दिखने वाले शख्स थे। उनमें सौन्दर्य और साधक तत्व था। ये डिनर बेहद आत्मीय माहौल में था और वहां पर सिर्फ हम पांच ही थे।

ऐसा लगता है कि जब भी कला की चर्चा होती है, मैं हर बार इसकी अलग ही व्याख्या करता हूं। ऐसा क्यों न हो? उस शाम मैंने कहा था कि कला कौशलपूर्ण तकनीक में इस्तेमाल की जाने वाली अतिरिक्त संवेदना है। किसी ने तब विषय को धर्म की तरफ मोड़ दिया। तब मैंने स्वीकार किया कि मैं विश्वास करने वालों में से नहीं हूं। रशमनीनोफ ने तुरंत टोका,'तो क्या आपके पास बिना धर्म के कला हो सकती है?'

मैं एक पल के लिए सिटपिटा गया। 'मुझे नहीं लगता कि हम एक ही विषय के बारे में बात कर रहे हैं,' मैंने कहा,'धर्म की मेरी संकल्पना किसी हठधर्मिता में विश्वास करना है और कला विश्वास से कहीं अधिक भावना होती है।'

'यही बात धर्म के साथ भी है,' उन्होंने जवाब दिया। इसके बाद तो मैं चुप ही हो गया।

मेरे घर पर खाना खाते हुए इगोर स्ट्राविन्सकी ने सुझाव दिया कि हम मिल कर एक फिल्म बनायें। मैंने कहानी बुनी। मैंने कहा कि ये अतियथार्थवादी होनी चाहिये - एक ढहता हुआ नाइट क्लब है और उसमें डांस फ्लोर के चारों तरफ मेजें लगी हुई हैं। और हरेक मेज पर समूह और जोड़े बैठे हैं जो सांसारिक विश्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक मेज पर लालच, दूसरी पर पाखंड, एक अन्य मेज पर बेरहमी हैं। जो फ्लोर शो है वह भावनाओं का खेल है और जबकि सबके त्राता को सूली पर चढ़ाया जा रहा है, सब के सब उदासीन हो कर देख रहे हैं। कोई खाने का आर्डर दे रहा है तो कोई धंधे की बात कर रहा है। बाकी लोग भी बहुत कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भीड़, उच्च पादरी और पाखंडी सूली पर अपनी मुट्ठियां ताने चिल्ला रहे हैं,'अगर आप ईश्वर की संतान हैं तो नीचे आइये और अपने आप को बचाइये।' पास ही की एक मेज पर कारोबारी लोगों का एक समूह उत्तेजना में एक बड़े सौदे की बात कर रहा है। एक आदमी नर्वस हो कर अपनी सिगरेट पर झुका है और त्राता की तरफ देख रहा है और परमात्मा की दिशा में, ख्यालों में खोये हुए धूंआ छोड़ रहा है।

एक अन्य मेज पर एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ बैठा मीनू देख रहा है। वह ऊपर देखती है और फिर फ्लोर से अपनी कुर्सी पीछे सरका देती है,'मैं इस बात को समझ नहीं पाती कि लोग यहां आते ही क्यों हैं?' वह बेचैन हो कर कहती है,'यहां दम घुटता है।'

'ये अच्छा मनोरंजन है।' व्यापारी कहता है। यहां शो शुरू करने से पहले ये जगह दिवालिया थी। अब वे मुसीबत से बाहर निकल आये हैं।'

'मेरा ख्याल है ये धर्मविरोधी है।'

'इससे बहुत भला होता है,' व्यापारी ने कहा,'जो लोग कभी भी किसी गिरजा घर के अंदर नहीं गये, यहां आते हैं और उन्हें ईसाईयत की कहानी पता चलती है।'

जैसे जैसे शो आगे बढ़ता है, एक शराबी, शराब के नशे में एक अलग ही धरातल पर उड़ रहा है। वह अकेले बैठा हुआ है और पहले वह रोना और फिर शोर मचाना शुरू कर देता है,'देखो, वे लोग उन्हें सूली पर चढ़ा रहे हैं, और किसी को परवाह ही नहीं है।' वह अपने पैरों पर लड़खड़ाता है और अपील करने की मुद्रा में अपने हाथ सूली की तरफ बढ़ा देता है। पास ही बैठी एक मंत्री की बीवी वेटर से शिकायत करती है और शराबी को उस जगह से बाहर ले जाया जाता है। वह अभी भी रो रहा है और विरोध कर रहा है,'देखो, किसी को परवाह ही नहीं है, कितने शानदार ईसाई हैं आप लोग!!'

'आप देखिये,' मैंने स्ट्राविन्स्की से कहा,'वे उसे उठा कर बाहर फेंक देते हैं क्योंकि वह शो का मज़ा खराब कर रहा है।' मैंने उन्हें समझाया कि नाइट क्लब के डांस फ्लोर पर भावना के खेल को डालने का अर्थ ये दिखाना था कि ईसाईयत के प्रदर्शन में दुनिया कितनी पागल और दकियानूसी बन गयी है।

महाशय का चेहरा बहुत गम्भीर हो गया,'लेकिन ये तो बहुत भयानक है,' कहा उन्होंने।

मैं थोड़ा हैरान और कुछ हद तक परेशान भी हुआ।

'ऐसा है क्या?' पूछा मैंने,'मेरी मंशा ऐसा करने की कत्तई नहीं थी। मैं तो ये सोच रहा था कि ये ईसाईयत के प्रति दुनिया के नज़रिये की आलोचना है - शायद कहानी सुनाते समय मैं कहीं गलती कर गया और बात को साफ नहीं कर पाया।' और इस तरह से इस विषय को छोड़ ही दिया गया। लेकिन कई हफ्ते बाद स्ट्राविन्स्की ने यह जानने के लिए पत्र लिखा कि क्या मैं अभी भी उनके साथ मिल कर फिल्म बनाने का विचार रखता हूं। अलबत्ता, मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया था और मैं अपनी खुद की फिल्म बनाने में ज्यादा रुचि लेने लगा।

हैन्स एस्लर शोनबर्ग को मेरे स्टूडियो में लाये। वे स्पष्टवादी और रूखे आदमी थे। मैं उनके संगीत का प्रशंसक था और उन्हें मैं लॉस एंजेल्स में टेनिस टूर्नामेंटों में सफेद कैप और टीशर्ट पहने खुली सीटों पर अकेले बैठे अक्सर देखा था। मेरी फिल्म माडर्न टाइम्स देखने के बाद उन्होंने मुझे बताया था कि उन्हें कॉमेडी तो अच्छी लगी थी लेकिन मेरा संगीत बहुत खराब था। मैं उनसे आंशिक रूप से सहमत था। संगीत के बारे में चर्चा करते समय उन्होंने एक जुमला कहा था जो शाश्वत था: 'मैं आवाज़ें पसंद करता हूं, खूबसूरत आवाज़ें।'

हैन्स एस्लर ने इस महान व्यक्ति के बारे में एक मज़ेदार किस्सा सुनाया था। हैन्स उनके पास हार्मोनी सीखने जाया करते थे। उन्हें कड़ाके की ठंड में, जब बर्फ पड़ रही होती थी, पांच मील चल कर जाना पड़ता था ताकि वे आठ बजे अपने गुरू से संगीत का पाठ पढ़ सकें। शोनबर्ग, जो गंजेपन की ओर बढ़ रहे थे, पिआनो पर बैठ जाते जबकि हैन्स उनके कंधे के पीछे खड़े हो जाते और संगीत का पाठ पढ़ते रहते और सीटी बजाते रहते। 'नौजवान' गुरूजी ने कहा,'सीटी मत बजाओ, तुम्हारी बर्फीली सांस मेरे सिर पर बहुत ठंडी लग रही है।'