सूरज प्रकाश की 10 चर्चित कहानियाँ- सूरज प्रकाश राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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सूरज प्रकाश की 10 चर्चित कहानियाँ- सूरज प्रकाश

कई बार किसी का परिपक्व एवं बहुचर्चित लेखन पढ़ने को मिल जाता है कि पढ़ने के बाद आप निशब्द हो..असमंजस एवं संकोच में पड़ जाते हैं कि इस पर क्या लिखें और क्या ना लिखें। उस पर बात करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा लगने लगता है।

दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ प्रसिद्ध साहित्यकार सूरज प्रकाश जी की चर्चित कहानियों के उस संग्रह की जो उन्हीं के नाम याने के "सूरज प्रकाश की दस चर्चित कहानियाँ" के नाम से आया है। अब जब नाम खुद ही बयां कर रहा है तो ज़ाहिर है कि इस संग्रह में उनकी वे कहानियाँ हैं जो पहले भी अनेक जगहों और संकलनों में चर्चा प्राप्त कर..अपनी महत्ता जता चुकी हैं।

धाराप्रवाह लेखन से सुसज्जित उनकी कहानियों के किरदार बेशक आम मध्यमवर्गीय जीवन से ही लिए गए हैं लेकिन हर कहानी का ट्रीटमेंट अपने आप में अलग..अनोखा और पाठक की उत्सुकता जगाने में पूरी तरह सक्षम है। कहानियाँ कुछ लंबी होने के बावजूद अपनी पकड़ बनाए रखती हैं कि पाठक आसानी से उनके अंत तक..बिना बेसब्र हुए आराम से पहुँच जाता है।

इस संकलन की एक कहानी में टेलीफोन विभाग की ग़लती से लगे रॉंग नम्बर और उस पर किसी महिला से हुई शुरुआती बातचीत में अपनी उम्र और काम को ले कर बोले गए झूठ को ना चाहते हुए भी कहानी का मुख्य किरदार, अंत तक निभाते चला जाना चाहता है कि इन छोटे छोटे झूठों के बाद मिली खुशी और उससे उत्पन्न उसके जादू को, बिना टूटे सदा के लिए बरकरार रहना चाहिए।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अपनी एक खुशमिजाज़ और बिंदास प्रशंसिका से फेसबुक चैट्स के माध्यम से हुई लेखक की बातचीत थोड़े इनकार और कुछ नानुकुर के बाद पहली मुलाकात में इस्कॉन मंदिर से होते हुए बार में चिल्ड स्ट्रांग बीयर तक जा पहुँचती है। जिसमें वह स्वावलंबी एवं मजबूत नज़र आने वाली बोल्ड प्रशंसिका, लेखक से खुद पर एक कमज़ोर लड़की के नाम से कहानी लिखने का वादा लेती है और उसे अपनी अधूरी कहानी सुना..फिर मिलने का वादा कर कभी नहीं मिलती। अब देखने वाली बात ये कि लेखक उस बिंदास..बोल्ड..स्वावलंबी लड़की पर कोई कहानी लिखने में कामयाब हो पाता है या नहीं?

इस संकलन की एक अन्य कहानी है अपना सब कुछ छोड़ छाड़ कर स्वेच्छा से वृद्धाश्रम में रहने आए रामदत्त जी की जिन्होंने भारत पाक विभाजन में अपना सब कुछ लुटा के भारत आने के बाद अपनी मेहनत से फिर कामयाब हो के दिखाया है।
वही रामदत्त जी, जिन्हें बुढ़ापे में अपना सब कुछ बेटों के नाम कर चुकने के बावजूद अपनी ही पत्नी, भागवंती के शव के अंतिम दर्शन सिर्फ़ इस शर्त पर करने को मिलते हैं कि पहले वे बड़े बेटे से कम से पचास लाख की जायदाद के कागज़ ले कर उन्हें, बंटवारे से नाराज़ छोटे बेटे के नाम कर दें।

इससे अगली कहानी 36 साल की बढ़िया नौकरी के बाद अफ़सर रिटायर हुए एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे अपनी बीवी की ज़िद के चलते लगभग 30 साल अपने बीवी बच्चों से अलग..एकदम अकेले रहना पड़ा। अब बुढ़ापे में उसके बीमार होने पर भी
उसके बीवी बच्चे, उसकी कैशलैस इंश्योरेंस होने के बावजूद भी, उसका बड़े और अच्छे अस्पताल में इसलिए इलाज नहीं करवाते कि कैशलैस की सुविधा के चलते उनके हाथ नकद कुछ नहीं आएगा जबकि बाहर किसी छोटे मोटे डॉक्टर से फ़र्ज़ी बिल बनवा कर नकद में अच्छा खासा पैसा कमाया जा सकता है।

अगली कहानी में हमारी मुलाकात होती है कभी खूबसूरत रही अधेड़ ग्रेसी राफेल से जो 20 बरस पहले पागल खाने से छूट कर आयी थी और तब से ही फटेहाल कपड़ों में मुंबई के चर्चगेट इलाके में दर दर भटक रही है। अच्छा भला गृहस्थ जीवन जी रही दो बेटों की माँ किन हालातों में..कब और कैसे पागल हुई? ये जानने के लिए तो कहानी को पढ़ना होगा।

अगली कहानी है सड़कों पर लावारिस भटकते उस छोटे बच्चे बब्बू की जिसे किस्मत से सहारा मिलता है एक आलीशान घर की दयालु मालकिन का। जिसकी वजह से उसकी किस्मत रातों रात बदल जाती है मगर फिर अचानक ऐसा क्या होता है कि एक दिन बाद ही उसकी किस्मत में फिर वही, सड़कों पर धक्के खाना लिखा होता है?

लगभग 20 वर्षों के बाद फोन कॉल पर एक ऐसे प्रेमी जोड़े की आपस में बात होती है जो अपनी अपनी मजबूरियों के चलते एक नहीं हो पाए थे। पुरानी यादों और तमाम तरह के गिले शिकवे और युवक के बार बार आग्रह के बावजूद भी युवती कमज़ोर पड़ने के डर से उससे मिलने से इनकार कर देती है। मगर क्या सच में ऐसा संभव हो पाता है?

एक अन्य कहानी में कहानी के एक अनोखे सब्जेक्ट के रूप में लेखक की मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से होती है जो बरसों से अस्पताल के मरीज़ो में पत्रिकाएँ वगैरह बाँट कर तथा दिक्कत एवं अवसाद के समय उन्हें सांत्वना..ढाँढस..तसल्ली इत्यादि दे कर उनकी सेवा कर रहा है। एक दिन ऐसा कुछ होता है कि अपना घरबार सब छोड़ कर वह उसी अस्पताल में हमेशा रहने के लिए आ जाता है।

अगली कहानी में 15 दिनों के लिए दोस्तों से विदा ले ट्रेन में मुंबई से दिल्ली तक का सफ़र कर रही एक युवती को बीच रास्ते एस एम एस द्वारा पता चलता है कि उसकी उस हँसमुख..मिलनसार केयरिंग दोस्त कम रूममेट, जिसे वो अभी कुछ घँटे पहले हँसता खिलखिलाता छोड़ कर आयी थी, ने अचानक रेलगाड़ी के नीचे आ कर खुदकुशी कर ली है। आखिर..ऐसा क्या हुआ कि उसे. इस तरह..अचानक..ऐसा दुःसाहसी कदम उठा लेने पर मजबूर होना पड़ा?

मेरठ जैसे छोटे शहर की एक बिंदास लड़की, जिसे एल्कोहलिक ड्रिंक्स से परहेज़ नहीं है, अपने फेसबुक फ्रेंड से पहली बार रूबरू मिलते हुए, उसके साथ मुंबई से दमन तक का तीन दिन की छुटियों का अकेले ट्रिप प्लैन कर..एक ही होटल के एक ही कमरे में रुकने का फैसला करती है। ऐसे में क्या उनकी दोस्ती महज़ दोस्ती तक ही सीमित रहती है अथवा उसके मायने बदल कर कुछ और हो जाते हैं?

वैसे तो इस संकलन की सभी कहानियाँ बढ़िया हैं लेकिन कुछ कहानियाँ जो मुझे बेहद प्रिय लगी। उनके नाम इस प्रकार हैं।

*यह जादू नहीं टूटना चाहिए
*एक कमज़ोर लड़की की कहानी
*मर्द नहीं रोते
*डरा हुआ आदमी
*दो जीवन समांतर
*बाबू भाई पंडया
*ये जो देश है मेरा
*लहरों की बाँसुरी

कुछ जगहों पर छोटी मोटी प्रूफ़ की ग़लतियों के अलावा एक बड़ी खामी यह दिखाई दी कि आरंभ में जो कहानियों के शीर्षक के नाम से साथ पृष्ठ संख्या लिखी है, वो ग़लत है जैसे कहानी अगर पृष्ठ संख्या
26 से शुरू हो रही है तो वो दरअसल पृष्ठ संख्या 22 से शुरू हो रही है और पृष्ठ संख्या 87 से शुरू होने वाली कहानी असल में पृष्ठ नम्बर 68 से शुरू हो रही है। उम्मीद है कि अगले संस्करण में इस तरह की छोटी छोटी कमियों को दूर किया जाएगा।

267 पृष्ठों के इस उम्दा कहानी संकलन को छापा है इंडिया नेटबुक्स ने और पेपरबैक संकरण का दाम रखा गया है 300/- रुपए जिसे आम पाठक की सहूलियत के लिए थोड़ा कम किया जाना चाहिए। हार्ड बाउंड के शौकीनों के लिए इसका हार्ड बाउंड संस्करण 400/- रुपए में उपलब्ध है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।