कर्मा - 1 Sushma Tiwari द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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कर्मा - 1

दिलवालों के शहर में सपनों की उड़ान






देश का दिल दिल्ली, कई सपनों का रंग महल.. सत्ता के गलियारों से लेकर तंग गलियों तक.. कई जिन्दगियों की गवाह दिल्ली, आज भीड़ वाली सड़क पर एम्बुलेंस पूरी तेजी में साइरन बजाते दौड़ी चली आ रही थी। उस साइरन से निकलती आवाज जो बिलकुल अच्छी नहीं लगती सुनने में एक अस्पताल के आगे थमती है जहां आनन-फानन में कुछ लोग जिंदगी से जंग हारते एक इंसान को आईसीयू तक पहुंचा देते है। कुछ ही पल के रोने चीखने की आवाज़ों के बाद सिर्फ मशीनों की आवाज आ रही थी जो यह सुनिश्चित कर रही थी कि जिंदगी हारी नहीं है.. इन आड़ी टेढ़ी लकीरों के सहारे पर है।

हाँ ऐसी ही थी तो लकीरें उस दिन भी मशीनों पर.. तब एक जिंदगी दुनिया में आई थी।

22 साल पहले..

मशीनों के आवाज के बीच में पूनम की गोद में नन्हे सिद्धार्थ की किलकारियाँ और जसपाल के खुशी में चिल्लाने की आवाज आ रही थी जो सबका मुँह मीठा करा रहा था। एक रिस्क से भरा ऑपरेशन जिसके बाद पूनम और जसपाल का बेटा सिद्धार्थ उनकी जिंदगी में सुरक्षित आ गया था।

वैसे तो जसपाल भी इस शहर में बड़े बड़े सपने ले कर आया था। अपने पूरे गाँव में हिसाब किताब का सबसे पक्का जसपाल कई जगह किस्मत आजमाने के बाद सैनिक फार्म की बड़ी बड़ी गाड़ियों में बैठने लगा।

ना ना चौंकिए मत!
किस्मत इतनी जल्दी मेहरबान कहाँ होती है.. वो वहाँ एक साहब के यहां ड्राइवर की नौकरी करने लगा था। जसपाल ड्राइविंग के साथ साथ साहब लोगों की बाते भी ध्यान से सुनता था, क्या पता कब बड़ा आदमी बनने का कोई नुस्खा हाथ लग जाये।
जसपाल के बड़े बड़े सपनों के पंख रोज उसे सैनिक फार्म से सिर्फ संगम विहार के उसके छोटे से फ्लैट तक पहुंचा देते थे। जहां उसकी पत्नी पूनम और बच्चा सिद्धू (सिद्धार्थ) उसकी राह देखते थे। पूनम की खुशियों का एक ही ठिकाना था इन दोनों के मुस्कराते हुए चेहरे! जो मिला उसमे संतुष्ट पूनम ने कभी जसपाल से किसी कमी की शिकायत नहीं की पर जसपाल को हमेशा लगता था कि वो पूनम के लिए एक दिन दुनिया भर की खुशियां खरीद लाएगा।

जसपाल ने ध्यान दिया था कि जब भी क्रिकेट मैच शुरू होते थे तो साहब लोग आपस में ढेर सारी बातें करते थे। पैसों की.. और ढेर सारे पैसों की! रोज गाड़ियां कई तंग गलियों के पास से भी गुज़रती जहां काग़ज पर लिखे फोन नंबरों और पैसों के बैग का लेना देना होता था। साहब लोग बहुत खुश नजर आते थे। कभी कभी ये काम वो लोग जसपाल से भी करवा लेते थे। पैसों की खुशबु जसपाल के नथुनों को लग चुकी थी बस इस हलवाई के दुकान का पता उसे भी चाहिए था।

एक दिन उसने काग़ज की पर्ची में लिखा नंबर नोट कर लिया और एक पीसीओ पहुंच कर फोन लगाया। जसपाल को पता चला कि यहां बस आपको अंदाजा लगाना है और पैसे बनाने है। वो कहते है ना जब नसीब बदलने पर आए तो रास्ता दिखा ही देती है। जसपाल को तो सीधे सैनिक फार्म से संगम विहार के बीच आसान पुल नजर आने लगा। उसकी आँखे चमक उठी और जसपाल सट्टे के खेल में उतर गया। किस्मत चमकी और जसपाल अब ड्राइविंग की नौकरी छोड़ चुका था। शुरुआती फायदे के बाद उसे चस्का लग गया और घर पर ही अपना काम शुरू कर दिया।

फ़िर एक दिन जब वो घर आया तो..

" हाँ ये टीवी उधर लगवा दो और ये फोन... फोन यही टीवी के सामने टेबल पर.. हाँ बस बस यही पर.. शाबाश!"
जसपाल दो आदमियों को घर लाया था जो घर पर बड़ा रंगीन टीवी और लैंड लाइन फोन लगाने आये थे। पूनम बस आँखे फाड़े सब देखे जा रही थी। नन्हा सिद्धू भी टीवी देख उछल रहा था। उन सबके जाने के बाद पूनम ने जसपाल से कहा

" ये सब क्या है? इतने पैसे क्यों खर्च किए?.. हमे पैसे बचाने है सिद्धू को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाएंगे.. बात हुई थी ना.."

पूनम की बेचैनी उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।

" अरे मेरी पुन्नी! मैं जानता हूं.. और ये खर्च नहीं है.. ये तो पैसों की फैक्ट्री लगा रहा हूँ सीधे घर पर.. तू देखती जा बस हम कहाँ से कहाँ पहुंच जाएंगे " जसपाल ने पूनम को गोद में उठाते हुए कहा।

पूनम जानती थी यह सब सही नहीं है पर आदतन उसने कुछ नहीं कहा। वह तो जसपाल के चेहरे की खुशी देख सब भूल जाती थी। और वो जानती थी जसपाल करेगा अपने मन की ही टोकने पर छुपा कर करेगा।
पूनम बस अब चाहती थी कि सिद्धार्थ को सही शिक्षा और संस्कार मिले ताकि वो एक सीधी, सुकून और इज्ज़त भरी जिंदगी जी सके। अब जब भी क्रिकेट मैच होते जसपाल दिन भर टीवी के आगे पड़े रहता और फिर बैग लेकर बाहर आना जाना लगा रहता था। जसपाल अपनी नई जिंदगी में तेजी से घुल रहा था।

एक दिन शाम के चाय के समय जसपाल सिद्धू के साथ खेल रहा था।

तभी फोन बजा।

" पुन्नी! देख जरा किसका फोन है..ओये सिद्धू चल चल एक बॉल और..बैट ढंग से पकड़.. तूझे क्रिकेटर बनना है.. ओये पुन्नी फोन तो उठा ले " जसपाल चीखते हुए बोला।

" पकौड़े जल जाने है मेरे सारे.. तुम क्यों नहीं उठाते.. मेरा कौन सा फोन आता है.. दिन भर इस चोगे में तो तुम घुसे रहते हो.. घर को ही बाप बेटे ने मैदान बना दिया है "
भुनभुनाती हुई पूनम किचन से फोन की ओर बढ़ी।

" मम्मी! मैंने क्रिकेट नहीं खेलना.. कार चाहिए.. पापा से बोलो ना.. " सिद्धू ने माँ से शिकायत लगाई।

" ओये खेल तू चुपचाप! पैसे आने है यहीं से.. तभी तो कार खरीदेगा.. चल एक बॉल और " जसपाल ने सिद्धू को प्यार भरी झड़प लगाई।

पूनम ने लपक कर फोन उठाया जो इतनी देर में दो बार बज चुका था।

" हैलो! कौन बोल रहा है जी? " पूनम ने फोन पर पूछा।

" अच्छा!.. अच्छा जी.. हाँ एक मिनट ".. फोन पर हाथ रख कर
" अजी सुनते हो sss "
पूनम ने आवाज लगाई।

" हाँ बोल क्या है?" जसपाल ने पूछा।

" विदेश से किसी भाई का फोन है.. आपको पूछ रहे "

पूनम के कहते ही जसपाल के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी।

पसीने की बूंदे माथे पर घिर आईं और पूनम फोन हाथ में लेकर चिल्लाती रही पर जसपाल को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। मानो उसे काटो तो खून नहीं।

" ऐसी कौन सी गलती हो गई मुझसे कि भाई ने सीधे घर पर फोन...

क्रमशः...


©सुषमा तिवारी