शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 12 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 12

कागज का टुकड़ा


इंस्पेक्टर सोहराब की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। सार्जेंट मुजतबा सलीम को गायब हुए दो दिन गुजर चुके थे। उसका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था। सलीम और श्रेया दोनों के ही मोबाइल सर्विलांस पर लगे हुए थे। उनके गायब होने के बाद से मोबाइल दोबारा ऑन नहीं हुए थे। मोबाइल की आखिरी लोकेशन भी हीरा नदी के पास की ही मिली थी।

नदी में काफी दूर तक पुलिस की पांच टीमें सलीम और श्रेया को तलाशने गईं थीं। इसके बावजूद दोनों का कहीं कोई सुराग नहीं मिला था। दोनों को तलाशने की कोशिशें अब भी जारी थीं।

सोहराब इस वक्त गुलमोहर विला में मौजूद था। उसने दाहिने हाथ के अंगूठे और बीच वाली उंगली पर अपनी थोड़ी टिका रखी थी। तर्जनी उंगली होंठों पर थी। वह उंगली को कुछ इस तरह से होठों पर रखता था, जैसे चुप रहने को कह रहा हो। सिगार ऐश ट्रे पर रखी हुई थी। उसका धुंआ उड़-उड़ कर हवा में घुलता जा रहा था। सोहराब ने काफी देर से कोई कश नहीं लिया था। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था।

कई सारे सवाल थे, जिनके जवाब उसके पास नहीं थे। न ही घटनाओं की कड़ियां ही जुड़ पा रही थीं। कई सारे किरदार थे। हर किरदार जुदा था। कुछ घटना में फिट थे तो कई का रोल ही समझ में नहीं आ रहा था। अब सार्जेंट सलीम और श्रेया लापता थे।

सलीम के न होने से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी। दूसरे अब उसे भी तलाश करना था। इन सबके बीच सोहराब एक बात को लेकर मुतमइन था कि सलीम को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया था। अगर उसे मारना होता तो वहीं काम तमाम कर दिया गया होता। मुजरिम उसे स्टीमर पर लाद कर ले जाने की मशक्कत कभी नहीं करते। सलीम को ले क्यों जाया गया है? यह सलीम के लिए बड़ी गुत्थी बन गई थी। अभी तक वह इसका जवाब भी नहीं खोज पाया था।

उसने सिगार को ऐश ट्रे से उठा लिया और बाहर लॉन में आ गया। सूरज डूब रहा था। जाती हुई किरणें गुलमोहर विला को चूम रही थीं। सोहराब ने जूते उतार दिए और हरी घास पर नंगें पैर टहलने लगा। वह सिगार के हल्के-हल्के कश अब भी ले रहा था।

तभी लॉन के पास आकर एक लंबी सी कार रुकी। उसमें से कैप्टन किशन उतर रहा था। वह कार से उतर कर सीधे सोहराब की तरफ बढ़ा चला आ रहा था। उसके पीछे शैलेष जी अलंकार था।

“आईए अंदर ही चलते हैं।” सोहराब ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा।

वह दोनों को लेकर ड्राइंग रूम में आ गया। दोनों को बैठाने के बाद सोहराब खुद भी उनके सामने सोफे पर बैठ गया। ट्राइंग रूम काफी बड़ा था। यहां एक वक्त में 25 से ज्यादा लोग बैठ सकते थे।

“जी कैसे जहमत की।” सोहराब ने नर्म लहजे में पूछा।

“मैं यह पता करने आया था कि शेयाली के बारे में कुछ पता चला क्या।” कैप्टन किशन ने पूछा।

“अभी तक तो कुछ खास पता नहीं चला। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।” सोहराब ने कहा।

“सोहराब साहब मैंने आपकी काफी तारीफ सुनी है। कुछ सुराग तो हाथ लगे होंगे?” कैप्टन किशन ने सोहराब की आंखों में देखते हुए कहा, लेकिन सोहराब की आंखों की ताब न लाकर वह दूसरी तरफ देखने लगा।

“हम कोशिश में लगे हैं। जल्द ही सब कुछ पानी की तरह साफ हो जाएगा।” इंस्पेक्टर सोहराब का लहजा अब भी नर्म था।

“मैंने सुना है कि आपके सार्जेंट सलीम फिल्म इंडस्ट्री की एक लड़की के साथ फरार हैं।” कैप्टन किशन ने मुस्कुराते हुए कहा। हालांकि उसका लहजा चिढ़ाने वाला था।

“आपने गलत सुना है... कैप्टन किशन! वह एक मुहिम पर है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने पूरी गंभीरता से जवाब दिया।

“भाई यह तो आप जानें। हमें आपके मामलात से क्या लेना-देना। हमने जो सुना था... वह आपको बता दिया।” कैप्टन किशन का लहजा इस बार गंभीर था।

कुछ पल खामोशी के बाद सोहराब ने पूछा, “आपकी फिल्म कहां तक पहुंची?”

“कुछ खास नहीं। शेयाली के जाने के बाद तकरीबन सब कुछ ठप्प ही पड़ा है।” कैप्टन किशन ने गमगीन आवाज में कहा।

अपनी बात पूरी करते ही कैप्टन किशन उठ गया। वह नौजवानों सी फुर्ती के साथ उठा था। उसके साथ ही शैलेष जी अलंकार भी उठ गया। शैलेष अजीब सी रूखी तबियत का आदमी था। न ही आते वक्त और न जाते वक्त ही उसने सोहराब को विश किया था।

इंस्पेक्टर सोहराब दोनों को ड्राइंग रूम के दरवाजे तक छोड़ने गया था। जब वह लौट कर आया तो उसने देखा कि जहां शैलेष अलंकार बैठा हुआ था वहां फोल्ड किया हुआ कागज का एक पेज पड़ा हुआ था। सोहराब ने कागज का वह पेज उठा लिया। उसने उसे खोल कर देखा। उस पर कुछ लिखा हुआ था। उसे पढ़ते ही सोहराब के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। उसने कागज के टुकड़े को कोट की अंदरूनी जेब में रख लिया।


गुफा


सार्जेंट सलीम एक निश्चित दूरी बनाकर उस साय का पीछा करने लगा। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि वह पेड़ की छांव में ही रहे ताकि चांदनी की रोशनी उस पर न पड़ सके। सलीम ने गौर किया वह साया भी कुछ ऐसी ही कोशिश कर रहा है। कुछ दूर जाने के बाद एक साया और पेड़ों की ओट से निकल कर उसके साथ चलने लगा। यानी यह दो लोग थे।

काफी दूर तक सार्जेंट सलीम और उस साये के बीच लुकाछिपी का खेल काफी देर चलता रहा। आखिर एक जगह पर कुछ पल के लिए दोनों साये चांदनी में आ गए। सलीम ने गौर किया कि उनमें एक पुरुष और एक महिला है। महिला के हाथों में कुछ सामान था।

सार्जेंट सलीम उन दोनों साय का पीछा करते हुए काफी दूर निकल आया था। कुछ आगे जाने के बाद छोटी-छोटी पहाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया। उन दोनों जगंलियों का रुख उन्हीं पहाड़ियों की तरफ था। कुछ दूर जाने के बाद दोनों ने एक पहाड़ी के पास के पेड़ से बंधे एक मोटे से रस्से को खींचा। सार्जेंट सलीम ने देखा कि उनके ऐसा करते ही पहाड़ी के एक मुहाने से बड़ा सा पत्थर हट गया। इसके बाद उन दोनों ने रस्से को पेड़ से कस कर बांध दिया।

पुरुष रस्से के पास ही खड़ा रहा। महिला ने जमीन पर रखे सामान को हाथों में फिर से उठा लिया और सधे कदमों के साथ पहाड़ी की तरफ चल दी। सार्जेंट सलीम भी छिपते-छिपाते पहाड़ी के उस मुहाने के पास जाकर एक बड़े से पत्थर के पीछे छिप गया। उसे अंदाजा हो गया था कि यह एक गुफा है। इस गुफा के मुंह को एक पत्थर से बंद किया गया था।

जंगली औरत गुफा के अंदर चली गई। सार्जेंट सलीम काफी देर तक उसका इंतजार करता रहा। जब वह बाहर नहीं निकली तो सलीम को उलझन होने लगी। वह जमीन पर लेट गया और पत्थरों की ओट लेता हुआ गुफा की तरफ चल दिया।

वह इसी तरह से गुफा के अंदर दाखिल हो गया। अंदर गहरा अंधेरा था। कुछ भी सूझ नहीं रहा था। सलीम उठ कर खड़ा हो गया। वह बहुत सधे हुए कदमों से चल रहा था। रास्ता बहुत खराब था। अचानक उसे एक जोर की ठोकर लगी और काफी संभलने के बावजूद वह जमीन पर आ ही रहा। उसने पूरी कोशिश की थी कि उसके गिरने से आवाज पैदा न होने पाए।

तभी उसने अपनी तरफ आते कदमों की आहट सुनी। उसने लेटे ही लेटे तेजी से करवट बदली और दीवार से जा चिपका। कोई तेजी से उसके पास से गुजर गया। उसकी चाल से उसे महसूस हुआ कि उसे इस गुफा के ऊबड़-खाबड़ रास्तों के बारे में पूरी तरह से अंदाजा है।

सलीम दोबारा खड़ा हो गया और आंख फाड़-फाड़ कर चारों तरफ देखने लगा। अचानक जैसे उसे कुछ याद हो आया हो। वह तेजी से गुफा के दरवाजे की तरफ भागा। एक बार फिर वह एक पत्थर से ठोकर खाकर जमीन पर आ रहा। उसकी रफ्तार तेज थी, इस वजह से इस बार उसे काफी चोट आई थी। वह चोट की परवाह किए बिना फिर उठा और तेजी से गुफा के दरवाजे की तरफ भागा।

उसने देर कर दी थी।

उसे अपनी बेवकूफी पर बेतहाशा गुस्सा आ रहा था। अब कुछ नहीं हो सकता था। वह कुछ पल वहीं खड़ा सोचता रहा। दरअसल गुफा के सामने फिर से पत्थर को लगाया जा चुका था।

उसने पत्थर को हटाने की जोर-आजमाइश शुरू की। पत्थर ज्यादा भारी नहीं था। सलीम ने इसका अंदाजा उन दोनों जंगलियों के पत्थर हटाने से लगा लिया था। उसने पूरा जी-जान लगा दिया। पत्थर टस से मस न हुआ। उसे समझते देर न लगी कि पत्थर किसी खांचे में फिट होता है। ऐसा खांचा जिसमें पत्थर को ऊपर तो उठाया जा सकता है लेकिन सामने से धक्का देकर नहीं हटाया जा सकता।

उसने पत्थर को नीचे से ऊपर ले जाने की कोशिश की। मुश्किल यह थी कि नीचे उंगलियां ले जाने के लिए जगह ही नहीं बन पा रही थी। काफी कोशिशों के बाद भी उसे जब कामयाबी नहीं मिली तो वह नाउम्मीद होकर वहीं बैठ गया।

सलीम पसीने से तर हो रहा था। वह गुफा की जमीन पर बैठा गहरी-गहरी सांसे ले रहा था। उसने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं।

तकरीबन दस मिनट तक वह आंखें बंद किए बैठा रहा और लंबी-लंबी सांसें लेता रहा। उसने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोल दीं। वह उठ कर खड़ा हो गया था। उसका रुख गुफा के अंदर की तरफ था। सार्जेंट सलीम ने आंखों की पुतलियों को पूरी तरह से फैला लिया। यह अंधेरे में देखने की एक तकनीक है। अब उसे गहरे अंधेरे में भी जगहों का एहसास हो रहा था। वह धीरे-धीरे अंदर की तरफ बढ़ने लगा।

गुफा के काफी अंदर जाने के बाद उसे किसी के सांस लेने की आवाज सुनाई दी। वह सतर्क हो गया। सलीम दीवार से चिपक कर धीरे-धीरे अंदर की तरफ बढ़ रहा था। उसे अंधेरे में किसी के बैठे होने का एहसास हुआ। सलीम दम साधे खड़ा रहा। वह बैठी हुई चीज के बारे में अंदाजा लगाने लगा।

सार्जेंट सलीम ने अचानक उस बैठे हुए जीव पर छलांग लगा दी और उसे दबोच लिया। अचानक ही पूरी गुफा एक लड़की की चीख से गुंज उठी। सलीम हड़बड़ा कर उससे दूर हट गया।

“मुझे मत मारो... मुझे मत मारो!!” लड़की की घुटी-घुटी सी आवाज सलीम के कानों में गूंज कर रह गई।

“श्रेया!” सलीम ने फुसफुसाती सी आवाज में कहा। उसने आवाज को पहचान लिया था।

“तुम कौन हो?”

“मैं सार्जेंट सलीम। तुम्हें यहां क्यों बंद किया गया है?”

श्रेया की सिसकियों की आवाज सलीम के कानों को विचलित कर गईं। वह रो रही थी। जिंदगी बचने की आस ने शायद उसे खुशी से भर दिया था।

सलीम को समझ नहीं आ रहा था कि वह श्रेया को कैसे ढांढस बंधाए। वह कुछ दूर खड़ा पलकें झपकाता रहा। अचानक श्रेया उठ खड़ी हुई और उससे लिपट गई। अब उसका रोना तेज हो गया था।

श्रेया के इस तरह से आकर लिपट जाने से सलीम घबरा गया था। वह कई कदमों पीछे हटा था। नतीजे में वह फिर नीचे था। इस बार श्रेया उसके ऊपर गिरी थी। सलीम के मुंह से अजीब सी आवाजें निकल रही थीं।

सलीम के इस तरह से गिर जाने से श्रेया की हंसी फूट पड़ी। सलीम ने जल्दी से उसे खुद से अलग किया और उठ कर बैठ गया।

“बड़े जासूस बने फिरते हो... एक लड़की का वजन भी नहीं संभाल सकते।”

“लड़की का वजन संभालने की ट्रेनिंग हमें नहीं दी गई थी। अगर यहां से जिंदा बचा तो यह ट्रेनिंग भी शुरू कराने के लिए महकमे को मेल करूंगा।” सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा। अगर श्रेया ने उसका मुंह देखा होता तो यकीनन वह और ज्यादा हंस रही होती।

“तुम यहां क्या कर रही हो?”

“वह हरामजादे मुझे मार डालना चाहते थे। जिंदगी बख्शने के बाद लाकर यहां बंद कर दिया है।”

“पूरी बात बताओ?” सलीम के इस सवाल के जवाब में श्रेया ने जो वारदात बयान की उसका लब्बोलुआब यह था कि सलीम के सर पर हमला कर के उसे बेहोश कर दिया गया था। उसके बाद श्रेया को भी बांध दिया गया। वह पांच लोग थे। उन्होंने जंगलियों जैसी पोशाक पहन रखी थी। उन्होंने अपने चेहरों पर अलग-अलग जानवरों के मास्क लगा रखे थे।

उसके बाद सलीम और श्रेया को एक कार से नदी किनारे तक ले जाया गया। वहां ले जाने के बाद श्रेया की आंखों पर पट्टी बांध दी गई और उन्हें एक मोटर बोट पर लाद दिया गया।

जंगल पहुंचने के बाद श्रेया की आंखों पर से पट्टी हटा दी गई। उन जंगलियों ने श्रेया को एक महिला और दो पुरुषों के सुपुर्द कर दिया। वह तीनों उसे काफी दूर पहाड़ी पर ले जाकर भाले से मार देना चाहते थे। श्रेया ने काफी मिन्नतें कीं तो साथ आई महिला मान गई। उसके बाद तीनों में काफी देर खुसुरफुसर होती रही। कुछ देर बाद तीनों ने श्रेया को इस गुफा में लाकर बंद कर दिया। वही महिला रोज रात को श्रेया के लिए खाना लाती थी। आज भी वह खाना देने ही आई थी।

सलीम ने श्रेया की इस बात से अंदाजा लगाया कि बाकी जंगलियों की नजर में श्रेया मारी जा चुकी है। तीनों ने किसी वजह से श्रेया को यहां छुपा दिया था। किसी को पता न चले इस वजह से उसे रात के अंधेरे में चुपचाप वह जंगली महिला खाना दे जाती थी।

“तुम ने भागने की कोशिश नहीं की?” सलीम ने पूछा।

“मुझे इस इलाके के बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैं कहां जाती। फिर उन्होंने मुझे छुपा कर रखा था। अगर मैं बाहर निकलती तो मारी जाती।” श्रेया ने कुछ देर की खामोशी के बाद सलीम से पूछा, “तुम कहां थे और अब तक क्यों नहीं भागे?”

“मैं तुम्हें छोड़कर कैसे जा सकता था।” सलीम ने कहा।

“अच्छा जी।” श्रेया ने मुस्कुराते हुए कहा।

“बिल्कुल जी।” सलीम ने भी तुर्की ब तुर्की जवाब दिया।

कुछ देर तक दोनों खामोश रहे। उसके बाद सलीम ने पूछा, “तुम ने खाना खा लिया।”

“जी।” श्रेया ने जवाब दिया। उसके बाद उसने पूछा, “अब क्या इरादा है?”

“सोच रहा हूं यहीं बस जाऊं। अच्छी जगह है। रोज भुना हुआ बेहतरीन गोश्त खाने को मिलता है। घूमने के लिए जंगल और झील है।”

“अच्छा है तुम्हारे लिए। किसी जंगली औरत से शादी कर लेना। जिंदगी बड़े आराम से कटेगी।” श्रेया ने चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा।

“अच्छा मशविरा है। कल जब वह जंगली औरत खाना देने आए तो मेरी शादी का रिश्ता देना उसे।” सलीम ने पूरी गंभीरता से कहा।

“मुझे नींद आ रही है।” श्रेया ने कहा।

“मैं यहां बंद नहीं रह सकता। यहां से निकलने का उपाय करना है।” सलीम ने कहा।

“यह नामुमकिन है। मैं दरवाजे का पत्थर हटाने की काफी कोशिश कर चुकी हूं। कल रात जब वह खाना देने आएगी तो निकल भागेंगे।”

“वह जंगली सुबह मुझे झोपड़ी में नहीं पाएंगे तो तलाश में जुट जाएंगे। उनकी तादाद ज्यादा है और हथियार भी हैं। मेरे पास एक खाल के सिवा कुछ नहीं है। मुझे यह भी नहीं पता कि हम कहां हैं। इस वजह से फिलवक्त उन जंगलियों से टकराव ठीक नहीं है।” सलीम ने कहा।

“क्या तुम उनके मेहमान हो?” श्रेया ने पूछा।

“बाद में बताऊंगा।” सलीम ने चारों तरफ देखते हुए कहा, “एक अजीब बात यह है कि गुफा में घुटन नहीं है।” फिर चौंकते हुए कहा, इसका मतलब यह है कि कहीं से अंदर हवा आ रही है।

“मुझे नहीं पता।” श्रेया ने कहा।

“एक बात बताओ... यह गुफा अंदर और भी गहरी है क्या? तुम ने दिन में तो देखा होगा न!”

“काफी गहरी गुफा है... लेकिन अंदर का हिस्सा काफी पतला है। वहां सिर्फ बैठ कर ही जाया जा सकता है।” श्रेया ने कहा।

उसकी बात सुनने के बाद सलीम टटोल टटोल कर आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर जाते ही रास्ता संकरा हो गया था। सलीम लेट गया और कोहनी के बल रेंग कर धीरे-धीरे अंदर सरकने लगा।

थोड़ा अंदर जाने के बाद ढलान शुरू हो गई। अब उसके लिए सरकना आसान हो गया था। कुछ दूर और चलने के बाद उसके चेहरे पर ठंडी हवा का झोंका टकराया। सलीम जोर से चिल्लाया यूरेका... यूरेका....।


*** * ***


इंस्पेक्टर सोहराब को कागज का कौन सा टुकड़ा मिला था?
क्या सार्जेंट सलीम गुफा से निकल सका?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...