समीक्षा कहानी संग्रह- जमुनीः मिथिलेश्वर
रोचक किस्सागोई
मिथिलेश्वर हिन्दी कहानी के एक सशक्त कथाकार हैं। हिन्दी कथा जगत में मूल रूप से गॉंव के लोगों की, गॉंव के मुद्दों की, ग्रामीण किस्सों की तरह कथायें लिखने वाले लेखकों में मिथिलेश्वर का नाम आरम्भ से ही चर्चित रहा है।
‘जमुनी’ नाम से ग्यारह कहानियों का मिथिलेश्वर का ताजा कहानी संग्रह उनकी सद्य रचनात्मकता की बानगी के रूप में सामने आया है। इस कथाओं में गॉंव भी है, शहर भी है, और कस्बा भी। इस संग्रह में समाज में यहां-वहां पाये जाने वाले वृतांत्त हैं। दरअसल ये कहानियाँ मनुष्य की कहानियां है- मनुष्य के मन की, मनुष्य की परिस्थितियों की, मनुष्य की नीचता की और कहीं-कहीं मनुष्य की कामुकता की।
अगर जमुनी की एक-एक कहानी का विश्लेषण किया जाये तो हम पाते हैं कि संग्रह की पहली कथा छूंछी करूणा छल और समाज के प्रपंच की ही कहानी है। इस कहानी में गॉंव की निराश्रित एक बूढ़ी महिला के मर जाने पर गॉंव वाले परस्पर चंदा कराके बूढ़ी महिला के शव की अंतिम क्रिया हेतु श्मशान ले जाते हैं। श्मशान में बैठा लकड़ी वाला चिता की लकड़ी की कीमत में नगद रूपये मांगता है उसे जगन समझाता है । फिर जब यह बिंदु आता है कि कौन चिता को अग्नि दे और तेरह दिन कौन लग्गी-बच्छी से रहे ? सो कोई आगे नही आता, और डोम से चिता को आग देने को कहा जाता है, तो वह इस काम के लिए शुल्क मांगता है। उससे कहा जाता है कि बुढ़िया की नाक में सोने की छूंछी (सोने का आभूषण) पहनी हुई थी जब राख उठाते वक्त पानी पर मिलेगी, उसे तुम ले लेना और कुछ हिस्सा लकड़ी वाले को दे देना। राख उठाते वक्त राख में छूंछी नहीं मिली तो परेशान हाल डोम गॉंव में आया, गॉंव वालो को पता लगा तो सब गॉंव वाले डोम तथा उस स्त्री नक्षत्तरी पर शंका करते हैं, जिसे छूंछी निकाल कर लाश के मुंह में रखने को कहा गया था । विचार विमर्श होता है कि डोम और नक्षत्तरी में झूठा कौन है ? लोग बहुत सोच विचार करते हैं फिर सबसे कमजोर होने के कारण डोम को ही झूठा ठहराते हैं। यहीं संसार की नीति है कि कमजोर पर सब आरोप लगाते हैं।
दूसरी ‘विषवृक्ष’ नामक कहानी में समृद्ध किसान और पुराने जमींदार के वंशज ब्रह्यदेव के यहां लठैत-बनिहार-चरवाह बेगार करते रहते हैं। एकाएक एक रात उनके यहां डाका पड़ता है जिसमें उनके खुद के लठैत भी शामिल हैं, डाके के बारे में ब्रहमदेव अदालत में नालिश दर्ज कराके मुकदमा करते हैं, तो उन्हें धमकियाँ मिलने लगती है। वे उन क्षणों में तय करते है कि घर मे ंसबको सीधा सच्चा नही रहना चाहिए घर में एक टेड़ा आदमी भी रहना चाहिए। वे निर्णय करते हैं कि अपने बड़े बेटे समरजीत को पालपोस कर लठैत ही बनायेगं कि जो चाहें व ताकत के दम पर हो सके । समरजीत जब बड़ा होता है तो अपने दुश्मन ग्रामवासियों को अपने बल का परिचय देकर आतंकित कर अपने परिवार का खोया हुआ वैभव लौटाता है, और ब्रह्यदेव प्रसिद्ध होते है। पर समरजीत का एक पक्ष यह भी है उसके आचरण बिगड़ जाते है, वह एक गेंग बनाकर लूटपाट शुरू कर देता है और दुखी ब्रहमदेव अपने मन को समझाकर बेटे के पक्ष में बड़े से बड़ा वकील खड़ा कर उसका बचाव करते रहते हैं। बाद में समरजीत की हरकतें बढ़ जाती है उसका ब्रह्यदेव को धमकाना, छोटे भाई की मारपीट, वेश्या का नाच रोकने पर पत्नि की पिटाई तथा घर के जेवर उठाकर ले जाने के काण्ड देखकर घर में एक टेड़ा आदमी रहने के लिए अपने बड़े बेटे के रूप् में इस विष वृक्ष को खड़ा करने के अपने निर्णय पर ब्रह्यदेव सिवाय दुःख प्रकट करने और रोने के और कुछ नहीं कर पाते। बुरे का बदला बुरा ही मिलता है यह बात फिर सिद्ध होती है।
शीर्षक कथा ‘जमुनी ’ में ञिउत नामक ग्रामीण अपनी भैंस जमुनी के बीमार पड़ जाने से परेशान है। सब लोग उसकी मदद करने को तैयार हैं। गॉंव की परम्परा अनुसार इलाज के तहत भैंस पर ओझाई करने अलिहार आता है, तो जड़ी-बूटी देने सुपरशन्न आता है। जमुनी के बीमार होने से घर में सब इतने चिन्तित हैं कि ओझाई औरे जड़ी बूटी के अलावा भैंस के वास्ते पशु ड़ाक्टर की भी दवाई ली गई है। भैंस से परिवार का बहुत गहरा जुड़ाव है, इस कारण रात को किसी को भी नींद नही आती। रात भर ञिउत, रतिया, जोगनी व सरयू को जामुनी से जुड़ी तमाम घटनाओं की याद आती है, ...कभीं जमुनी के घर में आ जाने के बाद बदली आर्थिक स्थितियों का जिक्र आता है कभी कोई घटना। रात बीतती है, सुबह होते-होते जमुनी उठ खड़ी होती है। तो घर में हर्ष की लहर दौड़ जाती है। एक साधारण ग्रामीण परिवार का आने दुधारू पशु से आत्मीय जुड़ाव और ग्रामीणों के मन में अपने पालतु पशुओं के प्रति गहर प्रेम की कहानी है जमुनी। कहानी की हर पंक्ति में लगता है कि जमुनी बेजान पशु नहीं मानुस जाति का कोई सदस्य है।
कहानी ”संत की सोर पाताल तक में ” समाज में व्याप्त रिश्तों और संबंधों व उनके निभाव तथा अपराध की दुनिया में चले गए लोगों के मनोभाव की कहानी है। कहानी में एक प्रोफेसर अपनी पुत्री के ब्याह सम्बन्ध के सिलसिले में सुदूर गॉंव नाथपुर गये हुए थे, लेकिन वे जब नाथपुर से लौट कर बस मिलने के स्थान यानि सड़क पर आते है, तब तक उनकी आखिरी बस निकल चुकी होती है। बस अड्डे के दहसत के माहौल के बहुत सारे समाचार सुनकर वह बस अड्डे से निकल कर सुरक्षा की दृष्टि से नजदीक के गॉंव के लिये रात्रि विश्रााम हेतु चल पड़ते हैं । वे अकस्मात् ही एक ऐसे मकान में दस्तक देते हैं जो डाकुओं का अड्ड़ा है। अजनबी को देख कर उन पर हमले की मनसा बनती है कि दल के दो डाकुओं के मना करने पर उसकी जान बख्श दी जाती है और उन्हें भोजन व बिस्तर दिया जाता है । प्रातः वे प्रोफेसर घर के लिए चल पड़ते हैं। रात को उनका पक्ष लेकर हमला रोकने वालें दोनों व्यक्ति लगातार उनकी निगरानी करते रहते हैं , दरअसल वे दोनों कभी उन प्रोफेसर के छात्र रहे हैं, जिनकी उन्होंने मदद की है।
एक कहानी ‘नही की राह में ’ भी संयोगों और बदलती परिस्थितियों की कहानी है। कहानी में आलोकनाथ नामक एक युवक दुबई की जेल में सात वर्ष विचाराधीन कैदी के रूप में काट कर दिल्ली लौटता है और अपने गॉंव जाने के लिये ट्रेन में बैठ जाता है। एक-एक स्टेशन पर रूकती चलती ट्रेन के सफर के दौरान उसको अपने जीवन के एक-एक कालखंड़ की कथा याद आती है। उसे याद आता है कि अपने मामा के गॉंव की अपूर्व सुंदरी मालती से विवाह हो जाने के बाद वह किसी बड़ी और इज्जतदार नौकरी की तलाश में पिछड़ जाता है तो विवश होकर अंततः कारखाने के एक बड़े बाबू पड़ौसी गॉंव के अजयपाल नामक युवक को पन्द्रह हजार रूपये रिश्वत देकर बम्बई के एक कारखाने में नौकरी पा लेता है। साम्प्रदायिक दंगे में कारखाना बंद होता है, आलोकनाथ की नौकरी छूट जाती है अच्छी नौकरी की तलाश में वह दुबई चला जाता है, जहांँ तस्करी के झूठे आरोप में कई साल जेल में रहता है। अपने गॉंव लौटकर वह स्तंभित रह जाता है, क्योंकि इस बीच अजयपाल से उसकी मृत्यू का झूठा समाचार पाकर घर में उसकी अंतिम क्रियायें हो चुकी है। यही नहीं उसकी पत्नि मालती की दूसरी शादी आलोक के विधुर मौसेरे भाई ब्रजनन्दन से हो चुकी होती है। आलोकनाथ ब्रजनंदन के यहां पहुंच कर अपने जीवित होने की खबर देकर अपनी पत्नी वापस लेने चल पड़ता है और जब वह ब्रजनन्दन के गॉंव तक पहुंचता है कि कथाकार कथा रोक लेता है। दरअसल कथा के कई सम्भावित अंत बताकर लेखक यह हिस्सा पाठकों के निर्णय पर छोड़ता है, कि वे सोचें कि कथा का अंत क्या और कैसा होसकता है ?
छोटी कहानी ‘सुबह की प्रतीक्षा’ निजी विद्यालयों में चल रहे लम्पटपन, शोशण और युवा बेरोजगार महिलाओं की मानसिकता पर आधारित है। कहानी में रूचिका नामक युवती सहेली क्षिप्रा के साथ एक पब्लिक-स्कूल में शिक्षिका की नौकरी हेतु जाती है तो प्राचार्य नाथ उसका स्वागत कर उसे नियुक्ति दे देता है। एक पल को अकेले मिलने का अवसर पाने पर वह रूचिका को बार-बार छूता रहता है। वह संशय में रहती है कि बाद में एक दिन वह प्राचार्य की बाहों में कसमसाती शिक्षिका विमला और क्षिप्रा को देखकर सन्न रह जाती है और घर जाकर लौटकर रात को तय करती है, कि वह किसी स्कूल में नौकरी नही करेगी, खुद का अपना स्कूल खोलेगी। स्कूलों में अल्पवेतन भोगी शिक्षिकाओं की मजबूरी में बीतते दिनों की गहरी रात उस पर भारी न हो जाये, इस बेकरारी से वह सुबह की प्रतीक्षा कर रही है कि कहानी समाप्त हो जाती है।
एक अन्य कथा ‘भूकंप ’ में भी संयोगों और मानव मन के भावों की कथा है। एक कस्बे में भूकम्प के झटके आ रहे है ऐसे में जैसा कि अमूमन होता है, शरारती लोग सक्रिय हो उठे हैं जिनमे से कोई भी कभी भी भूकम्प की अफवाह उड़ा रहा है। कस्बे का चंदेल नामक एक युवक अपने माता पिता और बहन के साथ निवास करता है । किसी शरारती द्वारा एक रात फैलाई गई भूकम्प की अफवाह सुन कर और संयोग से आंधी-पानी की शुरूआत देख सुनकर वह डर जाता है और ऐसी आसन्न विपदा से बचाने हेतु अपने घर से निकल कर अपनी प्राणप्रिया अपनी प्रेमिका जूही के घर की ओर दौड़ पडता है। जूही के सामने के मैदान में पहुंचते पहुंचते वह वहां भाग रहे गिरते पड़ते लोगों से घिर जाता है और स्वयं गिर पड़ता है तो उठ नही पाता। लोग एक दूसरे पर गिर रहे हैं कि अचानक उसके ऊपर एक मानव काया दुंर्गंध छोड़ती हुई आके गिर जाती हैं जो चंदेल के लाख प्रयत्न करने पर भी उठाये नहीं उठती है। वह वेवशी में ज्यों का त्यों पड़ा रहता है। सुबह यह देखकर उसका दिमाग फिर जाता है कि रात भर उसके उपर लदी रही दुर्गंधित मानव काया जूही ही थी। जो अब मर चुकी थी।
कहानी ‘प्लेग’ अफवाहों और प्रशानिक सावधानियो ंकी कहानी है। शहर में एक भिखारी समाप्त हो गया है, देश में फैल रहे समाचारों से ज्ञात होता है कि सब जगह महामारी प्लेग फैल रही है। उस भिखारी की लाश पोस्टमार्टम हेतु ले जाई जाती है। इधर लोग प्लेग से बचने के तरीके अपनाते हुए कपूर-लवंग, सुगंधित अगरबत्ती और ट्रेट्रोयाक्लीन की दवायें जुटाने लगते हैं। कथा नायक प्रहलाद बाबू को कहीं भी प्लेग की दवायें नहीं मिलती जिनकी तलाश मे वे चक्कर लगा रहे है। चौथे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चलता है कि भिखारी की मृत्यू प्लेग या किसी अन्य बीमारी से नहीं बल्कि भूख से हुई है । प्रशासन द्वारा घोषण की जाती है कि संकट टल गया है ! यह घोषणा सुनकर प्रहलाद सोच में पड़ जाते हैं कि हमारे देश में भूख से एक आदमी मर गया इस खबर से समाज का संकट बढ़ा है या टल गया है?
कथा ‘दुर्घटना’ हमारे आसपास घटने वाली सामान्य सी लेकिन विचारणीय प्रवृत्ति पर केन्द्रित है। कहानी में रामसेवक जी के एक दुर्घटना में घायल होजाने से उन्हें देखने आने वालों का तांता लगा है । गॉंव से पुराना नौकर भागीरथ बुलाया जाकर सेवा में लगाया गया है। मिजाजपुर्सी के लिए बहुत से लोग पूछपाछ करते हैं , उम्दा आदर सत्कार पाते हैं और चले जाते है। सेवा और सहयोग कोई नहीं करता। घर के लोग भी नहीं करते । बुआ की बेटी तथा बेटे की अफसर के देखने आने का समाचार जानकर एक सेवक बाबू अनपेक्षित रूप से आने वालें पुछारों को आना निषेध कर देते है तो घर के सदस्य (बेटे-बेटियां बहु) व मेहमान भी चले तो जाते है पर राम सेवक बापू सुखी शांत महसूस करते है।
कहानी गूंगा गंगू गॉंव के लाल बुझक्कड़ टाइप के लोगों की कहानी है। कहानी में रज्जू बाबा नाम के एक साधू गॉंव के मुखिया के बेटे मिठठू के गायब हो जाने के बाद एक अनुष्ठान करने का दिखावा करते हैं, संयोग से मिटठू लौट आता है तों गॉंव बालों में बाबा का सिक्का जम जाता है। बाद में मुखिया की पत्नी का हार चोरी चला जाता है तो बाबा मुखिया की दाई पवितरी का नाम बता देते हैं, जिसे मारा पिटा जाता है। बाबा ने अपने सेवक के रूप में गूंगे गंगू नामक बच्चे को रखा हुआ है जो अपनी मां सदृष्य पवितरी की मारपीट सह नहीं पाता और तरकीब भिड़ाकर बाबा का रहस्य खोल देता है। बाबा की मारपीट होती है और मुखिया गंगू को नौकर रख लेता है।
अंतिम कहानी वैसाड़ीह की चंद्रावती देह संम्बंधों और उनके गाढ़े आवेग तथा दृड़ संकल्पित महिला की कथा है। इस कहानी में चंद्रावती नामक भद्र महिला अपने पति के साथ नये शहर रांची पहुंचती है और अनायास एक दर्जी ‘प्रभु टेलर्स’ के यहां कपडे़ सिलने ड़ालने जा पहुंचती है, तो वहां प्रभुनाथ को बैठा पाती है। प्रभुनाथ से चंद्रावती के देह सम्बन्ध रहें हैं वे लोग युवावस्था में साथ भागे और पकड़े गये हैं। प्रभुनाथ चंद्रावती को देख कर काम विहवल हो जाता है और फिर से चंद्रावती के पास आना चाहता है, इस प्रयास में वह चंद्रावती के परिवार से निकटता बढ़ा लेता है। एक बार चंद्रा के पति दौरे पर बाहर जाते हैं तो घर परिवार की देखभाल के लिये प्रभुनाथ को ही छोड़ जाते हैं। रात में प्रभुनाथ चंद्रावती को पुरानी याद दिलाकर देह सम्बन्ध हेतु उकसाता है, पर चंद्रावती उसे तर्क पूर्ण बातचीत से इन्कार कर देती है। प्रभुनाथ सही रास्ते पर आ जाता है।
उपरोक्त सभी कहानियों में सब से ज्यादा सशक्त कथा जमुनी ही है। एक भैंस से भैंस पालक परिवार के सदस्यों का कितना गहरा लगाव हो सकता है, इसका सूक्ष्म और मनोविज्ञानिक चित्रण इस कहानी में मिथिलेश्वर ने किया है। कथा पढ़ते-पढ़ते पाठक खुद भी जमुनी से प्यार करने लगता है और जमुनी जैसी भैंस की चाह करने लगता है। यह कथा पढ़ते-पढ़ते अनायास गोदान (प्रेमचंद्र) की याद आ जाती है। जमुनी नयी स्थितियों में नयी कहानी है जहां जगह-जगह पर कथा के पात्र इस भैंस को धेनु के रूप में याद करते है। छूंछी, नही की राह में और विषवृक्ष भी ग्रामीण परिवेश की कथायें है। छूंछी में अनाथ बुढ़िया की मृत्यू के बाद उसकी नाक की लोंग (छूंछी) की खोज पड़ताल उसकी कीमत, चोरी की शका नये दृष्य पैदा करती है जो ग्रामीण मन की निष्पक्ष पड़ताल है। विषवृक्ष में गॉंव की समृद्व युवा पीढ़ी के अपराध की ओर बढते पांवो का परिचय देती है।
भाषा और कहन में इस संग्रह की सभी कहानियां पाठक को बांधती है। मिथिलेश्वर अपने अंचल अंचल से बड़ें चुने हुये शब्द परिवेश को साकार करने के लिये कहानियों में प्रयोग करते हैं जो हिन्दी साहित्य का शब्द सागर बढाते है। हिन्दी की कई कहावतें, मुहावरें इस अंचल में रूप बदल के मौजूद है यह झलकी भी इनक कथाओं में मिलती है। चूहें दंड पेलते हैं, की जगह मुसरी दंड करती थी तथा गरीब की लुगाई गॉंव भर की भउजाई की जगह, उनबरा की मउगी, गॉंव भर की भउजी जैसे प्रयोग यहां देखे जा सकते है। मिथिलेश्वर क्रिया की जगह आंचलिक शब्द नहीं लाते बल्कि वस्तु विशेष या रस्म विशेष के लिये आंचलिक शब्द लाते हैं, जिससे परिवेश साकार हो जाता है। और पाठक को अर्थ समझने में दिक्कत नहीं होती।
संग्रह की कुछ कथायें कमजोर भी है संभवतः तात्कालिक चिंताओं, प्रष्नों और मार्मिक अनुभूतियों को चित्रित करने के लिये लेखक ने ये कथायें रच दी है। नही की राह में एक फिल्मी कथा ज्यादा लगती है, जहां मुम्बई और दुबई में रहता नायक अपने घर पत्र लिखकर हालचाल नहीं लिखपाता। वहीं पत्नि के पति पागलपन की सीमा तक का आकर्षण इसे फिल्मी बना देता है। गूंगा-गंगू या तो बाल कथा लगती है या सरिता में छपने वाली पाखण्ड़ भंजक कोई कहानी। वैसाड़ीह की चंद्रावती भी सत्य कथा के ज्यादा निकट लगती है, बस रसपूर्ण-उत्तेजक विवरण का न आना ही इसे साहित्यिक कहानी बनाये रखता है। सत की सोर पाताल तक जैसे हादसे कभी भी किसी के साथ हो सकते है। अतः यह उम्दा कहानी उपदेश प्रधान होते हुये भी पठनीयता लिये हुयें है।
भूकंप सुबह की प्रतीक्षा और प्लेग भी तात्कालिक समस्याओं पर सुने, पढें अनुभवों को कथा रूप में लिख देने के कथाकार के कौशल की परिचायक है।
अलबत्ता पूरा संग्रह पढनें के बाद विशुद्ध पाठक की प्यास शांत होती है। इस संग्रह की कहानियां समाज के हर वर्ग को पसंद आयेगी। भारत के नये गॉंव की मुकम्मिल तस्वीर भी इन कथाओं में है तो मध्यमवर्ग के साथ रोज व रोज घटते होदसे भी मौजूद है। बहर-हाल ये कथायें मिथिलेश्वर की रोचक किस्सा गोई की मिसाल है।
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