इश्क़ है तुमसे दिलीप कुमार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ है तुमसे







इश्क़ है तुमसे....



रात काफी हो चुकी थी तकरीबन साढ़े दस बज रहे थे।सुनसान रस्ता था, रास्ते के एक तरफ बड़ी सी नहर थी ।और दूसरी तरफ खाई ।वो नजारा दिन में काफी सुंदर हुआ करता था,लेकिन रात में उतना ही कही भयावह मालूम पड़ता था।

बाइक की हैड लाइट को भी आज ही खराब होना था,मैं मन में बड़बड़ाते अपनी बाइक को कोसते हुये धीरे धीरे बढ़ रहा था। मुझे डर भी लग रहा था।वो रास्ता जंगलो से हो कर गुजरता था उस जंगल मे जंगली जानवर भी रहते थे।जिसके कारण कभी कभी मुसाफिरों को उनके आतंक का सामना भी करना पड़ता था,डरा सहमा सा मैं आज किस मुसीबत में फस गया यही सोचे जा रहा था ।

कि अचानक मेरे सामने एक कार पलटी जो ठीक मेरे सामने से गुजरी सड़क के किनारे ठीक बीस फिट नीचे खाई थी जो उसमे जा गिरी ।मुझे उसमे से किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी।सुनसान रस्ता था। रात काफी हो गई थी इक्का दुक्का गाड़ियों का आना जाना हो रहा था।

लेकिन मैं इस हादसे को नजर अंदाज करके आगे की ओर बढ़ गया, ये सोच कर कि कौंन इस उलझन में पड़े, यहाँ आये दिन ऐसी घटनाये होती रहती थी।

परन्तु मेरे दिल ने इसे गवारा न समझा और मैं अपनी बाइक को मोड़कर वापस आया और बाइक को स्टैंड पर खड़ी करते हुये मैं नीचे की ओर उतरा जहां से चीखने की आवाज आ रही थी।

गाड़ी के अंदर सिर्फ एक लड़की थी।बिखरी जुल्फे लहूलोहान चेहरा
आवाज में वो धीमापन, हताश स्वर में पानी पानी मांगती हुई,

उस नज़ारे ने मेरे रौंगटे खड़े कर दिये मैं अकेले होने के नाते बहुत डरा हुआ था।मैं नीचे आ तो गया लेकिन मुझे समझ नही आ रहा था,की अब क्या करूँ कैसे निकालूं उसे।

रात वो अंधेरी एक काले साये की तरह लग रही थी।मानो जैसे आज अमावस्या की रात हो कभी कभी जानवरो की वो भयानक आवाज मुझे काफी झकझोर रही थी।वो जगह काफी डरावनी सी लग रही थी जैसे मानो वहाँ भूतों का कोई साया हो।

मैं आगे बढ़ा और गाड़ी के पास पहुँचा जैसे तैसे मैंने उस लड़की को गाड़ी से बाहर निकाला।लड़की वेहोश हो चुकी थी,मुझे उसकी फिकर तो हो रही थी।लेकिन उससे ज्यादा कहि अपनी भी हो रही थी।क्योंकि मुझे उस वीरान से अंधेरे में बहुत डर लग रहा था।

बिखरी जुल्फे चेहरा खून से लहू लोहान था उसे पहचान पाना बहुत मुश्किल था,मैंने उसे अपने कंधे पर उठाया और ऊपर की ओर ले चला उसके चेहरे से काफी खून बह रहा था।जो मेरे कपड़े पर भी अब लग चुका था।मुझे ये देख काफी घबराहट हो रही थी।परन्तु अपनी उस घबराहट को पीछे छोड़े मैं ऊपर पहुँचा।

मैंने उसे सड़क के किनारे पर लिटा दिया।और फिर सोचने लगा कि उसे हॉस्पिटल कैसे ले जाया जाय।कि तभी मुझे ख्याल आया और मैंने अपने जेब से फोन निकाला और फोन मिलाया।

सामने घंटी बज रही थी लेकिन फोन नही उठ रहा था मैंने दुबारा फोन मिलाया फोन उठते ही मैं घबराये हुये स्वर में.....

शेखर तुम कहा हो ?

शेखर:- क्या हुआ रिहान तुम इतना घबराये हुए क्यो हो....???

मैंने उसे सारा वाक्या बताया औऱ गाड़ी लाने को कहा।
शेखर मेरा दोस्त जो एक एजुकेटिव इंजीनियर था।
उसके पास एक वेगेनार कार थी।जिससे वो आफिस जाया करता था।

वैसे यहां से घर की दूरी ज्यादा नही थी।लगभग बीस मिनट का रास्ता था।

थोड़ी देर में शेखर वहां पहुँचता है।और सबसे पहले मैंने उसकी गाडी से पानी की बोतल ली और मैंने उस लड़की के मुँह पर पानी के थोड़े छीटे मारे जिससे उसे थोड़ा होश आया,फिर उसे पानी पिलाया,

देरी न करते हुऐ शेखर और मैंने उसे कार मैं बैठाया।और फिर हम दोनों गाड़ी मैं बैठे,

फिर क्या गाड़ी यू हवा से बाते करते हुये शहर में एक बड़े हॉस्पिटल गोल्डन सेंचुरी के सामने जा कर रुकती है ....
हमने उसे जैसे गाड़ी से उतारा ही कि सामने से एक नर्स वीलचेयर
ले कर आती हुई,और उसे बैठा हम उसके पीछे पीछे हॉस्पिटल में दाखिल हुऐ।

रात के के पौने एक बजे रहा थे
इमरजेंसी बाड में हम पहुचे तो हमे थोड़ी कानूनी कार्यवाही से गुजरना पड़ा।क्योकि ये एक एक्सीडेंट केश था और हमे लड़की के बारे में उस हादसे से ज्यादा कोई और जानकारी नही थी।

और फिर डॉक्टरों ने उसे एडमिट कर टिटमेंट देना शुरू किया।और फिर थोड़ी देर में एक बड़ा सा पर्चा मेरे हाथ मे थमाते हुऐ,बोले ये लो डिस्पेंशरी से ये कुछ मेडिशिन ले कर आओ। वो पर्चा मैंने शेखर को थमाया और साथ मे अपना डेबिड कार्ड देते हुये,इससे बिल पे कर देना।

और वो रात हमने हॉस्पिटल में गुजारी।सुबह होते ही मैं डॉक्टर से मिलने गया।और डॉक्टर से उस लड़की की हालत के बारे पूछा।

डॉक्टर ने मुझसे:- वो खतरे से बाहर है लेकिन अभी होश नही आया है थोड़ी देर में शायद उसे होश आ जाय ।

मुझे एक ही चिंता खाये जा रही थी। लड़की के परिवार वालो को कैसे उसकी इन्फॉर्मेशन दी जाय। कि उसका एक्सीडेंट हो चुका है और वो हॉस्पिटल में एडमिट है।

लिहाजा अब हमें उसके परिवार से कॉन्टेक्ट करना पड़ेगा।परन्तु वो मुमकिन नही था।इसी सवालिया सोच ने मेरे अंतरमन को उलझा रखा था।

मैं वापस डॉक्टर से मिला औऱ उनसे:-- उससे मिलने की परमिशन लेने के बाद उसके बार्ड में दाखिल हुआ।


चेहरे पर चोटे काफी थी जिसके कारण पट्टियों से ढका चेहरा पहचान पाना मुश्किल था। आंखे बंद थी उसे अभी होश नही आया था।

जिसके कारण मैं उस कमरे से बाहर आकर,,
मैंने शेखर से कहा अभी बात करना ठीक नही होगा।

शेखर और मैं काफी परेशान थे,कि किस मुशीबतों में फस गये ऊपर से शेखर को ऑफिस भी जाना था।

वो मुझे कह कर निकला,तुम रुको यहां देख लो,लड़की को अगर होश आता है तो शायद कोई उसके परिवार का कॉन्टेक्ट मिल जाए तो जिससे अपनी मुसीबते कम हो।

इतना कह कर शेखर वहां से चला गया...

और मैं भी हॉस्पिटल से बाहर निकल कर थोड़ी दूर सड़क के किनारे एक चाय की दुकान पर पहुँचा और एक चाय ली।चाय पीने के बाद पुनः मैं हॉस्पिटल के कम्पाउंड में जा कर एक बैंच पर बैठे तनावग्रस्त मुद्रा में आँखे मूँद उन लम्हो कि यादों में मशगूल हो गया।जो मैंने कभी शिवन्या के साथ गुजारी थी।शिवन्या वो नाम जिसकी झील सी आँखे,गोरा रंग,गुलाब की पंखुड़ी से वो गुलाबी होंठ,रेशम सी जुल्फे,परियो सी मुस्कान।किसी शहजादी से कम नही थी।

शिवन्या और मेरा बचपन एक ही साथ गुजरा था।हम एक ही साथ स्कूल जाते और हमने साथ साथ कॉलेज भी जॉइन किया मैं शिवन्या से बहुत प्यार करता था।लेकिन मैंने कभी कहना नही चाहा ये सोचकर कि उसे पढ़ाई का बहुत शौक था।उसका एक सपना था यूरोप जा कर अपने अंकल के पास पढ़ाई करना और मैं उसके इस सपने के बीच नही आना चाहता था।और फिर शायद मैं ये भी नही जानता कि वो मुझे प्यार करती भी है या नही ?

और एक दिन वो लम्हा भी आ ही गया जब शिवन्या का यूरोप जाने का वो सपना हकीकत में साकार हो गया।और उसने मुझे छोड़कर अपने सपनो की उड़ान भर ली और मैं एक उस गुमनामी के अंधेरे मैं कहीं खो गया जहाँ से लौटना मेरे लिये एक कठिन सफर सा लगने लगा।गम इस बात का नही की वो मुझे छोड़ कर चली गई।दुख तो इस बात का था कि शायद वो मेरी जिंदगी में अब दुबारा न आ पाय जैसे वो मेरी आखरी मुलाकात हो..........!!


तभी अचानक एक आवाज ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकलने को मजबूर कर दिया वो आवाज़ एक नर्स की थी।मिस्टर रिहान डॉक्टर ने आपको अपने केविन में अर्जेंट बुलाया।अगले ही पल मैं डॉक्टर के केविन में पहुँचा।बैठिये मिस्टर रिहान आपसे कुछ बात करनी थी।मैं ठीक उनके सामने वाली कुर्शी पर बैठा।

पेशेंट के बारे में तुमसे कुछ बात करनी थी,जी बोलिये...... पेशेंट का काफी ब्लड बह चुका है।जिसके कारण पेशेंट को ब्लड की जरूरत है।जो कि उसका ब्लड ग्रुप ओ पोजेटिव है।जो हमारे पास अभी फिलहाल उपलब्ध नही है। आपको देरी न करते हुए इस ग्रुप के ब्लड का अरेंजमेंट करना पड़ेगा।अन्यथा लड़की के बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा...

मैं डॉक्टर की बात सुन कर काफी घबरा चुका था।मैंने देरी न करते हुऐ डॉक्टर से अपने ब्लड ग्रुप जांच करने की बात कही। अगर मेरा ग्रुप मेच करता है,,,तो आपको जितने ब्लड की आवश्कता हो उतना मेरे शरीर से निकाल ले मैं नही जानता कि वो लड़की कौन है या क्या रिश्ता है और कहा से आई थी।लेकिन उसका ठीक होना ही अब मेरे लिये एक महत्व बन चुका था।

मैंने लैबोरेटरी मैं जा कर अपना ब्लड सेम्पल दिया,थोड़ी ही देर में मेरे ब्लड सेम्पल की रिपोर्ट आई। इत्तेफाक की बात तो ये थी कि मेरा भी ब्लड ग्रुप ओ पोजेटिव ही था।

फिर क्या था मैंने अपना ब्लड उसे डोनेट किया।उसके कुछ ही घंटे बाद उस लड़की को होश आया गया।

उसके होश में आने के बाद अब मेरे चेहरे से चिंता भाव कम होते नजर आ रहे थे।डॉक्टर ने भी मेरा शुक्रियादा किया।और कहा अब आप उससे मिल सकते है।

मेरे मन ने अब मेरे इरादे बदल दिये जो मुझे अब तक मुसीबत लग रही थी न जाने अब उसके प्रति मेरे मन में हमदर्दी सी होने लगी।जब तक बो पूरी तरह ठीक नही हो जाती ये मेरी जिम्मेदारी थी।


कि अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी मैंने अपने जेब से मोबाइल फोन निकाला देखा तो शेखर का फोन था।

मैंने फोन उठाया....!
हा शेखर बोलो...!
शेखर-क्या तुम्हें उस लड़की के बारे कोई जानकारी प्राप्त हुई ??

नही शेखर अब तक तो कोई जानकारी नही है..!!

तभी नर्स मेरे पास आई...
मिस्टर रिहान पेशेंट आपसे मिलना चाहत है।

मैंने शेखर से...
मैं बाद में कॉल करता हूं तुम्हे और में फटाफट उस लड़की के पास बार्ड में पहुँचा।

सामने पड़ी वो मुझे आंखे बड़ी बड़ी किये देखे जा रही थी।जैसे मुझसे कुछ कहना चाह रही हो उसने मेरी तरफ हाथ का इशारा किया मैं उसके पास बैठ गया वो एक टक गेहरी निगाहों से मुझे देखे जा रही थी।बिना पलके गिराये जैसे वो शायद कुछ कहना चाह रही हो।

चोटें ज्यादा होने के कारण चेहरा पूरी तरह पट्टियों से कवर किया था जिससे उसे बोल पाना,उसके लिए मुश्किल था।लेकिन उसकी वीरान आंखे में एक रेगिस्तान नजर आ रहा था।जहाँ सिर्फ रेतीले टीले होते है वहां जीवन का महत्व नही होता।उसकी सवालिया नजरें जो मुझ से कुछ कहना चाह रही थी।

मैंने भी उसे दर्द भरी नजरों से दिलासा देते हुये आप बहुत जल्द ठीक होकर अपने घर जायेगी।

और कहकर बाहर हॉस्पिटल के कम्पाउंड में आ गया शाम हो चुकी थी।हल्की हल्की हवाओं का वो झोंका मेरे चेहरे को अपनी शीतलता का एहसास दिला रहा था।

उन फिज़ाओ का नजारा बड़ा ही हसीन था,छोटी छोटी क्यारियों में एक लाइन से वो खुशबूदार पौधो की हरियाली मानो ऐसा लगा रहा था जैसे वो अपनी फिज़ाओ को सलामी दी रही हो.....!!

समय धीरे निकलता जा रहा था।बीते कुछ दिनों से में उस असमंज का शिकार हो रहा था।जिससे मेरा कोई वास्ता नही था।आज न जाने दिल को क्यो कोई अनहोनी होने का एहसास हो रहा था।

वैसे आज उसके चेहरे से पट्टियों का वो कवर निकले वाला था।जो कुछ दिन से उसका नकाबपोश बना बैठा था।जिसमे मुझसे कुछ कहने की बैचेनी थी।

और फिर जैसे ही मैं उसके बार्ड में पहुँचा।मैं उसे देखते आश्चर्यचकित हो गया और मेरी आँखों में बाढ़ का वो सैलाब भर आया जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नही की थी..!!

मैं अपने अंतरमन के कोने में, कही काँच के टुकड़े की तरह टूट कर बिखर चुका था...!!

आज मेरे आँसु थमने का नाम नही ले रहे थे।जो मेरे आँखों के सामने बैठी आँखों मे वो नमी लिये जो इतने दिन से मेरे साथ होते हुये भी अपने होने का इल्म न दे पायी..!!

जिसे देख मैं अपने घुटनों पे बैठने को मजबूर हो गया वो कोई और नही मेरी शिवन्या ही थी............!!

आज मेरी धड़कने मेरे बस में नही थी...वो फिर से कही दूर न चली जाए।ये मेरे दिल को अब गवारा कहा।और मेरी धड़कनो की बैचेनी ने उससे अपने प्यार का इजहार आखिर कर ही दिया।

और वो अपनी बाहें खोले बस यही कहती हुई
मुझे भी 🌹इश्क़ है तुमसे....


🙏🙏🙏
समाप्त