Mera Pati Tera Pati - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरा पति तेरा पति - 1

1

आधी रात में दरवाजे की बैल बज उठी।

स्वाति ने कमलेश को जगाया।

"सुनो! उठो! देखो बाहर कोई आया है।"

"इतनी रात में कौन आया होगा।" कमलेश ने उंगलियों से आंख मलते हुये कहा। वह दरवाजे के पास पहूंचा। उसने मैजिक आई में से झांककर देखा। बाहर कोई लड़की खड़ी थी। उसके चेहरे पर डर था। कमलेश ने दरवाजा खोल दिया।

"कौन है आप?" कमलेश ने पुछा।

वह कुछ न बोली। सीधे घर के अंदर आ गयी।

"साब मुझे बचा लो।" वह युवती हाथ जोड़ कर बोली। वह स्वाती को देखकर वह उसके पास जा पहुंची। स्वाती ने उसे धीरज बंधाया।

"देखो! डरो नहीं। तुम यहाँ सुरक्षित हो।" कमलेश ने कहा। वह युवती स्वाति से जा चिपकी। पैशे से वकील स्वाति ने उसे सांत्वना दी। उसने कमलेश को आंखों में संकेत दिया। स्वाती चाहती थी कि कुछ देर उस युवती को आराम करने दिया जाये। क्योंकी वह बहुत डरी हुई थी। स्वाती उसे मेहमान कक्ष में ले गयी। बेड पर लेटते ही वह युवती गहरी नींद में सो गयी।

"स्वाति इस तरह किसी अनजान लड़की को घर में •••।" कमलेश बोलते हुये रूक गया।

"डोन्ट वरी। मैंने उसका दरवाजा बाहर से लाॅक कर दिया है। सुबह तक देखते है!" स्वाति ने अपने पति कमलेश से कहा।

दिनों दिन अविश्वास की घटित हो रही घटनाओं को देखकर सतर्क रहने में ही भलाई थी। किन्तु इस सतर्कता के बहाने किसी जरूरत मंद की मदद रोकी नहीं जा सकती थी। उस रात यही उन वकील दम्पति ने किया। सुबह कमलेश और स्वाति उस लड़की के जागने से पहले ही नींद से जाग चूके थे। चाय नाश्ते के बाद उस लड़की ने बताया की उसका नाम दीपिका है। वह लखनऊ शहर की रहने वाली है। यहां इंदौर में उसे जय नाम का युवक लेकर आया था। जय के इरादे ठीक नहीं थे। जय ने उसे रेड लाइट एरिया में बड़े दाम पर बेच दिया। दीपिका ने देह व्यापार को स्वीकार करने से मना कर दिया था। परिणाम स्वरूप उसे शारीरिक हिंसा भोगनी पड़ी। तीन दिनों से वह उन लोगों से बचते-बचाते यहां-वहां भाग रही है। उसने पुलिस की सहायता लेनी चाही। मगर उसे पुलिस स्टेशन पर भी वे ही लोग घुमते-फिरते दिखे जिसने उसे कैद कर रखा था। बड़ी मुश्किल से उसने अपनी अस्मत बचाई रखी थी। स्वाति ने उससे कहा कि वो अपने गांव क्यों नहीं चली जाती? तब दीपीका ने बताया की घरवाले उसके और जय के प्रेम के विरूद्ध थे। दिपीका और जय किसी को बिना बताये गांव से भाग आये थे। अब उसे वहां किसी किमत पर स्वीकार्य नहीं किया जायेगा। कमलेश और स्वाति की हमदर्दी दीपिका के प्रति थी। उन्होंने अपने स्तर पर दीपिका के गांव में उसके परिवार वालों से फोन पर बात की। जहां से वही उत्तर मिला जो दीपिका ने उन्हें बताया था। वकील दम्पति ने दीपीका को अपने यहां घरेलू काम-काज हेतु रख लिया।

एक दिन घर में कामकाज कुछ अधिक था। दीपिका और स्वाति ने मिलकर सारे घर की सफाई कर डाली। झाडु- पोछा और सोफा टेबल इत्यादि के कवर तक पानी से धोकर झत पर सुखा दिये। दिन-भर के काम से स्वाति इतनी थक गयी थी की जल्दी ही खाना खाकर वह सोने चली गयी। दीपिका का बदन भी थक कर चूर हो रहा था। वह गेस्ट रूम में जाकर सोने चली गयी। कमलेश देर रात घर लौटे। उन्हें पुर्व पता था की आज रात का डीनर उन्हें स्वयं अपने हाथों से निकालकर खाना है। कमलेश ने ऐसा ही किया। खाना-पीकर वे भी सोने जा पहूंचे। स्वाती के कमर पर हाथ रखकर उसे कुछ हिलाया-डुलाया। मगर स्वाति का प्रतिउत्तर कमलेश को निराश कर देने वाला था। उसने साफ कहा कि आज घर के कामकाज से उपजी थकान से वह सहयोग हेतु अनिच्छुक है। अतः कमलेश शांति से सो जाये। कमलेश ने सोने का प्रयास किया किन्तु नींद उससे कोसों दुर थी। हृदय में उठता उन्माद और काम के बोझ तले दबा कमलेश बालकनी में आकर सिगरेट फूंकने लगा।

आसमान की तरफ धुआं उड़ाते हुये उसकी नज़र अपनी दायीं तरफ गयी। उसकी बगल में दीपिका खड़ी थी। एक दम शांत। उसकी दृष्टि दूर तक कुछ खोज रही थी। बगैर टुपटे के चांदनी रात में दिपीका का सौन्दर्य कमलेश को आकर्षित कर रहा था। कमलेश की आंखों में वासना उतर आयी थी। वह धीरे-धीरे दीपिका की तरफ बढ़ रहा था। कांपते हुये उसने दीपिका के कंधे पर हाथ रख दिया।

"अरे! कमलेश जी आप!" दीपिका मर्दाना स्पर्श से सहम गयी। वह खुद को कमलेश की नज़रों से ढकने की असफल कोशिश कर रही थी।

"दिपिका! क्या आज की रात•••।" कमलेश दीपिका के बहुत करीब आ चूका था।

"कमलेश जी! ये क्या आप कर रहे है?" दिपिका अनचाहे स्पर्श से नाराज़ थी।

"मैं जो कर रहा हूं मुझे करने दो।" कमलेश दीपिका के हथेलीयों से खेल रहा था। उसने दिपिका के दोनों हाथों को अपने हाथ में ले रखा था। दिपीका अपने हथेलियों पर कमलेश के होठों का चुम्बन सह नहीं सकी। वह छिटकर हाॅल के अंदर आ गयी। उसे डर था कहीं कुछ अनिष्ट न हो जाएं! दिपीका दौड़कर अपने कमरे में पहुंच गयी। 

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