निधि सुबह
उठकर बाहर बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ती है। बरसों से यहा नियम है, सुबह की चाय के
साथ दोनों पति-पत्नी समाचारों का आनन्द लेते हैं। गर्मी में, उनके बगीचे से आने वाली
शीतल, सुरभित पवन से उनका तन-मन सुवासित हो जाता है। छोटे शहरों में रहने का अपना ही
मजा है, नहीं तो बड़े शहरों में अकारण ही दो घण्टे पहले नौकरी के लिए निकलना पड़ता
है। अपनी भाभी को देखा है उसने, दिल्ली में। इतना व्यस्त जीवन, जैसे ठीक से साँस लेने
की भी फुर्सत न हो। समाचारों पर निगाह डालते हुए अतुल की नज़र रोशनदान पर गई चिड़िया
लगातार घास, तिनके, पतली टहनियाँ लाकर घौंसला बना रही थी। "इनका नीड़ बनने लगा,
अब रोज बरामदे में धागे, सूतली, घास बीननी पड़ेगी।" अतुल ने कहा।
"हाँ,
लेकिन ये भी बिचारी कहाँ जाएँ । अण्डे देने हैं, बच्चे पालने हैं। पक्षियों में भी
कितनी समझदारी होती है। दोनों मिलकर घर बनाते हैं हम लोग तो विवाह के सात फेरों के
बन्धन में बंधे हुए हैं, लेकिन ये पता नहीं किस वचन से बंधे हुए हैं।"
निधि को अभी
बहुत से काम निबटाने थे उनका बेटा अभी उठा नहीं था। वह डॉक्टर बनना चाहता है और पी.एम.टी.
की तैयारी कर रहा है । बड़ी बेटी की इसी साल एम.बी.ए. के बाद शादी कर चुके थे
"अब तो मोनू भी चला ही जाएगा, निधि सोचने लगी।
अन्दर रसोई
में जाकर नाश्ता बनाया और लंच बॉक्स में ले जाने वाले खाने का प्रबन्ध करने लगी। वह भी अतुल के साथ ही ऑफिस के
लिए रवाना होती है। जीवन एक सीधी सरल राह पर ईश्वर
की कृपा से आराम से चलता जा रहा है। मोनू को दिन भर के लिए कुछ हिदायतें देकर निधि
बैंक चली गई ।
निधि उन महिलाओं
में से है जो, ऑफिस और घर के काम में संतुलन बनाने में कामयाब रहती हैं। समय-प्रबंधन
की कला तो कोई उससे सीखे।
अतुल तो ऐसी पत्नी पाकर धन्य हो गए। जहाँ उनके दोस्त घर के कामों के लिए, गर्मी- बरसात
में यहाँ-वहाँ दौड़ते हुए थकते रहते है। निधि कुशल नियोजन और दूरदर्शिता के कारण सब
कुछ मैनेज कर लेती है। घर या बाजार के कामों को लेकर घर में कभी तनाव नहीं होता।
बच्चों की
पढ़ाई भी निधि ही देखती है, हालाँकि दोनों ही बैंक में काम करते हैं, लेकिन तब भी निधि
ने ही समय निकालकर हमेशा बच्चों को पढ़ाया है। दरअसल पढ़ाने के लिए जिस धैर्य की जरूरत
होती है,अतुल में है ही नहीं
।
कभी-कभी निधि
को लगता कि समय के जैसे पंख लगे हुए हैं, अभी कल ही की बात लगती है दोनों बच्चे कितने
छोटे-छोटे थे और अब, सब कुछ बदल गया 25 साल हो गए हैं उसके विवाह को हमसफर, हर कदम
पर साथ देने वाला हो तो जिन्दगी का सफर कितना आसान हो जाता है। ।
कुछ दिनों
बाद निधि ने सुबह चाय पीते हुए देखा, अंडों से बच्चे निकल चुक थे और चिड़िया बड़े प्यार
से नन्हे-मुन्ने बच्चों के मुँह में मुँह डालकर भोजन खिला रही थी। ऐसे ही तो वह मेधा
और मोनू को खिलाती थी, बचपन में।
अब तो मेधा के दर्शन ही दुर्लभ हो गए जाती । साल में
1-2 दिन के लिए आती है, हाँ फोन से बात जरूर हो जाती है ।
पहले कैसे चहकती हुई, घर में घूमती रहती थी। कितनी रौनक रहती थी, उससे घर में। उसके
जाने के बाद कैसी नीरवता-सी पसरी रहती है। मोनू पढ़ाई में लगा रहता है। उसकी पढ़ाई
का ध्यान रखते हुए केवल कुछ समय के लिए न्यूज के लिए ही टी.वी. चलाया जाता है। घर में 'पिन ड्रॉप साइलेन्स रहती है।
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आखिर मोनू
का पी.एम. टी भी हो गया।
बैंक से छुट्टी लेकर नैनीताल घूमने चले गए वे लोग। सप्ताह भर पता ही नहीं, कैसे निकल
गया। वहीं से अपने पीहर
चली गई निधि और मोनू मेधा के यहाँ चला गया । स्त्री चाहे आयु में कितनी भी बड़ी क्यों
न हो जाए, मायके का मोह नहीं छूटता। आकर्षण की डोर में बंधी पहुँच ही जाती है अपनी
जड़ों के पास। निधि और मोनू लगभग साथ-साथ ही घर पहुँचे। अतुल इतने से दिनों में ही
अकेलेपन से ऊब गए थे। मोनू का रिजल्ट आ गया था, उसे अच्छी मैरिट के कारण, अच्छा कॉलेज
मिला था। अतुल, मोनू को लेकर आने-जाने में लगे रहे और निधि उसके लिए घर में उसके लिए
आवश्यकता की अनेक चीजें जुटाने लगी। बेटे को पढ़ाई के लिए दूसरे शहर विदा करना है तो
तैयारी करनी ही होगी।
यह तैयारी
करना तो बहुत आसान था, निधि के लिए लेकिन अपने मन को आने वाले समय के लिए तैयार करना
बहुत कठिन था । पर भेजना तो था ही बेटे को, अपनी ममता के मोहपाश में जकड़ कर, उसका
भविष्य तो खराब नहीं कर सकती, निधि ।
आखिर वह दिन
भी आ गया, जब मोनू को जाना था । दोनों ही गए, और मोनू को हॉस्टल छोड़ने। जहाँ मोनू
बहुत खुश था अपनी सफलता पर ,वह । वहीं निधि का दिल बैठता ही जा रहा
था। हालाँकि उसने मोनू के सामने अपनी कमजोरी प्रकट नहीं की। पर भावी अकेलेपन की आशंका
उसे खाए जा रही थी। अतुल के होते हुए भी सन्नाटा सा महसूस हो रहा था जब से मेधा का
जन्म हुआ, बच्चों के साथ रहने की आदत ही हो गई थी। जब मेधा पढ़ने के लिए बाहर गई भी
और यहाँ तक कि उसकी विदाई के बाद भी, ऐसी मानसिक स्थिति नहीं हुई थी निधि की। मोनू
तो था ही घर में, उसके दोस्त, उसके ठहाके, हँसी-मजाक, उसे पढ़ाना एक लक्ष्य था, जीवन
का। अब जैसे मंजिल मिलने के बाद, शून्यता आ गई है, जीवन में । निधि को लगा जैसे वह
अवसाद की शिकार हो रही है ।
अतुल से निधि
की परेशानी छिपी नहीं थी। बरसों से अतुल उसके स्वभाव को जानते थे, और फिर निधि का पारदर्शी
चेहरा कहाँ कुछ छिपा सकता था। दुःख और परेशानी उसके चेहरे पर साकार हो उठे थे । अतुल समझते थे कि अगर इस समस्या का
कोई हल न खोजा तो निधि को बीमार होने से कोई नहीं बचा सकता। दोनों बच्चे ही निधि का
जीवन सर्वस्व थे, जैसे पुरानी कहानियों में जादूगर के प्राण किसी तोते में अटके रहते
थे, वैसे ही उसके प्राण बच्चों में बसे हुए थे।क्र है, इसे उल्टा घुमाना संभव नहीं है बच्चे बड़े
होंगे ही, अगर योग्य होंगे तो पढ़ने के लिए बाहर जाएंगे ही। पर यथार्थ और सत्य को भावुक
मन जानते हुए भी स्वीकारना नहीं चाहता। निधि जैसे चुप सी हो गई थी। सुबह दोनों बैठकर
चाय पी रहे थे । रविवार का दिन था, दोनों के पास समय था। कोई जल्दी नहीं । अतुल की
नजर चिड़िया के घौंसले की तरफ गई। चिड़िया बच्चों को लॉन में उड़ना सिखा रही थी। घौंसला खाली था , अतुल ने निधि को दिखाया,
निधि देखो,
चिड़िया का बच्चा उड़ना सीख गया है । अब चिड़िया दम्पति का काम पूरा हुआ। लेकिन एक
बच्चे के जाने से उनका जीवन नहीं थम जाता। जीवन अनवरत् कर्मरत रहने के लिए है। यह हम
पंछियों से भी सीख सकते हैं ।
"पक्षियों
की बात मैं नहीं जानती लेकिन मैं अपने मन को नहीं समझा पा रही हूँ। सब कुछ जानते समझते
हुए भी मेरा मन जैसे मेरे वश में नहीं है । क्या करूँ, मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ।
मैं कहाँ चाहती हूँ कि मैं अपनी परेशानी का विस्तार आप तक करूँ।
विस्तार शब्द
सुनते ही, जैसे अतुल के दिमाग में एक विचार आया। उन्होंने तुरन्त निधि के साथ उसे बाँटते
हुए कहा,
तुम परेशानी
का विस्तार नहीं करना चाहती, लेकिन वात्सल्य का विस्तार तो कर ही सकती हो ना। ऐसे कितने
ही बच्चे हैं, जिन्हें माँ का प्यार नहीं मिल पाता और तुम इस समय बच्चों के लिए तरस
रही हो। अगर हम यहाँ पर किसी अनाथालय में जाए और वहाँ तुम उन बच्चों के लिए कुछ करो
तो न केवल तुम्हें एक लक्ष्य मिलेगा और प्रसन्नता होगी, बल्कि उन्हें भी सच्चा प्यार
मिल सकेगा। निधि की आँखे यह सुनकर चमक उठी, उसके शरीर में जैसे नवजीवन, नवीन स्फूर्ति
का संचार हुआ हो। अरे वाह, आपने तो मेरे मन की बात कह दी। इससे तो हमारे लोक-परलोक दोनों सुधर जाएगें। अब निधि को कमजोरी, थकान बिल्कुल
महसूस नहीं हो रही थी। उत्साह से बोली, मैं तैयार हो जाऊँ, आज ही चलें हम।
अतुल मुस्कराते
हुए बोले, क्यों नहीं, "शुभस्य, शीघ्रम् " । निधि की प्रसन्नता से अतुल भी
उत्साहित थे। आखिर, चिड़ियों से मनुष्य समझदार है, तो उसे अपनी समझदारी और मनुष्यता
का परिचय भी देना चाहिए। केवल अपने लिए तो पशु भी जीते हैं। अतुल और निधि दोनों तैयार
होने लगे। घर की उदासी छंट
गई थी।