ब्रिस्बेन में जीत के मायने। विवेक वर्मा द्वारा खेल में हिंदी पीडीएफ

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ब्रिस्बेन में जीत के मायने।

कोहली,अश्विन ,शमी,इशांत ,जड़ेजा ,उमेश ,बुमराह ,राहुल ये भारतीय टीम की पूरी बैकबोन है।लेकिन ये सभी बाहर थे।
ब्रिस्बेन का गाबा मैदान आस्ट्रेलिया को इतना शूट करता है की 32 साल से वह यहाँ हारी नहीं थी।
ऊपर से पहले टेस्ट की दूसरी पारी में 36 रन पर सिमट जाना किसी भी टीम के मनोबल को झकझोर देने के लिए पर्याप्त था।
एक युवा टीम के सामने पांचवे दिन एक पहाड़ से लक्ष्य पर चढ़ाई करनी थी।शुरू-शुरू में रोहित जब जल्दी निपट गए तो लगा टीम इंडिया अब शायद ही मैच बचा पाए।लेकिन गिल और ऋषभ की शानदार संतुलित आक्रामक बैटिंग और पुजारा का चट्टान के रूप में अड़ जाने से बचाने की जगह भारत नें मैच जीतकर 1-0 से पिछड़ने के बाद सीरिज 2-0 से अपने नाम कर लिया।

इस जीत नें न केवल आस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ियों जिसमें पोंटिंग जैसा क्रिकेटर भी शामिल था न केवल बोलती बंद कर दी बल्कि भारतीय बेंच स्ट्रेंथ का एक शानदार नमूना भी पेश किया।राहुल द्रविड़ नें घरेलू स्तर पर भारतीय क्रिकेटरों को तैयार करने में जो मेहनत की है उसके नतीजे दिखाई दे रहे हैं।आस्ट्रेलिया,अफ्रीका,पाकिस्तान जैसे देशों में एक बार उनके स्टार खिलाड़ी जब बाहर हुए या उन्होंने जब संन्यास ले लिया तो उनके उपयुक्त विकल्प उन्हें शायद ही मिले हों।जब वार्नर,स्मिथ आस्ट्रेलियन टीम से बाहर थे तो वे इनके विकल्प के लिए जूझते दिखाई दिए।हमारे पास धवन,रोहित के न होने पर भी मयंक,गिल,ईशान किशन जैसे खिलाड़ी तैयार बैठे हैं।हमारे पास खिलाड़ियों की एक शानदार फौज है यहां तक की हम एक और विश्व स्तरीय टीम खड़ी कर सकते हैं।निश्चित तौर पर इस स्थिति के लिए हमारा मजबूत घरेलू ढांचा उत्तरदायी है जिसमें द्रविड़ जैसे पूर्व खिलाड़ियों का बड़ा योगदान रहा है।

पूरी सीरीज के पहले मैच को छोड़कर हर मैच में भारत के शुरुआत में पिछड़ने के बाद में की गई वापसी टीम इंडिया के लड़ने के जज्बे को दिखाती है।यह इस बात का भी संकेत है की एक समय ताश के पत्तों की तरह ढेर होने के नाम पर तौहीन को झेलती टीम इंडिया अब बदल चुकी है।अब यह टीम आखिरी दम तक संघर्ष करते हुए जीतने की कोशिश करती है।
इस तस्वीर में जो नहीं दिखता ओ है इस दृश्य को बनाने में लगी द्रविड़ जैसों की मेहनत,इस टीम का जज्बा...
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पूरी सीरीज के दौरान रहाणे द्वारा की गई कप्तानी भी शानदार रही।उनकी कप्तानी में आक्रमण और बचाव का संतुलित मिश्रण देखने को मिला।मुझे बार-बार ये लगता है कोहली को एक कप्तान के रूप में और बेहतर होना चाहिए।मैदान पर कोहली की कप्तानी देखते वक्त कभी-कभी ऐसा लगता है जैसा की वे प्री माइंडसेट से खेलते हैं।विश्वकप 2015 में रायडू और अय्यर का न ले जाना रहा हो या फिर आई पी एल की सितारों से सजी टीम होने के बाद भी एक भी खिताब न जीत पाना रहा हो या पहले टेस्ट में चाहे साहा का चुनना रहा हो या फिर राहुल को अंतिम 11 में जगह न देना रहा हो सब सवाल खड़े करने लायक थे।

अब रहाणे की कप्तानी में शानदार जीत के बाद चयनकर्ताओं पर जरूर दबाब बढ़ेगा।आगे क्या होगा यह तो वक्त की झोली में है लेकिन ब्रिस्बेन के गाबा में मिली यह जीत एक अविस्मरणीय जीत है जो आने वाली क्रिकेट की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

यह जीत विश्वकप से कम नहीं..