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राम राज

प्रस्तुत है मेरी एक रचना उस वक्त की लिखी हुई जब वर्तमान महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी का राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चयन हुआ था ! 🙏
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आज हरिया बहुत खुश था । सुबह सुबह गांव के नुक्कड़ पर चाय की दुकान पर चाय पीने पहुंच गया । यहीं पर उसे वह खुशी उसका इंतजार करती हुई मिल गयी ।
आप लोग उल जुलूल कुछ भी सोच कर अपने दिमाग की नसों में तनाव न पैदा होने दें । दरअसल उसकी खुशी का कारण वह नहीं जो आप लोग अंदाजा लगा बैठे ,उसकी खुशी की वजह थी आज उसके चाय की दुकान पर पहुंचते ही उसकी होनेवाली आवभगत !
हुआ यूं कि नित्य की भांति हरिया जब चाय की दुकान पर पहुंचा अंदर सभी मेजें ग्राहकों से भरी देखकर ठिठक गया । उसने बाहर खड़े खड़े ही चाय पीने का मन बना लिया और चायवाले को चाय देने का इशारा कर दिया । बेचारा क्या जानता था कि उसे बड़े जोर का झटका धीरे से लगने वाला था ?
अंदर बैठे हुए ठाकुर दुर्जन सिंह ने पास बैठे रामू को धक्का देते हुए उठने पर मजबूर कर दिया और कहा ” अबे चल ! परे हट ! देख नहीं रहा अपने गांव के सम्मानित नागरिक श्रीमान हरीश चंद्र को । तेरी इतनी जुर्रत कि वो खड़े रहें और तू यहां कुर्सी पर बैठ कर चाय सुड़क रहा है ? ” और खुद उठकर हरिया की तरफ बढ़ गया । बड़े प्रेम से हरिया की बांह पकड़कर उसे अंदर खाली पड़ी कुर्सी की तरफ ससम्मान लाते हुए बोला ” अरे ! भाई हरिश्चन्द्र जी ! वहां बाहर क्यों रुक गए ? अरे अपना ही गांव है । किसकी मजाल है जो तुम्हारे सामने तुम खड़े रहो और वो बैठ जाये । आओ बैठो ! ”
और डपट कर चाय वाले से कहा ” अरे रघुआ ! चाय दे फटाफट साहब को ! अरे जानता नहीं इनको ? अरे ये अपने होनेवाले राष्ट्रपति की बिरादरी के हैं । अब तो इस बिरादरी वालों के दिन ही फिर गए । इनके क्या कहने ? अरे भाई ! मोदीजी आज की तारीख में वो पारस पत्थर हैं जो किसी कबाड़े को भी छू दें तो वह सोना बन जायेगा । और भला हो जाति-पांति और भाषा सम्प्रदाय से ऊपर उठकर राजनीति करने का दम भरने वाली मोदीजी की पार्टी का जिसने अबकी यह अवसर प्रदान किया है दलित बिरादरी से आनेवाले श्री रामनाथ कोविंद जी को और इसी वजह से अबकी राष्ट्रपति पद के चुनाव ने श्री हरिश्चन्द्र जी की बिरादरी के तो भाग्य ही बदल दिए हैं । कहते हैं हमारे आराध्य श्री राम जी के राज्य में भी ये दलित इतने खुश और सक्षम नहीं हुए रहे होंगे जितने अब मोदीजी के राम राज में होनेवाले हैं । रामराज का मतलब नहीं समझे ? सीधी सी बात है भाई ! हमारे होनेवाले राष्ट्र पति जी हैं श्री रामनाथ कोविंद जी । अब बताओ उनके नाम को संक्षिप्त कर दें तो क्या कहेंगे ? श्री राम जी ही न ! और जब हमारे देश पर उनका शासन चलेगा तो उसे क्या कहा जायेगा ? राम राज ही न ! ” कहते हुए ठाकुर दुर्जन सिंह उसे कुर्सी पर बैठाकर खुद भी उसके बगल में बैठ गया ।
चायवाले ने भी तत्परता से उसे चाय थमा दिया और कुछ न समझ पाने की सूरत में भी हरिया चाय सुड़कते हुए अभी कुछ दिन पहले ही इसी दुकान पर घटी घटना को याद करने लगा ।
वह इस बदले हुए माहौल को देख कर कुछ समझने का प्रयास करने लगा ।
उस दिन भी दिन का लगभग यही समय रहा होगा जब हरिया नित्य की भांति रघुआ की दुकान में बैठा अपनी मनपसंद चाय सुड़क रहा था । चाय के स्वाद का आंखें बंद कर आनंद लेते हुए हरिया को पता ही नहीं चला था कि कब गांव के ठाकुर दुर्जन सिंह का आगमन हो गया । उसे तो पता तब चला जब एक भद्दी सी गाली देते हुए दुर्जन सिंह की लात उसकी कमर पर पड़ी और वह कुर्सी सहित पीछे की मेज पर लुढ़क गया था । गनीमत थी कि प्याले का चाय समाप्त हो चुका था सो चाय से जलने से बच गया था ।
एक वो दिन था और एक ये आज का दिन है, उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही दुर्जन सिंह है जो उसका नाम भी बिना गाली दिए नहीं लेता था, आज उसके बराबर में बैठा हुआ था । उसे तो मन ही मन परम आनंद की अनुभूति हो रही थी ।
चाय पीकर जैसे ही उठकर खड़ा हुआ आसपास बैठे सभी उसके सम्मान में उठ खड़े हुए । रघुआ की तरफ दस रुपये का एक मुड़ा तुडा नोट बढ़ाया ही था कि खीसें निपोरते हुए रघुआ खुशामद करते हुए बोला ” अरे रख लीजिए हरीश जी ! आप ई का कर रहे हैं ? हम आपको एक ठो चाय भी नाहीं पीला सकते का ? ”
बड़ा खुश होकर हरिया थोड़ी अकड़ी हुई गर्दन के साथ लाला अमरनाथ जी के यहां जा पहुंचा । उसकी मेहरिया धनिया ने कुछ सामान लाने की फरमाइश जो कर दी थी । लाला अमरनाथ की दुकान उनके घर में ही थी । कुछ गांव वाले पहले से ही दुकान पर मौजूद थे लेकिन लाला जी ने हरिया को देखते ही दुसरे ग्राहकों को छोड़ कर हरिया से बोला ” अरे हरीश जी ! आप काहें तकलीफ किये ? किसी लड़के से कहलवा दिए होते तो हम सारा सामान घर पर ही भिजवा देते न ? खैर कोई बात नहीं । सामान आप लिखवा दो । अभी थोड़े ही देर में सारा सामान नौकर के हाथ से भिजवा देता हूँ । ”
अचरज में डूबे हरिया ने खुशी से उछलते दिल की धड़कनों पर काबू पाते हुए धनिया की पूरी फरमाइश लालाजी को लिखवा दिया और अपने घर की तरफ बढ़ गया । रास्ते में महादेव मंदिर के पुजारी ने मंदिर के प्रांगण में से ही आवाज लगाई ” अरे हरीश जी ! कहाँ रहते हैं भाई आप ? बहुत दिन हुए यहां दर्शन नहीं दिए ? आइये प्रसाद तो लेते जाइये ।"
और हरिया फिर से इसी मंदिर से इसी पुजारी द्वारा धक्के मारकर बाहर धकेलनेवाले दृश्य को याद करते हुए पुजारी से प्रसाद ले फिर से घर की तरफ चल पड़ा ।
घर पर धनिया व्यग्रता से उसकी बाट जोह रही थी । उसे खाली हाथ आते देख झाड़ू हाथ में ले तैयार हो गयी । नजदीक आते ही झाड़ू से फटाफट उसका पूरा शरीर झाड़ते ,पीटते हुए धनिया बड़बड़ाये जा रही थी ” नासपीटे ! बेवड़े आज फिर सारे पैसे की शराब पी आया ? आज मैं तुझे नहीं छोडूंगी ।”
झाड़ू के हर वार के साथ ही हरिया कराहते हुए चीख पड़ता ” मुझे मत मारो धनिया ! आह ! “
तभी अचानक किसी के झिंझोड़ने से हरिया की आंखें खुल गईं । सामने ही धनिया को खड़े देखकर वह सहम सा गया । चिंतित धनिया ने प्यार से उसके बालों में उंगली फिराते हुए पूछा, ” ये क्या बडबडा रहे थे सुबह सुबह ? लगता है कौनो सपना देख रहे थे का ? जरा हम भी तो सुनें का सपना देख रहे थे ? “
चरमराती खटिया पर उठकर बैठते हुए हरिया बोला ” का बताएं धनिया ? हमारे तो अच्छे दिन आ ही गए थे लेकिन पता नहीं काहें ई सुबह हो गयी और तुमने भी हमें जगा ही दिया । ससुरी हमारे अच्छे दिन का सपना ही तोड़ दिया । आ हा हा ! वो भी क्या दिन थे ? सच में राम राज ! “


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