कछुए की तरहः राजेन्द्र दानी राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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कछुए की तरहः राजेन्द्र दानी

समीक्षा कथा संग्रहः कछुए की तरहः राजेन्द्र दानी

राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित राजेन्द्र दानी का नया कथा संग्रह ”कछूए की तरह” पिछले दिनों हिन्दी में अचानक आये संग्रहों की बड़ी खेप में शामिल है। राजेन्द्र दानी आठवें दशक के उन युवा कथाकारों की जमात में शामिल हैं जो हिन्दी कहानी में पर्याप्त होमवर्क के साथ आये थे और धड़ाधड़ कहानियां लिखकर एक जमाने में खूब चर्चित रहे थे। ‘कछूए की तरह’ उनका चौथा कहानी संग्रह है।

बड़ी साफ सुथरी छपाई और उम्दा गेट अप में आया यह उत्पाद देखने में तो बहुत अच्छा है। यह अजीब लग सकता हैं कि पुस्तक की शवलसूरत की तारीफ की जा रही है। पर आज के विजुअल जमाने में पहली दृष्टि पुस्तक के दृष्टव्य रूप पर जाती हैं और दृष्य मीड़िया के प्रिंटआउट जमाने में इन चीजों का भी महत्व है।

राजेन्द्र दानी के ही साथ कथा लेखक में महेश कटारे, हरिभटनागर, राजेन्द्र लहरिया, ए.असफल, आदि ऐसे सक्रिय कथा लेखक आये, जिनमें से हरेक के पास अपनी निजी विशेषताएँ है। महेश कटारे के पास गॉंव की शुद्ध दानेदार भाषा के तेवर हैं, तो हरिभटनागर के पास निस्संग रूखी भाषा हैं, ए. असफल के पास अपने वीहड़ अनुभव और रामांटिक कथ्य है तो राजेन्द्र लहरिया वर्तमान समाज के बदलते चिंतन रोजमर्रा की समस्यायें मौजूद रहती है। आइये राजेन्द्र दानी के इस संग्रह की एक-एक कथा का विष्लेषण करते है।

कहानी ”खिड़कियां” में कथा यह है मजदूर नेता विष्वनाथ की हत्या हो जाने के बाद उसका दोस्त कामता के प्रति नफरत व गुस्से से भर उठता हैं क्योकि मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति गवाही देकर हत्यारों को पकड़नें में मदद नहीं करता। बरसात की झड़ी के बीच एक बूढ़ा अपने बीमार पोते को अस्पताल ले जाने के लिये आता हैं, वो कामता उसे दुत्कार देता है। बाद में एक पिल्ले के प्रति मोहल्ले के लोगों को दयालू होता देखकर वह नफरत भुलाकर बूढ़े के पोते को अस्पताल ले जाने का निर्णय लेता हैं यह भीतरी परिवर्तन मनोवैज्ञानिक विष्लेषण का परिणाम दिखता है।

कहानी विस्थापन में कथा है कि अलग रह रही बूढ़ी मां की बात ठुकरा करके बच्चे पुराना मकान गिरा कर उसमें मार्केट बनवाते हैं, । बुढ़िया की 40 साल पुरानी नौकरानी रूकमणी का सर्वेण्ट क्वार्टर तोड़ने के लिये जब ठेकेदार व बूढ़ी मां का बेटा आता है ंतो रूकमणी मकान तोड़ने के बादले 50 हजार रूप्ये पगड़ी मांग लेती हैं। यह देखकर अब तक अपनी नौकरानी को बहुत निकट की परिजन मानने वाली बूढ़ी मां को बदलते समय की भ्यावहता और निस्संगता का भान होता हैं और वह आपा खो बैठती है। यह कथा जागरूक होते श्रमिक वर्ग की बारीक कहानी है।

”कछूये की तरह” में में कथा है कि मिसिज जामदार एकांकी नौकरी पेशा महिला है जो हर जगह से जल्दी-जल्दी तबादला करा लेती है। एक कस्बे में वे मांस कटता हुआ कछूआ देखती है और ताज्जुब करती है कि कछूआ खुद को बचाता क्यों है। बाद में वे एक नौकर (राधेष्याम) रखती है जो इतना आज्ञकारी है कि उनकी आज्ञा के पालन में खड़ा होता है तो उस जगह बर्फ गिरना शुरू होेने के बाद भी उनकी प्रतीक्षा में खड़ा रहता है जिसका परिणाम होता है िकवह सर्दी की वजह से सड़क पर अकड़ा रह जाता है तो मिसिज जामदार बहुत घबरा जाती हैं कि यह भी कछूऐं की तरह है। वे वेहोश हो जाती है, डाक्टर के इंजेक्शन लगाने पर होश आता है तो उससे यही प्रष्न दोहराती हैं ड़ाक्टर कहता हैं कि वे खुद कछूये की तरह है।

एक कहानी पदार्पण में प्रसंग इस प्रकार है कि एक दफ्तर में चल रहें लेट-लतीफी, आलस्य और मस्ती के माहौल को रोक लगाने के लिये नये अनुभाग अधिकारी मेमो बाजी करते हैं, और एक यूनियन विशेष के अधिकारियों को भड़का देते है। जबकि दूसरी खास यूनियन के लोगों का सपोर्ट करते रहते है। बड़े अधिकारी उस कार्यालय में जांच हेतु आते हैं तो निर्दलीय लोगों तथा अनुभाग अधिकारी के गुट के लोगों को डंटते हैं, फिर दोनों गुटों के लोगों के साथ हंसते हुये चाय पीते है। इस तरह वर्तमान प्रबंधन व दफ्तरी परिवेश की बड़ी उम्दा कहानी हैं। यह परिवेश विश्वविद्यालय के प्रो तिवारी जी के पास सुबह ही सुबह नौकरी की सिफारिश विश्वविद्यालय में प्रो हेतु सिफारिश आती है। तो वे निराश व दुखी हो जाते है। शाम को पड़ौसी का नन्हा बच्चा आता हैं उन्हें दुनिया का एक मात्र ऐसा व्यक्ति दिखा जो बिना स्वार्थ के प्रतिदिन आता हैं तिवारी जी प्रसन्न और तनावमुक्त हो जाते है।

ठंड़ी, तेज रफ्तार में अंकित और रीमा दोस्त हैं, दोनों एक बार बड़ी कश्मकश के बाद अपने दोस्ती के रिश्ते में दिल से आगे देह की हद तक गुजरने का मन बनाके एक परिचित के फ्लैट पर जाते हैं और फिर हिम्मत खुलती है तो वे प्रायः वहां जाने लगते है। एक बार अचानक निरोध इस्तेमाल न करने से रीमा प्रेगनेंट हो जात है तो अंकित से ड़िस्कस करती है। अंकित कहता है कि ड़ाक्टर सब ठीक कर देगा। रीमा अंकित को ड़ाटकर घर आती है। एक अन्य ड़ाक्टर को वह दिखाती हैं, तो कन्फर्म हो जाता है कि एवार्सन मुमकिन है, फिर किसी दिन ऐबार्शन का दिन तय करके वह आनी मम्मी को सच सच बता देती हैं, तो मम्मी अंगार हो उळती है वे उससे नाराज भी होती हैं, और उसे पीटती भी हैं। अब तक घर में आधुनिकता देखती रही रीमा को सोशल वेल्यूज, इज्जत जैसे नये शब्द सुनकर ताज्जुब होता हैं और वह एबोर्सन कराने ड़ाक्टर के पास चली जाती है। बैचेन मम्मी बड़ी देर तक अंशात रहती है।

शल्य चिकित्सा में एक दफ्तर में नया भर्ती हुआ रोहित देखता हैं कि दफ्तर में एक अजीब माहौल है कार्यालय के सभी लोग खंदारिया नामक सीनियर क्लर्क को अपमानित व लांछित करते रहते हैं लेकिन वह कुछ नहीं कहता। ईमानदारी और निष्ठा से सरल मन बना रहकर काम करता है। रोहित इसकी असलियत जानने खंदारिया के घर जाता है। खंदारिया से बात होती है। खंदारिया कहता हैं, कि मेरी हृदय की ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी हैं, ड़ाक्टर ने तनाव से दूर रहने को कहा हैं अतः किसी बात पर ध्यान नहीं देता और मनही मन दफ्तर के दूसरे लोगों के काले दिल के लिये प्रार्थना करता रहता हूं कि वे सब स्वस्थ रहें। तनाव नहीं पालता। खहें अपमान सहलूं। रोहित ऐसे सर्वहितकारी व्यक्तितव को देख हैरान रह जाता है।

”एक झूठे की मौत” में एक व्यक्ति (अनंत राम लौटियाल) की अचानक लाश मिलती है। यह व्यक्ति बड़ें गंदे, कंजूस, घिना व्यक्ति के रूप में चर्चित है। उसके क्लैम के लिये अस्थायी पते पर पत्र लिखा जाता हैं, तो कोई जवाब नहीं आता। तो स्थायी पते पर अंबाला के लिये एक व्यक्ति भेजा जाता है। वहां पता लगता हैं कि असली अंनतराम लौटियाल तो एक दूसरा ही आदमी था, जो कम तनख्वाह में गुजारा कैसे होगा, की चिंता से दुखी होकर कई साल पहले मरा तो उसका भरा पूरा परिवार दुखी हो गया था। भावुक पड़ौसी नकली अनंत राम बनके नौकरी करने इस शहर में आया था। वह तनख्वाह का एक-एक पैसा असली अनंतराम की मां व बहनों को भेजता रहा था। यहां आकर घृणास्पंद नकली अनंतराम के समर्पण, परोपकार व आत्महत्या के प्रति सराहना उत्पन्न होती है।

”इस सदी के अंत में सपना” में फ्रेंकलिन नामक एक बढ़े व्यक्ति, कथानायक को बताते हैं कि तीस पैंतीस सालों से वे एक सांप से परेशान हैं जो कि उसके घर में घूमता रहता हैै। कई मकान बदलने पर भी वह पीछा नहीं छोड़ता। कथानायक फ्रेंकलिन को मानसिक बीमार समझकर उनके घर रहने की पेशकश करता हैं और साथ रहने लगता हैं पर रात-रात भर जागने, मच्छरों से काट जाने के बाद भी उसे सांप नहीं दिखता हसीं तनाव में उसका वजन 8 कि.ग्रा. कम हो जाता हैं और वह खुद को फ्रेंकलिन जैसा महसूस करता है। उसी रात उसे भी सांप दिखता हैं रंगबिरंगा सांप। वह घर छोड़ कर भाग जाता हैं, जबकि फ्रेंकलिन सदा की तरह नींद व सपने में हूवे है। एक गहन मनोविज्ञान की यह कथा अपने प्रकाशन के दिनों में खूब चर्चित हुई थी।

हिन्दी कहानी का वर्तमान परिदृष्य एक साथ कई तरह की कहानियों, कई तरह की भाषा और कई तरह के शिल्प खोजते कथाकारों की तज़बीजों से भरा हुआ है। ऐसे में राजेन्द्र दानी की कहानियां कोई बड़ा और सुविचारित मुद्दा उठाने के बजाय यूं ही हसंते-बतियाते जीवन के सामान्य क्षणों में से कथानक उठा लेते है और उस पर कहानियां बुनते है। आसपास बिखरे मुद्दे, टहलते चरित्र और प्रयुक्त शैली को अपना कर वे कहानियां रचते है। कछूये की तरह और इस सदी के अंत में सपना ही ऐसी कहानियां है जो काफी दूर तक जाती है। दानी की भाषा यू तो सामान्य हैं, पर बीच-बीच में बघेली और छत्तीसगढ़ी के कई शब्द वे बेहिचक प्रयोग करते है।

संग्रह की कई कहानियां अपना कोई स्पष्ट संदेश नहीं छोडती, आशय स्पष्ट नहीं हो पाते। लेखक का यह अपना शिल्प है , पर पाठक इस शिल्प से निराश नही होता है। कुल मिलाकर यह संग्रह भी राजेन्द्र दानी के अन्य तीन संग्रहों की कतार में जड़ा एक सितारा भर कहा जायेगा।