मेरा पति तेरा पति - 9 Jitendra Shivhare द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेरा पति तेरा पति - 9

9

आधीरात में ज्योति को प्रसव पीड़ा शुरू हुयी। अविनाश तुरंत ऑटो लेने भागा। इधर रमा ने हाॅस्पीटल में उपयोगार्थ साथ में ले जाने वाली सभी आवश्यक वस्तुएँ रख ली। ज्योति की नज़र उतारकर रमा ने उसे ऑपरेशन थियेटर को विदा किया। रात के तीन बजे यह खब़र आई की ज्योति इस बार भी कुलदीपक जन न सकी। रमाबाई तो व्याकुल हो गयी। सुन्दरलाल भी बैचेन दिखे। अविनाश अब भी ज्योति के आसुं पोंछ रहा था। ससुराल पहूंचते ही ज्योति का वास्तविक संघर्ष अब शुरू हुआ था। सीजर डिलेवरी के बाद भी उसका खयाल रखने वाला वहां कोई नहीं था। नन्हीं रोशनी और तीन वर्ष की दीपा ही अब ज्योति का सहारा थी। तानों और व्यंग्य से लबरेज़ वचनों के बिना ज्योति का एक दिन न जाता। घर और रसोई का काम करते-करते वह और भी अधिक दुपली होते गयी। छः माह का ही समय बिता होगा और रमाबाई ने पुनः बेटे का राग छेड़ दिया। अविनाश ने कोशिश की वह अपनी मां को समझा सके लेकिन इसमें वह कामयाब नहीं हुआ। जल्दी ही ज्योति ने उम्मीद भरी उल्टियाँ पुनः शुरू कर दी। सुन्दरलाल ने राय दी की अब किसी तरह की कोताही न बरती जाये। अन्य शहर जाकर चोरी-छीपे लिंग की जांच करवा लेने में ही भलाई है। रमाबाई सहमत थी जबकी ज्योति अहसज। मगर उसकी आवाज़ दब चुकी थी। दो बेटीयों की परवरिश और पेट में पल रही संतान के हितार्थ उसने सबकुछ सहने का निर्णय लिया। लिंग जांच में मोटी रकम दी गयी। और फिर वह खुशखबरी आई जिसका घर में सभी को इंतज़ार था। ज्योति के पेट में इस बार लड़का ही था। ज्योति की मानो किश्मत चमक उठी थी। उसके पुराने दिन लौट आये थे। उसकी आव-भगत और देखभाल में रमाबाई ने रुपयों की बोरीयों के मुंह खोल दिये थे। खुब खर्चा किया जा रहा था। ज्योति के राजसी ठाठबाट देखकर उसके जनक माता-पिता भी प्रसन्नता से खिल उठे। अब उन्हें भी कोई संताप नहीं था। दीपा और रोशनी के दिन फिर गये थे। उन्हें भी अच्छे-अच्छे कपड़े और खाने-पीने की च़ीजें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने लगी थी। इन सबमें एक तकनीकी समस्या यह थी की ज्योति शारीरिक रूप से बहुत दुर्बल हो चुकी थी। सीजर ऑपरेशन करते वक्त़ बहुत अधिक रक्त बह जाने का खतरा था। कुल मिलाकर ज्योति का सुकशल प्रसव एक बहुत बड़ा संकट था। सावधानी और सुरक्षा के बहुत सारे प्रयास किये जाने लगे। ज्योति का नियमित चेकअप और उचित खान पान का प्रबंधन रमाबाई देख रही थी। अविनाश और सुन्दरलाल भी यथासंभव सहयोगी बनकर उभरे। ज्योति के माता-पिता भी उसके लिए मान-मनौति कर चुके थे। इसके साथ-साथ वे दोनों ज्योति के आसपास ही बने रहने का प्रयास करते।

ज्योति के लिए यह सबकुछ करने के बाद भी डाॅक्टर्स संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने ऑपरेशन के पहले ही बता दिया की बच्चा बहुत कमजोर है। जीवित निकला तो आपका सौभाग्य। रमाबाई की तो धड़कन तीव्र गति से भाग रही थी। गला सूखने लगा था। यही हाल अविनाश, सुन्दरलाल और ज्योति के माता का भी था। रात भर ऑपरेशन चलता रहा। अविनाश और उसके दोस्तों ने ज्योति के लिए रक्तदान भी किया। मगर होनी को कुछ ओर ही मंजूर था। शिशू में प्राण नहीं थे। वह निर्जीव ही धरती पर आया। रमाबाई का चेहरा पीला पड़ गया। शरीर का ब्लडप्रैशर इतना बड़ा की वही उन्हें भी एडमिट करना पड़ा। अवसर भांपकर ज्योति के माता-पिता उसे अपने साथ मायके ले गये। दीपा और रोशनी भी साथ ही थी।

स्वास्थ्य लाभ लेकर रमाबाई ने तो यहां तक कह दिया की अविनाश की दूसरी शादी करवा दी जाये। ज्योति अब किसी काम की नहीं रहीं। उसकी बच्चेदानी अब

इतनी भी योग्य नहीं की एक शिशू को नौ माह पाल सके। मगर अविनाश इसके लिए तैयार नहीं था। वह कानूनी पचड़े में फंसकर अपने लिए नयी मुसीबत नहीं खड़ी करना चाहता था।