शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 14 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 14

आसमान से गिरे


सार्जेंट सलीम अपनी समझदारी की वजह से गुफा से बाहर आ गया था। उसने पहले उस बड़े से छेद से श्रेया को बाहर निकाला था और फिर खुद भी ऊपर पहुंच गया था। अब उसके सामने एक नई मुसीबत थी। वह एक दूसरी गुफा में पहुंच गया था। यानी आसमान से गिरे खजूर पर अटके। वह थक कर पथरीली जमीन पर लेट गया था। उसका इरादा सुस्ताने का था। काफी मेहनत की थी, उसने यहां तक पहुंचने के लिए। कुछ देर बाद उसे फिर से बाहर निकलने की कोशिश करनी थी।

चारों तरफ गहरा अंधेरा था। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, लेकिन वह मुजतबा सलीम था। हार न मानने वालों में से एक। उसे अपनी बेबसी पर एक बार भी पछतावा नहीं हुआ था, क्योंकि उसके पास एक भी ऐसा सामान नहीं था, जिससे मदद मिल सके। जिस्म पर सिर्फ और सिर्फ किसी जानवर की खाल लिपटी हुई थी। इसके बावजूद उसके हौसले बुलंद थे।

“अब हम कहां आ फंसे।” श्रेया ने चारों तरफ देखते हुए पूछा। वह भी वहीं जमीन को टटोल कर बैठ गई थी।

“एक नई गुफा में।” सलीम ने लेटे हुए ही जवाब दिया।

“इससे बेहतर तो हम वहीं थे।” श्रेया ने कहा, “कम से कम वहां से निकलने की उम्मीद तो थी।”

कुछ देर बाद सार्जेंट सलीम ने कहा, “वहां बेहतर नहीं थे। वहां जाने कब तक बंद रहना पड़ता। यहां से भी निकलने की उम्मीद है। वरना वापस लौट चलेंगे।”

“अगली रात तक तो निकल ही सकते थे। वह रात को मेरे लिए खाना लेकर आते हैं।” श्रेया ने कहा।

“इस रात से उस रात तक गुफा में बंद रह कर इंतजार करना बुजदिलों का काम है।”

“तो आप बुजदिल नहीं हैं!” श्रेया ने उसे चिढ़ाने वाले अंदाज में पूछा।

“वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।” सलीम ने कहा।

“अच्छा जी। क्या है दिल में।”

“दिल तो जामुन के पेड़ के कोटर में रख आया हूं।”

“तो क्या बंदर हो!”

“बाबा डार्विन ने तो कुछ ऐसा ही फरमाया है।”

“अच्छा एक बात बताइये?” श्रेया ने बात बदलते हुए कहा।

“जी फरमाइए।”

“आप यहां कर क्या रहे थे?”

“मतलब!”

“मेरा मतलब है कि आप इन जंगलियों के साथ इतने आराम से रह कैसे रहे थे। भाग क्यों नहीं गए?”

“यह बात तुम दूसरी बार पूछ रही हो।” सलीम ने कहा।

“फिर से बता दीजिए न।” श्रेया ने अदा से कहा।

“लेकिन क्यों?”

“बस ऐसे ही।”

“दो वजहों से जंगलियों के बीच रुका रहा था।” सलीम ने कहा, “मैं तुम्हें लिए बिना यहां से नहीं जा सकता था। दूसरी बात, मैं शे...।” इतना कहते-कहते सार्जेंट सलीम चुप हो गया। वह कहना चाहता था कि शेयाली यहां जंगलियों के बीच मौजूद है। वह उसे भी साथ ले जाना चाहता है, लेकिन कुछ सोचकर उसने शेयाली का जिक्र रोक दिया।

“चुप क्यों हो गए?”

“मैं कह रहा था कि शेर की खाल की मुझे तलाश थी। मैं उसे साथ ले जाना चाहता था।” सलीम ने कहा।

“तुम मुझे इतना पसंद करते हो?” श्रेया ने पूछा।

“मतलब।”

“मतलब कि तुम मेरे बिना यहां से जाना नहीं चाहते थे।” श्रेया ने जज्बाती होते हुए कहा।

“मैंने ही तुम्हें मुश्किल में फंसाया है। तुम मेरी जिम्मेदारी हो। मैं तुम्हें सही-सलामत पहुंचा दूं यह मेरा फर्ज है।”

“तुम भले और बहुत प्यारे हो।” श्रेया ने कहा।

“नहीं मैं जंगली हूं। दिन के उजाले में मुझे देखोगी तो डर जाओगी।” सलीम ने पूरी गंभीरता से कहा। इसके साथ ही सलीम उठ खड़ा हुआ। “चलो अब यहां से निकलने की कोशिश करते हैं।”


पीले बालों वाली लड़की


विक्रम ने ड्राइंग रूम में आकर दरवाजे को बोल्ट कर दिया। वह एक कुर्सी पर गिर कर हांफने लगा। वह काफी डरा हुआ था। उसके पास भी दो पिस्टल थीं। इनमें से एक का लाइसेंस भी था उसके पास। वह अच्छा निशानेबाज भी था, लेकिन मौजूदा हालात में वह काफी डरा हुआ था। विक्रम आंखें बंद किए काफी देर ऐसे ही बैठा रहा। अचानक वह उठकर खिड़कियों की तरफ भागा। उसने जल्दी-जल्दी बाहर लॉन की तरफ खुलने वाली खिड़कियां बंद कर दीं और ऊपर से पर्दा सरका दिया, ताकि बाहर से कोई देख न सके।

विक्रम ने एक बड़ा पैग बनाया और एक ही सांस में गटक गया। कुछ देर यूं ही बैठा रहा उसके बाद इंस्पेक्टर सोहराब को फोन मिलाने लगा। फोन तुरंत ही पिक हुआ था।

“जी विक्रम साहब, बताइए! सब खैरियत! कैसे फोन किया?” दूसरी तरफ से इंस्पेक्टर कुमार सोहराब की आवाज थी।

“खैरियत नहीं है। आप तुरंत मेरे घर आ जाइए।” विक्रम की आवाज में अब भी घबराहट थी।

“डरिए नहीं... पूरी बात तो बताइए।” सोहराब की आवाज आई।

विक्रम ने एक ही सांस में उसे पूरी बात बता डाली। “परेशान मत होइए। मैं आ रहा हूं।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“ओके थैंक्यू।” यह कहने के साथ ही विक्रम ने फोन काट दिया।

वह बेचैनी से बड़े से ड्राइंग रूम में टहलने लगा। कुछ वक्त वह यूं ही टहलता रहा।

तभी डोर बेल बजी। उसने ‘मैजिक आई’ यानी दरवाजे में लगी दूरबीन से झांक कर देखा। गार्ड खड़ा था। उसने चिंघाड़ते हुए से अंदाज में पूछा, “क्या है?”

“आपसे मिलने इंस्पेक्टर सोहराब आए हैं।” गार्ड ने मिमियाते हुए कहा।

“इतनी जल्दी!” विक्रम ने कहा और दरवाजा खोलकर तेजी से बाहर आया। विक्रम ने देखा सोहराब लॉन में बैठा सिगार पी रहा था।

“आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?” विक्रम ने आश्चर्य से पूछा।

“जब आपने फोन किया तो मैं बैंग्लो के करीब ही था। आपसे ही मिलने आ रहा था।”

“जी कोई खास बात?” विक्रम ने पूछा।

“हां, काम से ही आया हूं, लेकिन पहले मुझे वह जगह दिखाइए जहां पर गोली चलाई गई थी।”

विक्रम लान की वह जगह उसे दिखाने लगा, जहां पर वह बैठा शराब पी रहा था।

“आप उसी तरह से बैठ जाइए, जिस अंदाज में आप बैठे थे।”

“मुझे याद नहीं कि मैं कैसे बैठा था।”

“बहरहाल आप बैठिए तो सही।” सोहराब ने कहा।

विक्रम उकताए हुए अंदाज में बैठ गया। उसके बाद सोहराब उसके सामने जमीन पर उकड़ूं बैठकर गोलियों का अंदाजा लगाने लगा। वह कभी लान की कच्ची मिट्टी में गोलियों से बने सुराख को देखता तो कभी पीछे पलट कर देखने लगता। कुछ देर बाद वह उठकर खड़ा हो गया और मुड़कर बैंग्लो के सामने के हिस्से को ध्यान से देखने लगा। सामने पेड़ों के झुरमुट थे।

सोहराब ने जेब से माचिस जैसी चौकोर एक डिबिया सी निकाल ली। वह एक फोल्डिंग चाकू था। उसमें से मुड़े हुए तीन हिस्से निकलते चले गए। अब वह एक लंबे से चाकू में तब्दील हो गया था। सोहराब फिर से बैठ गया और चाकू को गोली से बने सूराख में डाल दिया। वह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था कि मिट्टी में कितना गहरा सूराख हुआ है। उसके बाद उसने उसी चाकू की मदद से दोनों गोलियां निकाल लीं।

“मेरा अंदाजा सही है।” सोहराब ने खड़े होते हुए कहा, “सामने से और काफी दूर से यह गोलियां चलाई गई हैं। अगर यह गोलियां आपको लग भी जातीं तो ज्यादा नुकसान नहीं होता, लेकिन एक बात की दाद दूंगा। गोली जिसने भी चलाई थी उसका निशाना परफेक्ट था।”

“मैं आपकी बात नहीं समझा!” विक्रम ने कहा।

“समझाता हूं।” सोहराब ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “यह गोलियां पिस्टल से चलाई गई हैं। आपके इस बैंग्लो के सामने ढेरों पेड़ हैं। उनमें से ही किसी पेड़ से और काफी ऊंचाई से गोलियां चली हैं, गोलियों के जो सूराख हुए हैं वह तिरछे हैं। दूसरे इस लॉन की बाउंड्री इतनी ऊंची है कि सामने से गोली चलाना मुमकिन ही नहीं है। आम तौर पर पिस्टल की रेंज दो सौ गज से ज्यादा नहीं होती। यहां से सामने की वह जगह भी तकरीबन इतनी ही है। इसीलिए जमीन में ज्यादा गहरे सूराख नहीं हुए हैं।”

“प्लीज वेट!” सोहराब ने कुर्सी से उठते हुए कहा।

इटली में एक शहर है पिस्तोया। 15वीं सदी में यहां हाथ से बंदूकें बनाई जाती थीं। उसी के नाम पर शब्द पिस्टल ईजाद हुआ।

सोहराब गेट से बाहर आ गया। शेयाली के इस बैंग्लो के आसपास काफी सारे पेड़ थे। दूसरे बैंग्लो या कोठियां यहां से काफी दूरी पर थीं। दरअसल यह पूरा इलाका ही जंगलाती था।

शेयाली के बैंग्लो के सामने पेड़ों के झुरमुट थे। सोहराब के अंदाजे के मुताबिक गोलियां वहीं किसी पेड़ से चलाई गईं थीं। वह आसपास के तमाम हिस्सों का जायजा लेने लगा।

उसे एक पेड़ के नीचे जमीन पर तेल की कुछ बूंदें नजर आईं। पास ही किसी मोटरबाइक के पहियों के निशान भी थे। उसने झुक कर तेल की बूंदों को उंगली से छुआ और सूंघने लगा। उसकी उंगलियों से तेल की महक आ रही थी। यानी अब से कुछ देर पहले ही तेल गिरा था।

सोहराब ने अपने जूते उतार दिए। वह पेड़ पर चढ़ रहा था। ऊंचाई पर पहुंचने के बाद उसने सामने की तरफ देखा। उसे विक्रम बैठा हुआ दिख गया। विक्रम भी उसकी तरफ ही देख रहा था। सोहराब ने कोट की जेब से मैग्नीफाइंग ग्लास निकाल लिया और पेड़ की डालियों का जायजा लेने लगा। पेड़ की एक डाली पर एक लंबा सा पीले कलर का बाल फंसा हुआ था। सोहराब ने बाल को वहां से निकालकर जेब में डाल लिया।

“ओह तो यह काम उन्हीं मोहतरमा का है।” सोहराब धीरे से बुदबुदाया।

दरअसल सोहराब की कार ने जब गेट से इंट्री की थी तो एक महंगी मोटरबाइक पर सवार लड़की हड़बड़ाहट में उसकी कार के सामने आ गई थी। सोहराब लड़की का चेहरा नहीं देख सका था, क्योंकि उसने हेल्मेट लगा रखा था। अलबत्ता उसने बाल खुले छोड़ रखे थे, जो हवा में लहरा रहे थे। बालों को पीले कलर से रंगा गया था। उस वक्त उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि इस इलाके में ज्यादातर फिल्म इंडस्ट्री के लोग ही रहते हैं। उनका आना-जाना होता ही है।

सोहराब पेड़ से नीचे उतर आया और अब उसका रुख दोबारा शेयाली के बैंग्लो की तरफ था।

गेट के ठीक बगल में बनी गुमटी में दो गार्ड बैठे हुए थे। सोहराब रुक कर उनसे पूछताछ करने लगा। दोनों गेटमैन ने बताया कि उन्होंने किसी को भी उन पेड़ों की तरफ जाते हुए नहीं देखा था। उसके बाद सोहराब अंदर आ गया।

“जिस पेड़ पर मैं चढ़ा था, गोली उसी पेड़ से चलाई गई है।” सोहराब ने विक्रम के सामने कुर्सी पर बैठते हुए कहा। वह गहरी नजरों से विक्रम को देख रहा था।

“सोहराब साहब! लेकिन इस सबका मकसद क्या है?”

“यही तो हम आपसे जानना चाहते हैं!” सोहराब ने विक्रम खान की आंखों में देखते हुए कहा।

“मैं आपकी बात नहीं समझा!” विक्रम की आंखों में बेचैनी के भाव पैदा हो गए थे।

“कोई तमाशबाजी के लिए तो आप पर गोली चलाएगा नहीं?” सोहराब ने विक्रम को तीखी नजरों से देखते हुए तंज किया।

“आपका मतलब है कि यह सब मैंने किया है?”

“अगर किसी को आपको मारना होगा तो वह इतनी दूर से गोली नहीं चलाएगा मिस्टर विक्रम!” सोहराब की आवाज में थोड़ा भारीपन था।

“यही तो मेरी भी समझ में भी नहीं आ रहा है।” विक्रम ने पेशानी पर बल लाते हुए कहा।

“आपके दोनों गार्डों का भी बयान है कि उन्होंने किसी को पेड़ों की तरफ जाते हुए नहीं देखा।” सोहराब ने कहा।

“यह भी तो मुमकिन है कि कोई पीछे से आया हो!” विक्रम ने जवाब दिया।

“सवाल मकसद पर टिका हुआ है। यानी कोई ऐसा क्यों करना चाहता है?”

“मुझे डराने के लिए।” विक्रम ने कहा।
“कौन है वह?” इंस्पेक्टर सोहराब ने सवाल किया।


*** * ***


आखिर न्यूड पेंटिंग का राज क्या है?
विक्रम को कौन खौफजदा करना चाहता था?
सार्जेंट सलीम और श्रेया का क्या हुआ?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...