ग्वालियर संभाग के कहानीकारों के लेखन में सांस्कृतिक मूल्य - 16 padma sharma द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • Reborn to be Loved - 4

    Ch - 4 पहली मुलाकातपीछले भाग में आपने पढ़ा.…शीधांश सीधा कार...

  • बीच के क्षण

    अध्याय 1: संयोग बारिश की हल्की-हल्की बूँदें कैफ़े की खिड़किय...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 46

    अब आगे थोड़ी देर बाद कार आके  सिंघानिया विला के बाहर रुकी रू...

  • 16 साल बाद तलाक

    मेरा नाम रश्मि है. मेरी शादी एक बहुत अच्छे घर में हुई थी. मे...

  • जंगल - भाग 3

     -------------"मुदतों बाद किसी के होने का डर ---" कौन सोच सक...

श्रेणी
शेयर करे

ग्वालियर संभाग के कहानीकारों के लेखन में सांस्कृतिक मूल्य - 16

ग्वालियर संभाग के कहानीकारों के लेखन में सांस्कृतिक मूल्य 16

डॉ. पदमा शर्मा

सहायक प्राध्यापक, हिन्दी

शा. श्रीमंत माधवराव सिंधिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी (म0 प्र0)

अध्याय- छह

प्रदेय एवं उपसंहार

संदर्भ ग्रंथ-सूची

अध्याय-6

प्रदेय एवं उपसंहार

भारतीय संस्कृति, एकता, प्रेम, सौहार्द्र, भाईचारा, नैतिकता, एवं कल्याण भावना की द्योतक एवं पोषक है। संस्कृति के तत्व एवं मूल्य मानव कोे एक सूत्र में पिरोये रखने की भूमिका निभाते हैं।

वर्तमान में सांस्कृतिक मूल्यों का निरन्तर ह्रास हो रहा है। हमारे समक्ष क्षेत्रीयतावाद, आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, भाषावाद, आदि समस्यायें सुरसा के समान देश वासियों के मन की राष्ट्र भावना को निगलने में लगी हैं। इन सबसे व्यक्ति का अवमूल्यन हो रहा है और उसका नैतिक पतन हो रहा है। स्वार्थ सिद्धि के लिये अपराधी वृत्ति दिनों दिन पढ़ती जा रही है।

विघुत प्रचार माध्यम जिस संस्कृति का प्रचार करते हैं वह वास्तव में अपसंस्कृति है। हमारी संस्कृति पश्चिम के अंधानुकरण के कारण अपनी निजता खोती जा रही है जिससे हमारे जीवन में विसंगति उत्पन्न हो रही है। भूमण्डलीकरण, उपभोक्तावाद, बाजारवाद ने सांस्कृतिक संकट पैदा कर दिया है। अकेलापन, अनात्मीयता, असुरक्षा की भावना को बढ़ावा मिला है जिससे भय, कुण्ठा, संत्रास, व्यक्ति के मन में पैदा हुए जिसके फलस्वरूप मानव तन को विभिन्न बीमारियों ने जकड़ लिया। सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन हमारे पतन का कारण बना।

सम्बन्ध विश्वास खोते जा रहे हैं, रिश्ते-नाते बेमानी हो रहे हैं। व्यक्ति संयुक्त के एकल और एकल से विखण्डन की ओर अग्रसर है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता है संस्कृति के ज्ञान, पुनर्निमाण और पुनर्जीवन की। इस कार्य में साहित्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्तमान निकलने के बाद साहित्य ही हमें बताता है कि ऐसा भी होता था। संस्कृति का स्वरूप साहित्य में विद्धमान रहता है। डॉं. परशुराम शुक्ल ’विरही’ का कथन समीचीन लगता है- ’’किसी युग-विशेष की संस्कृति को जानने समझने में जब इतिहास हमारी सहायता नहीं करता तब तत्कालीन साहित्य आगे आता है।’’

(संस्कृति के दूत-भूमिका)

कहानी, गद्य-साहित्य की प्राचीन, महत्वपूर्ण एवम् सशक्त विधा है। प्राचीन परिभाषाओं के बोध से मुक्त हेाकर यदि कहें कि कहानी मनुष्य जीवन की अंतर्बाह्य प्रतिच्छाया है, जो उसके साथ-साथ चलती है, तो अत्युक्ति न होगी। काल प्रवाह के साथ-साथ मनुष्य की प्रकृति और प्रवृत्ति परिवर्तित हेाती रहती है, तदनुरूप समाज परिवर्तित होता है और कहानी की कहानी भी परिवर्तित होती रहती है। सन 1960 के उपरान्त लिखी जाने वाली कहानियों में उग्रता, निर्ममता और यथार्थ की क्रूरता की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती है। ऐसे साठोŸारी कथाकारों, जिन्होनें गहन व परिपक्व अनुभवों के आधार पर आधुनिक जीवन की यर्थाथता को समग्र अभिव्यक्ति दी है इस शोध परियोजना में वे कहानीकार भी सम्मिलित हैं । ग्वालियर -चम्बल संभाग के कथाकारों ने अपने धरातल से जुड़ी कहानियों का सृजन किया। अपने आसपास के परिवेश को अंगीकार करते हुए पात्रों की रचना की और उन्हें उन्हीं की भाषा प्रदान की।

ग्वालियर संभाग का अपना अलग ऐतिहासिक वैशिश्ट्य है। इसके कुछ क्षेत्रों का संबंध प्रागैतिहासिक महाभारत काल से है। इस प्रदेश की संस्कृति कुछ परिवर्तन के साथ पूर्ववत् है। यहाँ का रहन-सहन खान-पान सादा एवं मर्यादा पूर्ण है। पर्व उत्सव मिल-जुलकर मनाये जाते हैं। छोटे बड़ों का सम्मान करते हैं और बड़े छोटों के प्रति आत्मीयता रखते हैं। सहनशीलता, त्याग, कर्तव्य भावना एवं सहिष्णुता से ही परिवार चल रहे हैं। जन्म-संस्कार, यज्ञोपवीत संस्कार, नामकरण संस्कार, विवाह संस्कार विधि-विधान से किये जाते हैं। मुत्यु के उपरान्त अग्नि मुख देना त्रयोदशी मनाना, फूल सिराने जाना तथा गरूड़ पुराण वाचन की परम्परा है।

विवाह में सगाई होती है, बन्ने गाये जाते हैं, बारात जाती है, वरमाला, फेरे, सात वचन, तथा जनवासे में भी परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है। वधु के घर आने पर मौचायना (मुँह दिखाई), कंगना खुलने की रस्म होती है तथा बधाये गाये जाते हैं। विवाह में तेल चढ़ना, निकासी आदि परम्पराएँ भी होती हैं।

मुहूर्त निकलवाने की परम्परा कायम है। अच्छे कार्य के प्रारम्भ के लिये, यात्रा करने के लिये, मकान का उद्घाटन करने के लिये तथा बच्चे के जन्म के उपरान्त नहान आदि करने के लिए भी मुहूर्त निकलवाया जाता है। लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं। व्रत, उपवास, जप किये जाते हैं। कथा भागवत, रामायण, तथा सुन्दर काण्ड का पाठ किया जाता है।

गणेश महोत्सव, महाशिवरात्रि, दुर्गापूजा, बालाजी पूजा, दीपावली पूजन तथा होली पूजा आदि पर्व मनाये जाते हैं। ठाकुर बाबा, कारसदेव, भैंसासुर बाबा, मशान बाबा, ग्वाल बाबा आदि की पूजा का भी विधान है। विशिष्ट पर्वों पर रिश्तेदारें एवं परिचितों का आमंत्रण भी किया जाता है। सब धर्मावलम्बी एक दूसरे के त्यौहारों में सम्मिलित होते हैं जिससे सांस्कृतिक एकता का बीजवपन एवं परिवर्द्धन होता है। इस वैज्ञानिक युग में भी इच्छित फल की प्राप्ति के लिये तथा स्वस्थ होने के लिये टोने-टोटके, मंत्रसिद्धि, झाड़-फँूक तथा भभूत का प्रचलन है। दान-पुण्य मनौती, रासलीला, रामलीला आदि किए जाते हैं। जैन धर्म में पुत्री कीे अनिच्छा से पुत्री को साध्वी बनाने के निर्णय, पुत्री की प्राकृतिक संरचना एवं इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। छुआ-छूत में कमी आई है पर अभी भी संस्कारगत जड़ता एवं मोह में व्यक्ति बँधा है। सभी जाति एवं वर्ग के लोग रहते हैं। जाति-पांति, छुआ-छूत में कमी आई है पर संस्कारगत मोह खत्म नहीं हुआ।

लोग नैतिक मूल्य खोते जा रहे हैं। परस्पर प्रेम सौहार्द्र, आत्मीयता, सहयोग-सम्मान समाप्त हो रहे हैं। रिश्ते और सम्बन्ध विश्वास खो रहे हैं। भारतीय संस्कृति जिसका अध्ययन विदेशों में हो रहा है अब पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण कर अपने जीवन-मूल्य विस्तृत कर रहा है। सात जन्मों का बंधन विवाह का अब एक जन्म में भी निर्वाह नहीं हो पा रहा है और पति-पत्नी सम्बन्ध तलाक की कगार पर खड़ा है।

होली पर गीत गाना, नगाड़ा बजना तथा लड़कियों का संजा खेलना, चपेटा ख्ेालना, सब परंपराएं लुप्तप्राय हो रही हैं। पत्थर खदान बन्द होने से, कोल्हू बैल से तेल निकलना बन्द होने से, भड़भूंजे से भुंजौना बन्द करने से, तांगा चलना कम होने से, बढ़ई के काम बन्द होने से इन लोगों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति डांवाडोल हुयी है फलतः ये लोग शहर की ओर पलायन कर रह हैं। शहर में बेरोजगारी का तांडव हो रहा है जिससे युवा पीढ़ी के मन में अपराधी वृŸिा फल-फूल रही है। शहर तथा गाँव सभी जगह अपराध चरमोत्कर्ष पर है। अपहरण, बलात्कार, चोरी एवं डाकूजनी से आम नागरिक परेशान है।

वर्तमान युग में सत्य, मैत्री, लोक-कल्याण, सदाचार, एकता, विश्व-बन्धुत्व आदि नैतिक-मूल्यों का निरन्तर हृास हो रहा है। सत्य आचरण पृृथ्वी एवं द्युलोक को सुस्थिर करने वाला था। सभी नैतिक-मूल्यों की सार्थकता तब ही है, जब व्यक्ति अपनी मातृभूमि के प्रति अटूट श्रद्धा रखता है। ऐसे समय में जब नैतिकता पर हुआ आक्रमण मानव को विचित्र जीवन शैली के आगे आत्मसमर्पण करने के लिये बाध्य कर रहा है जब हम हतबुद्धि और भ्रान्त होकर भविश्य के सम्मुख खड़े हैं और हमें राह दिखाने वाला कोई स्पष्ट प्रकाश नज़र नहीं आ रहा है, आत्मा की शक्ति ही एक मात्र सम्बल है। जीवन मूल्य सदाचार की पृृष्ठभूमि में ही पल्लवित एवं पुश्पित हुये हैं।

भौतिकता की मृगमरीचिका में दिग्भ्रान्त मानव का उद्धार करने में ही मानव का मूल उद्धेश्य है। सत्य को व्यवहार के आचरण में उतारकर उसकी चुनौती को स्वीकार करने का साहस हममें नहीं रहा है। तब ही सत्य के प्रयोग करने वाले गाँधी जी पर फिल्म भले ही बना लें, पर उस आदर्श को, उस मूल्य को जीवन में उतार पाना असम्भव ही लगता है। आज शिश्यों एवं शिक्षकों में बढ़ते हुए असन्तोश एवं उनमें बिगड़ते सम्बन्धों के कारण समाज में फैलती भ्रश्टाचार एवं हिंसा की प्रवृत्ति आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सांस्कृतिक मूल्यों के ह्रास का कारण है, इस विशय में किसी भी प्रकार की दो राय नहीं हो सकती।

जीवन -मूल्यों से तात्पर्य उन समस्त मापदण्डों, आदर्शों एवं सिद्धातों से है, जो जीवन को प्रभावित कर उसके संचालन में सहयोगी होते हैं। समय परिवर्तन के साथ साथ जीवन-मूल्य भी परिवर्तित होते रहते हैं। यही कारण है कि हर युग की मूल्य-व्यवस्था, युग सापेक्ष्य होती है। मूल्य-व्यवस्था में प्रमुख भूमिका ‘संस्कृति’ की रहती है। इस दृष्टि से मूल्य-व्यवस्था को परिभाशित करने के लिये यह कहना उचित होगा कि ‘मानवता की भावना को पुश्पित और पल्लवित करने के लिए अथवा किसी देश या समाज के विभिन्न जीवन व्यापारों तथा सामाजिक सम्बन्धों में मानवता की दृष्टि प्रेरणा प्रदान करने वाले वे समस्त तथ्य मूल्य-व्यवस्था में सहयोगी होते हैं, जो तत्कालीन युग से जुड़े रहते हैंं।

उदात्त आदर्शो को मानवतावादी दृष्टि कोण-रचना का कारण तत्व माना गया है। येे आदर्श ही विश्वबंधुत्व की रचना के शाश्वत् उत्स हैं। हमें युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के उन जीवनादर्शो से अवगत कराना लक्ष्य है, जिनके अभाव में विश्व संस्कृति के विकास की संकल्पना संभव ही नहीं है। समग्रतः जीवन दर्ष न की पवित्रता का मूल्यांकन प्राचीन जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में करके अत्याधुनिक जीवनशैली का परीक्षण करना और समत्वभाव एवं सर्वोदय की अवधारणा के विकास में चिन्तरधारा के योगदान का विश्लेशण करना ही चाहिए।

साहित्य समाज सापेक्ष होता है। अतः सामाजिक विभिन्न परिस्थितियाँ कहानी का अंग वनीं। संभाग में कहानीकारों ने इन सब घात-प्रतिघातों का आद्योपांत चित्रण अपनी कहानियों में किया है। विभिन्न समस्याओं को अपनी कहानी का कथ्य बनाते हुए उनका समाधान भी प्रस्तुत किया है। किसी भी देश या राष्ट्र का प्राण उसकी संस्कृति है। संस्कृति में उसकी निजता है इस संस्कृति को मूल्य ही अर्थवŸाा और सार्थकता प्रदान करते हैं। ग्वालियर संभाग की संस्कृति समन्वित संस्कृति है। यहाँ राजस्थानी, बुंदेली एवं मालवी संस्कृति के दर्ष न होते हैं विभिन्न तीज त्यौहार भी मनाए जाते हैं।

आज सांस्कृतिक धरोहरों को बचाये रखने की आवश्यकता है। हम अपनी संस्कृति को स्मृत करते हुए उसके मर्यादावान, त्याग, सहिश्णुता, दया, ममता, स्नेह जैसे सद्गुणों और कल्याणकारी भावना से ओतप्रोत रह सकें। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन सबकी महती आवश्यकता है।

सन्दर्भ सूची

क्र. लेखक का नाम पुस्तक का नाम संस्करण प्रकाशक

1 अग्रवाल (डॉ.) जी. के. समाजशास्त्र 1989 साहित्य भवन, आगरा

2 अग्रवाल साधना वर्तमान हिन्दी महिला कथा लेखन और दाम्पत्य जीवन

(विश्लेषण तथा आंकलन) प्रथम 1995 वाणी प्रकाशन, दिल्ली

3 ’अनुज’ गोविन्द (सं.) शिवपुरी दर्ष न द्वितीय 2005 प्रतीक प्रकाशन, शिवपुरी

4 अवस्थी देवीशंकर नयी कहानी संदर्भ और प्रकृति 1973 राजकमल प्रकाशन, दिल्ली

5 अहमद शादाब सिद्दीकी उपकार मध्प्रदेश सम्पूर्ण अध्ययन ----- उपकार प्रकाशन, आगरा

6 अमिताभ (डॉ.) वेद प्रकाश हिन्दी साहित्य विविध प्रसंग 1981 नववर्ष अमर प्रकाशन, मथुरा

7 अष्थाना (डॉ.) ज्ञान हिन्दी कथा साहित्यः समकालीन संदर्भ प्रथम विजयादशमी

1981 जवाहर पुस्कालय, मथुरा

8 उपाध्याय (डॉ.) देवराज आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य और मनोविज्ञान 1963 साहित्य भवन प्रा. लि., इलाहाबाद

9 उपाध्याय आचार्य बलदेव वैदिक साहित्य और संस्कृति पंचम 2006 शारदा संस्थान रवीन्द्रपुरी, वाराणसी

10 कटारे महेश समर शेष है प्रथम 1986 साहित्य वाणी, इलाहाबाद

11 कटारे महेश इतिकथा अथ कथा प्रथम 1989 साहित्य वाणी, इलाहाबाद

12 कटारे महेश मुर्दा स्थगित प्रथम 2000 रामकृष्ण प्रकाशन, विदिशा

13 कटारे महेश पहरूआ प्रथम 2002 मेधा पाकेट बुक्स, दिल्ली

14 कटारे महेश छछिया भर छाछ प्रथम 2008 कान्ति प्रकाशन, दिल्ली

15 डॉं. कामिनी करील के कांटे 1987 संचयन गोविन्द नगर, कानपुर

16 डॉं. कामिनी गुलदस्ता 1991 आराधना ब्रदर्स गोविन्द नगर, कानपुर

17 डॉं. कामिनी मन मृगछौना 1995 आराधना ब्रदर्स गोविन्द नगर, कानपुर

18 डॉं. कामिनी बिखरे हुए मोरपंख 1997 आशा प्रकाशन, गोविन्द नगर, कानपुर

19 डॉं. कामिनी सिर्फ रेत ही रेत 2006 आराधना ब्रदर्स, कानुपर

20 कुमार जैनेन्द्र हिन्दी कहानियाँ प्रथम 1964 लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद

21 कुमार (डॉ.) श्रीमती प्रमीला म.प्र. का प्रादेशिक भूगोल 1987 म. प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी,, भोपाल

22 कुलश्रेष्ठ (डॉ.) सर्वेश हिन्दी कविता और लोक संस्कृति प्रथम 1977 विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी

23 खेमका राधेश्याम (सं.) कल्याण संस्कार अंक 2006 गीता प्रेस, गोरखपुर

24 गुप्त रघुराज (अनुवादक)

ले. मैलिबिल जे. हर्सकोवित्स संस्कृति का मानव शास्त्र

द्वितीय 1986 विवेक प्रकाशन, जवाहर नगर, दिल्ली

25 गुप्ता (डॉ.) आशा मैथिली शरण गुप्त का काव्यः सांस्कृतिक अध्ययन प्रथम 1979 अन्नपूर्णा प्रकाशन, कानपुर

26 गुप्ता (डॉं.) नीलम हिन्दी कहानी रचना और सिद्धांत ----- प्रतिमान प्रकाशन, नई दिल्ली

27 गुप्त (डॉ.) राघेश्याम प्रेमचंद्रोŸार कहानी 1970 हिन्दी साहित्य संस्थान, अजमेर

28 गुप्ता अरूणा आनंद रामायण का सांस्कृतिक अघ्ययन 1884 ईस्टर्न बुक लिंकरर्स, दिल्ली

29 गौतम (डॉ.) लक्ष्मणदŸा आधुनिक हिन्दी कहानी साहित्य में प्रगाति चेतना 1972 कोणार्क प्रकाशन, दिल्ली

30 गुलाबराय भारतीय संस्कृति की रूपरेखा संशोघित तथा परिवर्द्धित संस्करण साहित्य प्रकाशन मंदिर, ग्वालियर

31 चतुर्वेदी (डॉ.) राजेश्वर प्रसाद साहित्यिक निबंध 1990-91 हरीश प्रकाशन, आगरा

32 जनसंपर्क म. प्र. गुना विकास सभा एक दशक 1993-2003 आयुक्त जनसंपर्क मध्य प्रदेश माध्यम म. प्र.

33 जिज्ञासु मोहनलाल कहानी और कहानीकार द्वितीय 1963 आत्माराम एण्ड संस, दिल्ली

34 जैन (डॉं.) पुखराज भारत की सांस्कृतिक विरासत 1992 साहित्य प्रकाशन आगरा

35 जोगलेकर कुन्दा एक बंूद टूटी हुई प्रथम 1988 मानस प्रकाशन, ग्वालियर

36 जोशी तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री अनुवादक मोरेश्वर दिनकर पराड़कर वैदिक संस्कृति का प्रथम विकास प्रथम 1957 हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, बम्बई

37 झा (डॉ.) कृष्ण कुमार मॉरिशस का हिन्दी कथा साहित्यः सांस्कृतिक अध्ययन प्रथम 2006 भारत पुस्तक भण्डार, दिल्ली

38 टण्डन डॉ. मायारानी अष्टछाप काव्य का सांस्कृतिक मूल्यांकन 1960 हिन्दी साहित्य भण्डार, लखनऊ

39 तिवारी (डॉ.) श्रीधर म.प्र. में शैवधर्म का विकास 1988 क्लासिकल पब्लिशन, नई दिल्ली

40 तिवारी रामचन्द्र हिन्दी का गद्य साहित्य द्वितीय 1968 विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी

41 दातार (डॉ.) गोविन्द सखाराम मध्यकालीन भारतीय संस्कृति प्रथम 1973 मिश्र प्रकाशन, ग्वालियर

42 दिनकर रामधारी सिंह संस्कृति के चार अध्याय नवीन 2008 लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद

43 दुबे श्यामाचरण मानव और संस्कृतिृ चौथा 1989 राजकमल प्रकाशन, दिल्ली

44 द्विवेदी हरिहर निवास मध्य भारत का इतिहास 1956 मध्य भारत ग्वालियर सूचना प्रसारण विभाग

45 देव आचार्य नरेन्द्र साहित्य शिक्षा एवं संस्कृति प्रथम 1988 प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

46 (डॉ.) धनंजय आज की हिन्दी कहानी 1969 अभिव्यक्ति प्रकाशन, इलाहाबाद

47 ढेंगुला (डॉं.) रामस्वरूप बुन्देलखण्ड का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक अनुशीलन प्रथम अगस्त-1987 संचयन 152 सी. गोविन्द नगर, कानपुर

48 नागर (डॉ.) विमलशंकर हिन्दी के आंचलिक उपन्यासः सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ 1985 प्रेरणा प्रकाशन, मुरादाबाद

49 पंजियार (डॉ.) राजेन्द्र हिन्दी कथा साहित्य पूर्ण परिच्छेद 1985 अंकुर प्रकाशन शाहदरा, दिल्ली

50 पाण्डे (डॉ.) अयोध्या नाथ चन्देलकालीन बुन्देलखण्ड का इतिहास 1968 हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग

51 पाण्डेय (डॉ.) कमला प्रसाद छायावादोŸार हिन्दी काव्य की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि प्रथम 1972 रचना प्रकाशन, इलाहाबाद

52 पाण्डेय (डॉं.) के.बी.एल. (सं.) दतिया उद्भव और विकास प्रथम 1986 श्री श्यामसुंदर श्याम जनसहयोग एवं सामुदायिक विकास संस्थान, दतिया

53 प्रभु पाद ए. सी. भक्तिवेदान्त श्री मदभागवत् गीता यथारूप 2002 भक्ति वेदान्त बुक ट्रस्ट जुहू, बम्बई

54 प्रभु पाद ए. सी भक्तिवेदान्त लीला पुरूषोŸाम भगवान् श्री कृष्ण 2007 भक्ति वेदान्त बुक ट्रस्ट जुहू, बम्बई

55 बोहरे राजनारायण इज्ज़त आवरू प्रथम 1999 यात्री प्रकाशन, दिल्ली

56 बोहरे राजनारायण गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ प्रथम 2002 मेधा पाकेट बुक्स, दिल्ली

57 भानावत संजीव आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों में सांस्कृतिक बोध 1981 पंचशील प्रकाशन, जयपुर

58 भार्गव प्रमोद पहचाने हुए अजनबी 1984 रवीन्द्र प्रकाशन, दिल्ली

59 भार्गव प्रमोद लौटते हुए- प्रथम 1996 प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली

60 भार्गव प्रमोद शपथ पत्र 1985 प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली

61 श्री मधुरेश आज की हिन्दी कहानीः विचार और प्रतिक्रिया 1971 ग्रन्थ निकेतन, पटना

62 मदन (डॉ.) जी.आर. परिवर्तन एवं विकास का समाज शास्त्र प्रथम 2005 विवेक प्रकाशन, जवाहर नगर दिल्ली

63 माहेश्वरी (डॉ.) एच. बी. ग्वालियरः इतिहास, संस्कृति एवं पर्यटन 2008 दि हेरीटेज, ग्वालियर

64 मिलिन्द जगन्नाथ प्रसाद सांस्कृतिक प्रश्न संशोधित 1979 कैलाश पुस्तक सदन, ग्वालियर

65 महार देवी सिंह श्री कृष्णगीता 1995 आयुवानसिंह स्मृति संस्थान, रेजीडेंसी एरिया जयपुर

66 राधाकृष्णन (डॉ.) सर्वपल्ली हमारी संस्कृति 1982 सरस्वती विहार 21, दयानंद मार्ग, दिल्ली

67 रस्तोगी आर. के. परिवार एवं समाज प्रथम संस्करण संजीव प्रकाशन, मेरठ

68 रावत (डॉ.) चन्द्रभान हिन्दी कहानीः फिलहाल प्रथम 1980 राजपाल एण्ड सन्स, दिल्ली

69 डॉ. राधेशरण भारत की सामाजिक एवं आर्थिक संरचना और संस्कृति के मूल तत्व प्रथम 1990 मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल

70 राय (डॉ.) सूबेदार स्वातंत्रयोŸार हिन्दी कहानी का विकास प्रथम जुलाई 1981 अनुभव प्रकाशन, कानपुर

71 राय (डॉं.) कौलेश्वर भारत का राजीनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास 1989 के. एम. ऐजेंसीज नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली

72 राजकिशोर अश्लीलता का हमला 1998 वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली

73 लहरिया राजेन्द्र आदमी बाजार 2001 मेघा पाकेट बुक्स, दिल्ली

74 लहरिया राजेन्द्र यहाँ कुछ लोग थे 2003 मेघा पाकेट बुक्स, दिल्ली

75 लहरिया राजेन्द्र बरअक्स 2005 नेशनल पब्लिसिंग हाऊस, जयपुर

76 लहरिया राजेन्द्र युद्धकाल 2008 नेशनल पब्लिसिंग हाऊस, जयपुर

77 लाल (डॉं.) लक्ष्मीनारायण हिन्दी कहानियों की शिल्प विधि का विकास तृतीय 1967 साहित्य भवन, इलाहाबाद

78 लाम्बा मनोजकुमार ऋग्वेद ----- महामाया पब्लिकेशन टांडा, जालंधर

79 विजयवर्गीय (डॉ.) प्रेमचन्द्र आधुनिक हिन्दी कवियोें का सामाजिक दर्ष न ----- बाफना प्रकाशन चौड़ा रास्ता, जयपुर

80 वार्ष्णेय लक्ष्मीसागर आधुनिक हिन्दी कहानी का परिपार्श्व 1966 साहित्य भवन, इलाहावाद

81 विरही (डॉं.) परशुराम शुक्ल बुन्देलखण्ड की संस्कृति 2001 म.प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल-म.प्र.

82 विरही (डॉं.) परशुराम शुक्ल संस्कृति के दूत 2007 यूनिवर्सल कम्प्यूटर्स, रायपुर

83 विरही (डॉं.) परशुराम शुक्ल लोक संस्कृतिः अवधारणा और तत्व 2008 म.प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल

84 वर्मा (डॉं.) वीरेन्द्र कुमार ऋग्वेद- प्रातिशारण्यम् पुनर्मुद्रित 2007 चौखम्बा, संस्कृत प्रतिष्ठान, जवाहर नगर दिल्ली

85 विद्यालंकार सत्यकेतु भारतीय संस्कृति और उसका इतिहास 1984 रंजन प्रकाशन, दिल्ली

86 शर्मा (डॉ.) राधाबल्लभ सांस्कृतिक एकता और समकालीन हिन्दी साहित्य प्रथम 1995 प्राचार्य शा. कमलाराजा स्नातकोŸार महाविद्यालय ग्वालियर

87 शर्मा (डॉ.) रामनाथ धर्मदर्ष न संशोधित1988-89 केदारनाथ रामनाथ एण्ड कम्पनी, मेरठ

88 शर्मा मथुरालाल भारत की संस्कृति का विकास 1957 शिवलाल अग्रवाल एण्ड क. लि. ,आगरा

89 शर्मा (डॉं.) मोहिनी हिन्दी उपन्यास और जीवन मूल्य 1986 सहित्यागार, जयपुर

90 शर्मा राजनाथ साहित्य निबंध 1987 विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा

91 शर्मा (डॉं.)राजकुमार म.प्र. के पुरातत्व का संदर्भ गं्रथ 1974 म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल

92 शर्मा (डॉं.) प्रेमदŸा प्रसाद साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 1968 जयपुर पुस्तक सदन, जयपुर

93 शास्त्री अशोक (सं.) रांगेय राघव की सम्पूर्ण कहानियाँ भाग-2 प्रथम 1988 अलीक प्रकाशन, जयपुर

94 शास्त्री नेमिचन्द्र भारतीय ज्योतिष 32 वाँ 2001 भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली

95 शुक्ल आचार्य रामचन्द्र हिन्दी साहित्य का इतिहास संवत् 2018 काशीनागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी

96 शास्त्री कलानाथ भारतीय संस्कृति आधार और परिवेश 1989 श्याम प्रकाशन, जयपुर

97 शुक्ल रामलखन(सं.) आधुनिक भारत का इतिहास 2001 विश्वविद्यालय प्रकाशन,

नई दिल्ली

98 श्रीवास्तव डॉं. आशीर्वादीलाल एवं दुबे सत्यनारायण भारत का राजनैतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास संशोधित 1965 शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी

99 श्रीवास्तव (डॉ.) ए. पी. एवं ताम्रकर (डॉ.) आर. बी. समाजशास्त्र द्वितीय रामप्रसाद एण्ड सन्स, आगरा

100 श्रीवास्तव पूर्णिमा लोक गीतों में समाज प्रथम 1975 मंगल प्रकाशन, जयपुर

101 श्रीवास्तव (डॉं.) रमेशचन्द्र बुन्देलखण्डः साहित्यिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक वैभव ---- बुन्देलखण्ड प्रकाशन, बांदा

102 शास्त्री रामप्रताप त्रिपाठी

(सं.) सम्मेलन पत्रिका - कला अंक

(पुस्तकाकार) तृतीय 1909 हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, इलाहाबाद

103 सुमन रामनाथ (सं.) सम्मेलन पत्रिका-लोक संस्कृति अंक

(पुस्तकाकार) तृतीय 1995 हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, इलाहाबाद

104 सक्सैना (डॉं.) द्वारिका प्रसाद हिन्दी प्रतिनिधि कहानीकार 1985-86 विनोद पुस्तक सदन

105 सम्पादक मण्डल म.प्र. एक अध्ययन 2006 साहित्य भवन, आगरा

106 सती डॉं. विशम्भर प्रसाद

गुप्ता डॉं. एल.डी. शिवपुरी ज़िला भौगोलिक एवं आर्थिक विश्लेषण प्रथम 2004 प्रतीक प्रकाशन, शिवपुरी म.प्र.

107 सिंह पुन्नी काफिर तोता प्रथम 1985 अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद

108 सिंह पुन्नी जंगल का कोढ़ प्रथम 1986 अनामिका प्रकाशन, शारदा सदन इलाहाबाद

109 सिंह पुन्नी नाग-फाँस प्रथम 2002 अभिरूचि प्रकाशन, दिल्ली

110 सिंह पुन्नी कयामत का दिन प्रथम 2005 प्रवीण प्रकाशन, दिल्ली

111 सिंह पुन्नी गोलियों की भाषा प्रथम 2008 नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर

112 सिंह डॉं. त्रिभुवन हिन्दी उपन्यास और यथार्थवाद 2022 हिन्दी प्रचार पुस्तकालय, वाराणसी

113 सिन्हा डॉं. रघुवीर आधुनिक हिन्दी कहानीः समाजशास्त्रीय दृष्टि प्रथम 1977 अक्षर प्रकाशन, दिल्ली

114 सेठ श्याम किशोर एवं मेहरोत्रा राजेन्द्र कुमार (सं.) समकालीन कहानी रचना और दृष्टि प्रथम 1978 प्रतिमान प्रकाशन, शाहजहाँपुर

115 श्रोत्रिय निरंजन उनके बीच का ज़हर तथा अन्य कहानियाँ प्रथम 1988 पराग प्रकाशन, दिल्ली

116 त्रिपाठी डॉं. रामपूर्ति आदिकालीन हिन्दी साहित्य की सांस्कृतिक पीठिका प्रथम 1973 म.प्र. हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल

117 त्रिगुणामत डॉं. गोविन्द हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्ष निक पृष्ठभूमि प्रथम 1961 साहित्य निकेतन, कानपुर

118 त्रिपाठी डॉं. आर्याप्रसाद कबीर का सांस्कृतिक अध्ययन 1974 सरोज प्रकाशन, इलाहाबाद

119 त्रिपाठी (डॉं.) काशीप्रसाद बुन्देलखण्ड का ब्रहद् इतिहास 1991 भारती भवन पुरानी टेहरी, टीकमगढ़

शोध ग्रन्थ

01 खरे (डॉ.) लखनलाल साहित्य सागर का शास्त्रीय अध्ययन 2000 जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर

02 दीक्षित (डॉ.) भारती ग्वालियर चंबल संभाग के कहानी लेखन में नारी पात्र 2005 जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर

03 भार्गव (डॉ.) मनोज बुन्देलखण्ड की प्रमुख महिला कथाकारों के लेखन में सामाजिक स्वरूप 2007 जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर

04 शर्मा (डॉ.) पद्मा रांगेय राघव की कहानियों का समाजशास्त्रीय अध्ययन 1990 जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर

पत्रिकायें

कथादेश हरिनारायण दिल्ली

अक्षरशिल्पी राजुरकर राज भोपाल

आजकल बलदेव सिंह मदान नई दिल्ली

आऊटलुक विनोद मेहता दिल्ली

इंडिया टुडे प्रभु चावला दिल्ली

कथा क्रम शैलेन्द्र सागर लखनऊ

कहानीकार डॉं. कमलगुप्त वाराणसी

कथादेश हरिनारायण बम्बई

दलित वसंत डॉं. लखनलाल खरे कोलारस

नया ज्ञानोदय रवीन्द्र कालिया नई दिल्ली

नई गज़ल डॉ. महेन्द्र अग्रवाल शिवपुरी

नारी अस्मिता रचना निगम बड़ोदरा

पहल ज्ञानरंजन जबलपुर

परिकथा शंकर नई दिल्ली

प्रगतिशील वसुधा कमला प्रसाद भोपाल

माध्यम सत्यप्रकाश मिश्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, इलाहाबार

राष्ट्र धर्म आनंद मिश्र ’अभय’ लखनऊ

रचना डॉं. जी. पी. शर्मा भोपाल

रिसर्च लिंक डॉ. रमेश सोंनी इंदौर

वर्तमान साहित्य डॉ. कुंवर पालसिंह,नमिता सिंह अलीगढ़

वीणा सं. राजेन्द्र मिश्र इन्दौर

वेदान्त मण्डलम श्री विजय विजन गाज़ियावाद उŸार प्रदेश

शेष हसन जमाल जोघपुर

शोधार्णव डॉ. रामस्वरूप खरे उरई

साहित्य सागर डॉ. कमलकान्त सक्सैना भोपाल

सम्मेलन विभुति मिश्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, इलाहाबाद

साक्षात्कार देवेन्द्र दीपक हरि भटनागर भोपाल

सरस्वती सुमन डॉ. आनन्द सुमन सिंह देहरादून

समरलोक मेहरून्निसा परवेज भोपाल

संवेद वाराणसी अनिल मिश्र मुम्बई

समकालीन भारतीय साहित्य बृजेन्द्र त्रिपाठी दिल्ली

हंस राजेन्द्र यादव दिल्ली

पत्र

जनसत्ता दिल्ली

दैनिक जागरण कानपुर

दैनिक जागरण ग्वालियर

दैनिक जागरण झांसी

दैनिक जागरण भोपाल

दैनिक भास्कर ग्वालियर

दैनिक भास्कर भोपाल

नई दुनिया इन्दौर

नई दुनिया ग्वालियर

दैनिक आदित्याज ग्वालियर

राष्ट्रभाषा संदेश इलाहाबाद