कहाँ से कहाँः सतीश जायसवाल राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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कहाँ से कहाँः सतीश जायसवाल

पुस्तक समीक्षा- कहाँ से कहाँः सतीश जायसवाल का कहानी संग्रह

उम्दा कहानियां

सतीश जायसवाल हिन्दी के ऐसे लेखक हैं जो अपनी कहानियां पूरी कला से रचते हैं। दृश्य का बारीक चित्रांकन, कथ्य का मुकम्मल विष्लेषण और मनोजगत का क्षण-क्षण अवलोकन उनकी कहानियों की जान है। कथा लेखक शंशाक कहते हैं कि-सतीश जायसवाल की कहानियों में ड़िटेल्स खूब उभर-उभर कर जाते है। यही ड़िटेल्स सतीश की कथाओं को पूर्ण बनाते हैं।

”कहाँ से कहाँ” सतीश जायसवाल का नया कथा संग्रह हैं जिसमें उनकी दर्जन भर कथायें शामिल है। इन कथाओं को कहते-कहतें कथाकार अनायास ही समाज की कोई सचाई कह जाती है। जो सैद्धांतिक बोझ से मुक्त सहज ग्राहय लगती है।

‘राजमार्ग क्रमांक-6’ एक रिपोर्ताज नुमा कहानी है। जिसमें ग्रामीण बैंक की शाखा के उद्घाटन के अवसर पर गॉंव में पहुंचे लेखक को अनुभव होता है कि ग्रामीण बैंकों तथा इनकी योजनाओं की जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत हैं, वे प्रक्रिया और कागजी खाना पूर्ती के चक्कर में कभी बैंक से ऋण नहीं लेते। इस तरह की योजनाओं का लाभ या तो धन्ना सेठ उठाते हैं या उनके चमचे और चाटुकार। धन और शक्ति तक पहुंचने के ऐसे राजमार्गों का लाभ उन्हें ही मिलता है जिन्हें इसकी जरूरत नहीं।

‘सांस्कृतिक कार्यक्रम’ में एक ऐसे अवसर वादी परिवार की कथा है जो भौतिक समृद्धि, फिल्मी चकाचैंध और प्रसिद्धि पाने के लिये अपने घर के हर आत्मिक सुख, हर शांति और हर सदस्य के जमीर की कुरबानी देकर भी क्षणिक सुख पाने के लिये बेताव है। डां. सिंह और श्रीमति लतिका सिंह के इस परिवार में घर की इस नीति का विरोध अगर कोई करता है तो वह लतिका सिंह का बेटा सौरभसिंह हैं, जो भरी पार्टी से निकलकर सबसे उपर की खुली छत पर एकांत में चले गये सिद्ध प्रकाश लहरी और अपनी मां के नीचे उतरने के साधन सीड़ी को ही काट देता है। शायद ऐसे उथले लोगों की यही नियति है।

मछलियों की नींद का समय में मुम्बई से अपने कस्बे में लौटे ड़ा शंकर शेष अपनी यादों में जीवित हर उस जगह को देखना चाहते है। जों महानगर के लोगों को कौतुक और उत्सुकता की सृष्टि करें, पर आर्थिक दबाव, प्रगतिकामी चेतना और समय के अपने अंतराल के कारण कस्बे की अरपा नदीं, पुराना महल और बावड़ी या तो अतिक्रामकों की जद़ में आ गयें है या उनका कमाऊ रूप बना दिया गया हैं, यहां तक कि उनका खानदानी किला भी सुरक्षित रह पाने के लक्ष्य से पुरातत्व विभाग को सोंपने की घोषणा उन्हीं से करा दी जाती है। पुराने तबला गुरू रामलाल के तबला वादन को सुनते शंकर शेष देखते है किं अरपा नदीं में रात को शिकार करने जा रहें केवट यह क्यों नहीं समझतें कि यह मछलियों की नींद का समय है।

”औरतों की बातें” नामक कहानी में नारायण बाबू की किड़नी खराब हो जाती हैं तो उनकी पत्नि लक्ष्मी कहती है कि उसकी किड़नी नारायण बाबू को ट्रांसप्लांट कर दी जावें। नारायण बाबू की प्रेमिका मैत्रेयी राय अपने पति के साथ नारायण बाबू के घर जाती है और लक्ष्मी को अकेले में ले जाकर कहती है कि वह भी अपनी किड़नी देने तैयार है। लेकिन मैत्रेयी बड़ी सूझबूझ से किढ़नी दाता के रूप में नारायण बाबू के मित्र व मैत्रेयी के मुरीद पलाशकुमार उर्फ खोटा सिक्का का नाम उछालकर घर चली आती है।

त्रेराशिक में वर्तमान के क्रूर व अय्यास राजनैतिज्ञों की कहानी हैं, जिसमें वृंदावन बाबू अपनी प्रेमिका रसिका को रौब रूतबा देने के लिये उसका ट्रांसफर उस पद पर करा देते हैं जहां गजानन मोरेष्वर माचवे नामक हृदयरोगी पदस्थ है। माचवे को पांचवी मंजिल के दफ्तर में भेजा जाता हैं, तो ड़ाक्टर के मना करने के बावजूद वे दफ्तर की सीढ़िया चढते-उतरते हैं। क्योंकि यदि नौकरी बचाना है तो इस तरफ का आत्मघाती रास्ता भी अपनाना पड़ेगा। विक्रम-वैताल की कथा पद्धति में इस कहानी के अंत में इस तबादले और माचवे के कदम की हम्या, आत्महत्या या मृत्यूदण्ड़ में से कौन सी मौत, मानी जाये यह प्रष्न वैताल करता है तो विक्रम इस आदेश का शासन द्वारा जारी होने के कारण मृत्यू दण्ड कहता है।

”बारिश में साथ घूमती हुई आवारा लड़की” में सुजाता राय नामक एक लड़की की कथा है जो कि एक सीधे पत्रकार की लड़की है पर अपनी देह का उपयोग करके अपने पिता और उनके मित्र विधायक अंकल को महत्वपूर्ण सूचनायें पहुंचाती है। सुजाता का परिचय, प्रथम पुरूष कथा वाचक से होता हैं, और दोनों में देह-सम्बन्ध बन जाते है। बरसों बाद विधायक के उसी आवास में दोनों का अभिसार होता हैं और सुजाता अपनी इच्छानुसार गर्भ धारण करती है। विधायक इस बीच मंत्री बन जाते है और शराब का खानदानी काम गांधीजी के आहवान पर बंद करा देने वाले यही नेताजी एक शराब उद्योग में भागीदारी कर चुकें है। प्रदेश साटीय राजनीतिज्ञों के व्यवहार पक्ष की एक झांकी इस कथा में है।

”फिर आना” एक विवरणात्मक कथा है जिसमें विक्रान्त भट्ट नामक एक पत्रकार अपने दोस्त असगर भाई बंदूकवाला के साथ उसकी ससुराल में जाता है और वहां बोहरा समाज के घरों में प्रचलित मान्यताओं, रीति-रिवाजों और रहन-सहन को देखता है।

”थैंक यू अंकल” सतीश जायसवाल की प्रतिनिधि कहानी कही जा सकती है। इसमें ड़िटेल्स ज्यादा है जो सामान्य सी कहानी को आकर्षक और प्रभावशाली बना देते है। ट्रेन में कुछ घंटो के सफर को लेकर बुनी यह कहानी पढ़ने से ज्यादा समझने को संकेत देती है।

”कहां से कहां” शीर्षक कथा है जिसमें बाल मजदूरों पर हो रही सैमिनार के वक्त जूठन बीनते बच्चों और उनसे जुड़ी कई गाथाओं को उठाया गया है।

”खड़ी धूप श्यामल पंछी और बीती रात” की कथा भूमि ग्वालियर है जिसमें एक पत्रकार स्वयं सिद्ध है जो अपने मित्र प्रोफेसर खरे के आमंत्रण पर गृहप्रवेश के मौके पर भोजन करने जाता है। लौटकर अपने होटल में एक विदेशी जोड़ा काउंटर पर खड़ा पाता है। जो भाषायी उलझन के कारण ठहरने में बाधा महसूस कर रहा है। स्वयं सिद्ध उनकी उलझन सुलझाता है और जाते समय विदेशिनी स्त्री अनायास ही जब उसे चुम्बन देती है तो वह चकित होकर इसका कारण जानना चाहता हैं इस कथा में खड़ी धूप श्यामल रंग का पंछी और बीती रात प्रतीक रूप में आती है।

”मायामृग” कहानी में जंगल में बौद्ध मठ के अवशेष ढूंढने निकले एंडवंचर प्रेमी समूह की कथा कही गयी है। जिन्हें जगंल में एक साधु और उनका आश्रम मिलता है। वहीं साधु से घुले मिलें बंदर और उनके ग्रामीण चेले भी मिलते है। पर हर समय लेखक (कथावाचक) को यह भ्रम रहता है कि यह सब मायामृग की तरह झुठी दुनिया है। कथा के अंत में एक केवट के घर के बाहर दीवार पर मृगया करते चित्र में बने मृग की गायब हो जाने से उसे अपनी शंका सही जान पड़ती है।

”बाढ़ का उतरना” एक क्षंत्र विशेष में बाढ़ और उसकी रिपोर्टिंग तथा बाढ़ के कारण तलाश रहें एक अधिकारी की है। इस संग्रह की तमाम कथायें प्रकट में किसी बड़ें सिद्धांत, उंचें आदर्श की कहानियां नहीं कहती। पर भीतर ही भीतर दे बड़ें हेतु प्रगट करती है। कुछ कहानियां सहज रूप से देखने पर कुछ उलझी हुयी या रहस्यवाद का आवरण ओढें खड़ी कहानियां लगती है। जैसे मायामृग, बाढ़ का उतरना, कहां से कहां और खड़ी धूप, श्यामल पंछी.....जैसी कथायें। तो कुछ कथायें बड़ी सहज, सरल और पठनीयता से भरपूर है।

इस संग्रह में लेखक का मूल ध्यान मनोविष्लेषण कर रहा है। हर कथा में पात्रों का सूक्ष्म मनोविष्लेषण खूब उभरकर आया है। लेखक को मानव मन की खूब समझ जान पड़ती है। यदि दो-तीन कथाओं की बात करें तो यह संग्रह कूल मिलाकर पठनीय और सराहनीय है। .....................