मेरा पति तेरा पति - 4 Jitendra Shivhare द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेरा पति तेरा पति - 4

4

"इतनी ही पसंद आ गयी है तो जाकर बात कर ले।" देव ने रमन से कहा।

"ऐसी कोई बात नहीं है।" रमन ने बात काटी।

"वेरी गुड। लेकिन मुझे तो वो लड़की बहुत पसंद आ गयी है। मैं अभी आया उससे बात कर के।" देवा ने कार का दरवाजा खोलते हुये कहा।

"अरे! नहीं देव। यार वो शरीफ लड़की दिखाई दे रही है।" रमन ने बोला।

"तब ही तो कह रहा हूं। मैं अभी आया। तु रूक।" देव ने कहा और वह सड़क पार करते हुये आराधना के नजदीक जा पहूंचा।

वह आराधना से बातचीत करने लगा। रमन कार में ही बैठा हुआ यह देख रहा था। देव की किसी पर बात पर आराधना हंस दी। आराधना की हंसी भरी दोपहरी में शीतल छांव की तरह थी। जो रमन के हृदय को असीम ठण्डक दे गयी। कुछ देर बाद रमन अपने हाथों में कुछ पुराने कपड़े लेकर कार के नजदीक आया।

"अबे! तु क्या सचमुच इन्हें पहनने वाला है।" रमने ने मज़ाक किया।

"अरे नहीं यार! रास्ते में किसी को दे देंगे।" देव बोला।

"कर आया उस भोली लड़की से फ्लर्ट?" रमन ने कार स्टार्ट करते हुये कहा।

"नहीं यार! आज पहली बार किसी लड़की के साथ फ्लर्ट करने का मन नहीं हुआ।" देव ने कहा।

कार अपने गंतव्य पर चल पड़ी। दोनों के हृदय में आराधना घर कर चुकी थी।

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अगले दिन देव ने रमन को बताया कि वह शादी करने का प्लान कर रहा है। और वह भी आराधना से। रमन के चेहरे पर कुछ पलों के लिए उदास छा गयी। किन्तु शीघ्र ही उसने अपने दिल को मना लिया। अपने दोस्त की खुशी में खुश होना ही एक सच्चे और अच्छे दोस्त की निशानी होती है और इसी बात का परिचय रमन ने दिया। गंगाराम पुरोहित ने आराधना की मां कांता को ये खुशखबरी सुनाई कि शहर के एक अच्छे घर से आराधना के लिए रिश्ता आया है। देव ने जब से आराधना को देखा है वह उसके प्रेम में पागल हो गया था। कांता प्रसन्न थी। वह चाहती थी उसके जीते-जी आराधना का घर बस जाये। उसे अपने बहू-बेटे पर तनिक भी विश्वास नहीं था। कांता के मरने के बाद आराधना का क्या होगा? यही सोच-सोच कर वह अब भी अपनी बेटी आराधना के हाथ पीले करने के प्रयास में जुटी थी। उसने अपने सभी जान-पहचान के लोगों में आराधना के विवाह के संबंध में बात चला दी थी। किन्तु आराधना से विवाह होते ही उसका उसके पति का असामयिक निधन हो जाने के भावि डर से कोई भी उसे अपनी बहू बनाने की हिम्मत नहीं दिखा रहा था।

गंगाराम पुरोहित के वचनों ने कांता को असीम सुख दिया था किन्तु आराधना फिर से विवाह करना नहीं चाहती थी। जिस तरह आज देव उसकी सुन्दरता का कायल है उसी तरह उसके पुर्व पति भी तो थे। आराधना के पहले पति अशोक ने आराधना को सिर्फ फोटो देखकर ही पसंद कर लिया था। दोनों की शादी मात्र छः माह चली और एक दिन खबर आई की शूज कारखाने में काम करते हुये अशोक के दोनों हाथ कट गये। अत्यधिक रक्त बह जाने के कारण हाॅस्पीटल जाते-जाते अशोक ने दम तोड़ दिया। अशोक के बाद आदित्य आराधना के जीवन में आया। दोनों बहुत खुश थे। शादी के आठ माह बाद आराधना ने यह खुश खबर सुनाई की वह आदित्य के बच्चें की मां बनने वाली है। आदित्य तब खेत पर थ्रेसर मशीन से

गेहूं निकाल रहा था। वह आराधना की ओर मुड़ा ही था की शर्ट की बाजू पता नहीं कैसे थ्रेसर मशीन के अंदर उलझ गयी। मशीन ने शर्ट सहित आदित्य को अपनी ओर खींच लिया। आदित्य मशीन के अंदर बुरी तरह फंस गया था। अपने पति की इतनी दर्दनाक मौत देखकर आराधना पेट के बल ऐसे गिरी की उसके पेट में पल रहा बच्चा भी जीवित नहीं रहा। ससूराल से आराधना को धक्के मारकर निकाल दिया गया। और फिर कुछ सालों बाद नील का रिश्ता आराधना के लिए आया। आराधना ने साफ मना कर दिया। लेकिन नील की दीवानगी ऐसी थी की उसने आराधना को पाने के लिए अपने शरीर को चाकुओं से गोद लिया। यहाँ तक की आराधना को पाने के लिए उसने लड़ाई-झगड़ा किया। जेल तक गया। लेकिन उसने आराधना को उसने बता दिया की वह उससे कितना प्रेम करता है। आराधना एक बार फिर दुल्हन बनी। नील की दुल्हन। नील उसे पलकों पर बिठाये रखता। आराधना की खुशी के लिए वह कुछ भी कर गुजरता। आराधना को अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था कि वह उस पर इतनी मेहरबान कैसे हो सकती है? उसका शक़ जायज था। एक रात अचानक नील की तबीयत बिगड़ गयी। उसे तुरंत हाॅस्पीटल में एडमिट किया गया। बहुत उपचार के बाद भी डाॅक्टर उसे बचा नहीं सके। उसकी मौत का कारण पाॅयजन था जिसके कारण उसे टिटनेस रोग हो गया था।

नील की मौत के बाद आराधना एक जिन्दा लाश की बन गयी। कुछ माह तक तो उसकी मानसिक चेतना भी जाती रही। कांता ने थप्पड़ों से आराधना को मारा-पीटा इसके बाद भी आसूं थे की आराधना की आंखों से निकलने को तैयार न थे। इस बीच कांता ने अपनी बेटी की बहुत सेवा की। उसे नहलाना-धुलाना, खाना खिलाना और आराधना के कपड़े धोना! सबकुछ कांता ही करती। बेटे-बहु झांकते भी नहीं। दोनों मां-बेटी जीवित रहे या मरणासन्न हो, उन्हें परवाह न थी। पुरे एक साल के बाद आराधना सामान्य हो सकी। जीवन के प्रति आस का पौधा, आराधना के हृदय में कांता ने रोपा। जो अब पनप चुका था। वह धीरे-धीरे बढ़ रहा था। आराधना के चेहरे पर खुशी लौट आयी थी। यह देखकर कांता की बुढ़ी हड्डियों में बिजली-सा करंट दोड़ गया। वह पहले से अधिक श्रम करती। ताकी मरते-मरते अपनी बेटी आराधना के लिए कुछ कर जाये।

गंगाराम पुरोहित के मुख से यह सब सुनकर देव के होश उड़ गये। जिस सुन्दरता के पीछे वह पागल हुये जा रहा है उसी सुन्दरता ने तीन-तीन नौजवानों के प्राण हर लिये थे। देव की मां शांति अढ़ गयी। उसने पुरोहित जी और देव से साफ-साफ कह दिया की यह शादी नहीं होगी। देव ने भी अपने मन को मना लिया।

"ये क्या बेवकूफ़ी है देव! पहले उस लड़की को शादी का सपना दिखाया और अब उसी सपने को पल भर में तोड़ने की बात कर रहा है?" रमन ने देवा से कहा।

"देख रमन! सिर सलामत तो पगड़ी हजार! मैं आराधना से शादी नहीं कर सकता। जान है तो जहान है।" देव ने स्पष्ट किया।

"तो ये है तेरा सच्चा प्यार!" रमन ने कटाक्ष किया।

"रमन! समझने की कोशिश कर यार। अगर मिठाई में जहर है तो जानबूझकर उसे खाया नहीं जा सकता।" देवा बोला।

"ये सब अंध विश्वास है मेरे भाई। जीवन-मृत्यु किसी अपशगुन के कारण नहीं होते।" रमन बोला।

"तो तू कर ले ना उस विधवा से शादी। तुझे भी तो पसंद है न वो? अगर इतना ही निडर है तू तो भर दे उसकी मांग। पहना दे उसके गले में अपने नाम का मंगलसुत्र। चमका दे उसके माथे की बिंदीयां।" देव की बातों में गंभीरता थी।

रमन मौन खड़ा था। देव के तर्कों के आगे उसके पास उपयुक्त प्रतिउत्तर न था। वह उल्टे पैर लौट गया। रमन बाजार से गुजर ही रहा था की फुटपाथ पर

आराधना उसे दिखाई दे गयी। आज उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी। उसका प्राकृतिक सौन्दर्य इस बार भी रमन को जड़ कर गया। देव के द्वारा कहीं गयी सारी बातें अब भी रमन के कानों में गूंज रही थी। किसी को सीख देना कितना सरल कार्य होता है किन्तु उसी सीख को स्वयं अमल करना उतना ही कठीन होता है। रमन जानता था की उसके हृदय में आराधना घर चूकी है किन्तु बिना आराधना की अभिस्वीकृति के वह आगे कदम कैसे बढ़ा सकता था? रमन ने गंगाराम पुरोहित से मदद मांगी। गंगाराम ब-मुश्किल रमन का रिश्ता कांता के पास ले जाने को तैयार हुये क्योंकि देव के इंकार के कारण पहले ही उनकी बहुत किरकिरी हो चुकी थी। मगर इस बार आराधना ने विरोध प्रकट कर दिया। वह अब कठपुतली बनकर नाचना नहीं चाहती थी। उसने रमन के विवाह के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। इधर आराधना की भाभी रमन को अपनी बहन प्रिया से विवाह करने के लिए प्रयास करने लगी। उसने अपने पति से भी कहा की वह रमन से स्वयं बात करे कि वह उसकी साली प्रिया को अपना जीवनसाथी बना ले। दोनों ने रमन के सम्मुख आराधना की भरपूर निंदा की ताकी रमन जैसा कमाऊं और खुबसूरत नौजवान किसी तरह प्रिया से शादी कर ले। आराधना की न ने रमन को ओर भी अधिक प्रभावित किया। उसने आराधना के भैया-भाभी से साफ कह दिया की वह विवाह करेगा तो सिर्फ आराधना से। अन्य किसी को वह अपनी पत्नी कभी नहीं बनायेगा। यदि आराधना हां नहीं करती तब वह आजीवन कुंवारा ही रहेगा।

"ये क्या बेवकूफ़ी है रमन जी! आप मेरे लिए अपना किमती जीवन क्यों बर्बाद कर रहे है?" रमन से आराधना ने कहा। उसने रमन को अपने घर बुलावाया था।