मेरा पति तेरा पति - 2 Jitendra Shivhare द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेरा पति तेरा पति - 2

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गेस्ट रूम का द्वार वह बंद करना चाहती थी मगर कमलेश के बल के आगे उसकी एक न चली। वह बैड पर जा गिरी। कमलेश उसकी तरफ बढ़ने लगा।

"कमलेश जी! ये सही नहीं है। आप ये अन्याय नहीं कर सकते।" दीपिका दबी आवाज़ में बोली।

"तुम्हारी आवश्यकता मैंने पुरी की। तुम्हें अपने घर में पनाह देकर। अब मेरी जरूरत तुम्हें पुरी करनी चाहिये।" कमलेश बोला।

इस तरह के वचनों की उसे कमलेश से उम्मीद नहीं थी। मगर उसे यह भी पता था कि कमलेश अभी वासना की आग में बुरी तरह झुलस रहा है। यदि उसे अभी नहीं रोका गया तो इस तरह का यौन शौषण उसकी दिनचर्या में शामिल हो जायेगा। वह कमलेश को रोकना चाहती थी। उसने मिन्नते की। कमलेश को अपनी पत्नी स्वाति का वास्ता तक दे डाला। मगर कमलेश नहीं रूका। थक हार कर दिपीका ने खुद को कमलेश को हवाले कर दिया।

सुबह हुये बहुत देर हो चूकी थी। दस बजे स्वाति की नींद खुली। वह हडबड़ी में उठी। बिस्तर पर कमलेश नहीं था। वह उठकर हाॅल में आयी। जहां कमलेश चुपचाप बैठा था। रात हुये घटनाक्रम से वह अंदर ही अंदर बहुत पछता रहा था। स्वाती उसे देखकर समझी की शायद कमलेश उससे नाराज़ है। वह कमलेश के पास पहूंची। कमलेश के सिर पर वह प्यार से हाथ फैरने लगी। उसकी मंशा थी कि हो सकता है कमलेश उसे माफ कर दे! मगर कमलेश स्वाति के पेट मे घुसा जा रहा था।

"मुझे माफ कर दो स्वाति!" कमलेश ने कहा।

"अरे! मगर क्यों! माफी तो मैं आपसे मांगने आयी थी।" स्वाति ने कहा।

तब ही वहां बालों पर टाॅवेल बांधे दिपीका गेस्ट रूम से निकली। वह रसोई घर में चाय बनाने के लिए हाॅल से गुजर रही थी।

"दीपिका! तुमने अब तक कमलेश को चाय नहीं दी?" स्वाति खड़ी हो चूकी थी। कमलेश स्वयं को संभाल रहा था।

"वो दीदी! नींद जरा देर से खुली। अभी बनाकर लाती हूं।" दिपिका बोली।

"नहीं दिपिका! तुम यही रहो। मैं स्वाति के सामने अपनी गल़ती स्वीकार करना चाहता हूं।" कमलेश ने खड़े होकर दिपीका से कहा।

"क्या बात है कमलेश? देखो मेरा जी घबरा रहा है। जल्दी बताओ।" स्वाती बोली। वह दिपीका और कमलेश के चेहरों को पढ़ चूकी थी।

दिपिका कुछ न बोली। वह चुपचाप नज़रे झुकाकर खड़ी थी।

"स्वाति! मुझसे बहुत बड़ी गल़ती हो गयी है। कल रात मैंने दिपिका से जबरदस्ती यौन संबंध बनाये है।" कमलेश बिना डरे बोल गया।

"क्या? ये क्या मज़ाक है कमलेश?" स्वाति को विश्वास नहीं हो रहा था।

"ये सच है दीदी। कल रात मुझे निंद नहीं आ रही थी। मैं बाल्कनी में आकर खड़ी हो गयी। कमलेश जी भी वहां आ गये। इन्होंने मेरे लाख मना करने पर भी मेरे साथ संबंध बनाये। यही सच है।" दिपीका बोली।

कमलेश की अभिस्वीकृति से दिपिका का मनोबल बढ़ गया था। उसने रात की घटना की सत्यता को अपने कथनों से प्रमाणित कर दिया।

"निर्लज्ज! बेशर्म! जिस घर ने तुझे पनाह दी उसी घर में आग लगा दी। अगर कमलेश ने तेरे साथ जबरदस्ती की भी थी तो तू शोर मचा सकती थी। चिल्ला-चिल्लाकर सारा मोहल्ला यहां जमा कर लेती। मगर नहीं! तुने ऐसा कुछ भी नहीं किया। क्योंकी तेरे भी तन-बदन में भी वही आग सुलग रही थी जिसमें कमलेश झुलस रहा था।" स्वाती आगबबूला थी।

"स्वाति! शांत हो जाओ! जो हुआ उस पर हमें पछतावा है।" कमलेश ने स्वाति के कंधे पर हाथ रखना चाहा। मगर स्वाति ने अपने एक हाथ से उसके हाथ को दुर छिटक दिया और दुसरे हाथ से कमलेश के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

"एक रात तम्हारे साथ संबंध बनाने से मना क्या कर दिया, तुमने दुसरी औरत ढुंढ ली। क्या एक रात भी मैं अपनी इच्छानुसार व्यतीत नहीं कर सकती?" स्वाती भड़की हुई थी। उसे समझाना आसान नहीं था।

"जब-जब तुम पुरूषों का मन करता है हम औरतों को बैडरूम में धकेल देते हो। न दिन देखते न रात। हमारी इच्छा, अनिच्छा भी जानना जरूरी नहीं समझते। मगर जब हम विरह वेदना में तड़प कर तुम्हारे पास अपने बदन की ज्वाला शांत करवाने आते है तब कभी थकान, कभी सिरदर्द और कभी सुबह जल्दी उठने का बहाना बनाकर हमें जल बिन मछली के समान तड़पता हुए छोड़ सो जाते हो।" स्वाती अब भी आग उगल रही थी।

कुछ पलों के लिए वहां घनघौर सन्नाटा पसर गया। दिपिका के रोने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी। स्वाती ने दीपीका को सिसकते हुये देखा। 'इन सब में इस बेचारी का क्या कसूर? वह तो कल भी असहाय थी और आज भी। उसकी ईज्जत कभी महफूज़ नहीं थी। उसे लुटना ही था। चाहे सड़क पर या ऊंचे मकानों के अंदर! मगर अब इसका भविष्य क्या होगा? या तो दिपीका यूं ही अनवरत कमलेश जैसे पुरूषों के हाथों मसलती-कुचलती रहेगी या किसी कोठे पर बैठकर अपनी देह को किराये की मशीन बनाकर उपयोग करने वालों से आजीवन पारिश्रमिक लेती रहेगी! अधिकतम जब तक सौन्दर्य ने साथ दिया, जिन्दगी कट जायेगी। बुढ़ापे की झुर्रियों ने यदि जरा भर आक्रांत किया तो बाकी बुढ़ी औरतों की तरह अपनी बिरादरी से बेदखल कर दी जायेगी। कल फुटपाथ या किसी मंदिर किनारे खैरात के टुकड़ों में दीपीका जीवन के आखिरी पलों को गुजारने पर विवश हो जायेगी। म्युनिसिपल वाले इसकी लाश को फूंक-फांक भी देंगे। कुछ दिनों में दिपीका भुला दी जायेगी।