शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 15 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 15

फर्जी कत्ल


सोहराब के सवाल पर विक्रम खान सोच में डूब गया। जैसे विक्रम किसी और दुनिया में गुम हो गया हो। सोहराब उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव को बहुत ध्यान से देख रहा था। जब विक्रम ने जवाब नहीं दिया तो सोहराब ने फिर से सवाल दोहरा दिया, “मैंने पूछा था कि कौन है जो आपको डराना चाहता है?”

सोहराब की आवाज सुनकर विक्रम चौंक पड़ा। वह कुछ घबराया हुआ सा दिख रहा था। उसने खुद पर काबू पाते हुए कहा, “यह मैं नहीं जानता कि वह कौन है!” विक्रम को ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज कहीं बहुत दूर से आ रही हो।

“मतलब?” सोहराब ने विक्रम के चेहर पर नजर गड़ाए हुए पूछा।

“मैं आपको पूरी बात बताता हूं।” विक्रम ने कहा। इसके बाद वह खामोश हो गया। जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो। सोहराब ने उसे दोबारा नहीं टोका। वह उसके बोलने का इंतजार करता रहा। उसकी आंखें अभी भी विक्रम खान के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। विक्रम सामने उन्हीं पेड़ों की तरफ देख रहा था, जिधर से उस पर कुछ देर पहले गोली चलाई गई थी।

कुछ देर बाद उसने बीती रात जुआखाने में उसके साथ घटी पूरी घटना बयान कर दी। विक्रम बाउंसर के कत्ल वाली बात गोल कर गया। साथ ही विदेशी के वीडियो दिखाने वाली बात भी। बीती रात जुआखाने में बाउंसर का कत्ल तो किसी और ने किया था, लेकिन उस विदेशी ने जो वीडियो दिखाया था, उसमें बाउंसर हत्यारे के तौर पर विक्रम का नाम ले रहा था। यही वजह थी कि विक्रम खान ने घटना सुनाते हुए वह पूरा हिस्सा ही एडिट कर दिया था।

“आप कुछ छुपा रहे हैं?” सोहराब ने उसकी आंखों में आंखें डालते हुए पूछा। उसके होठों पर मुस्कुराहट थी।

“नहीं, मैंने सब कुछ बता दिया है।” विक्रम खान ने आवाज में विश्वास पैदा करते हुए कहा।

“मिस्टर विक्रम! उस रात जुआखाने में मैं भी मौजूद था। उस बाउंसर का कत्ल मेरी आंखों के सामने हुआ था। उसके बाद अचानक लाइट चली गई थी। लाइट आने के बाद आप कहीं नहीं दिखे। यही नहीं बाउंसर की लाश भी गायब थी।” सोहराब ने कहा, “बहरहाल आप घबराइए नहीं... वह कत्ल फर्जी था। बाउंसर को रात में ही पुलिस ने कस्टडी में ले लिया है। उससे पूछताछ की जा रही है।”

“ओह!” विक्रम की आंखें फैल गईं। “लेकिन आप मुझे वहां तो दिखे नहीं।” विक्रम की आवाज में आश्चर्य था।

“मैं आपकी टेबल पर ही मौजूद था। दरअसल मैं उस वक्त मेकअप में था।” सोहराब ने कहा, “चलिए अब पूरी बात शुरू से बताइए।”

विक्रम खान, सोहराब को बहुत ध्यान से देख रहा था। जैसे उसे उसकी बात पर यकीन ही न हुआ हो। वह सकते के आलम में कुछ देर तक यूं ही सोहराब को देखता रहा। उसके बाद उसने पूरी बात शुरू से आखिर तक बयान कर दीं।

सोहराब उसकी बात को बड़े ध्यान से सुनता रहा, उसके बाद उसने कहा, “उस पेंटिंग में ऐसी क्या खूबी है, जिसके लिए इस कदर ड्रामा रचा गया और बकौल आपके आपको भयभीत करने की भी कोशिश की जा रही है!”

“क्या कह सकता हूं।” विक्रम ने फिक्रमंद लहजे में कहा।

“जिस रास्ते से आपको ले जाया गया, क्या उस रास्ते को पहचान सकते हैं?”

“बहुत मुश्किल है, क्योंकि जाते वक्त मैंने ध्यान नहीं दिया था। दूसरी बात, रात को अंधेरा होने की वजह से आस-पास कुछ भी साफ दिख नहीं रहा था। लौटते वक्त वह रास्ता दूसरा था।” विक्रम ने कहा, “उन लड़कियों ने मेरी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, लेकिन इसका एहसास हो रहा था कि वह रास्ता पहले जैसा नहीं था।”

“इसका मतलब यह हुआ कि तुम्हें मकान के पिछले हिस्से से अंदर ले जाया गया।” कुमार सोहराब ने सोचते हुए कहा, “वह कोई बड़ी इमारत है, जिसमें लिफ्ट से कार ऊपर तक ले जाई जा सकती है। ऐसी बड़ी इमारत पहाड़ियों के बीच बना पाना संभव नहीं है। आपको कोई भ्रम हुआ है।”

“हो सकता है। रात के अंधेरे में ऐसे भी दूर तक देखना मुमकिन नहीं था।” विक्रम ने सफाई दी।

सोहराब उसकी बात बहुत ध्यान से सुन रहा था। विक्रम की बात खत्म होने के बाद उसने पूछा, “उस विदेशी और उन लड़कियों को तो पहचान सकते हो न?”

विक्रम ने जवाब में कहा, “जी बिलकुल।”

“वैसे मैं भी उस न्यूड पेंटिंग के सिलसिले में ही आपके पास आया था।” सोहराब ने कहा, “कुछ देर पहले तक मेरी नजर में उस पेंटिंग की खास अहमियत नहीं थी, लेकिन अब मेरी भी दिलचस्पी उसमें बढ़ गई है।”

“मैं आपकी बात नहीं समझा!”

“आपको हाशना ने जो पेंटिंग दी थी। मैं उसे लेने आया हूं।” सोहराब ने कहा।

“माफ कीजिएगा, लेकिन मैं वह पेंटिंग किसी को भी नहीं दे सकता हूं।” विक्रम खान ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।

“लेकिन आपने अगर किसी से कोई चीज ली है तो उसे लौटाना भी चाहिए।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।

“क्या यह केस भी आपके पास आ गया है?” विक्रम खान ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी मुस्कुराहट में व्यंग था।

“नहीं... हाशना मुझसे कुछ दिन पहले मिली थी। वह चाहती है कि आप उसकी पेंटिंग वापस कर दें। उसने इस मामले में मुझसे मदद मांगी है।” सोहराब ने उसे पूरी बात साफ-साफ बता दी।

“मैं वह पेंटिंग किसी भी कीमत पर नहीं दे सकता... चाहे मेरी जान ही चली जाए।” विक्रम की आवाज थोड़ा ऊंची थी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं।

“क्या वह इतनी ही महंगी है?”

“महंगी नहीं कीमती है। उसकी कीमत मैं ही समझ सकता हूं। या फिर कोई एक और शख्स।” विक्रम खान ने परेशानी से पहलू बदलते हुए कहा।

“क्या मैं वह पेंटिंग देख सकता हूं?” कुमार सोहराब ने इच्छा जाहिर की।

“नहीं।” विक्रम ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“इट्स ओके।” सोहराब ने कहा।

कुछ देर की खामोशी के बाद सोहराब ने दोबारा कहा, “फिलहाल मेरा उस पेंटिंग से कोई खास लेना-देना नहीं है, लेकिन अगर आप हाशना को उसे वापस कर देते तो मेरी बात का भ्रम रह जाता।”

“मेरी कुछ मजबूरी है सर!” इस बार विक्रम की आवाज में इल्तिजा थी।

फिर खामोशी छा गई।

कुछ देर बाद विक्रम ने कहा, “मुझे शक है कि उसी विदेशी ने पेंटिंग के लिए मुझे भयभीत करने की कोशिश की है, ताकि वह पेंटिंग मैं डरकर उसके आदमी को सौंप दूं।”

जवाब में सोहराब ने कुछ नहीं कहा। उसने जेब से सिगार केस निकाल लिया। उसमें से एक सिगार निकालकर उसका कोना तोड़ने लगा।

“सोहराब साहब! क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि शाम को उस विदेशी का आदमी मुझसे पेंटिंग लेने आए और आप उसे गिरफ्तार कर लें।”

“विक्रम साहब! हमारे काम करने का तरीका पुलिस से अलग होता है।”

“मैं आपकी बात नहीं समझा।”

“हम उसे किस केस में गिरफ्तार करेंगे? दूसरी बात यह कैसे साबित होगा कि वह उस विदेशी का आदमी है? तीसरी सबसे अहम बात यह कि हम सिर्फ प्यादे को गिरफ्तार करके पूरे गैंग को सतर्क नहीं कर सकते हैं।” सोहराब ने सिगार जलाते हुए कहा, “इसके अलावा अभी तो यह भी नहीं पता है कि उस पेंटिंग के पीछे वाकई में कोई गैंग सक्रिय है। दूसरी बात उस पेंटिंग में ऐसी क्या खास बात है कि हर कोई उसे पाना चाहता है!”

“मुझे क्या करना चाहिए?” विक्रम ने पूछा, “आज शाम उस विदेशी का कोई आदमी पेंटिंग लेने आने वाला है। यह गोली उसी के धमकी के तौर पर मुझ पर चलाई गई है।”

“मैं क्या बता सकता हूं। यह आप फैसला कीजिए, क्योंकि आप पहले ही किसी से ली हुई चीज वापस नहीं करना चाहते हैं।” सोहराब ने कहा और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।

विक्रम भी उसके साथ ही उठ गया। उसने सोहराब की तरफ हाथ बढ़ा दिया।

सोहराब ने विक्रम से हाथ मिलाते हुए कहा, “घर से निकलते वक्त एहतियात बरतिएगा। अगर आपकी बात सच है तो आप पर फिर हमला हो सकता है। आप चाहें तो हम आपकी सिक्योरिटी का इंतजाम कर सकते हैं।”

“नहीं शुक्रिया। जरूरत होगी तो बता दूंगा।” विक्रम ने कहा।

विक्रम, सोहराब को गेट तक छोड़ने आया था। सोहराब घोस्ट पर सवार हो गया। स्टार्ट होते ही गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गई। कुछ दूर जाने के बाद सोहराब ने घोस्ट को सड़क के किनारे रोक दिया। उसके बाद उसने इंस्पेक्टर मनीष का फोन मिलाया। फोन कनेक्ट होते ही उसने मनीष को दो सादा वर्दी कांस्टेबल विक्रम खान के घर की निगरानी पर लगाने को कहा। उसे यह भी हिदायत दे दी कि घर पर दूर से ही नजर रखी जाए। सिपाही तब तक किसी भी मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे जब तक कि कोई गैरकानूनी बात न हो। उसने मनीष को शाम को रिपोर्ट करने को भी कहा। इसके साथ ही सोहराब ने फोन काट दिया। उसने कोट की अंदरूनी जेब से एक परचा निकाला और उसे ध्यान से देखने लगा। उसके बाद परचे को तह करक जेब में रख लिया। सोहराब ने घोस्ट स्टार्ट की और वह एक झटके में आगे बढ़ गई।

इस इलाके में ज्यादा भीड़ नहीं थी, इसलिए घोस्ट की रफ्तार तेज थी। कुछ दूर जाने के बाद सोहराब ने बैक ग्लास को एडस्ट किया और पीछे देखने लगा। कुछ देर बाद ही उसे एहसास हो गया था कि उसका पीछा किया जा रहा है। वह घर जाना चाहता था, लेकिन फिर वह बेवजह इधर-उधर घूमता रहा। एक रेड लाइट पर पीछा करने वाली कार को डाज देने में वह कामयाब हो गया और तेजी से घोस्ट को आगे बढ़ा ले गया।

कुछ देर बाद उसकी कार 7, डार्क स्ट्रीट स्थित कोठी गुलमोहर विला में दाखिल हो रही थी। उसने कार गैराज में पार्क कर दी। नौकर को काफी के लिए फोन पर ही हुक्म दिया और मेकअप रूम में घुस गया।


रोशनी वाली गुफा


सार्जेंट सलीम बड़ी फुर्ती से उठा था। उसने श्रेया का हाथ पकड़कर उसे भी उठा दिया। श्रेया की आवाज से उसने समझ लिया था वह कहां और कितनी दूर बैठी है।

सार्जेंट सलीम रुक कर अंदाजा लगाने लगा कि ताजी हवा किस तरफ से आ रही है। कुछ देर की कोशिश के बाद उसने समझ लिया और फिर वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। उसने श्रेया का हाथ पकड़ रखा था और उससे थोड़ा आगे चल रहा था।

दोनों फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे।

वह दोनों काफी देर तक अंधेरे में चलते रहे। गुफा का यह रास्ता काफी चौड़ा था, लेकिन रास्ता ऊबड़खाबड़ था। उन्हें कुछ दूर पर रोशनी दिखाई दी। रोशनी देखकर श्रेया खुशी से चीख पड़ी, “हमने रास्ता तलाश लिया है। देखो सुबह का उजाला दिख रहा है।”

“यह सुबह का उजाला नहीं बुद्धू जुगनू हैं।” सलीम ने कहा। तुरंत ही सार्जेंट सलीम की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। “ओह! जुगनुओं का झुंड... इसका मतलब है कि आगे बाहर निकलने के लिए कोई न कोई रास्ता जरूर है।”

श्रेया तेजी से चलने लगी। सलीम ने उसे तुंरत ही टोकते हुए कहा, “धीरे चलो वरना ठोकर लगेगी।”

कुछ देर बाद ही दोनों जुगनुओं के उस झुंड के करीब पहुंच गए। गुफा की छत से कई हजार जुगनू चिपके हुए थे। उनकी वजह से गुफा का आसपास का पूरा हिस्सा ही जगमगा रहा था। दोनों रुक कर जुगनुओं के झुंड को देखने लगे।

“यह प्यार कर रहे हैं।” सार्जेंट सलीम ने उन्हें उसी तरह ध्यान से देखते हुए कहा।

“मतलब?” श्रेया ने पूछा।

“मतलब यह इनके अंडे देने की ऋतु है और यह जोड़े बना रहे हैं।” सलीम ने कहा, “ध्यान से देखो इनमें कई सारे जुगनू ज्यादा चमक रहे हैं। वह नर जुगनू हैं और जो कम चमक रहे हैं वह मादा हैं।”

“मैं अब भी नहीं समझी।”

“मादा जुगनुओं को आकर्षित करने के लिए नर ज्यादा चमकते हैं।”

“ओह हां... यह बात तो है।” श्रेया ने ध्यान से देखते हुए कहा।

सलीम ने गुफा की छत पर वह जगह तलाशनी शुरू, जहां से यह जुगनू अंदर आए थे। उसे पास ही एक छेद नजर आ गया। वह छेद इतना बड़ा नहीं था कि उससे बाहर निकला जा सके।

श्रेया ने भी वह छेद देख लिया था। छोटे से होल को देखकर उसके चेहरे पर निराशा के भाव उभर आए थे।

“आओ चलें।” सार्जेंट सलीम ने उसके चेहरे पर नाउम्मीदी के भाव पढ़ लिए थे, उसने कहा, “उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है।”

दोनों फिर आगे बढ़ गए। रोशनी की वजह से उनकी रफ्तार थोड़ी तेज थी। कुछ आगे जाते ही उन्हें पानी का एक सोता मिल गया। पानी तेजी से नीचे की तरफ बह रहा था। सार्जेंट सलीम ने रुक कर अपनी प्यास बुझाई। उसे पानी पीते देखकर श्रेया ने भी चुल्लू से पानी पिया और उसने मुंह-हाथ भी धो डाले।

दोनों अब बहते पानी में ही चल रहे थे। पानी धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था। अचानक श्रेया की भयानक चीख से पूरी गुफा गूंज गई।


*** * ***


श्रेया के साथ क्या हुआ था?
पेंटिंग का रहस्य क्या है?
शेयाली का क्या हुआ?


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