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कर्मा - 4 - स्वागत नहीं करोगे हमारा

स्वागत नहीं करोगे हमारा...
(गतांक से आगे)

प्रिया और चंदन सिद्धार्थ को घूर रहे थे। चंदन ने सिद्धार्थ के पीठ पर थपकी देते हुए उसे विचारों के भंवर से बाहर निकाला
" अबे कहां खोया हुआ है तू.. सामने देख " सिद्धार्थ उन जादू भरी आंखों के माया जाल से निकल हकीकत की दुनिया में आ चुका था।
" आई..आई एम सॉरी मैं वो कुछ नहीं.. मेरा मतलब.. हाय आई एम सिद्धार्थ "
कहते हुए वह चेयर से उठ गया।
"तो? तो क्या करूं मैं पूछ रही हूं कि आप मुझे इस तरह से क्यों घूर रहे हो? "
फिर वह वहीं चेयर खिंच कर बैठ गई।

" मूड क्यों खराब है तुम्हारा? वैसे सॉरी मैंने तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं "
सिद्धार्थ ने वेटर को इशारा करके एक कॉफी और लाने के लिए कहा।
" अरे मेरा नाम आरती! फर्स्ट ईयर में हूं.. यार मत पूछो इतनी मुश्किल से नोट्स बनाए थे.. उस पर उस बंदे ने टकराकर सारा काम खराब कर दिया "
" तुम सचमुच इतनी शॉर्ट टेम्पर हो क्या? या कोई और वजह है?" सिद्धार्थ ने आरती के गुस्से का कारण जानना चाहा।
" तुम क्या साइकैटरिस्ट हो कि मैं तुम्हें अपनी प्रॉब्लम्स बताऊँ?.. हजार प्रॉब्लम्स होते हैं.. जिंदगी में होता है, कभी किसी दिन मूड खराब और फिर पूरा दिन एक के बाद एक आपके संग बुरा ही होता है.. वैसे तुम लोगों ने तो अपना इंट्रो दिया ही नहीं " आरती ने मूड संभालते हुए कहा।
" हम क्या इंट्रो देते? तुम आते ही चढ़ पड़ी थी "
प्रिया ने कहा।
" यह चंदन.. यह प्रिया और मैं सिद्धार्थ.. हम सब फर्स्ट ईयर इंजीनियरिंग के स्टूडेंट है.. "
सिद्धार्थ ने परिचय कराया।
" नाइस टू मीट यू आरती!"
चंदन हाथ आगे बढ़ाया।
हाथ मिलाने के बाद उन सब ने मिलकर कॉफी पीते हुए एक दूसरे से जान पहचान बढ़ाई। कैंटीन से निकलते हुए चंदन ने कहा
" यार सिद्दू! मुझे और प्रिया को लाइब्रेरी में कुछ काम है तुम आ रहे हो?"
सिद्धार्थ ने एक नजर आरती पर डालते हुए कहा
" मुझे तो लाइब्रेरी में कोई काम नहीं है, तुम लोग जाकर आओ "
दरअसल वह आरती के साथ कुछ समय और बिताना चाहता था। पहली मुलाकात में आरती के प्रति अपने आकर्षण को वह साफ साफ महसूस कर रहा था और आरती थी भी वैसी ही, शोख हवाओं से आते ही सिद्धार्थ का सुकून उड़ा ले गई थी।
" रहने के लिए कहां हो?"
आरती ने पूछा।
" मैं तो संगम विहार रहता हूं "
साथ चलते चलते सिद्धार्थ ने जवाब दिया।
" मिडिल क्लास ही हो!! चलो शुक्र है मुझे लगा कोई अमीर बाप का बिगड़ा हुआ शहजादा होगा "

" क्यों? मैंने कोई बदतमीजी की तुम्हारे साथ में?"

"हां लड़कियों को इस तरह घूरना बदतमीजी है"

" उस बात के लिए मैं सॉरी फील कर रहा हूं प्लीज "

"अरे हां हां! मैं मजाक कर रही थी.. कोई बात नहीं.. बात करने पर पता चला तुम इतने बुरे भी नहीं हो "

" तुम कहां रहती हो "

" एक्चुअली! पहली मुलाकात में इतना कुछ नहीं बताना चाहिए था.. तुम्हें भी.. पर अब तुम तो बता ही चुके हो, मैं मुनीरका में रहती हूं। मैं अपनी मॉम के साथ रहती हूं.. मेरी मॉम सिंगल पैरंट है और वह मेरी पूरी दुनिया है।"

" हां सही कह रही हो, मां तो पूरी दुनिया ही होती है बच्चों की और हमारी दुनिया उनके इर्द-गिर्द ही घूमती है "

बातें करते हुए दोनों गेट तक आ पहुंचे थे। आरती ने बाय कह कर सिद्धार्थ से विदा ली सिद्धार्थ ने देखा आरती अपने स्कूटर पर बैठी और जैसे हवा की तरह आई थी वैसे ही हवा की तरह चली गई। इसी तरह आरती और सिद्धार्थ और मिलने लगे। उनकी दोस्ती बढ़ती गई। आरती अब सिद्धार्थ चंदन और प्रिया की तिकड़ी में शामिल हो गई और इन दोस्तों की अब चौकड़ी बन चुकी थी। चारों खूब मस्ती करते, घूमते फिरते पार्टी करते.. साथ पढ़ाई भी करते। आरती ने कई बार सिद्धार्थ से उसके घर जाने की बात भी की थी पर सिद्धार्थ टाल देता था। वह आज तक चंदन और प्रिया को भी अपने घर पर नहीं लेकर गया था कारण सिर्फ एक था जब जसपाल यानी उसके पापा घर पर होते तो वह खुद भी घर पर ज्यादा नहीं है जाना चाहता था। समय की दूरियों ने दिलों में दूरियां पैदा कर दी थी और वह जानता था उसकी मां पूनम का उसका दोस्तों के साथ ज्यादा घुलना मिलना पसंद नहीं करेंगी। वह चाहती थी कि सिद्धार्थ अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरे शिद्दत से करें और ध्यान यहां वहां ना भटकाए। बस इसीलिए तो अपने दोस्तों को अपने पैरंट्स से दूर रखता था। हालांकि वह जानता था कि उसके दोस्त उसकी पढ़ाई में कभी बाधा नहीं बनते हैं पर घर पर इस बारे में वह बहस नहीं करना चाहता था। उसने देखा था अपनी आंखों से मां ने कितना कुछ सहा है उसकी पढ़ाई के लिए।
अब सिद्धार्थ आरती से अपने ग्रुप के अलावा अकेले में भी मिलने लगा था। उसके प्रति अपने आकर्षण को वह साफ साफ महसूस कर रहा था और उसके अलावा उसके दोस्त भी यह देख सकते थे। यह उम्र ही ऐसी होती है सब कुछ परियों की कहानी सा लगता है और हम राही कब हमदर्द और हमराज बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। अपने अपने मां के प्रेम में डूबे और उनके सपनों को पूरा करने की लालसा लिए हुए सिद्धार्थ और आरती अपने सपनों का ताना-बाना बुनते रहे। सिद्धार्थ कॉलेज के क्रिकेट टीम में भी था। हालांकि मां ने साफ मना किया था की खेल वेल छोड़कर सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना है पर अपने वर्षों की कोचिंग और खेल पर पकड़ के चलते उदास ना चाहते हुए भी क्रिकेट के प्रति आकर्षित ही था और जब कॉलेज से क्रिकेट टीम का चयन हो रहा था। वह चाह कर भी ना नहीं कर पाया। अच्छा खेलता था इसीलिए रेगुलर ना होकर भी टीम में उसकी परमानेंट जगह थी।
उस शाम कैंटीन में लगे छोटे से टीवी पर बाकी के टीम प्लेयर्स और भी स्टूडेंट के साथ सिद्धार्थ वहीं बैठा क्रिकेट मैच देख रहा था। प्रीमियर लीग शुरू हो चुके थे और युवाओं में उसे लेकर काफी उत्साह था। जिस दिन दिल्ली के टीम का मैच होता उस दिन तो उत्साह और देखने लायक होता था। सिद्धार्थ घर पर तो मैच नहीं देख पाता था क्योंकि मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं था तो वह दोस्तों के साथ यही कैंटीन में बैठकर देख लेता था। सिद्धार्थ ने कभी गौर तो नहीं किया था पर मैच के दौरान उसके बहुत से साथी प्लेयर फोन पर लगे ही रहते थे।
मैच का लास्ट ओवर था और वह बहुत ही रोमांचक मोड़ पर था। हार और जीत का फैसला करना बहुत मुश्किल था। पर तभी सिद्धार्थ ने कहा
"फील्डर गलत जगह पर है और बॉलर जिस लाइन और लेंथ से बॉलिंग कर रहा है पक्का 6 रन होंगे यानी कि दिल्ली जीत जाएगी।"
सब उसकी तरफ देखने लगे क्योंकि सारे विकेट गिरने के बाद जो बैट्समैन बैटिंग कर रहा था वह बची हुई एक लास्ट विकेट के तौर पर था और बैटिंग में उसका अनुभव कुछ खास भी नहीं था। वैसे सिद्धार्थ कि इस बात पर सबने गौर तो बहुत किया पर अमल नहीं किया। लेकिन अगली बॉल पर जब 6 रन बनते ही दिल्ली मैच जीत गई तब जाकर सब ने आश्चर्य से सिद्धार्थ की तरफ देखा

" भाई कहां था तू तू तो बवाल मचा देगा स्वागत है तुम्हारा स्मार्ट बॉयज क्लब में..

क्रमशः..

©सुषमा तिवारी


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