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नाच के बाहर- गौरीनाथ

समीक्षा कथा संग्रह: नाच के बाहर- गौरीनाथ

तमाम उम्मीदों का सवब

‘नाच के बाहर’ युवा कथाकार गौरीनाथ का पहला कथा संग्रह है। इसमें उनकी दर्जन भर कहानियां शामिल हैं। इस कथा संग्रह की अनेक कहानियां जहां बेहतरीन किस्से का आनंद देती हैं, वहीं कुछ कथाओं के शिल्प उन्हें बड़ा प्रभावशाली बना देते हैं, जिससे पाठक मूल संवेदना से गहरे से जुड़ जाता है। संग्रह की कहानियों को अगर शिल्प और विषय वस्तु के आधार पर बांटा जाकर विवेचना की जाये तो अनेक नयी चीजें उभरती हैं, जो गौरीनाथ के सृजन संसार को जाने का मौका देती है। संग्रह की कथा निर्बन्ध और मौके आधुनिक युग की कथायें है। निर्बन्ध में तीन शहरी लोग (जिसमें एक युवा स्त्री है) एक ही कमरे में रात बिताते हैं। समय बिताने को तीन लोग तीन कहानी सुनाते हैं, जिनमें आत्म कथ्य जैसी संवेदना मौजूद रहती है। समाज और दांपत्य पर नये युग के दवाबों का वर्णन करती यह कहानियां इस पूरी कथा को मानव जीवन के अल्पकालीन जीवन की झांकी सा पेश करती कथा बना देती है। मौके का नायक पत्रकार रमेन्द्र अपनी विरासती जमीन का हिस्सा बचाने के लिये गॉंव आना-जाना शुरू करना चाहता है वह गॉंव जाकर वहां भौतिक व आभ्यांतरिक परिवर्तन पाता है। पता लगता है कि मंदिर-मस्जिद मुद्दा वहां पहुंच चुका है, कट्टरता बढ रहीं है। उसके भाई उल्टे उससे ही अपेक्षा रखते हैं। उधर जमीन बेचने का मौका है तो शहर में विदेश दौरे का मौका हाथ आया है, रमेन्द्र फिलहाल गॉंव के मौके का लाभ उठाना चाहता है।

महागिद्ध, रोशनी और रोटी मछली उस मेहनतकश वर्ग की कथायें है जहां लोग अपना श्रम, अपनी अस्मिता और देह तक दांब पर लगाके दो जून का खाना परिवार को देने में आंशिक रूप् से सफल है। यहीं स्थितिं अनिर्णय की है। जहां गॉंव से आयी वर्ग की मनोरमां सामने विवाहेतर सम्बन्धों के आकर्षक प्रस्ताव आते है और वह अनिर्णय की स्थिति में फंसी रह जाती है। महागिद्ध में मरे जानवरों का मांस बटोरने वाले, रोशनी में मछली पकड़ने वालों और सेटी मछली में झाडू पोंछा करने वाली स्त्री मजदूर रधिया की व्यथा कथा वहीं पर है।

सीढी में स्त्रीपुरूषों के बदलते सम्बन्धों की कथा है। जानकी से ब्याह होने पर नेरेटर पत्रकार उसे चित्रकारों की दुनिया में आगे बढनें हेतु तलाक लेकर नया ब्याह करने की स्वतंत्रता देता है तो रष्मि खुद ही नैरेटर से इसलिए ब्याह करती है कि उसे अच्छा चांस दिलाया जा सके। दांपत्य रिश्तों को सीढ़ी बनाने की यह कथा भारत में दबें पांव आ रही आधुनिक जगत की ही कथा है। दुनियाभर भी इन्हीं रिश्तों की (एक अलग शिल्प में रची गई) कथा है, राम नामक संपादक अपनी आत्मकथात्मक कहानी नैरेटर को पढ़ाता है जिसमें एक पुरानी सहपाठी के साथ अनायास बीती रात का किस्सा कहा गया है और इस विवाहेतर सम्बन्ध में पत्नि द्वारा यह पूछे जाने पर कि मेरे सम्बन्ध कहीं होगें तो आप क्या करोगे, संपादक पति उन्हें सहजता से स्वीकार करता है। राम की पत्नि नैरेटर से इस तरह का नाटक करने का आग्रह करती है, पर युवा मन इस झमेले से दूर भाग जाता है। बाद में एक पार्टी में उसी स्त्री को पुराने रूप से अलग स्वतंत्र जीवन जीती स्त्री के रूप में देख कर नैरेटर यहां से भाग निकलता है। इस कथा का नया अन्त है शिल्प कहानी में नये शिल्प को प्रभावशाली रूप बनकर सामने आया है।

गणित कहानी में गणित के अध्येता फेकन द्वारा कस्बे के प्रभावशाली नेता की बेटी के प्रेमी को शह दिये जाने के कारण कस्बे में फैलाये जा रहें साम्प्रदायिक विद्वेष का जिक्र है। मास्टर मुशष्ताक अहमद फेंकन को गुमशुदगी और इस गुमशुदगी की वजह से बबन के सदमा ग्रस्त हो जाने को लेकर भारी परेशान है। उन्हीं के द्वंद्व के मार्फत पाठक कहानी की जमीन छूता है।

हम कहां है और असली नाटक दो ऐसी कहानियां है जिनमें छोटे-छोटे अध्याय है लिखकर नयें शिल्प में वर्तमान युग की त्रासदी का वर्णन है। पहली कथा में गॉंव से शहर जाकर खानाबदोश हो गये एक व्यक्ति की स्थितियां है तो असली नाटक में शासकीय मशीनरी में व्याप्त कागजी छोड़ो द्वारा दाना चर जाने की स्थितियां है। यदि इन कथाओं में थोड़ी और गहराई होती तो कहानियां ओर ज्यादा प्रभाव शाली होती।

नाच के बाहर कहानी इस संग्रह की शीर्षक कथा होने योग्य है। खंजन नामक युवती एक मेहनतकश स्त्री है जो युवावस्था में गॉंव की जमींदार के युवक बेटे की प्रमिका रही है। खंजन को अचानक वहीं जमींदार पुत्र रेल्वे स्टेशन पर दिख जाता है तो वह पुरानी स्मृतियों में खो जाती है। खंजन को अपनी प्रेमकथा के समानान्तर लोकनाट्य नाच में घटती नाट्य कथा याद आती है। जिसमें गॉंव की युवती मुंगा और जमींदार पुत्र जालिम सिंह की प्रेमकथा है। नाच में तो जालिमसिंह मुंगा को अपने घर ले आता है पर यथार्थ जीवन में ऐसे नहीं हैं, खंजन को अपने गॉंव टोले में बदनामी झेलने को बाफ साहेब छोड़़ गये है। नाच में मुंगा अंत में जालिमसिंह की पत्नि को उससे मिला देती है। पर नाच के बाहर यथार्थ में मुंगा अर्थात् खंजन अब बाफ साहेब को पत्नि के साथ देख नहीं पातीं। लोकगीत और लोकनाट्य की गहरी संवेदना में इस कथा को बड़ी ताकत दी है। गौरीनाथ की इन सभी कहानियों की जमीन बिहार के गहन प्रांतर से जंड़ी है, इस कारण वहां की भाषा, बोली और संस्कार इन कथाओं में पात्रों के साथ स्वाभाविक रूप से आ गये है। लोकगीत, विरहा, लोकनाट्य और परम्परागत किस्सों के चरित्रों की गौरीनाथ को गहरी समझ है, इन सबकी स्मृति और उसका सही वक्त पर प्रयोग गौरीनाथ की बेहतर सूझबूझ को प्रकट करता है।इन कहानियों से पता चलता है कि कथा सृजन में आते ये नये हस्ताक्षर अपने साथ एक बहुत बड़ा और स्पष्ट विजन लेकर आये है। इस वजह इस नयी पीढ़ी से बहुत सारी उम्मीदें भी बंधती है। गौरीनाथ से तों वैसे भी बड़ी आशायें है।

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