कर्मा - 5 - जादू है नशा है.. मदहोशियां Sushma Tiwari द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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कर्मा - 5 - जादू है नशा है.. मदहोशियां

जादू है नशा है.. मदहोशियां...
(गतांक से आगे)


सिद्धार्थ अभी भी उन लड़कों को घूर कर देख रहा था। अब ऐसा भी क्या कह दिया था उसने? मैच में तो हर कोई अंदाजा लगा सकता है.. इसमें ऐसी कौन सी नई बात है।
उनमें से एक लड़का अंकित जो सिद्धार्थ से पहले भी बातचीत करता था, कुर्सी लेकर पास में आकर बैठ गया।

"सच यार तू तो कमाल है! इतना परफेक्ट अंदाजा.. तू तो मास्टर है इस गेम का, अब तक कितना जीत चुका है?"

सिद्धार्थ सच में कुछ नहीं समझ पा रहा था।
" क्या जीत चुका हूं? मैच?"

"अरे यार! छुपाने की इसमें कोई बात नहीं है। हम सब जानते हैं। हम सब अभी नए खिलाड़ी हैं पर तुझे देख कर लगता है तो पुराना खिलाड़ी है। अब यह मत बोलना कि तूने कभी बेटिंग नहीं की।" अंकित हँस रहा था।

"एक.. एक मिनट! तुम बैटिंग की बात कर रहे हो क्या या बेटिंग की " सिद्धार्थ घबरा गया था।

" हा हा हा! एक ही बात है यार.. वहां पिच पर खड़े होकर करेंगे तो बैटिंग है, यहां बैठे-बैठे करेंगे तो बेटिंग है.. फायदा तो दोनों हाल में है "

" मैं नहीं समझ पा रहा हूं सच यार! तो क्या तुम लोग यहां बैठकर सट्टेबाजी करते हो?"

" सट्टेबाजी मत बोल यार! यह तो खेल है। हम खिलाड़ी हैं। हमारा खेल है, हम देखते हैं, इंजॉय करते हैं, खुश होते हैं, अगर साथ-साथ थोड़ा कमा भी लिया तो क्या बुराई है?"

" नो भाई बिल्कुल बुराई है.. यह एक गैर कानूनी काम है "

" अच्छा चल एक बात.. हम जब यार दोस्त आपस में शर्त लगाते हैं और जीत जाते हैं तो इसका मतलब हम बचपन से गैरकानूनी काम करते हैं "

" वह छोटी-छोटी बातें होती हैं.. यहां बड़ी रकम की बात होती है, तुम जब जीतते हो तो कोई ना कोई हारता होगा और इतनी बड़ी रकम हारने के लिए वह पैसे गलत जगह से लाते हैं यार.. बात को समझो नुकसान हमारा ही है " सिद्धार्थ शायद खुद को समझा रहा था क्योंकि सामने वालों पर कोई असर नहीं हो रहा था।

" चल सिद्धार्थ! अभी तो तेरी ज्ञानवर्धक बातें सुन ली पर इतना तो कंफर्म है तू मंजा हुआ खिलाड़ी है.. चाहे कुछ भी बोल.. वैसे हम हारने के बाद भी पार्टी करते हैं, तू आ जाना शाम को क्लब में "

" यार मैं रात को बाहर नहीं जाता। मुझे अपना असाइनमेंट कंप्लीट करना है"

" कौन सी दुनिया में रहता है ब्रो? दिल्ली की नाइट लाइफ एंजॉय नहीं की तो जवानी बेकार है और वह है ना तेरी फ्रेंड.. अरे हम सब ने देखा है.. आरती.. आरती नाम है ना उसका? तू उसे भी लेकर आना.. मैं पक्का यकीन दिलाता हूं तू बोर नहीं होगा "
कहकर सिद्धार्थ की पीठ पर हाथ थपथपाते हुए वह वहां से चला गया।
जाने मन में क्या आया सिद्धार्थ ने आरती को फोन लगाया

" हेलो! आरती फ्री हो तुम?... नहीं नहीं अभी नहीं.. शाम को.. हां क्लब में मिलोगी?.. अरे नहीं यार मैं क्लब नहीं जाता हूं.. आज पहली बार जा रहा हूं तो सोचा क्यों नहीं तुम भी साथ चलो... अरे पर हर्ज क्या है?... एक बार देख लेंगे.. नहीं चंदन और प्रिया नहीं सिर्फ मैं और तुम... अरे मैं उनको मना लूंगा... तुम आ जाओ... हां मैं तुम्हें क्लब के बाहर मिलूंगा.. "

सिद्धार्थ घर जाकर मां से बात करता है।

" मां आज रात मुझे नाइट स्टडीज के लिए चंदन के घर जाना है "

" देखो बेटा मैं पहले भी बता चुकी हूं, यह सब यारी दोस्ती सिर्फ भटकाव लाएगी, तुम दिन भर उनके साथ घूमते हो क्या वह काफी नहीं है?"

" मां मैं घूमने की बात नहीं कर रहा हूं। मुझे पढ़ने जाना है।"

" ऐसा है तो तुम उसे घर पर बुला लो "

" मां आप जानते हो.. आज पापा घर पर होंगे.. मैं तो खुद भी नहीं रहना चाहता हूं "

" ठीक है अभी से बात को तूल मत दो.. तुम्हें तो बस बहाना चाहिए.. चले जाना और सुनो.. ख्याल रखना "

मां के जाने के बाद सिद्धार्थ अजीब कशमकश में पड़ गया आज पहली बार उसने मां से झूठ बोला था किस लिए? यह सवाल वो खुद से बार-बार कर रहा था। आरती के लिए? नहीं वह तो उससे रोज ही मिलता है। क्या वह उन लड़कों के लाइफस्टाइल से आकर्षित हो रहा था? या फिर कुछ और था जो उसे अपनी और खींच रहा था और सिद्धार्थ चुंबक की तरह खींचा चला जा रहा था।
रात होते हैं सिद्धार्थ आरती को मैसेज करता है और क्लब के बाहर पहुंच जाता है। थोड़ी देर के इंतजार के बाद आरती भी आ जाती है। सिद्धार्थ की आंखें आरती को देखकर फटी रह जाती हैं। और दिनों से बिल्कुल अलग पार्टी वाले कपड़ों में बहुत गजब की लग रही थी जैसे किसी फिल्म की हीरोइन है।

" एक काम करते हैं आरती! क्लब में नहीं जाते हैं.. मैं तुम्हें यहीं बैठ कर रात भर में निहारूंगा "

" पागल हो गए हो क्या सिद्धार्थ? मैं इतनी मेहनत से घर से पढ़ाई का बहाना देकर मॉल तक गई फिर वहां कपड़े चेंज किए क्लब आए और तुम और कह रही हम पार्टी में नहीं जाएंगे। तुम्हें पता है मैं पहले कभी इस तरह की पार्टी में नहीं गई हूं। चलो ना चलते हैं प्लीज "
सिद्धार्थ और आरती क्लब के अंदर जाते हैं। भारी म्यूजिक और अंधेरे के बीच में जगमगाती रोशनी, म्यूजिक पर थिरकते जवान लड़के और लड़कियां, कुछ ही दूरी पर एक बड़ा सा एलईडी पैनल लगा हुआ था जिस पर किसी खेल का प्रसारण हो रहा था। देखने से साफ पता चल रहा था यह स्पोर्ट्स क्लब था। कई कुर्सियां लगी हुई थी और लड़के लड़कियां में बैठकर जाम पर जाम लगा रहे थे। सिद्धार्थ को देखते हुए अंकित ने उसे हाथ से इशारा किया। आरती का हाथ पकड़े हुए सिद्धार्थ अंकित के पास पहुंच गया।
अंकित ने सिद्धार्थ को गले लगाते हुए कह

" स्वागत है शहंशाह का!"
सिद्धार्थ शर्माते हुए आरती की तरफ इशारा करता है
" आरती ये अंकित है.. मेरी टीम के ओपनर.. बहुत अच्छा खेलते हैं"

"अरे नहीं नहीं आरती! मैं तो बहुत कच्चा खिलाड़ी हूं.. असली खिलाड़ी तो यह सिद्धार्थ है बस इसकी ओपनिंग बाकी है"

और सब हंसने लगते हैं अंकित उन दोनों की ओर ग्लास बढ़ाता है पर दोनों मना कर देते हैं। नींबू पानी का आर्डर करके एक कोने में बैठ जाते हैं। अंकित फिर उन्हें खींच कर ले जाता है डांस फ्लोर पर जहां गानों की धुन पर थिरकते हुए आरती और सिद्धार्थ एक दूसरे की आंखों में खो जाते हैं। इन सब बातों के बीच में समय का पता ही नहीं चलता है। आरती इशारा करती है कि अब उन्हें चलना चाहिए। अंकित सिद्धार्थ से कहता है
" यार असली पार्टी तो अब शुरू होने वाली है और तुम पहले जा रहे हो। तुम्हें पता नहीं बड़े-बड़े कांटेक्ट अभी यहीं बनते हैं। अगर जिंदगी में कुछ करना है, पैसे बनाने हैं तो बस यही मौका है.. मैं तुम्हें ऑफर देता हूं तुम्हारे साथ साथ मेरा भी फायदा है हहमारे साथ जुड़ जाओ "
सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए अंकित के तरफ देखता है कुछ सोचता है फिर कहता है

" भाई मैं आपको सोच कर बताऊंगा वैसे मेरी तरफ से ना कंफर्म है "
सिद्धार्थ आरती को लेकर बाहर चला जाता है। वह आरती के पीछे पीछे उसके घर तक जाता है। उसे सुरक्षित वहां छोड़कर फिर वह चंदन के घर निकल जाता है।
मां को उसने बता दिया था कि अगले दिन कॉलेज वो चंदन के घर से ही चला जाएगा। दरवाजे पर सिद्धार्थ को देखकर चंदन उसको ऊपर से नीचे तक देखता है

" जनाब आपकी मम्मी ने 3 घंटे पहले ही फोन किया था कि तुम पहुंचे कि नहीं... मुझे झूठ बोलना पड़ा तुम पहुंच गए थे.. कहां थे तुम?"

" कुछ नहीं यार बस आरती के साथ था मै..."

"अरे यार तुझे पता है सेमेस्टर सर पर है और तू यह डेट वगैरह कर रहा है.. तेरी मां को पता चला ना तो तेरे संग मेरा भी कत्ल कर देंगीं"

" अरे ऐसा कुछ नहीं है... तू टेंशन मत ले.. बोल क्या सच में स्टडीज करनी है या सोते हैं? "

" कर ले मेरे भाई! मेरे घर पर क्या बोलेंगे कि दोस्त को यहां सोने के लिए बुलाया है.. चल असाइनमेंट कंप्लीट करते हैं"

सिद्धार्थ मन ही मन मुस्कुराता है। चलो एक बोझ तो उतरा मन से कि मां से झूठ नहीं बोला दोस्त के साथ असाइनमेंट कंप्लीट करने वाली बात।
पढ़ाई के बाद जब से सिद्धार्थ बिस्तर पर जाता है तो उसकी आंखों से आज नींद गायब है। जगमगाती हुई रोशनी. उन लड़कों का रहन सहन पता नहीं क्या.. कुछ तो था जो सिद्धार्थ को अब आकर्षित कर रहा था... "

क्रमशः

©सुषमा तिवारी