कोड़ियाँ - कंचे - 9 Manju Mahima द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कोड़ियाँ - कंचे - 9

Part- 9

जयपुर और  जहाजपुर दोनों ही स्थानों पर गहमागहमी का वातावरण था. एक ओर ख़ुशी एक ओर गम. यह कैसी विडम्बना थी ईश्वर की. काली रात की समाप्ति पर प्रोफेसर बलदेव उर्फ़ बलभद्र के यहाँ फिर से जमावड़ा लग गया, पंडित वगैरह आगए, अंतिम यात्रा का सारा सामान लाया गया..हवेली का कॉलेज तो प्रदर्शनी के कारण सजा हुआ ही था, हाल को फूल मालाओं से सजाकर प्रोफेसर के पार्थिव शरीर को रखने की जगह बना दी गई थी.

आसपास की जगह के भी उनके कई विद्यार्थी बसों से आगए. पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रोफेसर के पार्थिव शरीर को दर्शनार्थ हवेली में रखा गया. विधि का कैसा विधान रहा कि जहाँ से उन्होंने अपने जीवन की यात्रा शुरू की थी, वहीं आकर यह यात्रा पूरी हुई, ऐसा बहुत कम होता है. लकिन इस बात को कोई जानता भी नहीं था, यह हॉल उसी जगह बना था, जहाँ ये लोग रहा करते थे. पंडित जी ने बताया कि दाह संस्कार 11.30 बजे होगा.

जयपुर में भी विधान सभा का हॉल ज़ोरदार ढंग से सजाया गया था. 10 बजे से सब लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था. सिक्योरिटी के कारण सबको अन्दर जाने में समय लगता है. दर्शक दीर्घा के पास अलग से दिए गए थे, वी. आई.पी. पास अलग थे, राजावत सा. को यही पास दिया गया था. गायत्री देवी भी समय से अपने पति जय राजावत के साथ पहुँच गई थीं. दोनों ही तरफ का समय संयोगवश एक ही था.

ठीक 10.30 बजे प्रोफेसर बलदेव की शव-यात्रा हवेली से प्रारम्भ हो गई..’प्रोफेसर बलदेव अमर रहें’ ‘राम नाम सत्य है’ के गुंजित शब्दों के साथ चल पड़ी, सब पुराने जानकार लोग कह रहे थे कि इतनी लम्बी शव-यात्रा या तो पुराने जमींदार सा. की थी या फिर यह है. प्रोफेसर के लिए तो सभी अवाक् और दुखी थे..सभी की आँखें भरी हुई थीं..और यंत्रवत आगे चलता हुए पराग को देखकर सभी संवेदित हो रहे थे.

सभी बदली हुई परिस्थतियों का पहाड़ अपने सर पर उठाए पराग भारी क़दमों से मामाजी के साथ लौट रहा था, उसे लग रहा था कि एक बालक पराग उसके अन्दर से निकल कर कहीं छूट गया है, अब जो घर जा रहा है, वह एक आदमी है, जिसमें बलदेव का साया समा गया है.

विधान सभा में शपथ समारोह बड़े धूम धाम से संपन्न हो गया..इसके बाद एक पंचतारा होटल में मध्याह्न-भोज रखा गया था. सब लोगों की बधाइयाँ और शुभकामनाएँ झेलते झेलते दोनों पति-पत्नी थक से गए थे. फूलों के गुलदस्तों से लदे-फदे उन्हें राजकीय होस्टल में पहुंचते-पहुंचते उन्हें 4-5 बज गए थे. गायत्री जी कमरे में घुसते ही पलंग पर गिर गई..

दोनों पति पत्नी थक कर चूर हो गए थे, सो आराम मिलते ही निद्रा देवी के आगोश में चले गए.. शाम को 7 बजे गायत्री जी की आँख खुली तो उन्होंने सोचा क्यों ना न्यूज़ देखी जाए?

टी.वी पर जैसे ही न्यूज लगाईं उन्हीं के शपथ लेते हुए चित्र दिखाए जा रहे थे, पर यह क्या? नीचे जो स्ट्रिप चल रही थी, उसमें लिखा आ रहा था. ‘ जहाजपुर बूंदी जिले के पोलोटेकनिक कॉलेज के प्रिन्सीपल प्रोफेसर बलदेव सिंह राजपूत के पार्थिव शरीर का आज हजारों लोगों की उपस्थिति में दाह-संस्कार किया गया.’

गायत्री जी एकाएक चौंक गईं, अरे! उनके मुँह से निकला..उन्होंने तुरंत चेनल चेंज किया, दूसरे चेनल पर प्रादेशिक समाचार आ रहे थे, उसी में भी यही समाचार था. परसों कॉलेज की प्रदर्शनी का उदघाटन होने के बाद ही गायत्री जी द्वारा सम्मानित होने के पश्चात्, अचानक उन्हें अटेक आया और वे उसको झेल नहीं पाए. डॉक्टरों के अथक प्रयत्नों के बाद भी कल अचानक हृदयगति रुक जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उनके अचानक देहावसान के कारण कॉलेज के सारे विद्यार्थी और जहाजपुर के सभी लोग शोक सागर में डूब गए. जयपुर में विधानसभा में शपथ समारोह चलने के कारण कोई नेता वहाँ नहीं पहुँच पाए. पर उन्हें जनता का भरपूर प्यार मिला था, जो उनकी लम्बी शव यात्रा से जाना जा सकता है.

गायत्री जी ने घबरा कर जय को जगाया और यह दुखद समाचार सुनाया और पूछा कि क्या उन्हें यह सब मालूम था?

जय ने कहा, ‘सॅारी, मुझे रात को ही यह समाचार मिल गया था, पर हमने जानकर तुम्हें नहीं बताया कि तुम डिस्टर्ब हो जाओगी. इसीलिए मैं भी सुबह जल्दी ही तुम्हारे पास पहुँच गया. गायत्री मायूस सी सब सुन रही थी, उसे जैसे किसी की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. एक ठंड़ी आह भरते हुए बोली, ‘ बिचारे प्रोफेसर’ वह बहुत ही नेक बन्दा था. तुम सोचो यदि वह नहीं होता तो मेरा जीतना मुश्किल ही होता. उसने कितना रात-दिन एक करके चुनाव के दिनों में काम किया, फिर मैंने जब हवेली का काम सौंपा तो वह भी उन्होंने कितनी शिद्दत से किया.’

गायत्री ने कहा, ‘सुनो! हमें जाना चाहिए’  घड़ी देखते हुए राजावत जी ने कहा, ‘ अभी? हम ऐसा करते हैं, कल सुबह जल्दी निकलेंगे और सीधे ही जहाजपुर चले चलेंगे.’ अभी तुम्हें आराम की बहुत ज़रूरत है... तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज़ हुई..

‘आ जाइए खुला है..’ देखा सचिव जी सहमते हुए खड़े हैं..

‘जी सर, मैडम पत्रकार लोग आपका स्टेटमेंट माँग रहे हैं, क्योंकि प्रोफेसर आपके अपने क्षेत्र से थे. इसलिए आपका शोक सन्देश बहुत आवश्यक है. आप थोड़ा मुझे लिखा दीजिए बाद का तो मैं पूरा करके भेज दूँगा.’

गायत्री जी ने एक ठंड़ी आह भरते हुए कहा, ‘लिखिए- प्रोफेसर बलदेव बहुत कर्मठ, ईमानदार और शांत प्रकृति के व्यक्ति थे, साथ ही वे बहुत ही उच्चकोटि के चित्रकार भी थे. इतनी कम उम्र में उनका चले जाना शिक्षा और कला के क्षेत्र की अपूर्णीय क्षति है. कर्मठ व्यक्तियों की आयु संख्या से नहीं कार्यों से जानी जाती है. जहाजपुर उनके ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकता. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिजनों के साथ हमारी हार्दिक संवेदनाएं हैं. अभी उनके बच्चे भी छोटे हैं, हम सरकार की ओर से जो कुछ भी कर सकते हैं अवश्य करेंगे. हम कल ही उनके परिवार को सान्तवना देने जा रहे हैं.’

रोते रोते गौरी को उन कौड़ियाँ की याद हो आई, उसका मन हुआ की वह उन्हें देखे और सदैव अपने पास उसी प्यार से रखे जैसे बलदेव को रखते देखा था. उठकर पर्स उठाया और उसमें से डिबिया निकाली. खोल कर देखा तो वही चार कौड़ियाँ चमचमा रहीं थीं. उसने डिब्बी उलटी कर उन्हें निकाला तो एक कागज़ नीचे गिरा. गौरी ने वह उठाया तो उस पर कुछ लिखा था—

‘यह कौड़ियाँ गायत्री जी की अमानत हैं, जिनका मोल मुझे चुकाना है.’

गौरी ने पढ़ा तो दंग रह गई, उसे कुछ समझ नहीं आया..यह कैसी पहेली है? कौड़ियाँ का गायत्री से भला क्या सम्बन्ध? यह तो वह शादी से पहले से बलदेव की जेब में देख रही थी, लेकिन गायत्री जी तो उन दिनों, उनके जीवन में कहीं नहीं थीं, फिर इसमें यह क्यों लिखा कि यह उनकी अमानत है? और कैसा मोल?

वह यह तो जानती थी कि गायत्री जी के कहने पर ही वे कोटा जैसा शहर छोड़ यहाँ आए, चुनाव प्रचार में भी उन्होंने रात-दिन एक करके खूब काम किया, हवेली की मरम्मत और उसमें कॉलेज बनाकर चलाने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. कितनी ही बार इस काम के खातिर वे गौरी से भी झगड़ पड़ते थे. ना समय से खाना. ना समय से सोना सभी में बद्परेहज़ी हो रही थी, जिसके कारण गौरी तो नाराज रहती ही थी, बलदेव भी बहुत गुस्से और चिडचिडे से हो गए थे, सीधे मुँह बात ही नहीं करते थे. इसीलिए होस्पीटल में बीते वे तीन दिन उसे बहुत अच्छे लगे थे, उसे लगा था जैसे पहले वाले दिन लौट आए हैं, बच्चे भी बहुत खुश थे,..पर यह छोटी सी ख़ुशी भी ईश्वर को रास नहीं आई, उससे ऐसा क्या गुनाह हो गया ‘हे! देवी माँ, तुमने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया?’  कहकर फिर गंगा जमुना बहने लगी.

सुबह जल्दी ही राजावत दंपत्ति जहाजपुर के लिए निकल गए. राजनीति की बातें करते दोनों जहाजपुर गेस्ट हॉउस में पहुँच गए. वहाँ पहुंचे तो सबके मुँह पर एक ही बात थी, प्रोफेसर सा. के देहांत की. इतनी कम उम्र में इस तरह उनका जाना सबको आश्चर्य में डाल गया था.

मिनिस्टर का पद-भार संभालने के बाद पहली बार गृह नगर में गायत्री जी आईं थीं, सो सभी उत्साहित थे, सभी जगह उनके स्वागत की तैयारी हो रही थी, पार्टी ऑफिस को भी सजाया गया था, जगह जगह पोस्टर लगाए गए थे. बूंदी में भी स्वागत की तैयारी चल रही थी, वहाँ से बराबर फोन द्वारा उनका कार्यक्रम पूछा जा रहा था. सब हालातों को देखते हुए आख़िरकार उन्होंने अपने सचिव और राजावत जी से सलाह लेकर तय किया कि पहले वे पार्टी ऑफिस जाएंगी और उसके बाद प्रोफेसर बलदेव के यहाँ परिवार को सांत्वना देती हुई, बूंदी के लिए रवाना हो जाएंगी.

पराग ने यह सूचना अपने घर में सभी को दे दी.. सुनकर एक हलचल सी मच गई, सभी तैयारी में लग गए.. आंगन में एक दरी (सूती गलीचा) बिछा दी गई, एक स्टूल पर मेजपोश बिछा तस्वीर सजा दी गई, मामाजी ने एक बच्चे को भेज तुरत ही फूल इत्यादि मंगवा लिए.

बाहर आया तो देखा सबने मिलकर बाहर ज़ोरदार तैयारी कर दी थी, फूलमाला वगैरह सब आगई थीं, छोटी जगह होने का यही फ़ायदा है, लोग अपने घर की तरह से काम करते हैं, दुःख को दुःख नहीं रहने देते हैं. उसके दोस्त भी दौड़ दौड़कर काम कर रहे थे, यहाँ तक कि एक दोस्त तो रात को भी घर नहीं गया. उसी के पास सोया. कुछ ही देर में कार के हॉर्न सुनाई देने लगे. मामा जी ने उसे वहीँ रहने का इशारा किया और खुद बाहर दरवाज़े पर खड़े हो गए. गायत्री जी जैसे ही उतरीं ,उन्होंने आगे बढ़कर प्रणाम किया और अपना परिचय देते हुए कहा, ‘ जी मैं प्रोफेसर सा. का साला हूँ, रतन सिंह शेखावत.’

‘अच्छा..’ गायत्री जी ने नमस्ते करते हुए कहा, ‘ प्रोफेसर सा. के निधन का बहुत अफसोस है हमें, उनके परिवार में और कौन-कौन हैं?

रतनसिंह ने कहा, ‘जी उनके परिवार में दो बच्चे पराग और परिधि और मेरी बहिन गौरी है.’

‘अच्छा, उनकी माताजी, पिताजी, भाई बहिन कोई नहीं?’

रतन सिंह ने उन्हें अन्दर ले जाते हुए कहा, ‘जी वे सब तो परलोक सिधार गए. काफी पहले.’

‘ओह!’ गायत्री जी ने कहा. तभी उन्होंने पराग को देखा एक सुदर्शन नौजवान के रूप में तो देखती रह गईं, मामाजी ने बताया, यही प्रोफेसर सा. का बेटा पराग है.

ओह! उन्होंने आशीर्वाद के लिए जैसे ही हाथ उठाया, पराग ने भाव-विभोर होकर उनके पैर छू लिए.’

‘जीते रहो बेटा, उसे उठाकर गले से लगा लिया. हमें सच ही बहुत दुःख हुआ प्रोफेसर सा. के न रहने के बारे में जानकार. उस दिन प्रदर्शनी के समय वे अचानक गायब हो गए थे, बाद में सचिव जी ने बताया कि उनकी उसी समय से तबियत खराब हो गई थी.’ एक लम्बी साँस भरकर वे तस्वीर के सम्मुख गई और हाथ जोड़कर श्रद्धांजलि देकर सफ़ेद फूलों का गुच्छा उन्हें अर्पित किया. इधर-उधर देखते हुए बोलीं, ‘अन्य सब कहाँ हैं?’ पराग ने कहा, ‘मम्मी अन्दर हैं, वे बाहर नहीं आ सकती, और मेरी छोटी बहिन परिधि भी वहीँ है.’

‘क्या हम उनसे मिलने जा सकते है?’

‘ जी क्यों नहीं, मै लेकर चलता हूँ आपको.’

गायत्री जी ने सबको वहीँ रुकने का इशारा किया और अन्दर गईं.