शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 4 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 4

पेंटर


लूसी सार्जेंट सलीम की पीठ से अपना जिस्म प्यार से रगड़ रही थी। लूसी को देख कर सलीम की आंखें फटी की फटी रह गईं। लूसी उसकी पर्सियन बिल्ली थी। एक दिन सड़क के किनारे से सलीम की कार से लूसी चोरी हो गई थी। उसके लिए वह काफी परेशान भी रहा था।

मौजूदा सूरते हाल भी उसके लिए कम परेशानी की वजह नहीं थी। लूसी उसे शेयाली के घर में मिली थी। इसका भला क्या मतलब हो सकता है? क्या लूसी को शेयाली या उसके ब्वाय फ्रैंड ने चोरी किया था? या फिर....?

वह इसके आगे नहीं सोच सका, क्योंकि इंस्पेक्टर सोहराब ने भी बिल्ली को देख लिया था और उसने पूछ लिया, “लूसी यहां क्या कर रही है? क्या तुमने लूसी को गिफ्ट कर दिया था उस रोज शेयाली को?”

सलीम इसका जवाब देने ही जा रहा था कि तभी कांस्टेबल के साथ शेयाली का ब्वायफ्रैंड विक्रम ड्राइंग रूम में दाखिल हुए। वह नाइट गाउन में ही सीधे चला आया था। उसने मुंह पर पानी के छींटे जरूर मारे थे, लेकिन बाल अभी भी बिखरे हुए थे। अंदर दाखिल होते हुए वह बालों को उंगलियों की कंघी बनाकर संवारने की कोशिश कर रहा था।

“हैलो सर! हाय!” उसने आते ही सोहराब और सलीम को विश किया।

इसके बाद सामने सोफे पर बैठ गया। कल रात के मुकाबले आज उसका व्यवहार काफी बदला हुआ था। इस पर सलीम को थोड़ा ताज्जुब हुआ।

“आप लोग कब आए?” विक्रम ने पूछा।

“बस कुछ देर पहले।” सोहराब ने नर्म लहजे में जवाब दिया।

“आप लोग क्या लेंगे?” विक्रम ने मेहमाननवाजी करते हुए पूछा।

“नो थैंक्स... हम लोग नाश्ता करके आए हैं।” सोहराब ने कहा।

इसके बावजूद विक्रम ने पास खड़े नौकर से कॉफी लाने के लिए कह दिया।

“मिस्टर विक्रम... मैं माफी चाहता हूं कि अभी आप सदमे से उबर भी नहीं पाए हैं और हमें आपसे पूछगछ के लिए आना पड़ा।” सोहराब ने उसके चेहरे का जायजा लेते हुए कहा।

“इट्स ओके सर... यह आपकी ड्यूटी है। मैं तैयार हूं। पूछिए क्या जानना चाहते हैं आप।”

“आप करते क्या हैं मिस्टर विक्रम?”

“मैं पेंटर हूं।”

“कहीं आप विक्रम के खान तो नहीं हैं!... जिनकी दो साल पहले एक न्यूड पेटिंग बहुत चर्चित हुई थी।” सोहराब ने याद करते हुए कहा, “उस पेंटिंग का नाम था ‘वंडर वूमेन’।”

“जी सही पहचाना आपने।” विक्रम ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“आपका नाम कुछ अलग सा है।” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“दरअसल हमारे परदादा ने हंसिये से एक शेर को मारकर अंग्रेज अफसर की जान बचाई थी। उसके बाद उन्हें खान की उपाधि दी गई थी। तभी से हमारे खानदान में हर किसी के नाम के आखिर में खान लिखा जाने लगा।”

सोहराब ने जेब से सिगार निकाल ली और लाइटर के लिए जेबें तलाशने लगा। दरअसल उसको सार्जेंट सलीम का बीच में सवाल करना नागवार गुजरा था। उसकी जेब में लाइटर मौजूद था, लेकिन उसने सलीम से उसके अपने लाइटर से सिगार जलाने को कहा। जब सलीम उसका सिगार जलाने के लिए करीब आया तो सोहराब ने उसे इशारे से चुपचाप बैठने को कहा।

सोहराब आराम से बैठा सिगार पीता रहा। वह नौकर के काफी लाने का इंतजार कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि सवालों के सिलसिले के बीच में कोई आए। नौकर कुछ देर बाद काफी देकर चला गया। विक्रम काफी बनाने लगा।

“नो शुगर।” सोहराब ने कहा।

विक्रम, सोहराब और सलीम को काफी देकर खुद भी पीने लगा।

“हमने गोताखोरों से सुबह भी शेयाली की तलाश करवाई, लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला। आई एम सॉरी!” सोहराब ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा।

“विक्रम साहब, क्या आप लोग अकसर समुंदर के किनारे घूमने जाते हैं?” सोहराब ने पूछा।

इन सवालात के साथ ही सोहराब उसके चेहरे के हर भाव को बारीकी से पढ़ रहा था।

“हां, हम अकसर ही जाते हैं। शेयाली को समुंदर बहुत पसंद था। कल दोहरी खुशी का मौका था। कल शेयाली का बर्थ डे था।” विक्रम ने काफी का सिप लेने के बाद कहा, “दूसरा, शेयाली ने वीमेंस के लिए एक खास ऐप डिजाइन करवाया था। उसमें वीमेंस अपने शार्ट वीडियो अपलोड कर सकती थीं। कल रात दस बजे एक बड़ी पार्टी रखी गई थी। उसी पार्टी में वह ऐप लांच किया जाने वाला था।”

“क्या वह अपना बर्थ डे भी उसी पार्टी में सेलिब्रेट करने वाली थीं?”

“जी हां.... दरअसल शेयाली उसी ऐप के लिए अपना एक वीडियो बनाने के लिए समुंदर के किनारे गई थीं। वह समुंदर में डूबते सूरज का वीडियो बनाकर अपलोड करने वाली थीं।”

“समुंदर के सनसेट वाला आइडिया किसका था?”

“शायद शेयाली का ही था।” विक्रम ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया।

“शायद से मतलब?” सोहराब ने विक्रम की आंखों में देखते हुए पूछा।

“यह आइडिया उसने ही मुझे बताया था।” विक्रम ने जल्दी से बात साफ करते हुए कहा।

“आपको क्या लगता है कि यह महज हादसा है या शेयाली ने खुदकुशी की है?”

“सोहराब साहब! वह खुदकुशी करने वाली लड़की नहीं थी। बाकी मैं उसकी मौत के सदमे से अभी तक उबर नहीं सका हूं, इसलिए कोई नतीजा निकाल पाना मेरे बस का नहीं है अभी।”

“आपसे रिश्ते कैसे थे?”

“आप मुझ पर गलत शक कर रहे हैं... इंस्पेक्टर सोहराब!” विक्रम का लहजा थोड़ा तल्ख हो गया था।

“आप नहीं बताना चाहते हैं तो मत बताइए।”

“हम काफी खुश थे एक-दूसरे के साथ।”

“लेकिन आपका कुछ दिन पहले उससे काफी झगड़ा हुआ था सी बीच पर।” सोहराब ने उसे टटोलने वाली नजरों से देखते हुए कहा।

“जहां प्यार होता है, वहां तकरार भी होती है।” विक्रम ने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया।

“नाइस टु मीट यू मिस्टर विक्रम!” सोहराब ने उठते हुए कहा।

विक्रम भी उठ कर खड़ा हो गया। विक्रम ने सोहराब से बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया।

“हम फिर मिलेंगे।” सोहराब ने उसकी आंखों में देखते हुए रहस्यमयी अंदाज में कहा।

“श्योर।” विक्रम ने खुशदिली दिखाते हुए जवाब दिया।

“अगर इजाजत हो तो मैं अपनी बिल्ली ले जा सकता हूं।” सार्जेंट सलीम ने ऊंची आवाज में कहा।

सलीम के हाथों में लूसी को देखकर विक्रम बुरी तरह हड़बड़ा गया। कुछ पल के बाद उसने खुद को संभालते हुए कहा, “मैं... मैं शर्मिंदा हूं सलीम साहब!.....शेयाली को बिल्लियों से बहुत-बहुत ज्यादा प्यार था। होटल सिनेरिया में उसे आपकी बिल्ली पसंद आ गई थी। आपकी बिल्ली की नीली आंखों के बारे में उसने बताया था कि यह रेयर होती हैं। मुझे उसकी खुशी के लिए आपकी कार से मजबूरन बिल्ली चुरानी पड़ी थी। मैं फिर से आपसे माफी मांगता हूं। आप प्लीज अपनी बिल्ली ले जाइए।”

सलीम ने बिल्ली को हाथों में उठा लिया और सोहराब के पीछे-पीछे बाहर की तरफ चल दिया। विक्रम उन्हें छोड़ने के लिए गेट तक आया था। सोहराब और सलीम घोस्ट से रवाना हो गए। कार सोहराब ड्राइव कर रहा था।


तहकीकात


बिल्ली को सलीम ने पीछे की सीट पर छोड़ दिया। लूसी बहुत आराम से बैठी हुई थी। सलीम को पाकर वह भी बहुत खुश थी।

सार्जेंट सलीम ने कोट की जेब से पाइप निकाला और उसमें तंबाकू भरने लगा। लाइटर से पाइप जलाने के बाद वह हल्के-हल्के कश ले रहा था। वह खिड़की से बाहर की तरफ देख रहा था। कार गुलमोहर विला की तरफ जा रही थी।

“एक बात बताइए।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“मैं इतनी देर से यही सोच रहा था कि आप खामोश कैसे हैं इतनी देर से।” इंस्पेक्टर सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी निगाह विंड स्क्रीन पर ही जमी हुई थी।

“जब शेयाली की इतनी लंबी प्लानिंग थी तो वह खुदकुशी क्यों करेगी? एक फिल्म फ्लोर पर थी और वह एक मोबाइल ऐप भी लांच करने वाली थी....!”

“आप दुरुस्त फरमा रहे हैं।” सोहराब की नजरें अभी भी विंड स्क्रीन पर ही जमी हुई थीं।

“आपने बताया था कि राजधानी में ऐसे छह और केस हुए हैं। क्या उनकी तफ्तीश पूरी हो गई?”

“हां, वह साधारण लोग थे। कुछ खास पता नहीं चला।”

“मतलब?”

“एक बात याद रखिएगा बर्खुर्दार! बड़े घरानों और पैसे वाले लोगों की संदिग्ध मौतें हमेशा बड़े सवाल खड़े करती हैं। ऐसी मौतों की तफ्तीश हमेशा बड़ी बारीकी से और मजबूती से करनी चाहिए।”

“ओके फादर सौरभ!” सार्जेंट सलीम सोहराब को अकसर सौरभ कहता था। उसका तर्क था कि सोहराब ही हिंदी में सौरभ हो गया है।

“एक बात और... बिना मजबूत सुबूत के ऐसे लोगों पर हाथ नहीं डालना चाहिए। उनके पास पैसे, पहचान और प्लीडर यानी वकील की पॉवर होती है।”

घोस्ट गुलमोहर विला के कंपाउंड में दाखिल हो गई।

कंपाउंड का लगभग एक किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद घोस्ट कोठी के सामने रुक गई।

“आप बिल्ली को अंदर छोड़कर आइए.... आपको कहीं जाना है अभी।”

“कहां?”

“पहले लूसी को कोठी में छोड़ कर आइए।”

कुछ देर बाद ही सार्जेंट सलीम इंस्पेक्टर सोहराब के सामने खड़ा था।

“क्या हुक्म है मेरे आका!”

“आप तुरंत रवाना हो जाइए। आपको पता करना है कि कल ऐप की लांचिंग किस होटल में होने वाली थी। उसमें कौन-कौन से गेस्ट शामिल हो रहे थे। इससे फारिग हो जाइए तो विक्रम के खान और कैप्टन किशन को भी चेक कीजिएगा।”

“घोस्ट ले जाऊं?”

“नहीं मुझे कहीं जाना है। आप मिनी ले जाइए।”

सलीम की कार होटल सेनेरियो की तरफ भागी चली जा रही थी। कुछ देर बाद ही वह होटल सिनेरियो पहुंच गया। कार को पार्क करने के बाद वह सीधे होटल के मैनेजर के ऑफिस में चला गया।

“ज़हे नसीब कि आपकी तशरीफ आवरी तो हुई मेरे दफ्तर में। वरना हुज़ूरे आला के पास वक़्त ही कहा हैं हम जैसे क़द्रदानों के लिए।” मैनेजर ने सलीम को देखते ही कसीदे पढ़े।

मैनेजर का नाम विशेश्वर था। कातिल उसका तखल्लुस था। उर्दू बोलने का जुनून था उसे। सार्जेंट सलीम की उससे गाढ़ी छनती थी। वह सलीम का भरोसे का भी आदमी था।

“जी जनाब! इस गरीब के यहां कैसे आना हुआ?”

“तुमसे एक काम था।”

“मुझे पता है जनाबे आली बिना मक़सद कभी नहीं आते इस गरीब के पास।”

“कल किसी फाइव स्टार होटल में एक ऐप की लांचिंग होने वाली थी। इसके लिए एक बड़ी पार्टी भी रखी गई थी। यह पता करके बताओ कि पार्टी किस होटल में होने वाली थी?”

कातिल ने सलीम के लिए काफी लाने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया।

“क्यों जनाब! काफी क्यों नहीं नोश फरमाएंगे?”

“हत्यारे साहब, आप होटल का नाम पता लगाइए... मैं अभी आया।”

हत्यारे कहने पर विशेश्वर ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन पर नंबर डायल करने लगा।

सलीम कार की चाबी इग्नियेशन में ही लगा छोड़ आया था। वह मैनेजर के ऑफिस से निकलकर सीधा मिनी तक गया। चाबी निकालकर डोर लॉक किए और होटल के अंदर दाखिल हो गया।

वह मैनेजर के ऑफिस जाने के बजाए डायनिंग हाल में पहुंच गया। उसने डायनिंग हॉल पर भरपूर नजर डाली। हाल में ठीक-ठाक भीड़ थी। उसकी नजर एक टेबल पर जाकर ठहर गई। काफी खूबसूरत लड़की थी। इत्तेफाकन पास की एक टेबल खाली भी थी।

तभी साथ बैठे युवक ने घूमकर वेटर को आवाज दी। उस पर नजर पड़ते ही सलीम चौंक पड़ा। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह यहां हो सकता है।

वह उलटे पांव लौट पड़ा और वाशरूम में घुस गया। उसने जेब से रेडीमेड स्प्रिंग निकालकर दोनों नथुनों में डाल लिए। इससे उसकी नाक चौड़ी हो गई थी। इसकी ईजाद इंस्पेक्टर सोहराब ने की थी। पिछले केस में सलीम इन स्प्रिंगों का इस्तेमाल कर चुका था (पढ़िए जासूसी उपन्यास पीला तूफान)।

उसने होठों के ऊपर बून स्टाइल वाली नकली मूछें फिट कीं और आंखों पर गोल फ्रेम का चश्मा लगा लिया। अब उसे कोई पहचान नहीं सकता था। इस भद्दी शक्ल के साथ वह लड़की के सामने नहीं जाना चाहता था, लेकिन अब मकसद बदल गया था।

वह बड़े आराम से टहलता हुआ डायनिंग हाल में दाखिल हो गया।

*** * ***

सार्जेंट सलीम ने किसे देख लिया था?
मोबाइल ऐप का क्या मामला था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...